Wednesday, February 11, 2015

रिलेटिव इकोनॉमिक्स - मानवीय मूल्यों का अर्थशाश्त्र




रिलेटिव इकोनॉमिक्स विकास की एक ऐसी आधारशिला है जिसमे हम विकास की योजना बनाते समय निम्न कोप्राथमिकता देते हैं : -

मानवीय मूल्य,
नीतिशास्त्र
संतुलित विकास की अवधारणा
मानवीय मूल्यों पर आधारित विकास के सोपान
अहिंसा और अपरिग्रह पर आधारित आर्थिक और सामाजिक ढांचा
विविधता को संजोने और संरक्षित करने वाली नीतियां

वर्तमान आर्थिक योजनाओं का केंद्र सिर्फ जीडीपी रहता है यानी येन केन प्रकरण उत्पादन बढ़ाना और उसके आंकड़ोंसे विकास को मापना - भले ही इस प्रक्रिया में समाज के लिए हानिकारक वस्तुओं का उत्पादन बढेसमाज परउत्पादों के प्रभाव का विश्लेषण नहीं किया जाता है और इन सब प्रश्नों  को "मार्किट फोर्सेजके हवाले कर दिया जाताहैआज का नीति निर्माता यह नहीं देखता की उसके द्वारा उपभोग को बढ़ावा देने की नीति के कारण किस प्रकारकी वस्तुओं और किस प्रकार के मूल्यों को बढ़ावा मिल रहा हैआज का अर्थशाष्त्री अपने को नीतिशास्त्र से दूर रखनाचाहता हैइन सभी कारणों से आज के आर्थिक योजनाकारों ने ऐसी योजनाएं बना दी हैं जिनके कारण समाज,परिवार और यहाँ तक की मानव मात्र का मूल्यों से नाता टूट रहा हैइस विखंडित होते समाज को देख कर सभी लोगदुखी हैं और आज सब यह मान रहें हैं की मूल्य विहीन आर्थिक नीतियां समाज को नुक्सान पहुंचा रही हैं.हमारीनीतियों के कारण हर रोज अनेक वनस्पतियां लुप्त हो रहीं हैं और जैव-विविधता को खतरा हो गया हैहर दिन किसीने किसी प्रजाति के लुप्त होने  की स्थितियां बनाने के लिए हमारी आर्थिक नीतियां भी जिम्मेदार हैंआज मानवीयलिप्सा के कारण जंगलपेड़वन्य प्राणी और जीव जंतु सबके अस्तित्व को खतरा है.  आज आर्थिक नीतिनिर्माताओं को एक विकल्प की जरुरत है क्योंकि अगर इसी प्रकार की नीतियां जारी रहीं तो मानव मात्र के अस्तित्वको भी खतरा हो जाएगाआर्थिक नीति निर्माताओं के पास कोई विकल्प नहीं हैंआज हम सब को एक विकल्प नजर रहा है जो आचार्य महाप्रज्ञ जी ने रिलेटिव इकनोमिक के रूप में दिया थाआचार्य महाप्रज्ञ जी ने रिलेटिवइकोनॉमिक्स के रूप में हमें भविष्य की समस्याओं का एक समाधान दिया हैआने वाले समय में निम्न समस्याओंका सामना करने के लिए हम पूरी तरह से तैयार नहीं हैं और यह बात संयुक्त राष्ट्र भी मानता है : -

क्लाइमेट चेंज - यानी बढ़ते तापमान के कारण होने वाली समस्याएं
 . मानवाधिकारों के उल्लंघन की समस्या व् बढ़ती हिंसा व् असंतोष
 . प्रदुषण व् अन्य मानव  कृत समस्याएं जो हम सब व्यक्तियों के लिए अस्तित्व का खतरा बना सकता है
 . पर्यावरण व्  जैव-विविधता को खतरा

उपर्युक्त सभी समस्याओं की जड़ में जाते हैं तो हम पाते हैं की हमारी भोगवादी आर्थिक नीतियां ही इन समस्याओंके लिए जिम्मेदार हैंआज अनेक अर्थशाष्त्री यह मान रहें हैं की वर्तमान आर्थिक नीतियां हमारी समस्याओं कासमाधान करने की जगह हमें मुश्किलों में दाल रहीं हैंहमारी आर्थिक नीतियां बनाने वाले लोग स्वयं मान रहें हैं कीउनकी आर्थिक नीतियां "सस्टेनेबल डेवलपमेंटनहीं कर सकतीआज तो प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने भी मानलिया है की योजना आयोग को हटा कर इसकी जगह कोई नयी संस्था बनाने की जरुरत है ताकि एक बेहतर औरविस्तृत योजना बनायीं जा सके जो इस देश के विकास में मदद कर सके.

रिलेटिव इकोनॉमिक्स का आधार भगवान महावीर का जीवन दर्शन हैभगवान महावीर ने गृहस्थों को जीवन जीनेके लिए कई मार्गदर्शन प्रदान किये थेजैसे : -
उपभोग में संयम की जरुरत हैसिर्फ उपभोग के लिए उपभोग नहीं होना चाहिए बल्कि मानव के कल्याण केलिए उपभोग होना चाहिए
 . स्याद्वाद के रूप में एक ऐसी व्यवस्था जिसमे लोग अपने विचारों से अलग विचारों का भी सम्मान कर सकेंऔर विचारों में विविधता को स्वीकार सकें
 . प्रकृति में हर प्राणीहर आत्मा को अपना कल्याण करने का हक है और अपनी गति से जीने और रहने का हक है.महावीर ने तो भूमिअग्निऔर जल में भी आत्मा की अभिव्यक्ति को स्वीकारा हैयानी प्रकृति के साथ किसी भीरूप में अन्याय नहीं होना चाहिएयही मन्त्र आज जय-विविधता को बचने के लिए जरुरी है.

रिलेटिव इकोनॉमिक्स को एक जीवन प्रशिक्षण के रूप में लागू किया जाना
कई विश्व-विद्यालय रिलेटिव इकोनॉमिक्स को एक विषय के रूप में शुरू कर रहें हैंआज यह मन जा रहा है कीरिलेटिव इकोनॉमिक्स के प्रशिक्षण से हम नै पीढ़ी को एक बेहतर इंसान बना पाएंगे और उनको मानवीय मूल्यों सेजोड़ पाएंगेआज हमें युवाओं में मूल्यों पर आधारित नेतृत्व का अभाव नजर रहा है जिसका कारन हमारी शिक्षाव्यवस्था है.  रिलेटिव इकोनॉमिक्स मूल्य आधारित व्यवस्थाओं को स्थापित करने की दिशा में एक अभिनवपाठ्यक्रम साबित होगा.

रिलेटिव इकोनॉमिक्स के मुख्य प्रशिक्षण बिंदु
रिलेटिव इकोनॉमिक्स में निम्न बिन्दुओं पर मुख्य रूप से प्रशिक्षण दिया जाएगा : -
मानवीय जीवन मूल्य आधारित संयम को प्रोत्साहित करने वाली आर्थिक और सामजिक नीतियां औरव्यवस्थाएं
सोशल आंतरप्रीन्यूरशिप - यानी सामजिक उद्यमिता  - जिससे युवा वर्ग समाज का विकास करने के लिएअपना व्यापर या उद्यम स्थापित करे और समाज के विकास को प्राथमिक लक्ष रख कर ही नए उत्पाद और नयीसेवाएं विकसित करेंउद्यमिता की प्रक्रिया में नए उत्पाद और नयी सेवाओं के निर्माण की प्रक्रिया भी इस केप्रशिक्षण का हिस्सा होगा यानी जो भी उत्पाद या सेवाएं बनायीं जाएँ उनका आधार प्रकृति और पर्यावरण से तालमेलहोना चाहिए.
पर्यावरण और प्रकृति केंद्रित व्यवष्टयं : -समाज के बहुआयामी विकास के लिए नयी व्यवस्थाएं बनाने हेतु नेतृत्वजो हर क्षेत्र में प्राणी मात्र के सह-अस्तित्व को स्वीकार करे

रिलेटिव इकोनॉमिक्स आधारित एनवायरनमेंट एंड सोशल ऑडिट
आज का अंकेक्षक सिर्फ लाभ हानि या मौद्रिक मूल्याङ्कन पर ही नजर रखता हैरिलेटिव इकोनॉमिक्स पर्यावरणऔर समाज पर पड़ने वाले परिणाम के मूल्याङ्कन पर जोर देता है अतः भविष्य की जरुरत के अनुसार अंकेक्षण कादायरा भी विस्तृत होना चाहिए.

नयी तकनीकनयी जीवन-शैली
फैशन के बारे में कहा जाता है की यह घूम फिर कर वापस आती हैरिलेटिव इकोनॉमिक्स हमारे टेक्नोलॉजिस्ट्स कोफिर से जमीन से जुड़े उत्पाद बनाने के लिए प्रेरित कर फिर से नए उत्पाद और नयी जीवन शैली को प्रोत्साहितकरता है जो की काफी सीमा तक हमारी परम्परों से जुड़ा हैयानी जो उत्पाद और जो जीवन शैली भारत के भू भाग सेलुप्त हो गयी है उसको वापस खोजने की जरुरत हैअब ऐसे उत्पाद बनाने पड़ेंगे जो पर्यावरण के अनुकूल होंगेजैसेहम लोग सैकड़ों वर्ष पहले प्रकृति की गोद में रह कर बिना प्रकृति को नुक्सान पहुंचाए उपभोग करते थेआज फिर सेऐसे शोध कर्ताओं की जरुरत होगी जो प्रकृति - प्रेमी हों और प्रकृति के अनुकूल नयी तकनीक को प्रोत्साहन देवें.
वर्तमान आर्थिक योजनाओं को रिलेटिव इकोनॉमिक्स की जरुरत
आज हम देख रहें हैं की योजना बनाते समय हमारे योजनविद मानवीय मूल्यों को यह मानते हुए नजर-अंदाज करदेते हैं की इनका आंकड़ों में प्रस्तुतिकरण सम्भव नहीं हैइस प्रकार हमारी योजनाएं मानवीय मूल्यों से निरपेक्ष होतीहैंमूल्य विहीन योजनाएं हमें अपने जीवन और चेतना से भी विहीन कर देगीअतः आज फिर से एक मुहीम कीजरुरत है की जो भी नीति निर्माता हो वे मूल्य आधारित नियोजन यानी रिलेटिव इकोनॉमिक्स का प्रशिक्षण लेवें औरइसी के लिए अपने आप को तैयार करें.

अंतरास्ट्रीय सम्मलेन
दिनांक  व्  नवम्बर २०१४ को दिल्ली में रिलेटिव इकोनॉमिक्स का   वां संमेलन आयोजित किया गयाइसअवसर पर आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा की अर्थशास्त्रियों को भी जीवन मूल्यों और जीवन दर्शन को अपनीयोजनावों का आधार बनाना चाहिएइसी अवसर पर पधारे विविध विषय विशेषज्ञों ने भी इस बात को माना की आजएक ऐसे आर्थिक ढांचे की जरुरत है जिसमे हम मानव जीवन  मूल्यों को आधार बना कर अपनी योजनाएं बनायें की योजनाओं को बनाते समय  मानव मूल्यों को नजर अंदाज करेंइसी सम्मलेन में मैंने रिलेटिव इकोनॉमिक्स केलिए प्रस्तावित रिसर्च और डॉक्यूमेंटेशन सेंटर का प्रारूप प्रस्तुत कियाआज सभी शिक्षा विद यह मान रहें हैं कीरिलेटिव इकोनॉमिक्स की जरुरत है और जैसे ही रिलेटिव इकोनॉमिक्स पर आधारित पाठ्य पुस्तकें उपलभ्ध होंगी,वे उन को लागू कर के युवाओं को एक नयी दिशा देने का प्रयास करेंगे.
योजना निर्माण की नयी प्रणाली
आज फिर से योजना आयोग के पुनर्गठन की बात हो रही हैप्रधान-मंत्री महोदय ने योजना आयोग की जगह पर एकनयी संस्था के गठन की बात कही हैअगर हम अंतरास्ट्रीय स्टार पर देखें तो पाते हैं की १९४५ में स्थापित संयुक्तराष्ट्र ने जीवन के विविध आयामों पर विविध नीति निर्मात्री संस्थाओं का गदहन किया है जैसे १९८८ में ipcc , १९६५में UNDP  आदिफिर भी संयुक्त राष्ट्र आज भी मानवीय मूल्यों को प्रोत्साहित करने वाली एक संस्था की कमीमहसूस कर रहा हैइसी प्रक्रिया में २००६ में एक प्रस्ताव पारित कर मानव अधिकार कौंसिल स्थापित करने काफैसला लिया गयाभारत में भी आज समय की मांग यही है की योजगा बनाने वाली संस्था एक जीवन मूल्यों कोआधार बना कर योजना बनाने वाली संस्था बनेहमें उम्मीद है की हमारे देश में इस प्रकार जीवन  मूल्य आधारितनियोजन की प्रक्रिया की शुरुआत हो जायेगीयही रिलेटिव इकोनॉमिक्स का आधार है.

और भी बहुत सी बातें है जो पश्चिम से सीखिये



पश्चिमी त्यौहार आज हर भारतीय युवा को आकर्षित कर रहे हैं. वेलेंटाइन डे और या न्यू इयर , आज हर युवा इनको जोश और जश्न से मनाता है और बहुत खुश महसूस करता है. मैं किसी की ख़ुशी होने की वजह में बढ़ा नहीं बनना चाहता. अगर किसी को इससे ख़ुशी मिलती है तो यह भी अच्छी बात है. लेकिन हमें पश्चिम से और भी बहुत कुछ सीखना चाहिए. आज अगर हम देखें तो पाएंगे की पश्चिम ने ही हमारे सामने यह स्पस्ट किया किया की वाकई भारत महान है.  आज जिस तरह से पश्चिम के लोग योग, कर्मयोग, भक्ति योग, अध्यात्म सीख रहे हैं, वह दिन दूर नहीं जब हमको भी ये सब सीखने के लिए पश्चिम की तरफ देखना पड़ेगा. आज जिस तरह से पश्चिम  हमारे परम्परागत ज्ञान, हमारी परम्पराओं और हमारी व्यवस्थाओं को सीख रहे हैं उससे तो यही लगता है की आने वाले समय में हम ये ही सब बाते पश्चिम से सीखेंगे. 

पश्चिम में ज्ञान को सीखने, तर्क करने, प्रश्न करने, विमर्श करने, हर ज्ञान को लिख कर संगृहीत करने, रजिस्टर करने और बौद्धिक सम्पदा को सुरक्षित करने की अद्भुत मिसाल है जो हमको उनसे सीखनी चाहिए. अगर हम उनसे उनके त्योंहार सीख रहे हैं, तो जरुरी है की हम उनसे उनका वैज्ञानिक द्रिस्टीकोण, अभ्व्यक्ति की कला, और शिक्षा और ज्ञान को बढ़ावा देने की मानसिकता भी सीखनी चाहिए. अगर हम उनसे उनके रहन सहन का तरीका, खान - पान, और जीवन शैली सीख रहे हैं तो हम को उनसे उनकी सिविक गवर्नेंस (नागरिक प्रशाशन) व्यवस्था, अनुशाशन, और स्वतछता भी सीखनी चाहिए. 

यह प्रकृति का नियम है की बिना चुनौती हर चीज का कि निश्चित है. यह भी प्रकृति का नियम है की बिना प्रयास के कोई भी ज्ञान, सम्पति, और प्रगति हासिल नहीं होती है. हमारी सबसे बड़ी सम्पदा हमारे पुरखों के द्वारा संचित ज्ञान, अध्यात्म, जीवनमूल्य, वैचारिक द्रिस्टीकोण, और परम्पराएँ हैं जो न तो हमने मानी, न उनका हमने अभ्यास किया, न हमने उनको सीखने का प्रयास किया. स्वाभाविक है की हम उनको कैसे हासिल करेंगे. सिर्फ बपौती में मिलने से ही ज्ञान नहीं मिल जाता. आज भी अगर हम इन चुनौतियों को मान कर अपने आपको फिर से अद्भुत और अद्वितीय भारतीय ज्ञान व् परम्पराओं को परिमार्जित करने और उन पर अभ्यास करना नहीं शुरू करते तो फिर यही होगा की भविस्य में हमारे विद्यार्थी योग सीखने के लिए अमेरिकी विष्वविद्यालयों में जाएंगे. 

गीता के अद्भुत ज्ञान में हर व्यक्ति की जीवन में सफलता की पाठशाला मिलती है और दिल से कर्म करने का सन्देश मिलता है. किसी भी कारण से आज इस ज्ञान का उपहास करना और हमारी परम्पराओं का मजाक बनाना एक फैशन बन गया है. कमिया किस व्यवस्था में नहीं होती. लेकिन अपनी कमियों का उपहास भरा मजाक बनाना किस हिसाब से अच्छा होगा. आज भी अगर हम फिर से अपने आपको आईने में देखने का प्रयास करें (जो शायद मुश्किल है) या फिर पश्चिम की नजर से भी देखते हैं तो हम एक ऐसी अद्भुत सभ्यता की धरोहर के मालिक है जहाँ पर हर व्यक्ति जो जन्मते ही जीवन का मकसद सीखा दिया जाता है, जहाँ पर कर्तव्य की पाठशाला हर घर में चलती है और जहाँ पर जीवन की हर उलझन से निपटने के रास्ते हर व्यक्ति को बचपन से रटा दिए जाते हैं. ये वाही देश है जहाँ आज भी मेजर जेम्स थॉमस और मेजर शैतान सिंह जैसे सपूत पैदा होते हैं जो अपने देश की रक्षा के लिए अपने से ज्यादा ताकत वार इंसान के सामने सिर्फ अपने मजबूत इरादों के साथ जान हथेली पर लेकर मैदान में उत्तर जाते हैं. 

आईये हर भारतीय में सोये हुए कुम्भकर्ण को जगाने और हर भारतीय घर को फिर से ज्ञान गंगा में नहाने के लिए अपने प्रयास शुरू करें. आज से ही सही, पश्चिम से वो सीखें जो हमें सीखना है और अपनी अद्भुत धरोहर को बचाने और संरक्षित कर अपनी अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास करें. आज पश्चिम का हर युवा नशे, जुवे, व्यभिचार, और मशीनी जिंदगी से तंग अगर भारत में बसना चाहता है. असल में भारत तो पूरी दुनिया के लिए जीवनशैली की पाठशाला बन सकता है. हार्वर्ड, ऑक्सफ़ोर्ड और केम्ब्रिज भी जीवन में आनंद, सफलता और उल्लास के वे मन्त्र नहीं सिखाते जो हर भारतीय के घर में मौजूद है. आईये आजसे हर गृहणी को उसकी पाक-कला के लिए सम्मान करें, हर बुजुर्ग को उसके जीवन भर के ज्ञान के लिए सम्मानित करें, हर पंडित से गीता का सार सीखें, हर मंदिर-मस्जिद में तन्मय हो उस अलोकिक चेतना   में लवलीन हो जाएँ. आईये हर बालक की उमंग को रोकने वालों को रोकें, हर वाणी में मिठास भर दें, हर व्यक्ति को आदर और सम्मान से नमन करें, पश्चिम को भी नमन करें क्योंकि आज नहीं तो कल वे ही हमें इस बात का  अहसास दिलाएंगे की हम क्यों महान हैं.  

जो दीखता है वो ही हमेशा सत्य नहीं होता. जो महसूस होता है, वह ही हमेशा सत्य नहीं होता, जो फैशन है वो ही हमेशा सत्य नहीं होता. कई बार बहुत इन्तजार के बाद सत्य समझ में आता है और तब तक बहुत देर हो जाती है. एक महिला ने अपने पालतू नेवले के मुह में खून देख कर ये सोचा की जरूर उस नेवले ने उसके बच्चे को खा लिए और बिना आगे सोचे उसने उस नेवले को मार दिया. बाद में उसको पता चला की नेवले ने उसके बच्चे को बचने के लिए एक सांप को मारा था. लेकिन अब उसके पास सिर्फ अफ़सोस था.  काश उसने इन्तजार किया होता, काश उसने तथ्यों को समझने का प्रयास किया होता. काश आज का हमारा युवा भी एक बार अलोकिक भारत की अलोकिक संस्कृति का आनंद ले, योग, गीता, ज्ञान, ध्यान, अध्यात्म, और अद्भुत भारतीय संस्कृति में रचने और रमने का प्रयास करे ताकि उसको अफ़सोस ने करना पड़े.