Wednesday, December 31, 2014

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हर महकमे में रावण, आम आदमी कुम्भकर्ण 

भ्रस्टाचार का रावण खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा. आम भारतीय  चाहे तो इसे ख़त्म कर सकते हैं, परन्तु हम सबको इंतज़ार है की वे कब जागेंगे?  

नया भारत - नयी तस्वीर 
चाहे मेक इन इंडिया हो या मंगल यान, या फिर सयुंक्त राष्ट्र में हिंदी में उद्बोधन का निर्णय, या फिर गंगा एक्शन प्लान - आज देश की एक नयी छवि उभर रही है - लोगों के सपने साकार करने का समय आ गया है. चाहे अमेरिका चाहे चीन, हर देश आज भारत को एक बड़ी शक्ति और एक बड़ी अर्थ-व्यवस्था के रूप में देख रहा है. हर बहुराष्ट्रीय कम्पनी भारत को अपना सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य मान रही है. आज जरुरत है की हम भारतीय दूसरों के आगे झुकना छोड़ें और अपनी शर्तों पर आगे की तरक्की की राह बनाएं. आज हमारे देश की युवाओं में अपने देश के लिए कुछ नया करने की ख्वाहिश है. नवाचार और मेहनत का परिणाम सामने आ रहा है. ज्यादातर भारतीय परिश्रमी, ईमानदार, संस्कारी और सृजनशील है. देश की तरक्की और प्रगति के असली नायक भारत के आम आदमी हैं और जिस दिन वे अपनी ताकत को पहचान जाएंगे, उस दिन इस देश में असली आजादी का जश्न हर घर मनाएगा 

बढ़ता भ्रस्टाचार, बढ़ती जागरूकता 
यह सही है की भ्रस्टाचार बढ़ रहा है, लेकिन जागरूकता भी बढ़ रही है. जिस दिन आम आदमी पूरी तरह से सशक्त हो  जायेगा, भ्रस्टाचार पर अंकुश लग जाएगा. 

इ-गवर्नन्स - नए समाज की जादू की छड़ी 
इ-गवर्नन्स भ्रस्टाचार पर अंकुश लगता ही है साथ ही आम आदमी को सहूलियत भी देता है. आज इ-गवर्नेंस के कारन आप किसी भी सरकारी तंत्र की अव्यवस्था पर घर बैठे शिकायत कर सकते हैं जिस पर निश्चित समय में कार्यवाही होगी ही होगी. आज आपको अपने मूल निवासी प्रमाण पत्र या अपनी जमाबंदी के लिए घुस नहीं देनी पड़ती न ही सरकारी विभागों के चक्कर लगाने पड़ते हैं. आगे आगे देखिये इ-गवर्नन्स आपको कितनी सुविधाएँ देगा और किस प्रकार भ्रस्टाचार खत्म करेगा 

भ्रस्टाचार के खिलाफ युवा असंतोष 
अगस्त २०११ के दिन याद करिये. जब अन्ना ने भ्रस्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई तब लाखों लोग, ख़ास कर  युवा वर्ग एक शांतिपूर्वक आंदोलन के लिए सड़कों पर उत्तर आये थे. युवा वर्ग को एक उम्मीद दिखी थी की भ्रस्टाचार के खिलाफ एक मजबूत व्यवस्था बनायीं जायेगी. पिछले दो दशकों में कई कानून व् व्यवस्थाएं बानी हैं जिनसे भ्रस्टाचार को रोकने में मदद मिली है जैसे सुचना का अधिकार, लोकपाल, लोकायुक्त, और केंद्रीय सतर्कता आयोग आदि के कानून इस दिशा में सकारात्कम पहल है लेकिन अभी और भी मजबूत कानून और व्यवस्थाएं चाहिए. परिवर्तन की शुरुआत हुई है लेकिन मजबूत कानून और व्यवस्थाएं अभी बाकी हैं. 

दलालों का यह देश 
मुझे किसी ने तुषार दलवी की कहानी सुनाई. ६० वर्षीय तुषार NRI हैं और उनको इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से रिफंड लेना था. उन्होंने बहुत कोशिश की परन्तु जिससे भी मिले वो एक दलाल निकला. सब जगह रिश्वत की मांग. बाबू से लेकर चार्टर्ड अकाउंटेंट तक सबने कहा बिना रिश्वत के यह काम नहीं होगा. तुषार ने भी ठान लिया की वो कोई रिश्वत नहीं देंगे. पांच साल तक चक्कर लगा कर जब उन्होंने हर आदमी में छिपे दलाल से तंग आ कर उन्होंने सुचना के अधिकार के तहत आवेदन किया और जो काम पांच साल में नहीं हुआ था वो काम फटाफट हो गया. यह देश अब बदल रहा है और भविष्य में दलालों का देश नहीं कर्मठ लोगों का देश बन जाएगा. 

रिश्वत के तले दबी सरकारी योजनाएं 
कल तक का दबा कुचला भारतीय आम आदमी आज बदल रहा है. आज उसको अपनी आवाज की ताकत का अहसास हो रहा है. यह सब एक सोये हुए शेर के जागने जैसा ही होगा. जिस दिन यह शेर उठ जाएगा और दहाड़ मरेगा, सोचिये कितना आनंद आएगा. देश अपनी आजादी का असली जश्न मनाएगा. क्या आपने मजलूम नदाफ की कहानी सुनी है? मजलूम बिहार में रिक्शा चलने वाला एक आम आदमी है.  उसने घर बनाने के लिए इंद्रा आवास योजना में आवेदन किया. ओरों की तरह उसको भी किसी सरकारी बाबू ने ५००० रूपये की रिश्वत देने के लिए कहा. मजलूम मामूली आदमी है लेकिन जागते हुए भारत की तस्वीर है. उसने कानून का सहारा लिया. एक मामूली आदमी की जीत हुई और आज उसका मकान तैयार है - बिना किसी प्रकार की रिश्वत दिए. यह जीत है नए भारत की.  यह जीत है आम आदमी की. यह शुरुआत है एक नए ज़माने की. यह तो सिर्फ शुरुआत है. आप भी अपने कदम बढाइये और एक क्रांति की शुरुआत हो जायेगी. सैकड़ों सरकारी योजनाएं आज हमें सिर्फ लालच देती हैं लेकिन बिना रिश्वत के उनमे काम नहीं होता है. जरुरत है की आज हम आवाज उठायें की हमें कोई सरकारी सहायता नहीं चाहिए. सरकारी योजनाएं कम होगी तो फिर इनका उपयोग भी प्रभावी होने लग जाएगा और फायदा भी गरीब और जरूरतमंद लोगों को मिलने लग जाएगा.  
जरुरत नए साहस की : आज का आम आदमी यह साहस रखता है की वह खड़ा हो कर भ्रस्टाचार के खिलाफ आवाज उठा सकता है. क्या आप ने महाराष्ट्र के कहरुला गाव की बानाबाई की कहानी सुनी है. बाना बाई के गाव के पास बना बाँध एक साल में ही टूट गया और उससे पानी रिसने लग गया था. यह भ्रस्टाचार का मामला था. जो काम गाव और शहर के पढ़े लिखे लोग नहीं कर सके, वो काम गाव की इस अनपढ़ महिला ने कर दिखाया. इस महिला ने हिमायत कर के सभी सरकारी अधिकारीयों को शिकायत की - जवाब नहीं मिलने पर मुख्य मंत्री तक तो लिखवाया. जवाब नहीं मिलने पर स्वयं कलेक्टर से जाकर पूछा "तुम्ही पैसे खाले क्या - यानी क्या आपने पैसे खाए हैं?" और इस एक प्रश्न ने क्रांति ला दी. भ्रस्ट अधिकारीयों के खिलाफ जांच शुरू हो गयी. बाना बाई के साहस को सलाम. 
हर दिन भ्रस्टाचार के खिलाफ कोई न कोई आवाज उठा रहा है और कोई न कोई भेड़िया गिरफ्त में आ रहा है. यह एक नयी आजादी की शुरुआत की तरफ एक इशारा है. जरा सोचिये की कितना आनंद आएगा जब आप अपने गाव या अपने शहर में किसी भी सरकारी कार्यालय में जाएंगे और वह वैसी ही सेवाएं मिलेगी जैसी आजकल निजी क्षेत्र में मिल रही है. आपको आपके हक़ के लिए तहसीलदार या पटवारी के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे. आपको आपकी आवाज की ताकत पर अभी यकीन नहीं है लेकिन यकीन रखिये आप नहीं तो बाना बाई जैसे महिलाएं ही इस देश को बदल कर रख देगी. फिर मजे करियेगा एक आजाद मुल्क में. एक ऐसे जहाँ मैं जहाँ पर कदम कदम पर रिश्वत नहीं देना पड़ेगा. 

रिश्वत मैं एक कोडी भी नहीं देने वाले ये बहादुर 
देश मैं आज एक के बाद एक कर के अनेक ऐसे युवा सामने आ रहें हैं जो रिश्वत में एक कोडी तक नहीं देने के लिए कृतसंकल्प है. ये लोग डट कर सरकारी तंत्र का मुकाबला कर रहे हैं और सफल भी हो रहे हैं . आज इनकी देखा देखि युवा वर्ग भ्रस्टाचार के खिलाफ चट्टान की तरह खड़ा हो रहा है. यहाँ तक की युवा वर्ग तो भ्रस्ट सरकारी तंत्र में नौकरी करने को भी आखरी प्राथमिकता दे रहा है. युवा वर्ग भ्रस्ट सरकारी तंत्र से बिना डरे सच्चाई की राह पर अडिग है. आपने वरुण आर्य की कहानी सुनी होगी. जोधपुर में वरुण आर्य को अपनी संस्था खोलने के लिए कितने सरकारी महकमों का विरोध झेलना पड़ा (क्योंकि उन्होंने रिश्वत देने से मन कर दिया) लेकिन जीत वरुण आर्य की ही हुई और आज किसी सरकारी महकमे में उनके सही कार्यों को रोकने का साहस नहीं है. यही असली आजादी है.  जरुरत है की ऐसी कहानियों को भी आम आदमी जाने जिससे उसमे सोया शेर जाग जाए.  इस युद्ध में आम आदमी का कोई नुक्सान नहीं होगा, जीत भी उसकी निश्तिच है और जीत के बाद जो आजादी मिलेगी उसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. 

यकीं मानिए भ्रस्टाचार के रावण को समाप्त करने का समय आ गया है. जिस दिन आप हुंकार भरेंगे - ये सभी भ्रस्टाचारी घबरा जाएंगे. जैसे हनुमान जी ने लक्ष्मण जी को संजीवनी से नयी जान दे दी थी वैसे ही आज फिर से आम भारतीय को जगाने वाला चाहिए - फिर देखिये कमाल रिश्वत खोरों की रातों की नींद और दिन का चैन गायब हो जाएगा और सदियों से दबा कुचला आम भारतीय असली अर्थ में आजाद हो जाएगा और भारत फिरसे सोने की चिड़िया बन जाएगा 
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आईये दीवारें तोड़ें और बर्लिन-वाल तोड़ने  की २५वि वर्षगाँठ मनाएं 

आज से २५ वर्ष पहले यानी ९/११/८९ को जर्मनी के लोगों ने मिल कर बर्लिन दिवार को तोड़ दिया था. यह सिर्फ दिवार तोडना नहीं था, परन्तु आम जनता की इच्छाशक्ति और पहल की प्रतिनिधि घटना थी. आज उसकी २५ वि वर्षगाँठ हैं. यह एक मौका है को फिर से उसी जज्बे को याद किया जाए और मानवता को ट्रस्ट कर रही दीवारों को ध्वस्त करने के लिए कुछ पहल की जाए. तभी हम सच्चे अर्थ में उस असाधारण मानवीय प्रयास को याद कर पाएंगे. जहाँ जहाँ पर भी सरकारें लोगों के बीच दीवारें कड़ी कर के उनके बीच दूरियां पैदा कर रहीं हैं, उन सभी प्रयासों को फिर से देखने की जरुरत है. जहाँ जहाँ पर भी जान-मानस की इच्छा के खिलाफ उनके ऊपर सरकारी नियम और कानून थोपे जा रहें हैं उनको फिर से देखने की जरुरत है. जहाँ जहाँ भी आम व्यक्ति के हितों की सिर्फ कुछ निहित हितों के लिए बलि चढ़ाई जा रही है उसको फिर से देखने की जरुरत है. आईये हम सब मिल कर इन सभी प्रक्रियाओं को देखें और इनको सुधरने और सवांरने के लिए प्रयास करें. आईये आज फिर से मानव निर्मित दीवारों और बाधाओं को हटाने के लिए प्रयास शुरू करें. 

दीवारें जो हम को जकड़े हुए हैं : 
बहुत साड़ी दीवारें हैं लेकिन में यहाँ सिर्फ कुछ गिनी चुनी दीवारों की बात करूँगा. चुकी मैं शिक्षण संस्थाओं से काफी समय से जुड़ा हूँ अतः उनकी दीवारों की भी बात करूँगा. 
देशों के बीच की दीवारें -  वैश्वीकरण के घोर और अनियंत्रित स्वरुप के बावजूद देशों के बीच आज भी दिवारी ज्यों की त्यों हैं. विकसित देश अपने यहाँ  विकासशील देशों से आने वाले लोगों को रोकने के लिए जी जान से लगे हुए हैं. एक तरफ वे बजरी संस्कृति से विकसित देशों को तहस नहस कर रहें हैं और दूसरी तरफ वे विकासशील देशों के युवाओं को आकर्षित कर रहें हैं ताकि उनकी यहाँ के युवा उनकी जरूरतों को पूरी कर सके. देशों के बीच की दीवारें लगातार बढ़ रही है.  

राज्यों के बीच की दीवारें
भारत में अलग अलग राज्यों के बीच की दीवारें मजबूत होती जा रही हैं. एक राज्य से दूसरे राज्य स्थानांतरित होते ही समस्याएं शुरू हो जाती हैं. ये समस्याएं यहाँ के युवाओं को 
तोड़ रही हैं और झकझोर रही है. आज फिर से जरुरी है की हम राज्यों के बीच की दीवारों को फिर से देखें. हो सकता है की इन बाधाओं से राज्यों की आय बढ़ती हो परन्तु हमें लोगों के आपसी तालमेल और सामंजस्य से होने वाले सामजिक और मनोविज्ञानिक फायदों को भी ध्यान में रखना चाहिए. हमको प्रयास करने चाहिए की हमारे युवा राज्यों की संकीर्ण सीमाओं से पर सोच कर देश और पुरे समाज के विकास के लिए प्रयास कर सकें. संचार और सुचना तंत्र के साधनों को आसान और सुगम बनाना पड़ेगा. एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच संवाद और आपसी व्यापर को सुगम और किफायती बनाना पड़ेगा. 

जनता और प्रशाशन के बीच की दिवार 
जनता जो चाहती है और सरकार जो कर रही है उस के बीच में बहुत फर्क है. सरकार घोषणा पत्र में कुछ कहती है और हकीकत में कुछ और करती है. जनता की मांग अनसुनी कर दी जाती है. आप देख सकते हैं की ५८ साल बाद भी (राजस्थान ५८ साल पहले नवम्बर महीने में ही बना था) राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं मिली है - राजस्थान की क्षेत्रीय भाषाओँ की तो क्या बात करें. जिस हेतु राजस्थान के लोग इतने वर्षों से प्रयास कर रहें हैं उस के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया गया है. कई बार ऐसा होता है की जनता के एक पक्ष की मान दूसरे पक्ष की मांग के विपरीत होती है, तब यह संभव है की सरकार देर करे. परन्तु राजस्थानी भाषा की मान्यता के साथ तो ऐसी कोई बात भी नहीं हैं. 

शिक्षण संस्थाओं के बीच की दीवारें

आज भी अलग अलग शिक्षण संस्थाओं में तालमेल और आपसी सहयोग का आभाव है. इसी के कारण आम विद्यार्थियों को उतना फायदा नहीं मिल पाटा जितना मिलना चाहिए तथा शोध और अनुसांथन में वह प्रगति नहीं हो पाई जो होनी चाहिए. आज भी हमें वही दिक्क्तें आ रहीं हैं जो कल आती थी. विद्यार्थी की लागत भी बढ़ रही है. जरुरत है की शिक्षण संस्थाओं में आपसी तालमेल बढे फिर अन्य संस्थाएं और संगठन भी उसका अनुसरण करें जिससे सबका भला हो. दिल्ली यूनिवर्सिटी ने मेटा यूनिवर्सिटी की बात शुरू की थी जिसमे अलग अलग यूनिवर्सिटी मिल कर श्रेष्ठतम प्रयास करने वाले थे. देखें ऐसे प्रयास आगे कैसे सफल होते हैं और किस प्रकार से प्रभाव स्थापित कर पाते हैं. हमें इस प्रकार के प्रायोसों को प्रोत्साहित करना चाहिए. 

शिक्षण  संस्थाओं की अपनी दीवारें 
आज भी आप को ऐसे विद्यार्थी मिल जाएंगे जो शिक्षण संस्थाओं की दीवारों के शिकार हैं. यानी वे विद्यार्थी पढ़ना चाहते हैं, योग्य हैं, सक्षम हैं, फिर भी शिक्षा से वंचित हैं. कई ऐसे विद्यार्थी हैं जो परिस्थिति के गुलाम हैं, कई विद्यार्थी सब कुछ प्रयास कर के भी खली हाथ लोट जाते हैं. इन सब समस्याओं का समाधान यही है की हमें शिक्षण संस्थाओं में अधिक पारदर्शिता, अधिक खुलापन और अधिक व्यवहारिक सोच की जरुरत है.आज भी बहुत कम शिक्षण संस्थाओं का उद्योगों के साथ अनुबंध है जिस कारण विद्यार्थी को व्यवहारतीक ज्ञान नहीं मिल पाता.  आईये हम सब मिल कर इन दीवारों को गिराने के लिए प्रयास करें. क्या हम सब यह संभव बना पाएंगे की कोई भी विद्यार्थी शिक्षा, संचार, ज्ञान, और अनुभव के अवसरों से वंचित न हो. कोई भी विद्यार्थी सिर्फ हमारी बनायीं हुई दीवारों के कारण शिक्षण व्यवस्था से बहार न निकला जाये. कोई भी विद्यार्थी अपने सपनो को संजोने के लिए मानव-कृत दीवारों के आगे नत मस्तक न हो और उसको ज्ञान, समझ, शिक्षा, और परामर्श के विकल्प हर पल मिलते रहें. 
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असली दिवाली कोसों दूर
दिवाली मतलब जश्नख़ुशीसाफ़-सफाईआपसी प्रेमहर दिवाली आप अपने घर का कायाकल्प कर डालते हैंक्याहम सबको सम्बल प्रदान करने वाले तंत्र - हमारे अपने सरकारी तंत्र में भी दिवाली आएगीउसके लिए सिर्फ स्वछताअभियान से पार नहीं पड़ेगाआज कोई डॉक्टर बन रहा हैकोई इंजीनियरपर देश को असली जरुरत तो उनलोगोंकी है जो देश को नयी व्यवस्था निर्माण में मदद कर सकेकुछ ऐसे लोग जो  देश की खस्ता हाल व्यवस्था को सुधारकर देश को एक बेहतर तंत्र प्रदान कर सकेंसरकारी तंत्र आज इतना खस्ता-हाल है की इसकी मरम्मत नहीं एककाया कल्प की जरुरत हैपरन्तु इस कायाकल्प की तयारी करने वाला कोई नहीं हैं.

कहाँ है रौशनी
कहते हैं की दिवाली एक ऐसा त्योंहार है जब हर व्यक्ति दिए जला कर खुशियों का स्वागत करता है और हर तरफप्रकाश ही प्रकाश नजर आता हैदिवाली तभी संभव है जब हर घर में उजाला हो व् खुशियां हो . उजाले के लिए क्याचाहिए?  बिजलीखुशियों के लिए क्या चाहिएअपनापन.  आज हर तरफ इन दोनों की कमी हैतमाम सरकारीदावों के बावजूद आज भी आधारभूत सुविधाओं में हम बहुत पीछे हैंअहमदाबाद में एक मिनट के लिए बिजली नहींजाती लेकिन राजस्थान के गाव में बिजली की  कोई निष्टिचत्त नहीं हैंबिजली कब आएगी और कब जायेगी कुछ भीनिश्चित नहीं हैसरकारी अस्पतालों में बिजली के आभाव में मरीजों की क्या दशा होती है कुछ भी कहने की स्थितिनहीं हैंआज अगर सबसे मुश्किल दौर में कोई होता है तो वे होते हैं डॉक्टर्स जो एक तरफ मरीज को देखते हैं तोदूसरी तरफ बिजली को - क्योंकि कब बिजली गुल हो जाए - पता नहीं?

डर डर कर जीता हर इंसान
चाहे आप रेल से यात्रा करें या आप बस से यात्रा करें - हर तरफ चेतावनी नजर आएगी - "अपरिचित व्यक्ति सेसावधान रहें? -  जाने कहाँ आतंकवादी छुपा हो " एक समय था जब आप अपरिचित लोगों से भी आसानी से दोस्तीकर लेते थे - आज हर व्यक्ति से आप दर दर कर कदम बढ़ाते हैंहर व्यक्ति में डर पैदा कर के आज आप एक ऐसीव्यवस्था बना रहें हैं जिसमे व्यक्ति अपने आपको असुरक्षित महसूस कर रहा हैशायद आतंकवादी भी यही चाहते थेकी हर व्यक्ति में दर पैदा हो जाए.

पटाखे ही पटाखे - सभी फुस
दिवाली में हर तरफ लोग पटाखे छोड़ कर अपनी खुशियां जाहिर करते हैंआज सिर्फ पठाके बचे हैं खुशियां गायब होचुकी हैंकहीं महगाईकही कमजोर सरकारी तंत्रकहीं भ्रस्टाचार कहीं बेरोजगारी लोगों की नींद उड़ा रही हैसरकाररोज एक नयी योजना घोषित करती है - वह पटाखे जैसा धमाका लगती है लेकिन दो दिन में ही पता चल जाता है कीवह भी एक फ्लॉप स्कीम है.

आंदोलन ही आंदोलन - परन्तु असली
हर कॉलेजहर संस्थाहर दफ्तर किसी  किसी आंदोलन की चपेट में हैंकहीं हड़ताल है तो कहीं असंतोषजरुरत हैकी फिर से एक मजबूत व्यवस्था के लिए जन-आंदोलन होश्री मनुभाई शाह और अन्य लोगों ने ग्राहक सुरक्षा केलिए आंदोलन किया तब ग्राहक सुरक्षा के लिए एक नया कानून बनाअरुणा रॉय आदि ने सुचना के अधिकार केलिए आंदोलन किया तब सुचना के अधिकार का कानून बनाइसी प्रकार अब आंदोलन चाहिए जो लोगों को मुलभुतसुविधाएँ दिल सके और उसके लिए एक व्यवस्था बना सके.

कानून जो जनता की अपनी आवाज हों
रामराज्य की असली खासियत थी न्याय व्यवस्थासही और त्वरित न्याय व्यवस्था जरुरी हैपिछले मुख्यन्यायाधीश कहते रह गए की न्यायव्यवस्था को आवश्यक सेवाओं में शामिल करिये और न्यायलय रोज खुलनेचाहिए २४ *  की सेवाओं की तरहजब तक ये बड़े सुधर नहीं होंगे - हम सब तरसते रह जाएंगे.
सरकार को पता है की अधिकांश कानून बहुत बड़े और पेचीदे हैंइन कानूनों में सुधार की जरुरत हैइस हेतु प्रयासभी हो रहें हैंहाल ही मैं कम्पनी कानून को बदला गया - करीब ६५० धाराओं की जगह पर करीब ४५० धाराएं कर दी    . क्या फायदाअसली फायदा तब होगा जब कानून बनाने वाले लोग सरकारी तंत्र से नहीं बल्कि आम आदमी होंगे.काश सरकार उद्योग जगत से कहती की आप कम्पनी कानून का मसौदा बनाओ और फिर एक ऐसा कानून बन करआता जिस को अमल में लाने के लिए उद्योग जगत कृतसंकल्प होगाहर क्षेत्र में ऐसे ही सुधार की जरुरत है. .

विश्व शांति और प्रगति के लिए  जादुई छड़ी - सहनशीलता

सहनशीलता एक ऐसा गुण है जिसको पूरी दुनिया आज स्वीकार कर रही है.इसको बचपन से ही जीवन में उतरने की जरुरत है. अगर यह गुण हर व्यक्ति में होगा तो आपसी सामंजस्य औरसौहार्द बढ़ेगा और लड़ाई झगडे की सम्भावना कम होगी.
सहनशीलता को जीवन में उतारने के लिए भारतीय साहित्य व् संस्कृति में व्यवस्थाएं हैं.  आज के दिन पुरे विश्व कोभारत के इतिहास  से सहनशीलता का सन्देश सीखना चाहिएभारत हमेशा से सहनशीलता की मिसाल रहा हैयहाँएक से बढ़ कर एक संत हुए हैं जिन्होंने सहनशीलता को अपने जीवन में अपनाया है और लोगों को सहनशीलता सेजीने का सन्देश दिया हैभारतीय इतिहास तो सहनशीलता के एक से बढ़ कर एक कारनामों का इतिहास हैहरमहापुरुष एक से बढ़ कर एक योगी हुआ है और योगी के रूप में उसने कष्ट सहने और विपरीत परिस्थियों का भी स्वागत करने की मिसाल स्थापित कर जबरदस्त आदर्श प्रस्तुत किये हैं
कहाँ गयी सहनशीलता?
जब में छोटा था तो साइकिल चलना सीखते वक्त अक्सर सड़क में किसी से टकरा जाता था तो मुझे आज भी याद हैकी टकराने वाला वापस पूछता था की कहीं लगी तो नहींझगड़ा करने की जगह पर सामना वाला व्यक्ति प्रेम सेपूछता था की कैसे होसमय का मिजाज बदल रहा हैआज कल में महानगरों में देखता हूँ की जरा से खरोंच लगनेपर भी लोग लड़ने को लिए तैयार रहते हैंमोटर सयकिल पर लगी खरोंच के बाद वे झगडे कर के एक दूसरे पर भीखरोंच लगा डालते हैंसहनशीलता तो जैसे अब नयी पीढ़ी से गायब ही हो गयी है.

कैसे बढ़ाएं सहनशीलता को ?
आज दुनिया की समस्याओं का कोई समाधान है तो वह है सहनशीलता को बढ़ावा देनाअधिकांश समस्याएं आपसीटकरावप्रतिस्पर्धाद्वेषजलन और मन-मुटाव से हो रही हैदुनिया में धन की कमी नहीं हैं लेकिन आपसी प्रेमऔर सौहार्द की कमी के कारण यह स्वर्ग नरक में बदल गया है.  छोटे छोटे मुद्दों पर लड़ाई टकरावमनमुटाव,तलाकऔर हिंसा का रूप ले लेती हैहर वर्ष लाखों लोग आपसी हिंसा के शिकार हो जाते हैं. प्रश्न है की सहनशीलताको बढ़ावा देने के लिए क्या करेंइस लेख में मैं ऐसे ही कुछ बिन्दुओं पर चर्चा करूँगा जिनसे सहनशीलता को बढ़ावादेने में मदद मिलेगी जैसे क्षमाशिक्षाविविधता आदि.
शिक्षा
हेलेन केलर : "शिक्षा का सर्वश्रेष्ठ परिणाम है व्यक्ति में सहनशीलता का भाव"
आज फिर से हमें शिक्षा व्यवस्था को मूल्य परक बनाना पड़ेगा और हमारे विद्यार्थियों को वे संस्कार परोसने पड़ेंगेताकि उनकी सहनशीलता और विवेक शक्ति बढे.
आलोचना को बढ़ावा देने की जरुरत
आलोचना हर व्यक्ति की मदद करती हैकबीर तो कह गए हैं की निंदक को आप अपने पास रखिये वह आपकाहितेषी है.
निंदक नियरे राखिएऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानीसाबुन बिनानिर्मल करे सुभाय।
आज फिर से हमें युवा पीढ़ी को आलोचना सुनने और उससे सीख लेने की शिक्षा देनी हैआलोचना और निंदा में फर्कहैआलोचना व्यक्ति की कमियों को उजागर करने का प्रयास है जो उस व्यकित को स्वयं बताया जाता हैआलोचनासे व्यक्ति को सुधार और प्रगति के अवसर मिलते हैं.
पर निंदा से बचें
सहनशीलता से जुड़ा हुआ मुद्दा है पर-निंदा काजिस तरह आज लोग एक दूसरे की निंदा कर रहें हैं उससे आपसीप्रेम और सहयोग कैसे पनपेगाकबीर तो तिनके की भी निंदा करने से मन करते हैं. “तिनका कबहुँ ना निन्दियेजोपाँवन तर होयकबहुँ उड़ी आँखिन पड़ेतो पीर घनेरी होय।“

पारिवारिक माहौल
परिवार आधारित संस्कृति को फिर से प्रोत्साहन की जरुरत है और फिर से पारिवारिक मूल्यों और आपसी सम्मान और सहृदयता को बढ़ावा देने की जरुरत है. पारिवारिक माहौल में बच्चे सहनशीलता के गुण बचपन से ही सीख जाते हैं. भारतीय संयुक्त परिवार प्रथा भी सहनशीलता के आदर्शों पर ही टिकी हुई है.

क्षमा
जीसस ने सूली चढाने वालों को भी माफ़ कर दियामहावीर ने उस सांप को भी  आशीर्वाद दिया जिसने उनको डंसाऔर इतनी करुणा और प्रेम से उसको देखा की जहाँ भी उसने दस वहां से उसके लिए खून की जगह दूध निकला.जिस ग्वाले ने महावीर के कान में कील ढोंक दी उसको भी महावीर ने आशीर्वाद दियामीरा की सहनशीलता का कोईमुकाबला नहीं हैउसने हँसते हँसते विष पियाहँसते हँसते सब कास्ट सहे और फिर भी कभी अपशब्द नहीं बोला.

आपसी सामंजस्य
सहनशीलता आपसी प्रेम और सामंजस्य  का ही दूसरा नाम हैआपसी प्रेम और सामंजस्य बढ़ने पर एक दूसरे कोसहन करना सीख जाते हैंअतः संगठन के हर स्तर पर आपसी प्रेम और सामंजस्य को बढ़ावा देने की जरुरत है.इसके लिए आपसी संवादखुलापनऔर आपसी सम्मान को बढ़ावा देने वाले मूल्य हमें फिर से स्थापित करने हैंऔर उन मूल्यों को बढ़ावा देना हैकबीर कह गएँ हैं पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआपंडित भया  कोयढाई आखर प्रेमकापढ़े सो पंडित होय।


आत्म-विश्लेषण पर हो जोर
सहनशीलता को बढ़ावा देने के लिए आत्म-विश्लेषण को बढ़ावा देने की जरुरत हैजब व्यक्ति आत्म विवेचन करताहै और अपनी गलतिया देखने लग जाता है तो उसके लिए जीवन आसान हो जाता है.  “ बुरा जो देखन मैं चलाबुरा मिलिया कोयजो दिल खोजा आपनामुझसे बुरा  कोय।“

विविधता को बढ़ावा देने की संस्कृति
भारत हमेशा से विविधता को बढ़ावा देने वाली संस्कृति रहा है. यहाँ हर स्तर पर विविधता है. भारत मेंआपको ऐसे अनेक लोग मिलेंगे जिनको सभी धर्मों की जानकारी है और विविध विचारों का गहन अध्ययन किया है.गंगाशहर में रहने वाले श्री ज्वाला प्रसाद शाश्त्री एक ऐसे ही विद्वान थेवे मौलवियों को कुरआन समझाया करते थेतो जैनाचार्यों को तत्त्वार्थसूत्रवे उर्दू भी उतनी ही अच्छी बोलते थे जितनी अच्छी संस्कृतऐसे लोगों ने ज्ञान के बीचकी दीवारों को तोड़ के रख दियाकबीररहीममीराचैतन्य महाप्रभुरामदेवनानक आदि संत जाती धर्म औरसम्प्रदाय से ऊपर उठ हर व्यक्ति के लिए अजीज थे और उनके अनुयायियों में हिन्दू व् मुस्लिम एक साथ  करबैठते थे और बिना किसी धार्मिक संकीर्णता से चर्चा करते थे.

वैचारिक मतभेद का स्वागत
जैन दर्शन अनेकांतवाद व् स्याद्वाद के द्वारा वैचारिक विविधता का स्वागत करता हैप्राचीन भारतीय शिक्षणसंस्थाओं में वाद विवादतत्व मीमांसाऔर चर्चा के लिए प्रोत्साहन होता थाहर राज्य का राजा धर्म और तत्व केमुद्दों पर शाश्त्रार्थ करवाया करते थे और इस बहस को गौर से सुनते थेइस प्रकार प्राचीन भारतीय परंपरा मेंवैचारिक विविधता के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन था.
सहनशीलता का आदर्श प्रस्तुत करता  नेतृत्व
अकबर को महान ऐसे ही नहीं कहा जाताअकबर सभी धर्म मानने वालों को इज्जत देता थावह सभी धर्म गुरुओंको सम्मान से नमन करता था और उनसे उनके धर्म पर प्रवचन सुनता थाऐसे ही अशोक महानचन्द्रगुप्त,समुद्रगुप्त आदि राजाओं के समय में अलग अलग धर्म और अलग अलग विचारों वाले लोगों के साथ बड़े ही सम्मानके साथ व्यवहार किया जाता थाअशोक स्वयं बौद्ध धर्म मानता था लेकिन वह उस समय के सभी धर्मों को सम्मानदेता थाआईये हम सब मिल कर विपरीत विचारधारा को सहन करने और सम्मान करने  की क्षमता को बढ़ावादेने के लिए प्रयास शुरू करें.