"भाइपो" व् "बंधो" की ताकत और सामजिक चेतना बोध
वोही प्रदेश प्रगति करता है जहाँ पर परम्पराएँ जीवन मूल्यों के साथ हमारी प्रगति में मदद करती है और हम विकास और नयी तकनीक को अपनाने में भी नहीं चूकते. विकास एक ऐसा रास्ता है जिसमे अक्सर द्वन्द होता है. एक तरफ परिवर्तन है तो दूसरी तरफ परम्परा है. कई बार दोनों में मतभेद हो जाता है. कई बार एक ग़लतफ़हमी हो जाती है और हम परम्परा को भुला देते हैं या फिर नयी तकनीक के ही विरोधी हो जाते हैं. विकास इस मुश्किल क्षण में सही निर्णय लेने की कला का नाम है.
जहाँ जहाँ भी सामाज संगठित होता है वहां वहां पर परिवर्तन मुश्किल होता है और तकनीकी विकास रुक जाता है क्योंकि कुछ लोग नयी तकनीक और नयी सोच को रोक देते हैं और सभी लोग फिर पिछड़ जाते हैं. लेकिन ऐसा हर शहर में नहीं होता है. कई ऐसे शहर है जहाँ पर लोग मिल जुल कर एक समाज का स्वरुप तय करते हैं तो विकास के लिए जरुरी परिवर्तन को भी स्वीकार करते हैं. बीकानेर की बात करते हैं. ये एक ऐसा शहर है जहाँ पर वर्षों से गुवाड़ की व्यवस्था बानी हुई है. एक गुवाड़ के लोगों में आपस में भाईपा होता है और वो सब मिल जुल कर एक दूसरे की मदद करते हैं. एक गुवाड़ के लोग अपने स्वयं के नियम और व्यवस्थाएं बनाते हैं जैसे - बंधा - और उस बंधा को सभी लोग पालन करते हैं. ये बंधे किसी भी कानून से ज्यादा असर दार होते हैं.
परिवर्तन की बात करें तो बीकानेर के लोग परिवर्तन के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं. बीकानेर राजस्थान में पहला जिला है जहाँ पर बिजली शुरू हुई (वर्ष १८८६ में यहाँ पर बिजली शुरू हुई). फिर यहाँ पर रेलवे, आधुनिक चिकित्सा, आधुनिक संचार साधनों को लोगों ने अपनाया. बीकानेर वो जगह है जयं पर लोगों ने तकनीक को स्वीकार भी किया पर सामाजिक ढाँचे को भी बनाये रखा.
परिवर्तन और नयी तकनीक भी समाज के संगठनात्मक ढांचे को मदद कर सकती है और हमारी वर्षों पुरानी परम्पराओं को भी बचाया जा सकता है - ऐसा हम बीकानेर की संस्कृति की देख कर सीख सकते हैं. आज भी यहाँ पर गणगोर, तीज, महा - शिवरात्रि, आखातीज, ताजिया, और होली दिवाली के त्योंहार बड़े ही उत्साह से मनाये जाते हैं तो साथ ही नयी तकनीक की मदद से नयी पीढ़ी विकास के हर आयाम को जनता तक पहुचाने का प्रयास कर रही है. आज भी गुवाड़ के लोग मिल कर गोठ (पिकनिक) मानते हैं तो साथ में मिल कर जन चेतना और जागरूकता फैलाने के लिए भी प्रयास करते हैं.
राष्ट्रीय उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बीकानेर के लोग अपने सीमित संसाधनों के बावजूद हमेशा आगे आ आ कर पहल करने का प्रयास करते हैं भले ही उनको इसमें बहुत दिक्क्तें आये और भले ही उनको प्रशाशन से कोई सहयोग न मिले. आजादी से पहले आजादी के आंदोलन में यहाँ के लोग बढ़ चढ़ कर भाग ले रहे थे और गांधी जी को अपने अपने स्तर पर सहयोग देने का प्रयास कर रहे थे तो आजादी के बाद विभिन्न आंदोलनों में भी अपना योगदान देते रहे. अभी हाल ही में भारत सरकार द्वारा शुरू किये गए स्वच्छ भारत अभियान के लिए भी बीकानेर के लोग स्वयं पहल कर के अपने मोहल्लों को साफ़ सुथरा रखने के लिए प्रयास कर रहे हैं.
परिवर्तन कहीं कहीं पर चुनौती होता है जयं पर लोग कट्टर हो जाते हैं. लेकिन बीकानेर में लोगों में नयी तकनीक के लिए लचीला- पन है और साथ में हमारी परम्पराओं के लिए भी सम्मान है. ये सम्मान भी बहुत जरुरी है. इसी कारण कई लोग कहते हैं की बुजुर्गों के लिए तो बीकानेर अभी भी स्वर्ग है क्योंकि उनको इस शहर में जितना सम्मान और प्यार मिलता है उतना और किसी भी महानगर या आधुनिक शहर में मुश्किल है. आज भी बुजुर्गों को सम्मान देने और उनको पावधोक लगाकर उनको आदर देने में यहाँ के लोग पीछे नहीं है और इसी कारण इस शहर में अभी भी हवा में ख़ुशी, आनंद और समरसता की खुशबु फैली है.
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