(वो शिकारी जिसको सरकार सलाम करती है)
(१९ अप्रैल को श्री जिम कॉर्बेट की पुण्य तिथि पर विशेष)
कुमाऊं का लाडला
एक समय था जब इंसान बाघ और अन्य जंगली जानवरों से डरा करता था. एक समय था जबउन लोगों की बड़ी मांग थी जो की आदमखोर शेर और बाघ को मार सके. एक समय था जबशिकार का उद्देश्य मानव जीवन को बचाना था (न की आज की तरह एक घटिया शौक). ऐसाही एक शिकारी था जिसको आज भी सब लोग सम्मान से याद करते हैं. वो शिकारी था जिमकॉर्बेट जिम कॉर्बेट का जन्म भारत में नैनीताल में हुआ. उसने अपना बचपन कुमाऊं मेंबिताया और कुमाऊं के लोगों से जंगल और जानवरों का प्रेम प्राप्त किया. कुमाऊं के लोगों कीतरह श्री कॉर्बेट भी जंगली जानवरों को उनकी आवाज से पहचान लेते थे. वो सच्चे अर्थों मेंजंगल और जंगली जानवरों का प्रशंसक था. उसने अपने जीवन काल में जंगलों और जंगलीजानवरों पर अनेक पुस्तकें लिखी और जानवरों के लिए विशेष प्रयास किये.
नरभक्षी जानवरों से जानवर-भक्षी इंसानों की तरफ : -
एक समय था जब इंसान नर-भक्षी जानवरों के भय से ट्रस्ट रहता था. पहाड़ी इलाकों में रहनेवाले लोग रात में घरों से भहर नहीं निकलते थे. हर तरफ नर-भक्षी बाघ और अन्य जंगलीजानवरों का खौफ था. हालाँकि श्री कॉर्बेट ने अपने अनुभव से यह साबित किया था की वो हीबाघ नरभक्षी बन जाते हैं जो किसी बिमारी या चोट से ग्रस्त होते हैं. बिमारी की हालत में उनकोशिकार मिलना मुश्किल हो जाता है और वे नरभक्षी बन जाते हैं. श्री कॉर्बेट ने १२०० इंसानों कोमारने वाले नरभक्षी बाघों को मौत के घाट उतार दिया था. लेकिन कॉर्बेट के ही प्रयास से भारतमें नेशनल पार्क की स्थापना हुई (जिसका नाम आज जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क है). श्री कॉर्बेटने ३० से ज्यादा आदमखोर बाघ और तेंदुओं का शिकार किया लेकिन आखिर में जंगलों औरजानवरों को बचाने के लिए प्रयास किये. आज फिर से कॉर्बेट की जरुरत आ पड़ी है. आज जंगलऔर जानवर दोनों का जीवन खतरे में है. सरकार के प्रयासों से बाघों की जनसँख्या बढ़ रही है(सरकारी आंकड़ों के अनुसार बाघों की संख्या पिछले ५ सालों में १७०० से बढ़ कर २३०० हो गयीहै) लेकिन वो बाघ क्या खाएंगे? (बाकी जानवर तो खत्म हो रहे हैं) जंगलों का ख़त्म होना औरजंगली जानवरों का लगातार घटना एक चिंता का विषय है. एक समय था जब जंगल, पेड़ औरजंगली जानवर हुआ करते थे. अब वे लगातार घाट रहे हैं. मैंने अपने पिताजी से कस्तूरी मृग कीकहानिया सुनी थी - अब तो कस्तूरी मृग ही नहीं बचे हैं. एक समय ऐसे घनघोर जंगल हुआकरते थे जिनमे दिन में भी अँधेरा रहता था - अब ऐसे जंगल दुर्लभ हो गए हैं. जंगलों की सुरक्षाके नाम पर फारेस्ट ऑफिसर्स आदि की नियुक्ति की जाती है जो खुद ही अक्सर शिकारियों सेमिले हुए होते हैं और जंगल और जानवरों को बचने की जगह पर उनके विनाश के कारक बनजाते हैं.
जंगलों की कीमत अनमोल से बहुमूल्य बन गयी
जंगल और जंगली जानवर अनमोल हैं. लेकिन आज के ज़माने में कार्बन क्रेडिट का बड़ा फायदाहै. जिस देश के पास बड़े बड़े जंगल हैं वो देश उन जंगलों को बचा कर कार्बन क्रेडिट हासिल करसकता है और इस प्रकार जंगलों से उसको कार्बन क्रेडिट के रूप में लगातार आय प्राप्त होतीरहेगी. वो देश जिनके पास बड़े बड़े जंगल हैं उनको लगातार आय प्राप्त होती रहेगी और वे देशइस प्रकार बहुत ही सफल हो जाएंगे.
इंसान का हैवानी स्वरुप
जानवरों की घटी जनसँख्या के पीछे सबसे बड़ा कारण उनका शिकार है. जिम कॉर्बेट भीशिकारी थे पर उनका लक्ष्य अलग था. आज कल हर होटल जंगली जानवरों का मांस परोस रहाहै. लोगों में भी इसका एक फैशन बन गया है इंसान का हैवान के रूप में रूपांतरण आजजानवरों के लिए सबसे ज्यादा चिंताजनक है. आज इंसान लगभग हर जानवर खाने के लिएतत्पर बैठा है. एक समय था जब वनस्पति की कमी के कारण इंसान को मांस खाना पड़ता था,परन्तु आज तो मांसाहार भी एक फैशन बन रहा है.
फैशन इंडस्ट्री का सितम
फैशन इंडस्ट्री जानवरों के कंकाल, खाल, दांत, और शारीर के हिस्से फैशन के रूप में प्रस्तुत कररहा है. कोई खरगोश की खेल से पर्स बना रहा है तो कोई गेंडे व् हाथी के दांत से गहने बना रहा हैतो कोई जानवरों का प्रयोग फैशन उत्पादों की लैबोरेटरी में कर रहा है.
वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फण्ड
यह अफ़सोस की बात है की अहिंसा परक देश भारत को आज अहिंसा की शिक्षा के लिए वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फण्ड (WWF) की तरफ देखना पड़ रहा है. वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फण्ड की तरह के अनेक स्वयं सेवी संगठन आज आगे आ रहे हैं जो लोगों को पेड़ और जंगली जानवरों को बचाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. उनके प्रयास वन्दनीय हैं. भारत के लोगों को भी इस तरफ प्रयास करना चाहिए. बिश्नोई समाज का इस तरफ विशेष योगदान है.
हग एक पेड़
हग ऐ ट्री एक प्रोग्राम है जिसके द्वारा वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फण्ड पेड़ों को बचने के लिए प्रयास कर रहा है. हम सब को इस प्रयास के साथ जुड़ना चाहिए. ये लोग भी वो काम कर रहे हैं जो हम भारतीय वर्षों से करते आ रहे हैं.
हम सबको अब यह कहना ही पड़ेगा : जंगल बचाओं, पेड़ बचाओं, पशु-पक्षी बचाओ