Wednesday, February 11, 2015

शिक्षा में सुधार के लिए मेरे कुछ अनुरोध




बजट आने वाला है और सरकार अपना पिटारा खोलने वाली है. बजट में शिक्षा पर राशि बढ़ाने के लिए सभी लोग जोर दे रहे हैं. कुछ लोग कह रहे हैं की उच्च शिक्षा और शोध पर ज्यादा राशि होनी चाहिए तो कुछ प्राथमिक शिक्षा पर ज्यादा राशि के लिए आवाज उठा रहे हैं. मैं यह महसूस करता हूँ की आज हमारी समस्या यह नहीं है की हम उच्च शिक्षा कैसे प्रदान करें, आज यह समस्या है की पढ़े लिखे लोगों को रोजगार कैसे देवें. अधिकाँश सर्वेक्षण यह दावा करते हैं की पढ़े लिखे अधिकाँश विद्यार्थी ऐसे हैं जिनको रोजगार नहीं दिया जा सकता है, यानी की वे रोजगार देने के लायक ही नहीं है. ऐसा सिर्फ एक या दो नहीं अधिकाँश सर्वेक्षणों का कहना है और वह भी आंकड़ों के आधार पर. यह सभी जानते हैं की उच्च शिक्षा और शोध के श्रेष्ठतम संस्थाओं का फायदा भारत को कम बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को ज्यादा मिलता है (क्योंकि  आईआईटी और इसकी समकक्ष संस्थाओं से पढ़ कर निकलने वाले अधिकाँश विद्यार्थी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए ही तयारी करते हैं और वहीँ पर नौकरी करना चाहते हैं). प्रश्न है की हम सच्चे अर्थ में भारत की भलाई के लिए कब सोचेंगे और कब सच्ची सच्ची बात कहेंगे. प्रश्न है की कब तक हम झूठ और भ्रम जाल के बीच अपने लोगों को बरगलाते रहेंगे. कब तक हम आम भारतीय की पीड़ा को नजरअंदाज करेंगे. मैं आज इस मुद्दे पर आप सबसे खुल कर अपनी बात कहने के लिए अनुरोध करता हूँ क्योंकि इस देश का बजट आप सबका बजट है और जिस प्रकार से बजट में बंटवारा होगा, वाही तय करेगा आप और इस देश का भविष्य. आज इस देश पर किसी विदेशी सरकार का शासन नहीं है, पर सच्चे अर्थ मैं आजादी तो तभी आएगी जब आप हम और हम जैसे सभी आम आदमी सच्चाई को खुल कर कह पाएंगे और अपने देश के विकास की दिशा को बदल पाएंगे. 

भारत जैसे विकासशील देशों में व्यावसायिक, औद्योगिक और हुनर आधारित शिक्षा को बढ़ावा देने की जरुरत है. इससे न केवल बेरोजगारी घटेगी बल्कि विद्यार्थियों का असली विकास शुरू होगा. वाही व्यक्ति आगे तरक्की करता है जो शारीरिक शर्म करता है और श्रम आधारित तकनीक को अपने जीवन में अपनाने का प्रयास करता है. वर्तमान में इस प्रकार की शिक्षा को आखिरी विकल्प के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि ऐसा माना जा रहा है की जो भी व्यक्ति पढ़ाई में कमजोर होगा वाही व्यक्ति व्यावसायिक शिक्षा की तरफ बढ़ेगा. व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा देने में कई अड़चने हैं. आज व्यावसायिक शिक्षा के बाद यूनिवर्सिटी की पढाई, आईएएस की परीक्षा और इसतरह के अन्य प्रतियोगी विकल्पों के लिए रास्ते बंद हो जाते हैं. एक आईटीआई डिप्लोमा व्यक्ति जिसके पास शानदार व्यावसायिक शिक्षा है वह कभी भी भारतीय इंजीनियरिंग सेवा की परीक्षा नहीं दे सकता. ऐसा क्यों है? इस हेतु हमें हमारे देश के नीति निर्माताओं से अनुरोध करना है. 

जिस जिस देश में वाकई तरक्की हो रही है और लोगों को बेहतरीन रोजगार मिलरहे हैं वे वहीँ हैं जहाँ पर व्यावसायिक शिक्षा को प्रोत्साहन है और व्यावसायिक शिक्षा के बाद उच्च शिक्षा में आने के विकल्प खुले हैं. जहाँ जहाँ भी व्यावसायिक शिक्षा के बाद प्राप्त अनुभव को प्राथमिकता दी गयी है वहां वहां पर इसके शानदार परिणाम आये हैं. आप जापान, फिनलैंड और ऐसे अनेक देश देख सकते हैं जहाँ पर व्यावसायिक शिक्षा को वाकई में प्राथमिकता दी जा रही है. 

देश में उधोग धंधों और व्यवसायों में काम करने वाले अधिकांश लोग वे हैं जो आईटीआई और इस तरह के व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थाओं से प्रशिक्षित हुए हैं. इन प्रशिक्षित लोगों को पर्याप्त तबज्जु देने की जरुरत है और गरीब से गरीब व्यक्ति को उस शिक्षा से जोड़ने की जरुरत है जो उसको एक हुनर से जोड़ सके और देश को एक कर्मठ और ईमानदार कारकर्ता दे सके. इस हेतु प्रयास तभी हो पाएंगे जब हम वाकई में व्यावसायिक शिक्षा के लिए आवाज उढायेंगे और देश के शिक्षा सम्बन्धी कानूनों को बदलने के लिए आवाज उढायेंगे. लेकिन आज ऐसा नहीं हैं. आज हम देखते हैं की व्यावसायिक शिक्षा की जगह पर उच्च शिक्षा और शोध के लिए तो बात करने वाले बहुत हैं परन्तु व्यावसायिक और हुनर आधारित शिक्षा की वकालात करने वाले कोई नहीं हैं. काश आप जैसे लोग अपनी चुप्पी तोड़ दें तो हम सब मिलकर आम आदमी की आवाज को एक मजबूती प्रदान कर सकते हैं. कब तक सरकार आम भारतीय को नजरअंदाज कर सकती है? . 

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