Thursday, December 10, 2015

CITY OF SOCIAL ENTREPRENEURS

सामजिक उद्यमियों की कर्म भूमि - बीकानेर 



हर व्यक्ति जन्म से उद्यमशील होता है और कुछ न कुछ करना चाहता है. हम चाहें तो उसको सामाजिक उद्यमिता की तरफ प्रेरित कर सकते हैं और चाहे तो उसको पलायन के लिए प्रेरित कर सकते हैं. कुछ लोग यह कहते हैं की बीकानेर के लोगों को अपने शहर से बहुत प्यार है और इसी कारण वो बहार जाने के बाद भी घूम फिर कर वापिस बीकानेर लोट कर जरूर आते हैं और अपने प्रदेश के विकास के लिए सोचते हैं. उनको यहाँ की संस्कृति की जन्मघुट्टी ही ऐसी मिलती है की वो कहीं भी जाएँ बीकानेर के विकास के लिए जरूर सोचते हैं. इसी कारण सरकारी अनदेखी के बावजूद यहाँ पर अनेक सामाजिक संस्थाओं का विकास हुआ है और उन सब प्रयासों के कारण ही इस क्षेत्र में विकास की एक सतत उत्खंठा नजर आती है. जहाँ पर विकास के लिए लोग संघर्ष करते हैं और खुद के प्रयासों से विकास लाते हैं वहां पर लोगों में एक गजब ही जिजीविषा नजर आती है. सामजिक उद्यमियों की ऐसी कर्म भूमि पर विकास बहुत गहरी छाप छोड़ता है और आम व्यक्ति को विकास से जोड़ देता है. सामजिक उद्यमियों के प्रयासों से ही लोग एक दूसरे से विकास में भागीदारी की अपेक्षा करने लग जाते हैं और लोगों का झुण्ड एक सुसंस्कृत शहर में बदल जाता है. 

सामजिक उद्यमियों से ही दुनिया का विकास होता है. ये वो लोग हैं जो ज़माने को बदलने वाली सोच ले कर आते हैं और ऐसी संस्थाएं स्थापित करते हैं जो समाज के विकास के लिए समर्पित होती हैं. ऐसी संस्थाओं के कारण ही समाज में समरसता, सकारात्मक सोच और प्रगतिशीलता रहती है. बीकानेर एक ऐसा शहर है जहाँ पर शुरू से ही सामाजिक उद्यमिता यहाँ की संस्कृति में और लोगों के जीवन के उद्देश्यों में बसी हुई है. जब भी कोई व्यक्ति अर्थोपार्जन करता है तो उसके कुछ उद्देश्य होते हैं और ये उद्देश्य ही उसको सामाजिक उद्यमी बनने के लिए प्रेरित करते हैं. कही पर लोग पैसा कमाने का उद्देश्य सिर्फ अपना पेट भरना तो कहीं पर सिर्फ अय्याशी ही मान लेते हैं लेकिन सौभाग्य से बीकानेर के लोग अपनी आय का कुछ अंश समाज के विकास के लिए अर्पित करना चाहते हैं. 

बीकानेर के धन कुबेरों, राजाओं, बुद्धिजीवियों सबने अपने अपने स्तर पर कुछ न कुछ प्रयास जरूर किया है. किसी ने पुस्तकालय (लाइब्रेरी) बनवायी, किसी ने खेल कूद का मैदान बनवाया, किसी ने अस्पताल बनवाया, किसी ने स्कुल-कॉलेज बनवाने में मदद की. इन्ही सब प्रयासों के कारण आज हम बीकानेर में जन भागीदारी के आधार पर बानी संस्थाओं को देख पाते हैं. अभय जैन ग्रंथालय, अजित फाउंडेशन, सेठिया पुस्तकालय, जुबली नागरी भंडार, अनूप संस्कृत पुस्तकालय, गांधी शोध संस्थान, तुलसी शांति प्रतिष्ठान, आदि सिर्फ वे संस्थान है जिनका निर्माण यहाँ के लोगों ने समाज के विकास के लिए किया है. 

सामजिक उद्यमिता की भावना इच्छा शक्ति पर निर्भर करती है. इस इच्छा शक्ति का विकास जरुरी है. नए ज़माने में भी सतत प्रयास होने चाहिए ताकि लोग अपने प्रदेश के विकास के लिए आगे आ कर प्रयास करें. पुरानी संस्थाओं के सतत विकास के लिए उनको  सम्बल देना जरुरी है तो नए दौर में जरुरत के अनुसार नयी संस्थाओं का निर्माण जरुरी है. इस के लिए जरुरी है की विद्यालय - महाविद्यालय के स्तर से ही सामाजिक उद्यमिता पर चर्चा हो और विद्यार्थिओं को सामाजिक उद्यमियों से रूबरू होने का मौका मिले. विद्यार्थी स्वयं इन संस्थाओं का भ्रमण करें और इनके योगदान को समझें. वो भी ये सपने संजोना शुरू करें की बड़े हो कर वो भी किसी न किसी सामाजिक संस्था का निर्माण करने का प्रयास करेंगे. 

हर समाज के सामने दिक्क्तें और परेशानियां होती हैं लेकिन जिस समाज में सामाजिक उद्यमियों का सम्मान होता है उस समाज में लोग आगे आ आ कर सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए प्रयास करते हैं और हर समस्या का समाधान करते चले जाते हैं. जिस समाज में ऐसी परम्पराएँ नहीं होती उसमे कोई भी आगे आना नहीं चाहता. हर विकसित समाज अपने सामाजिक उद्यमियों के कारण ही विकास कर पाता है. बीकानेर का सौभाग्य है की यहाँ पर हमेशा से ही यहाँ के भामाशाहों और सामजिक उद्यमियों का सम्मान हुआ है. 

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