आईये योग को समझें
(अंतरास्ट्रीय योग दिवस २१ जून को अध्भुत भारतीय ज्ञान की विरासत को समर्पित)
अद्भुत अलोकिक भारतीय ज्ञान और परम्परों में से एक है योग - जिसको जानने केलिए पूरी दुनिया लालायित है. आईये हम भी अपने बच्चों को योग से जोड़ें. योग जीवन की सारी समस्याओं का समाधान प्रदान करता है. योग हमको वो शक्तियां प्रदानकरता है जो एक साधारण मानव के रूप में अकलप्नीय है.
हम जितनी मेहनत से विद्यार्थियों को पानीपत की लड़ाई याद करवाते हैं (इतिहास विषय में) उतनी म्हणत से हमारे इतिहास के उन पन्नों को पढ़ाएं जिनमे योग, पतंजलि, और योग शाश्त्र का वर्णन हैं तो हमारी आज की सारी समस्याएं मिट जाएंगी.आईये शुरुआत करते हैं भारतीय दर्शन को समझने की.
भारतीय दर्शन में मुख्य रूप से निम्न ८ दर्शन हैं: -
सांख्य दर्शन
वैशेषिक दर्शन
न्याय दर्शन
योग दर्शन
मीमांसा दर्शन
वेदांत दर्शन
जैन दर्शन
बौद्ध दर्शन
पातंजलि ने हमें योग दर्शन प्रदान किया है. वैसे अन्य दर्शनों में भी योग का जिक्र है.
योग दर्शन
योग के ८ कदम हैं : -
यम : - यानी अनुशाशन, आत्मनुशाषन, अपने आप पर अंकुश, अपनी इच्छाओं पर अंकुश, अपनी सोच पर लगाम. हिंसा, क्रोध और अनाचार से बचना. यम का एक उदाहरण : जैन धर्म में पांच महाव्रत का उल्लेख है वैसे ही यम में हम सत्य, अहिंसा,अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, ये पांच यम हैं.
नियम: - यानी स्वेच्छा से कुछ कार्य शुरू करना, नियमित रूप से अध्ययन, स्वाध्याय और इस प्रकार के कार्य करना - जैसे सुबह उठ कर ओम का उच्चारण करना आदि. पांच प्रमुख नियम इस प्रकार हैं: शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान(ईश्वर के प्रति निष्ठा).
आसान : - यानी बैठने और खड़े होने की मुद्रा - ८४ प्रकार के आसनों का जिक्र है जिससे शरीर को स्वस्थ रखा जा सके - यानी शरीर को ढालना. एक दिन में ऐसा संभव नहीं है लेकिन लगातार अभ्यास कर के हम शरीर को इस तरह तैयार कर सकते हैं.
प्राणायाम : - यानी स्व-नियंत्रित तरीके से स्वाश लेना और छोड़ना
प्रत्याहार: - यानी दुनिया के अस्तित्व और हमारे होने के बारे में जीवन के सारांश को समझने का प्रयास करना - यानी जीवन के मर्म को समझने का प्रयास करना
धारणा: - यानी श्रद्धा पूर्वक आत्मा को स्वीकार कर योग के द्वारा अपनी आंतरिक शक्तियों को जागृत करना :
ध्यान: - यानी एक विचार या एक बिंदु पर अपनी सोच को स्थिर करना
समाधी : - यानी पूरी तरह से विचार मुक्त, चिंतन मुक्त, परम आत्म स्वरुप हो जाना
इन आठ कदमों की तरफ एक एक कदम बढ़ेंगे तो आढ़वे कदम पर समाधी यानी ईश्वर स्वरुप जो जाएंगे. योग एक अद्भुत ज्ञान की परम्परा है और इस को हर विद्यालय और हर महाविद्यालय में पढ़ाया जाना चाहिए.
प्राचीन भारत में लोग बीमार कम होते थे. अधिकाँश बीमारियां योग और अन्य क्रियाओं के कारण नहीं होती थी. आज हर दूसरा व्यक्ति शारीरिक और मानसिक बीमारी से ग्रसित है. आज डॉक्टर्स खुद सलाह देते हैं की आप फलां बीमारी के लिए फलांयोग शुरू करो, जैसे की : -
जुकाम और नाक सम्बन्दी बीमारी के लिए जलनेति, मोटापे के लिए सूर्य नमस्कार, कब्ज के लिए पवनमुक्तासन, संकप्रक्षालन, भस्त्रिका, ब्लड प्रेशर के लिए सवासन, शिथिलासन, अस्थमा के लिए भुजनसं, मत्स्यासन, कपालभाति, शुगर की बीमारीके लिए अर्धमस्तानदासन, शलभासन आदि.
यह बड़े दुःख की बात है की आज हर स्कुल, कॉलेज में आपको जिम तो मिल जाएगा पर योग और ध्यान की कोई व्यवस्था नहीं है. पश्चिमी लेखकों ने बड़े गौर से योग की पुस्तकें पढ़ी और उनका अंग्रेजी में अनुवाद कर पुरे पश्चिमी जगत के लिएउपलभ्ध करवा दी लेकिन साथ में उन्होंने भारतीय लोगों से कह दिया की योग की पुस्तकें वैज्ञानिक ज्ञान पर आधारित नहीं है और डरपोक भारतीय (तथाकथित अंग्रेजी के विद्वानों ने जो की हमेशा से अंग्रेजों के पिट्ठू रहे) शिक्षाविदों ने योग को भारतकी ज्ञान परम्परा से हटाने की साजिश की और सफल हो गए. वे तो सफल हो गए पर देश बर्बाद हो गया. आज फिर से जरुरत है की हम अपनी इस अद्भुत ज्ञान की विरासत को संजोएं और अपने ही देश में अपने ही सपेरे दुश्मनों को समझने का प्रयासकरें की योग हम सब की भलाई के लिए है न की आदमी -आदमी को लड़ाने के लिए.
आज हर दम्पति इस बात से चिंतित है की बच्चों को कैसे सही रास्ते पर लाएं. योग में ध्यान की क्रिया का वर्णन है. सिर्फ ओमकार का जाप करना ही शुरू कर दें और बच्चों को ओमकार का जाप करवाना शुरू करवा दे तो उनकी याददाश्त, उनकीकुशाग्रता और उनकी एकाग्रता में आशातीत सुधार होगा. ओमकार के लगातार उच्चारण से बच्चों में जीवन के उद्देश्य की समझ बनेगी और वो अपने आप धर्म- अर्थ - काम - मोक्ष के भारतीय मार्ग को समझ पायेगा और जीवन को एक अच्छे उद्देश्य केलिए अर्पित करेगा.
हम भारतियों की बड़ी कमजोरी है की हमें अपनी परम्पराओं पर न तो गर्व है न ही हम उनको समझ कर अपनाना चाहते हैं. हम अपनी परम्पराओं को न तो समझना चाहते हैं, न बचाना चाहते हैं न उनको दूसरों के सामने बचाना चाहते हैं. रही सही कसरविदेशी शिक्षा ने पूरी कर दी और हमारे बच्चों को पूरी तरह से हमारी परम्पराओं से मरहूम कर दिया. अब जरुरत है की हम जागृत हो जाए और हुंकार कर के आवाज उठायें और अपनी परंपरा को समझने और समझने का प्रयास करें. मुझे कई भारतीयऐसे भी मिले जो ये कह रहे थे की "मैं तो भूतकाल में जी रहा हम आज का समय तो बदल गया है" - आप को भी ऐसे कई लोग मिलेगें पर आप अडिग रहें और प्रयास करेंगे तो सफलता मिलेगी.
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