(विश्व बौद्धिक सम्पदा दिवस 26 APRIL पर विशेष)
बौद्धिक सम्पदा से तातपर्य है ऐसे ज्ञान का जिसका बाकायदा व्यवस्थित लेखा उपलभ्ध हैऔर जिस व्यक्ति ने उस ज्ञान को उत्पन्न किया है उसको उस ज्ञान से लाभ प्राप्त करने का हक़है. यह ज्ञान लिखित रूप में पूरी दुनिया के सामने उपलभ्ध रहता है. बौद्धिक ज्ञान कई प्रकारका होता है जैसे - पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेड-मार्क, इंडस्ट्रियल डिज़ाइन, भौगोलिक सूचकांक(ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) आदि. इस प्रकार के ज्ञान को वयवस्थित रूप से रख कर पूरी दुनियामें इस ज्ञान को प्रचारित कर उससे आय अर्जित की जाती है.
पूरी दुनिया में आज बौद्धिक सम्पदा का बोलबाला है. हर तरफ कम्पनियाँ, सरकारें, वैज्ञानिकऔर विश्वविद्यालय बौद्धिक सम्पदा जुटाने में लगे हैं. हर कंपनी अपनी बौद्धिक सम्पदा केकारण मालामाल हो रही है. वो हर देश जिसके पास बौद्धिक सम्पदा है वो मालामाल है. बाजारसे कोई भी उत्पाद खरीदिए - पता चलेगा की किसी न किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी के पेटेंट केतहत वो माल चीन या किसी विकासशील देश की छोटी सी कम्पनी ने वो माल बनाया है.बहुराष्ट्रीय कम्पनी सिर्फ पेटेंट, ट्रेडमार्क, और विपणन अधिकार रखती है, माल को बनाने वालेलोग गरीब देशो के होते हैं. मलाई मलाई तो बहुराष्ट्रीय कंपनी ही खाती है. ब्रांड के पीछे अंधीदौड़ में शामिल फैशन परास्त दुनिया को नहीं मालुम की जिस कंपनी का माल वो खरीद रहे हैंवो कम्पनी सिर्फ उस माल का डिज़ाइन बना कर पेटेंट करवाती है और असल में उस उत्पाद कोबनाने वाली कंपनी कोई और है.
खैर, असल में जिन देशों की सरकारों ने बौद्धिक सम्पदा को बढ़ावा देने हेतु प्रयास किये,उनको अपने देश की तरक्की करने में मदद मिली. जिन देशों की सरकारों को संकीर्ण मुद्दों सेही फुर्सत नहीं मिलती, वो बौद्धिक सम्पदा के लिए क्या करेंगे? आजादी के 66 साल बाद भीआपको हर शहर में हजारों इंस्पेक्टर, ऑडिटर, और जासूस मिल जाएंगे, लेकिन पेटेंटरजिस्ट्रार नहीं मिलेगें. १००० पेज के खौफनाक इनकम टैक्स और कम्पनी कानून रट लेने वालेमहारथी चार्टर्ड अकाउंटेंट और वकील मिल जाएंगे लेकिन पेटेंट, ट्रेडमार्क और बौद्धिक सम्पदाको जानने वाले लोग नहीं मिलेंगे. हर शहर में उद्योगों और उद्यमियों को नियंत्रित करने वाले७५ सरकारी दफ्तर मिल जाएंगे लेकिन बौद्धिक सम्पदा के ऑफिस नहीं मिलेगें. अपने ही देशके लोगों पर उनकी खुद की मेहनत की कमाई से चौथ वसूली के लिए दो दिन में प्रक्रिया पूरी होजायेगी और उस हेतु सभी सरकारी मशीनरी त्वरित काम करेगी लेकिन पेटेंट देने में ६०० दिनसे भी ज्यादा समय लगेगा और कोई सरकारी मदद नहीं होगी. चौथ वसूली के लिए "सरल" औरपता नहीं क्या क्या शुरू किया जाएगा - पर बौद्धिक सम्पदा के लिए "सरल" कब आएगा पतानहीं? जिस देश का हर आयुर्वेद चिकित्सक १० पेटेंट बना सकता है उस देश में आज बौद्धिकसम्पदा का अकाल पड़ा है. जतना पैसा सरकार चौथ वसूली और इस प्रकार के अन्य कार्यक्रमोंपर खर्च करती है उतने में तो गाव गाव में पेटेंट ऑफिस हो जाते और हर भाषा में पेटेंट कीसुविधा हो जाती - और हर गाव वाला भी २-४ पेटेंट बनाने की सोचता. एक ऐसी सम्पदा बनतीजो अपनी ही जनता से की गयी चौथ वसूली से ज्यादा सम्पदा होती. पर सरकार की अपनीप्राथमिकताएं हैं जो कम से कम मुझे तो समझ नहीं आती.
हमारे पडोसी देश चीन में ६.५ लाख पेटेंट एप्लीकेशन दर्ज हैं, १२ लाख के करीब इंडस्ट्रियलडिज़ाइन की अप्प्लिचटिओन्स् दर्ज हैं और बौद्धिक सम्पदा के हर क्षेत्र में वो हमसे १० से २०गुना आगे हैं. हम भी उससे आगे हैं कुछ क्षेत्रों में. जैसे - कानून - चीन के पेटेंट कानून में सिर्फ७० धाराएं हैं और वो सिर्फ ५ पेज का है, और हमारा पेटेंट कानून १७० धाराओं और उप-धाराओंके साथ १०० से ज्यादा पेज का है (लभभग कानून के हर क्षेत्र में हम हर देश को इसी तरह मातदेते हैं - इसके लिए हमारे कानून निर्माता बधाई के पात्र तो नहीं है - फिर क्या सोच कर वेइतनी मेहनत कर बड़े बड़े और मुश्किल कानून बनाते हैं? - राम जाने). . चीन में पेटेंट ऑफिसकी हर शहर में शाखा है और बहुत मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है और हमारे पेटेंट ऑफिस कामुख्यालय कोलकाता में है और उसकी सिर्फ तीन शाखाएं हैं और कई काम तो सिर्फ कोलकाताऑफिस से ही हो सकते हैं. चीन में हर विश्वविद्यालय में बौद्धिक सम्पदा की पढ़ाई होती है,हमारे देश में गिने चुने ऐसे विस्वविद्यालय हैं जहाँ पर बौद्धिक सम्पदा की पढाई होती है. सचहै बिना प्रयास कोई सफलता नहीं मिलती और हमारा अफ़सोस है की हमने प्रयास ही नहींकिया.
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
पूरी दुनिया बिना किसी नीव के भी महल बना रही है और हम इतनी मजबूत नीव के बावजूदकोई प्रयास ही नहीं कर रहे हैं. भारतीय नेताओं का ध्यान "भारत में चौथ वसूली और विदेशों कीयात्रा" पर होता है जबकि होना इसका उल्टा चाहिए "विदेशों से चौथ वसूली और भारत कीयात्रा". भारत के शिक्षा तंत्र का यह हाल है की वो "पढ़ाई जो बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी दिलाये"पर जोर देते हैं, जबकि होना इसका उल्टा चाहिए यानी वो "पढ़ाई जो बहुराष्ट्रीय कंपनी बनानासिखाये". इसी प्रकार हर भारतीय प्रशाशनिक अधिकारी का ध्येय रहता है की कानून औरप्रक्रिया ऐसी हो जो "सिर्फ प्रशाशनिक अधिकारियों और कानून विदों को समझ आये" जबकिइसका उल्टा होना चाहिए यानी कानून और प्रक्रिया ऐसी हो जो "हर व्यक्ति को समझ में आसके और हर व्यक्ति बिना किसी मदद के अपना काम कर सके".
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