Thursday, May 14, 2015

जंगल और जानवरों का कॉर्बेट


(वो शिकारी जिसको सरकार सलाम करती है)

(१९ अप्रैल को श्री जिम कॉर्बेट की पुण्य तिथि पर विशेष)

कुमाऊं का लाडला
एक समय था जब इंसान बाघ और अन्य जंगली जानवरों से डरा करता थाएक समय था जबउन लोगों की बड़ी मांग थी जो की आदमखोर शेर और बाघ को मार सकेएक समय था जबशिकार का उद्देश्य मानव जीवन को बचाना था ( की आज की तरह एक घटिया शौक). ऐसाही एक शिकारी था जिसको आज भी सब लोग सम्मान से याद करते हैंवो शिकारी था जिमकॉर्बेट जिम कॉर्बेट का जन्म भारत में  नैनीताल में हुआउसने अपना बचपन कुमाऊं मेंबिताया और कुमाऊं के लोगों से जंगल और जानवरों का प्रेम प्राप्त कियाकुमाऊं के लोगों कीतरह श्री कॉर्बेट भी जंगली जानवरों को उनकी आवाज से पहचान  लेते  थे.  वो सच्चे अर्थों मेंजंगल और जंगली जानवरों का प्रशंसक थाउसने अपने जीवन काल में जंगलों और जंगलीजानवरों पर अनेक पुस्तकें लिखी और जानवरों के लिए विशेष प्रयास किये.

नरभक्षी जानवरों से जानवर-भक्षी इंसानों की तरफ : -
एक समय था जब इंसान नर-भक्षी जानवरों के भय से ट्रस्ट रहता थापहाड़ी इलाकों में रहनेवाले लोग रात में घरों से भहर नहीं निकलते थेहर तरफ नर-भक्षी बाघ और अन्य जंगलीजानवरों का खौफ थाहालाँकि श्री कॉर्बेट ने अपने अनुभव से यह साबित किया था की वो हीबाघ नरभक्षी बन जाते हैं जो किसी बिमारी या चोट से ग्रस्त होते हैंबिमारी की हालत में उनकोशिकार मिलना मुश्किल  हो  जाता है और वे नरभक्षी बन जाते हैंश्री कॉर्बेट ने १२०० इंसानों कोमारने वाले नरभक्षी बाघों को मौत के घाट उतार दिया थालेकिन कॉर्बेट के ही प्रयास से भारतमें नेशनल पार्क की स्थापना हुई (जिसका नाम आज जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क है). श्री कॉर्बेटने  ३० से ज्यादा आदमखोर  बाघ और तेंदुओं का शिकार किया लेकिन  आखिर में  जंगलों औरजानवरों को बचाने के लिए प्रयास कियेआज फिर से कॉर्बेट की जरुरत  पड़ी हैआज जंगलऔर जानवर दोनों का जीवन खतरे में हैसरकार के प्रयासों से बाघों की जनसँख्या बढ़ रही है(सरकारी आंकड़ों के अनुसार बाघों की संख्या पिछले  सालों में १७०० से बढ़ कर २३०० हो गयीहैलेकिन वो बाघ क्या खाएंगे? (बाकी जानवर तो खत्म हो रहे हैंजंगलों का ख़त्म होना औरजंगली जानवरों का लगातार घटना एक चिंता का विषय है.  एक समय था जब जंगलपेड़ औरजंगली जानवर हुआ करते थेअब वे लगातार घाट रहे हैंमैंने अपने पिताजी से कस्तूरी मृग कीकहानिया सुनी थी  - अब तो कस्तूरी मृग ही नहीं बचे हैंएक समय ऐसे घनघोर जंगल हुआकरते थे जिनमे दिन में भी अँधेरा रहता था - अब ऐसे जंगल दुर्लभ हो गए हैंजंगलों की सुरक्षाके नाम पर फारेस्ट ऑफिसर्स आदि की नियुक्ति की जाती है जो खुद ही अक्सर शिकारियों सेमिले हुए होते हैं और जंगल और जानवरों को बचने की जगह पर उनके विनाश के कारक बनजाते हैं.

जंगलों की कीमत अनमोल से बहुमूल्य बन गयी
जंगल और जंगली जानवर अनमोल हैंलेकिन आज के ज़माने में कार्बन क्रेडिट का बड़ा फायदाहैजिस देश के पास बड़े बड़े जंगल हैं वो देश उन जंगलों को बचा कर कार्बन क्रेडिट हासिल करसकता है और इस प्रकार जंगलों से उसको कार्बन क्रेडिट के रूप में लगातार आय प्राप्त होतीरहेगीवो देश जिनके पास बड़े बड़े जंगल हैं उनको लगातार आय प्राप्त होती रहेगी और वे देशइस प्रकार बहुत ही सफल हो जाएंगे.
इंसान का हैवानी स्वरुप
 जानवरों की घटी जनसँख्या के पीछे सबसे बड़ा कारण उनका शिकार हैजिम कॉर्बेट भीशिकारी थे पर उनका लक्ष्य अलग थाआज कल हर होटल जंगली जानवरों का मांस परोस रहाहैलोगों में भी इसका एक फैशन बन गया  है  इंसान का हैवान के रूप में रूपांतरण आजजानवरों के लिए सबसे ज्यादा चिंताजनक हैआज इंसान लगभग हर जानवर खाने के लिएतत्पर बैठा हैएक समय था जब वनस्पति की कमी के कारण इंसान को मांस खाना पड़ता था,परन्तु आज तो मांसाहार भी एक फैशन बन रहा है.

फैशन इंडस्ट्री का सितम
फैशन इंडस्ट्री जानवरों के कंकालखालदांतऔर शारीर के हिस्से फैशन के रूप में प्रस्तुत कररहा हैकोई खरगोश की खेल से पर्स बना रहा है तो कोई गेंडे व् हाथी के दांत से गहने बना रहा हैतो कोई जानवरों का प्रयोग फैशन उत्पादों की लैबोरेटरी में कर रहा है.

वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फण्ड 
यह अफ़सोस की बात है की अहिंसा परक देश भारत को आज अहिंसा की शिक्षा के लिए वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फण्ड (WWF)  की तरफ देखना पड़ रहा है. वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फण्ड की तरह के अनेक स्वयं सेवी संगठन आज आगे आ रहे हैं जो लोगों को पेड़ और जंगली जानवरों को बचाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. उनके प्रयास वन्दनीय हैं. भारत के लोगों को भी इस तरफ प्रयास करना चाहिए. बिश्नोई समाज का इस तरफ विशेष योगदान है. 

हग एक पेड़ 
हग ऐ ट्री एक प्रोग्राम है जिसके द्वारा वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फण्ड पेड़ों को बचने के लिए प्रयास कर रहा है. हम सब को इस प्रयास के साथ जुड़ना चाहिए. ये लोग भी वो काम कर रहे हैं जो हम भारतीय वर्षों से करते आ रहे हैं. 

हम सबको अब यह कहना ही पड़ेगा : जंगल बचाओं, पेड़ बचाओं, पशु-पक्षी बचाओ  

अमीर देश को फिर से अमीर बनाने के लिए जरुरत 'सुगम' बौद्धिक सम्पदा व्यवस्था की


(विश्व बौद्धिक सम्पदा दिवस  26 APRIL पर विशेष)

बौद्धिक सम्पदा से तातपर्य है ऐसे ज्ञान का जिसका बाकायदा व्यवस्थित लेखा उपलभ्ध हैऔर जिस व्यक्ति ने उस ज्ञान को उत्पन्न किया है उसको उस ज्ञान से लाभ प्राप्त करने का हक़हैयह ज्ञान लिखित रूप में पूरी दुनिया के सामने उपलभ्ध रहता हैबौद्धिक ज्ञान कई प्रकारका होता है जैसे - पेटेंटकॉपीराइटट्रेड-मार्कइंडस्ट्रियल डिज़ाइनभौगोलिक सूचकांक(ज्योग्राफिकल इंडिकेशन)  आदिइस प्रकार के ज्ञान को वयवस्थित रूप से रख कर पूरी दुनियामें इस ज्ञान को प्रचारित कर उससे आय अर्जित की जाती है.

पूरी दुनिया में आज बौद्धिक सम्पदा का बोलबाला हैहर तरफ कम्पनियाँसरकारेंवैज्ञानिकऔर विश्वविद्यालय बौद्धिक सम्पदा जुटाने में लगे हैंहर कंपनी अपनी बौद्धिक सम्पदा केकारण मालामाल हो रही हैवो हर देश जिसके पास बौद्धिक सम्पदा है वो मालामाल हैबाजारसे कोई भी उत्पाद खरीदिए  - पता चलेगा की किसी  किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी के पेटेंट केतहत वो माल चीन या किसी विकासशील देश की छोटी सी कम्पनी ने वो माल बनाया है.बहुराष्ट्रीय कम्पनी सिर्फ पेटेंटट्रेडमार्कऔर विपणन अधिकार रखती हैमाल को बनाने वालेलोग गरीब देशो के होते हैंमलाई मलाई तो बहुराष्ट्रीय कंपनी ही खाती हैब्रांड के पीछे अंधीदौड़ में शामिल फैशन परास्त दुनिया को नहीं मालुम की जिस कंपनी का माल वो खरीद रहे हैंवो कम्पनी सिर्फ उस माल का डिज़ाइन बना कर पेटेंट करवाती है और असल में उस उत्पाद कोबनाने वाली कंपनी कोई और है.

खैरअसल में जिन देशों की सरकारों ने बौद्धिक सम्पदा को बढ़ावा देने हेतु प्रयास किये,उनको अपने देश की तरक्की करने में मदद मिलीजिन देशों की सरकारों को संकीर्ण मुद्दों सेही फुर्सत नहीं मिलतीवो बौद्धिक सम्पदा के लिए क्या करेंगेआजादी के 66 साल बाद भीआपको हर शहर में हजारों इंस्पेक्टरऑडिटरऔर जासूस  मिल जाएंगेलेकिन पेटेंटरजिस्ट्रार नहीं मिलेगें१००० पेज के  खौफनाक इनकम टैक्स और कम्पनी कानून रट लेने वालेमहारथी चार्टर्ड अकाउंटेंट और वकील मिल जाएंगे लेकिन पेटेंटट्रेडमार्क और बौद्धिक सम्पदाको जानने वाले लोग नहीं मिलेंगेहर शहर में उद्योगों और उद्यमियों को नियंत्रित करने वाले७५ सरकारी दफ्तर मिल जाएंगे लेकिन बौद्धिक सम्पदा के ऑफिस नहीं मिलेगेंअपने ही देशके लोगों पर उनकी खुद की मेहनत की कमाई से चौथ वसूली के लिए दो दिन में प्रक्रिया पूरी होजायेगी और उस हेतु सभी सरकारी मशीनरी त्वरित काम करेगी लेकिन पेटेंट देने में ६००  दिनसे भी ज्यादा समय लगेगा और कोई सरकारी मदद नहीं होगीचौथ वसूली के लिए "सरल" औरपता नहीं क्या क्या शुरू किया जाएगा - पर बौद्धिक सम्पदा के लिए "सरल" कब आएगा पतानहीं?  जिस देश का हर आयुर्वेद  चिकित्सक १० पेटेंट बना सकता है उस देश में आज बौद्धिकसम्पदा का अकाल पड़ा हैजतना पैसा सरकार चौथ वसूली और इस प्रकार के अन्य कार्यक्रमोंपर खर्च करती है उतने में तो गाव गाव में पेटेंट ऑफिस हो जाते और हर भाषा में पेटेंट कीसुविधा हो जाती - और हर गाव वाला भी - पेटेंट बनाने की सोचताएक ऐसी सम्पदा बनतीजो अपनी ही जनता से की गयी चौथ वसूली से ज्यादा सम्पदा होतीपर सरकार की अपनीप्राथमिकताएं हैं जो कम से कम मुझे तो समझ नहीं आती.


हमारे पडोसी देश चीन में . लाख पेटेंट एप्लीकेशन दर्ज हैं१२ लाख के करीब इंडस्ट्रियलडिज़ाइन की अप्प्लिचटिओन्स् दर्ज हैं और बौद्धिक सम्पदा के हर क्षेत्र में वो हमसे १० से २०गुना आगे हैंहम भी उससे आगे हैं कुछ क्षेत्रों मेंजैसे - कानून - चीन के पेटेंट कानून में सिर्फ७० धाराएं हैं और वो सिर्फ  पेज का हैऔर हमारा पेटेंट कानून १७० धाराओं और उप-धाराओंके साथ १०० से ज्यादा पेज का है (लभभग कानून के हर क्षेत्र में हम हर देश को इसी तरह मातदेते हैं - इसके लिए हमारे कानून निर्माता बधाई के पात्र तो नहीं है - फिर  क्या सोच कर वेइतनी मेहनत कर बड़े बड़े और मुश्किल कानून बनाते हैं? - राम जाने). . चीन में पेटेंट ऑफिसकी हर शहर में शाखा है और बहुत मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है और हमारे पेटेंट ऑफिस कामुख्यालय कोलकाता में है और उसकी सिर्फ तीन शाखाएं हैं और कई काम तो सिर्फ कोलकाताऑफिस से ही हो सकते हैंचीन में हर विश्वविद्यालय में बौद्धिक सम्पदा की पढ़ाई होती है,हमारे देश में गिने चुने ऐसे विस्वविद्यालय हैं जहाँ पर बौद्धिक सम्पदा की पढाई होती हैसचहै बिना प्रयास कोई सफलता नहीं मिलती और हमारा अफ़सोस है की हमने प्रयास ही नहींकिया.

जिन खोजा तिन पाइयागहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरारहा किनारे बैठ।

पूरी दुनिया बिना किसी नीव के भी महल बना रही है और हम इतनी मजबूत नीव के बावजूदकोई प्रयास ही नहीं कर रहे हैंभारतीय नेताओं का ध्यान "भारत में चौथ वसूली और विदेशों कीयात्रापर होता है जबकि होना इसका उल्टा चाहिए "विदेशों से चौथ वसूली और भारत कीयात्रा". भारत के शिक्षा तंत्र का यह हाल है की वो "पढ़ाई जो बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी दिलाये"पर जोर देते हैंजबकि होना इसका उल्टा चाहिए यानी वो "पढ़ाई जो बहुराष्ट्रीय कंपनी बनानासिखाये". इसी प्रकार हर भारतीय प्रशाशनिक अधिकारी का ध्येय रहता है की कानून औरप्रक्रिया ऐसी हो जो "सिर्फ प्रशाशनिक अधिकारियों और कानून विदों को समझ आयेजबकिइसका उल्टा होना चाहिए यानी कानून और प्रक्रिया ऐसी हो जो "हर व्यक्ति को समझ में सके और हर व्यक्ति बिना किसी मदद के अपना काम कर सके".