Thursday, December 10, 2015

ON INTELLECTUAL PROPERTY

अमीर देश को  फिर से अमीर बनाने के लिए जरुरत 'सुगम' बौद्धिक सम्पदा व्यवस्था की 
(विश्व बौद्धिक सम्पदा दिवस पर विशेष)

बौद्धिक सम्पदा से तातपर्य है ऐसे ज्ञान का जिसका बाकायदा व्यवस्थित लेखा उपलभ्ध है और जिस व्यक्ति ने उस ज्ञान को उत्पन्न किया है उसको उस ज्ञान से लाभ प्राप्त करने का हक़ हैयह ज्ञान लिखित रूप में पूरी दुनिया के सामने उपलभ्ध रहताहैबौद्धिक ज्ञान कई प्रकार का होता है जैसे - पेटेंटकॉपीराइटट्रेड-मार्कइंडस्ट्रियल डिज़ाइनभौगोलिक सूचकांक (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन)  आदिइस प्रकार के ज्ञान को वयवस्थित रूप से रख कर पूरी दुनिया में इस ज्ञान को प्रचारित कर उससे आयअर्जित की जाती है.

पूरी दुनिया में आज बौद्धिक सम्पदा का बोलबाला हैहर तरफ कम्पनियाँसरकारेंवैज्ञानिक और विश्वविद्यालय बौद्धिक सम्पदा जुटाने में लगे हैंहर कंपनी अपनी बौद्धिक सम्पदा के कारण मालामाल हो रही हैवो हर देश जिसके पास बौद्धिकसम्पदा है वो मालामाल हैबाजार से कोई भी उत्पाद खरीदिए  - पता चलेगा की किसी  किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी के पेटेंट के तहत वो माल चीन या किसी विकासशील देश की छोटी सी कम्पनी ने वो माल बनाया हैबहुराष्ट्रीय कम्पनी सिर्फ पेटेंट,ट्रेडमार्कऔर विपणन अधिकार रखती हैमाल को बनाने वाले लोग गरीब देशो के होते हैंमलाई मलाई तो बहुराष्ट्रीय कंपनी ही खाती हैब्रांड के पीछे अंधी दौड़ में शामिल फैशन परास्त दुनिया को नहीं मालुम की जिस कंपनी का माल वो खरीद रहे हैं वोकम्पनी सिर्फ उस माल का डिज़ाइन बना कर पेटेंट करवाती है और असल में उस उत्पाद को बनाने वाली कंपनी कोई और है.

खैरअसल में जिन देशों की सरकारों ने बौद्धिक सम्पदा को बढ़ावा देने हेतु प्रयास कियेउनको अपने देश की तरक्की करने में मदद मिलीजिन देशों की सरकारों को संकीर्ण मुद्दों से ही फुर्सत नहीं मिलतीवो बौद्धिक सम्पदा के लिए क्या करेंगे?आजादी के 66 साल बाद भी आपको हर शहर में हजारों इंस्पेक्टरऑडिटरऔर जासूस  मिल जाएंगेलेकिन पेटेंट रजिस्ट्रार नहीं मिलेगें१००० पेज के  खौफनाक इनकम टैक्स और कम्पनी कानून रट लेने वाले महारथी चार्टर्ड अकाउंटेंट और वकीलमिल जाएंगे लेकिन पेटेंटट्रेडमार्क और बौद्धिक सम्पदा को जानने वाले लोग नहीं मिलेंगेहर शहर में उद्योगों और उद्यमियों को नियंत्रित करने वाले ७५ सरकारी दफ्तर मिल जाएंगे लेकिन बौद्धिक सम्पदा के ऑफिस नहीं मिलेगेंअपने ही देश केलोगों पर उनकी खुद की मेहनत की कमाई से चौथ वसूली के लिए दो दिन में प्रक्रिया पूरी हो जायेगी और उस हेतु सभी सरकारी मशीनरी त्वरित काम करेगी लेकिन पेटेंट देने में ६००  दिन से भी ज्यादा समय लगेगा और कोई सरकारी मदद नहीं होगी.चौथ वसूली के लिए "सरल" और पता नहीं क्या क्या शुरू किया जाएगा - पर बौद्धिक सम्पदा के लिए "सरल" कब आएगा पता नहीं?  जिस देश का हर आयुर्वेद  चिकित्सक १० पेटेंट बना सकता है उस देश में आज बौद्धिक सम्पदा का अकाल पड़ा है.जतना पैसा सरकार चौथ वसूली और इस प्रकार के अन्य कार्यक्रमों पर खर्च करती है उतने में तो गाव गाव में पेटेंट ऑफिस हो जाते और हर भाषा में पेटेंट की सुविधा हो जाती - और हर गाव वाला भी - पेटेंट बनाने की सोचताएक ऐसी सम्पदा बनतीजो अपनी ही जनता से की गयी चौथ वसूली से ज्यादा सम्पदा होतीपर सरकार की अपनी प्राथमिकताएं हैं जो कम से कम मुझे तो समझ नहीं आती.


हमारे पडोसी देश चीन में . लाख पेटेंट एप्लीकेशन दर्ज हैं१२ लाख के करीब इंडस्ट्रियल डिज़ाइन की अप्प्लिचटिओन्स् दर्ज हैं और बौद्धिक सम्पदा के हर क्षेत्र में वो हमसे १० से २० गुना आगे हैंहम भी उससे आगे हैं कुछ क्षेत्रों मेंजैसे - कानून - चीन केपेटेंट कानून में सिर्फ ७० धाराएं हैं और वो सिर्फ  पेज का हैऔर हमारा पेटेंट कानून १७० धाराओं और उप-धाराओं के साथ १०० से ज्यादा पेज का है (लभभग कानून के हर क्षेत्र में हम हर देश को इसी तरह मात देते हैं - इसके लिए हमारे कानून निर्माताबधाई के पात्र तो नहीं है - फिर  क्या सोच कर वे इतनी मेहनत कर बड़े बड़े और मुश्किल कानून बनाते हैं? - राम जाने). . चीन में पेटेंट ऑफिस की हर शहर में शाखा है और बहुत मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है और हमारे पेटेंट ऑफिस का मुख्यालयकोलकाता में है और उसकी सिर्फ तीन शाखाएं हैं और कई काम तो सिर्फ कोलकाता ऑफिस से ही हो सकते हैंचीन में हर विश्वविद्यालय में बौद्धिक सम्पदा की पढ़ाई होती हैहमारे देश में गिने चुने ऐसे विस्वविद्यालय हैं जहाँ पर बौद्धिक सम्पदा कीपढाई होती हैसच है बिना प्रयास कोई सफलता नहीं मिलती और हमारा अफ़सोस है की हमने प्रयास ही नहीं किया.

जिन खोजा तिन पाइयागहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरारहा किनारे बैठ।

पूरी दुनिया बिना किसी नीव के भी महल बना रही है और हम इतनी मजबूत नीव के बावजूद कोई प्रयास ही नहीं कर रहे हैंभारतीय नेताओं का ध्यान "भारत में चौथ वसूली और विदेशों की यात्रापर होता है जबकि होना इसका उल्टा चाहिए "विदेशों सेचौथ वसूली और भारत की यात्रा". भारत के शिक्षा तंत्र का यह हाल है की वो "पढ़ाई जो बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी दिलायेपर जोर देते हैंजबकि होना इसका उल्टा चाहिए यानी वो "पढ़ाई जो बहुराष्ट्रीय कंपनी बनाना सिखाये". इसी प्रकार हर भारतीयप्रशाशनिक अधिकारी का ध्येय रहता है की कानून और प्रक्रिया ऐसी हो जो "सिर्फ प्रशाशनिक अधिकारियों और कानून विदों को समझ आयेजबकि इसका उल्टा होना चाहिए यानी कानून और प्रक्रिया ऐसी हो जो "हर व्यक्ति को समझ में  सके औरहर व्यक्ति बिना किसी मदद के अपना काम कर सके".

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