Thursday, December 10, 2015

FOR ENTREPRENEURSHIP DEVELOPMENT

उद्यमिता प्रोत्साहन कि नीतियां - देर आये दुरस्त आये 

कभी ये सोचा है आपने की जिस राजस्थान ने देश को सबसे ज्यादा उद्यमी दिए हैं उसी राजस्थान की मुख्य मंत्री विदेशों से उद्यमियों को आमंत्रित कर रही है की हमारे प्रदेश में आईये (जैसे की इस प्रदेश में उद्यमियों का अकाल है). क्या आप ने कभी सोचा है की बिल गेट्स और स्टीव जॉब जैसे लोग अमेरिका से ही क्यों निकलते हैं - भारत से क्यों नहीं ? क्यों भारत की युवा प्रतिभा को हम सिर्फ नौकरशाह या उनसे सम्बंधित रोजगारों तक ही धकेल पाते हैं - क्यों हम हमारे युवाओं को  उद्यमी या सामाजिक उद्यमी बनने के लिए 
प्रेरित नहीं कर पाते हैं? 

केंद्र सरकार और राज्य सरकारें नयी स्टार्टअप पालिसी लाने में व्यस्त हैं. एक बेहतरीन शुरुआत होने जा रही है. जिस बात के लिए मैं पिछले ३ दशकों से वकालात कर रहा हूँ उस बात के कद्रदान अब सत्ता में आ गए हैं. ऐसा लग रहा है की शायद देश में फिर से उद्यमिता को प्राथमिकता दी जाने लगेगी. ये स्टार्टअप पालिसी तो एक शुरुआत होगी. इस शुरुआत के साथ ही अनावश्यक नौकरशाही को खत्म करना भी जरुरी है. स्टार्टअप पालिसी के तहत हर विद्यार्थी अपनी पढ़ाई के साथ ही नयी आईडिया सोचते हुए अपने उद्यम की योजना बनाना शुरू कर देगा. इस तरह वह विद्यार्थी जब तक अपनी पढ़ाई पूरी करेगा तब तक वो एक उद्यमी बन चूका होगा. जब वो अपनी पढ़ाई के साथ अपने उद्यम की योजना बनाएगा तब उसको हर महीने लगभग १०००० रूपये महीना मिलेगा जिससे उसको अपने उद्यम की योजना बनाने में मदद मिलेगी. उसके बाद उसको वेंचर केपिटल की सहायता भी मिल जाएगी. उसको इस हेतु सरकार द्वारा प्रवर्तित किसी इन्क्यूबेशन सेंटर के द्वारा अपना आवेदन प्रस्तुत करना पड़ेगा. 

यहाँ फिर गम फिर कर इन्क्यूबेशन सेंटर की राजनीति बीच में दाल दी है. सिर्फ १५ साल पुरानी संस्थाओं को ही इन्क्यूबेशन सेंटर शुरू करने की इजाजत दी जायेगी. ये भी गलत है. फिर से सरकार चक्रव्यूह बनाने लग गयी है. सरकारी नियम मकड़ी की जाल की तरह होते हैं जो उद्यमी को फंसा सकते हैं लेकिन उसकी मदद कभी नहीं कर सकते हैं. 

उद्यमी बनना बड़ा आसान है. उद्यमिता के निम्न चरण हैं: - 

१. समाज की किसी समस्या का अध्ययन और उस समस्या के समाधान के लिए कोई उत्पाद या सेवा का विकास - नवाचार, शोध, परिकल्पना, और प्रयोग 
२. उस उत्पाद या सेवा के निर्माण / वितरण की योजना बनाना 
३. वयवसाय का काल्पनिक ढांचा बनाना तथा उसके बारे में चर्चा करना
४. व्यावसायिक उत्पादन और प्रक्रिया को चालू करना
५. पूंजी बाजार से पूंजी प्राप्त करना और उससे सम्बंधित सेवाओं से उद्यमी की मदद करना 
६. व्यवसाय की सफलता के लिए उससे सम्बंधित नवाचार, सृजन और विस्तारीकरण की योजना बनाना 
७. व्यवसाय का सही ढांचा तय करना और सम्बंधित कानूनों का पालन करना. 

उपर्युक्त ७ सात बिन्दुओं में से भारत का व्यापारी तो सिर्फ आखिरी (सातवे) बिंदु में ही अटका रह जाता है और कुछ तो कर ही नहीं पाटा. उसका सारा समय तो सरकारी कानूनों का पालन करने (और उन कानूनों को समझने का प्रयास करने ) में ही बीत जाता है - फिर भी न समझ आते हैं न वो कानून के सभी बिन्दुओं को पूरा  कर पाता है. . 

उद्यमी की सफलता इस बात पर निर्भर करती है की वो कितना नवाचारी है और कितना सृजनशील है. लेकिन नवाचार और सृजनशील बनने के लिए भी तो उसको समय, माहोल, और प्रोत्साहन चाहिए. सारा समय तो सरकारी विभागों की मांगों को पूरा करने में लग जाता है. 

आज दबी जुबान लोग सरकारी विभागों की कार्य प्रणाली और छोटे उद्यमियों को परेशान करने की उनकी नीति की आलोचना करने की कोशिश कर रहें हैं (पूरा साहस वे नहीं जुटा पा रहे हैं.) 


आज जरुरत है की हम सभी लोग पुरजोर आवाज में अपनी निम्न मांगे रखें : - 
१. सभी कानूनों को सरल, संक्षिप्त और उद्यमिता प्रेरक बनाया जाए. 
२. अगले ३ वर्षों में सभी प्रमुख व्यावसायिक कानूनों को इस प्रकार बदला जाये की किसी भी कानून में ३० से ज्यादा धाराएं न हो और कोई भी कानून १० पेज से ज्यादा बड़ा नहीं हो - जिसको अगले १० वर्षों में और सरल कर के सिर्फ ५ पेज का कानून बना दिया जाए. 
३. अगले ३ वर्षों में सभी प्रमुख टैक्स को कम कर दिया जाए और कोई भी टैक्स अधिकतम २०% से ज्यादा न हो (जिसको अगले १० वर्षों में और घटा कर १५% अधिकतम कर दिया जाए). 
४. नए सिरे से कोई भी टैक्स न लगाये जाएँ. 
५. उद्यमी को प्रताड़ित, जलील, और हतोत्साहित करने की कार्यवाहियां कम से कम हों ओर उद्यमी को सरकारी विभागों से एकल खिड़की योजना के तहत सारा काम हो और वेबसाइट और इंटरनेट की मदद से वो अपना सारा काम कर सकें. 
६. उद्यम समूहों और उद्यमियों को वय्वसायिक नियम और कानून बनाने वाली संस्थाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिले. 
७. विद्यार्थियों को स्कुल और कॉलेज में उद्यमिता का प्रशिक्षण मिले और प्रोत्साहन मिले. 
उद्यमिता को प्रोत्साहन सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन सबसे अच्छा प्रोत्साहन तभी होगा जब अधिक से अधिक सरकारें अपनी नीतियों, नियमों और कानूनों को सरल और सुगम बनाएगी. 
८. हर कानून को सरल हिंदी में (बोल चाल की भाषा) में प्रस्तुत किया जाए ताकि वो हर उद्यमी को समझ में आये - उसको समझने के लिए किसी विशेषज्ञ की सेवा लेने की जरुरत नहीं पड़े. 
९. हर कानून को बनाने / विश्लेषण करने वाली समिति में छोटे उद्यमियों के प्रतिनिधि जरूर हों. 

मुझे पता है की जो बात में आज लिख रहा हूँ वो हर व्यक्ति सोच रहा है. मैं यह जानता हूँ मेरी बात जन - मानस की आवाज है-  यहाँ तक कि खुद सरकारी कर्मचारी  भी अकेले में ये बात कहते हैं कि वे अपने ही देश में  अपने ही भाइयों   के बीच अफसरी करते हुए अपने आपको खुश नहीं पा रहे हैं. वो भी चाहते हैं कि व्यवशताएं और कानून बदले. निहित स्वार्थों से उप्र उठ कर कदम बढ़ने कि जरुरत है. 

ये देश अब आपका है तो कानून भी अब आप बनाइये - अंग्रेजों के बनाये हुए कानून अब फेंक दीजिये. अंग्रेजी बोलने वाले लोगों के द्वारा बनाये हुए कानून भी फेंक दीजिये. अब तो आम आदमी की भाषा में ही कानून होने चाहिए. 

आज हमने ६ दशकों के कानूनी मकड़ जाल से पुरे देश में रिश्वतखोरों, दलालों और इस प्रकार के काम करने वाले लोगों कि बहार ल दी है. उद्यमियों को चोर और समाजकंटक बता कर हमने बेरोजगारों कि लाइन लगा दी है. कॉलेजों को सरकारी बाबू बनाने कि फैक्ट्री बना दिया है. अपनी अद्भुत संस्कृति विरासत को खत्म कर विदेशी संस्कृति को बढ़ावा दिया है. अपनी भाषा कि जगह पर विदेशी भाषा को प्रोत्साहन दिया है और सिर्फ विदेशी  भाषा जानने वालों को रोजगार और ऊँचे ओहदे प्रदान किये हैं और अपनी भाषा और संस्कृति जानने वालों को दर दर ढ़ोकरें खाने के लिए विवश किया है. सादगी से रहने वाले भारतीय को तिरस्कार और टाई - शाई में रहने वाले को सम्मान दिया है. जरुरत है कि अब कुछ चिंतन हो. स्वास्थ्य के लिए उत्तम भोजन कि जगह पर "अंडे" "मांसाहार" और यहाँ तक कि  "गोमांस"  को बढ़ावा दिया है. अब तो जागो दोस्तों. हम आजाद मुल्क मैं है और उस आजादी का असली फायदा तभी होगा जब ऐसी नीतियां बनेगी जो हर व्यक्ति को अपनी मन- पसंद का  कार्य करते हुए अपने देश और प्रदेश कि सेवा करने का मौका दे सके.  अभी नहीं तो फिर कभी नहीं. 

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