अमीर देश को फिर से अमीर बनाने के लिए जरुरत 'सुगम' बौद्धिक सम्पदा व्यवस्था की
(विश्व बौद्धिक सम्पदा दिवस पर विशेष)
बौद्धिक सम्पदा से तातपर्य है ऐसे ज्ञान का जिसका बाकायदा व्यवस्थित लेखा उपलभ्ध है और जिस व्यक्ति ने उस ज्ञान को उत्पन्न किया है उसको उस ज्ञान से लाभ प्राप्त करने का हक़ है. यह ज्ञान लिखित रूप में पूरी दुनिया के सामने उपलभ्ध रहताहै. बौद्धिक ज्ञान कई प्रकार का होता है जैसे - पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेड-मार्क, इंडस्ट्रियल डिज़ाइन, भौगोलिक सूचकांक (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) आदि. इस प्रकार के ज्ञान को वयवस्थित रूप से रख कर पूरी दुनिया में इस ज्ञान को प्रचारित कर उससे आयअर्जित की जाती है.
पूरी दुनिया में आज बौद्धिक सम्पदा का बोलबाला है. हर तरफ कम्पनियाँ, सरकारें, वैज्ञानिक और विश्वविद्यालय बौद्धिक सम्पदा जुटाने में लगे हैं. हर कंपनी अपनी बौद्धिक सम्पदा के कारण मालामाल हो रही है. वो हर देश जिसके पास बौद्धिकसम्पदा है वो मालामाल है. बाजार से कोई भी उत्पाद खरीदिए - पता चलेगा की किसी न किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी के पेटेंट के तहत वो माल चीन या किसी विकासशील देश की छोटी सी कम्पनी ने वो माल बनाया है. बहुराष्ट्रीय कम्पनी सिर्फ पेटेंट,ट्रेडमार्क, और विपणन अधिकार रखती है, माल को बनाने वाले लोग गरीब देशो के होते हैं. मलाई मलाई तो बहुराष्ट्रीय कंपनी ही खाती है. ब्रांड के पीछे अंधी दौड़ में शामिल फैशन परास्त दुनिया को नहीं मालुम की जिस कंपनी का माल वो खरीद रहे हैं वोकम्पनी सिर्फ उस माल का डिज़ाइन बना कर पेटेंट करवाती है और असल में उस उत्पाद को बनाने वाली कंपनी कोई और है.
खैर, असल में जिन देशों की सरकारों ने बौद्धिक सम्पदा को बढ़ावा देने हेतु प्रयास किये, उनको अपने देश की तरक्की करने में मदद मिली. जिन देशों की सरकारों को संकीर्ण मुद्दों से ही फुर्सत नहीं मिलती, वो बौद्धिक सम्पदा के लिए क्या करेंगे?आजादी के 66 साल बाद भी आपको हर शहर में हजारों इंस्पेक्टर, ऑडिटर, और जासूस मिल जाएंगे, लेकिन पेटेंट रजिस्ट्रार नहीं मिलेगें. १००० पेज के खौफनाक इनकम टैक्स और कम्पनी कानून रट लेने वाले महारथी चार्टर्ड अकाउंटेंट और वकीलमिल जाएंगे लेकिन पेटेंट, ट्रेडमार्क और बौद्धिक सम्पदा को जानने वाले लोग नहीं मिलेंगे. हर शहर में उद्योगों और उद्यमियों को नियंत्रित करने वाले ७५ सरकारी दफ्तर मिल जाएंगे लेकिन बौद्धिक सम्पदा के ऑफिस नहीं मिलेगें. अपने ही देश केलोगों पर उनकी खुद की मेहनत की कमाई से चौथ वसूली के लिए दो दिन में प्रक्रिया पूरी हो जायेगी और उस हेतु सभी सरकारी मशीनरी त्वरित काम करेगी लेकिन पेटेंट देने में ६०० दिन से भी ज्यादा समय लगेगा और कोई सरकारी मदद नहीं होगी.चौथ वसूली के लिए "सरल" और पता नहीं क्या क्या शुरू किया जाएगा - पर बौद्धिक सम्पदा के लिए "सरल" कब आएगा पता नहीं? जिस देश का हर आयुर्वेद चिकित्सक १० पेटेंट बना सकता है उस देश में आज बौद्धिक सम्पदा का अकाल पड़ा है.जतना पैसा सरकार चौथ वसूली और इस प्रकार के अन्य कार्यक्रमों पर खर्च करती है उतने में तो गाव गाव में पेटेंट ऑफिस हो जाते और हर भाषा में पेटेंट की सुविधा हो जाती - और हर गाव वाला भी २-४ पेटेंट बनाने की सोचता. एक ऐसी सम्पदा बनतीजो अपनी ही जनता से की गयी चौथ वसूली से ज्यादा सम्पदा होती. पर सरकार की अपनी प्राथमिकताएं हैं जो कम से कम मुझे तो समझ नहीं आती.
हमारे पडोसी देश चीन में ६.५ लाख पेटेंट एप्लीकेशन दर्ज हैं, १२ लाख के करीब इंडस्ट्रियल डिज़ाइन की अप्प्लिचटिओन्स् दर्ज हैं और बौद्धिक सम्पदा के हर क्षेत्र में वो हमसे १० से २० गुना आगे हैं. हम भी उससे आगे हैं कुछ क्षेत्रों में. जैसे - कानून - चीन केपेटेंट कानून में सिर्फ ७० धाराएं हैं और वो सिर्फ ५ पेज का है, और हमारा पेटेंट कानून १७० धाराओं और उप-धाराओं के साथ १०० से ज्यादा पेज का है (लभभग कानून के हर क्षेत्र में हम हर देश को इसी तरह मात देते हैं - इसके लिए हमारे कानून निर्माताबधाई के पात्र तो नहीं है - फिर क्या सोच कर वे इतनी मेहनत कर बड़े बड़े और मुश्किल कानून बनाते हैं? - राम जाने). . चीन में पेटेंट ऑफिस की हर शहर में शाखा है और बहुत मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है और हमारे पेटेंट ऑफिस का मुख्यालयकोलकाता में है और उसकी सिर्फ तीन शाखाएं हैं और कई काम तो सिर्फ कोलकाता ऑफिस से ही हो सकते हैं. चीन में हर विश्वविद्यालय में बौद्धिक सम्पदा की पढ़ाई होती है, हमारे देश में गिने चुने ऐसे विस्वविद्यालय हैं जहाँ पर बौद्धिक सम्पदा कीपढाई होती है. सच है बिना प्रयास कोई सफलता नहीं मिलती और हमारा अफ़सोस है की हमने प्रयास ही नहीं किया.
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
पूरी दुनिया बिना किसी नीव के भी महल बना रही है और हम इतनी मजबूत नीव के बावजूद कोई प्रयास ही नहीं कर रहे हैं. भारतीय नेताओं का ध्यान "भारत में चौथ वसूली और विदेशों की यात्रा" पर होता है जबकि होना इसका उल्टा चाहिए "विदेशों सेचौथ वसूली और भारत की यात्रा". भारत के शिक्षा तंत्र का यह हाल है की वो "पढ़ाई जो बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी दिलाये" पर जोर देते हैं, जबकि होना इसका उल्टा चाहिए यानी वो "पढ़ाई जो बहुराष्ट्रीय कंपनी बनाना सिखाये". इसी प्रकार हर भारतीयप्रशाशनिक अधिकारी का ध्येय रहता है की कानून और प्रक्रिया ऐसी हो जो "सिर्फ प्रशाशनिक अधिकारियों और कानून विदों को समझ आये" जबकि इसका उल्टा होना चाहिए यानी कानून और प्रक्रिया ऐसी हो जो "हर व्यक्ति को समझ में आ सके औरहर व्यक्ति बिना किसी मदद के अपना काम कर सके".