रिलेटिव इकोनॉमिक्स विकास की एक ऐसी आधारशिला है जिसमे हम विकास की योजना बनाते समय निम्न कोप्राथमिकता देते हैं : -
१. मानवीय मूल्य,
२. नीतिशास्त्र
३. संतुलित विकास की अवधारणा
४. मानवीय मूल्यों पर आधारित विकास के सोपान
५. अहिंसा और अपरिग्रह पर आधारित आर्थिक और सामाजिक ढांचा
६. विविधता को संजोने और संरक्षित करने वाली नीतियां
वर्तमान आर्थिक योजनाओं का केंद्र सिर्फ जीडीपी रहता है यानी येन केन प्रकरण उत्पादन बढ़ाना और उसके आंकड़ोंसे विकास को मापना - भले ही इस प्रक्रिया में समाज के लिए हानिकारक वस्तुओं का उत्पादन बढे. समाज परउत्पादों के प्रभाव का विश्लेषण नहीं किया जाता है और इन सब प्रश्नों को "मार्किट फोर्सेज" के हवाले कर दिया जाताहै. आज का नीति निर्माता यह नहीं देखता की उसके द्वारा उपभोग को बढ़ावा देने की नीति के कारण किस प्रकारकी वस्तुओं और किस प्रकार के मूल्यों को बढ़ावा मिल रहा है. आज का अर्थशाष्त्री अपने को नीतिशास्त्र से दूर रखनाचाहता है. इन सभी कारणों से आज के आर्थिक योजनाकारों ने ऐसी योजनाएं बना दी हैं जिनके कारण समाज,परिवार और यहाँ तक की मानव मात्र का मूल्यों से नाता टूट रहा है. इस विखंडित होते समाज को देख कर सभी लोगदुखी हैं और आज सब यह मान रहें हैं की मूल्य विहीन आर्थिक नीतियां समाज को नुक्सान पहुंचा रही हैं.हमारीनीतियों के कारण हर रोज अनेक वनस्पतियां लुप्त हो रहीं हैं और जैव-विविधता को खतरा हो गया है. हर दिन किसीने किसी प्रजाति के लुप्त होने की स्थितियां बनाने के लिए हमारी आर्थिक नीतियां भी जिम्मेदार हैं. आज मानवीयलिप्सा के कारण जंगल, पेड़, वन्य प्राणी और जीव जंतु सबके अस्तित्व को खतरा है. आज आर्थिक नीतिनिर्माताओं को एक विकल्प की जरुरत है क्योंकि अगर इसी प्रकार की नीतियां जारी रहीं तो मानव मात्र के अस्तित्वको भी खतरा हो जाएगा. आर्थिक नीति निर्माताओं के पास कोई विकल्प नहीं हैं. आज हम सब को एक विकल्प नजरआ रहा है जो आचार्य महाप्रज्ञ जी ने रिलेटिव इकनोमिक के रूप में दिया था. आचार्य महाप्रज्ञ जी ने रिलेटिवइकोनॉमिक्स के रूप में हमें भविष्य की समस्याओं का एक समाधान दिया है. आने वाले समय में निम्न समस्याओंका सामना करने के लिए हम पूरी तरह से तैयार नहीं हैं और यह बात संयुक्त राष्ट्र भी मानता है : -
अ. क्लाइमेट चेंज - यानी बढ़ते तापमान के कारण होने वाली समस्याएं
आ . मानवाधिकारों के उल्लंघन की समस्या व् बढ़ती हिंसा व् असंतोष
इ . प्रदुषण व् अन्य मानव कृत समस्याएं जो हम सब व्यक्तियों के लिए अस्तित्व का खतरा बना सकता है
ई . पर्यावरण व् जैव-विविधता को खतरा
उपर्युक्त सभी समस्याओं की जड़ में जाते हैं तो हम पाते हैं की हमारी भोगवादी आर्थिक नीतियां ही इन समस्याओंके लिए जिम्मेदार हैं. आज अनेक अर्थशाष्त्री यह मान रहें हैं की वर्तमान आर्थिक नीतियां हमारी समस्याओं कासमाधान करने की जगह हमें मुश्किलों में दाल रहीं हैं. हमारी आर्थिक नीतियां बनाने वाले लोग स्वयं मान रहें हैं कीउनकी आर्थिक नीतियां "सस्टेनेबल डेवलपमेंट" नहीं कर सकती. आज तो प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने भी मानलिया है की योजना आयोग को हटा कर इसकी जगह कोई नयी संस्था बनाने की जरुरत है ताकि एक बेहतर औरविस्तृत योजना बनायीं जा सके जो इस देश के विकास में मदद कर सके.
रिलेटिव इकोनॉमिक्स का आधार भगवान महावीर का जीवन दर्शन है. भगवान महावीर ने गृहस्थों को जीवन जीनेके लिए कई मार्गदर्शन प्रदान किये थे, जैसे : -
अ. उपभोग में संयम की जरुरत है. सिर्फ उपभोग के लिए उपभोग नहीं होना चाहिए बल्कि मानव के कल्याण केलिए उपभोग होना चाहिए
आ . स्याद्वाद के रूप में एक ऐसी व्यवस्था जिसमे लोग अपने विचारों से अलग विचारों का भी सम्मान कर सकेंऔर विचारों में विविधता को स्वीकार सकें
ई . प्रकृति में हर प्राणी, हर आत्मा को अपना कल्याण करने का हक है और अपनी गति से जीने और रहने का हक है.महावीर ने तो भूमि, अग्नि, और जल में भी आत्मा की अभिव्यक्ति को स्वीकारा है. यानी प्रकृति के साथ किसी भीरूप में अन्याय नहीं होना चाहिए. यही मन्त्र आज जय-विविधता को बचने के लिए जरुरी है.
रिलेटिव इकोनॉमिक्स को एक जीवन प्रशिक्षण के रूप में लागू किया जाना
कई विश्व-विद्यालय रिलेटिव इकोनॉमिक्स को एक विषय के रूप में शुरू कर रहें हैं. आज यह मन जा रहा है कीरिलेटिव इकोनॉमिक्स के प्रशिक्षण से हम नै पीढ़ी को एक बेहतर इंसान बना पाएंगे और उनको मानवीय मूल्यों सेजोड़ पाएंगे. आज हमें युवाओं में मूल्यों पर आधारित नेतृत्व का अभाव नजर रहा है जिसका कारन हमारी शिक्षाव्यवस्था है. रिलेटिव इकोनॉमिक्स मूल्य आधारित व्यवस्थाओं को स्थापित करने की दिशा में एक अभिनवपाठ्यक्रम साबित होगा.
रिलेटिव इकोनॉमिक्स के मुख्य प्रशिक्षण बिंदु
रिलेटिव इकोनॉमिक्स में निम्न बिन्दुओं पर मुख्य रूप से प्रशिक्षण दिया जाएगा : -
अ. मानवीय जीवन मूल्य आधारित संयम को प्रोत्साहित करने वाली आर्थिक और सामजिक नीतियां औरव्यवस्थाएं
आ. सोशल आंतरप्रीन्यूरशिप - यानी सामजिक उद्यमिता - जिससे युवा वर्ग समाज का विकास करने के लिएअपना व्यापर या उद्यम स्थापित करे और समाज के विकास को प्राथमिक लक्ष रख कर ही नए उत्पाद और नयीसेवाएं विकसित करें. उद्यमिता की प्रक्रिया में नए उत्पाद और नयी सेवाओं के निर्माण की प्रक्रिया भी इस केप्रशिक्षण का हिस्सा होगा यानी जो भी उत्पाद या सेवाएं बनायीं जाएँ उनका आधार प्रकृति और पर्यावरण से तालमेलहोना चाहिए.
ई. पर्यावरण और प्रकृति केंद्रित व्यवष्टयं : -समाज के बहुआयामी विकास के लिए नयी व्यवस्थाएं बनाने हेतु नेतृत्व- जो हर क्षेत्र में प्राणी मात्र के सह-अस्तित्व को स्वीकार करे.
रिलेटिव इकोनॉमिक्स आधारित एनवायरनमेंट एंड सोशल ऑडिट
आज का अंकेक्षक सिर्फ लाभ हानि या मौद्रिक मूल्याङ्कन पर ही नजर रखता है. रिलेटिव इकोनॉमिक्स पर्यावरणऔर समाज पर पड़ने वाले परिणाम के मूल्याङ्कन पर जोर देता है अतः भविष्य की जरुरत के अनुसार अंकेक्षण कादायरा भी विस्तृत होना चाहिए.
नयी तकनीक, नयी जीवन-शैली
फैशन के बारे में कहा जाता है की यह घूम फिर कर वापस आती है. रिलेटिव इकोनॉमिक्स हमारे टेक्नोलॉजिस्ट्स कोफिर से जमीन से जुड़े उत्पाद बनाने के लिए प्रेरित कर फिर से नए उत्पाद और नयी जीवन शैली को प्रोत्साहितकरता है जो की काफी सीमा तक हमारी परम्परों से जुड़ा है. यानी जो उत्पाद और जो जीवन शैली भारत के भू भाग सेलुप्त हो गयी है उसको वापस खोजने की जरुरत है. अब ऐसे उत्पाद बनाने पड़ेंगे जो पर्यावरण के अनुकूल होंगे, जैसेहम लोग सैकड़ों वर्ष पहले प्रकृति की गोद में रह कर बिना प्रकृति को नुक्सान पहुंचाए उपभोग करते थे. आज फिर सेऐसे शोध कर्ताओं की जरुरत होगी जो प्रकृति - प्रेमी हों और प्रकृति के अनुकूल नयी तकनीक को प्रोत्साहन देवें.
वर्तमान आर्थिक योजनाओं को रिलेटिव इकोनॉमिक्स की जरुरत
आज हम देख रहें हैं की योजना बनाते समय हमारे योजनविद मानवीय मूल्यों को यह मानते हुए नजर-अंदाज करदेते हैं की इनका आंकड़ों में प्रस्तुतिकरण सम्भव नहीं है. इस प्रकार हमारी योजनाएं मानवीय मूल्यों से निरपेक्ष होतीहैं. मूल्य विहीन योजनाएं हमें अपने जीवन और चेतना से भी विहीन कर देगी. अतः आज फिर से एक मुहीम कीजरुरत है की जो भी नीति निर्माता हो वे मूल्य आधारित नियोजन यानी रिलेटिव इकोनॉमिक्स का प्रशिक्षण लेवें औरइसी के लिए अपने आप को तैयार करें.
अंतरास्ट्रीय सम्मलेन
दिनांक १ व् २ नवम्बर २०१४ को दिल्ली में रिलेटिव इकोनॉमिक्स का ९ वां संमेलन आयोजित किया गया. इसअवसर पर आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा की अर्थशास्त्रियों को भी जीवन मूल्यों और जीवन दर्शन को अपनीयोजनावों का आधार बनाना चाहिए. इसी अवसर पर पधारे विविध विषय विशेषज्ञों ने भी इस बात को माना की आजएक ऐसे आर्थिक ढांचे की जरुरत है जिसमे हम मानव जीवन मूल्यों को आधार बना कर अपनी योजनाएं बनायें नकी योजनाओं को बनाते समय मानव मूल्यों को नजर अंदाज करें. इसी सम्मलेन में मैंने रिलेटिव इकोनॉमिक्स केलिए प्रस्तावित रिसर्च और डॉक्यूमेंटेशन सेंटर का प्रारूप प्रस्तुत किया. आज सभी शिक्षा विद यह मान रहें हैं कीरिलेटिव इकोनॉमिक्स की जरुरत है और जैसे ही रिलेटिव इकोनॉमिक्स पर आधारित पाठ्य पुस्तकें उपलभ्ध होंगी,वे उन को लागू कर के युवाओं को एक नयी दिशा देने का प्रयास करेंगे.
योजना निर्माण की नयी प्रणाली
आज फिर से योजना आयोग के पुनर्गठन की बात हो रही है. प्रधान-मंत्री महोदय ने योजना आयोग की जगह पर एकनयी संस्था के गठन की बात कही है. अगर हम अंतरास्ट्रीय स्टार पर देखें तो पाते हैं की १९४५ में स्थापित संयुक्तराष्ट्र ने जीवन के विविध आयामों पर विविध नीति निर्मात्री संस्थाओं का गदहन किया है जैसे १९८८ में ipcc , १९६५में UNDP आदि. फिर भी संयुक्त राष्ट्र आज भी मानवीय मूल्यों को प्रोत्साहित करने वाली एक संस्था की कमीमहसूस कर रहा है. इसी प्रक्रिया में २००६ में एक प्रस्ताव पारित कर मानव अधिकार कौंसिल स्थापित करने काफैसला लिया गया. भारत में भी आज समय की मांग यही है की योजगा बनाने वाली संस्था एक जीवन मूल्यों कोआधार बना कर योजना बनाने वाली संस्था बने. हमें उम्मीद है की हमारे देश में इस प्रकार जीवन मूल्य आधारितनियोजन की प्रक्रिया की शुरुआत हो जायेगी. यही रिलेटिव इकोनॉमिक्स का आधार है.