Wednesday, February 11, 2015

और भी बहुत सी बातें है जो पश्चिम से सीखिये



पश्चिमी त्यौहार आज हर भारतीय युवा को आकर्षित कर रहे हैं. वेलेंटाइन डे और या न्यू इयर , आज हर युवा इनको जोश और जश्न से मनाता है और बहुत खुश महसूस करता है. मैं किसी की ख़ुशी होने की वजह में बढ़ा नहीं बनना चाहता. अगर किसी को इससे ख़ुशी मिलती है तो यह भी अच्छी बात है. लेकिन हमें पश्चिम से और भी बहुत कुछ सीखना चाहिए. आज अगर हम देखें तो पाएंगे की पश्चिम ने ही हमारे सामने यह स्पस्ट किया किया की वाकई भारत महान है.  आज जिस तरह से पश्चिम के लोग योग, कर्मयोग, भक्ति योग, अध्यात्म सीख रहे हैं, वह दिन दूर नहीं जब हमको भी ये सब सीखने के लिए पश्चिम की तरफ देखना पड़ेगा. आज जिस तरह से पश्चिम  हमारे परम्परागत ज्ञान, हमारी परम्पराओं और हमारी व्यवस्थाओं को सीख रहे हैं उससे तो यही लगता है की आने वाले समय में हम ये ही सब बाते पश्चिम से सीखेंगे. 

पश्चिम में ज्ञान को सीखने, तर्क करने, प्रश्न करने, विमर्श करने, हर ज्ञान को लिख कर संगृहीत करने, रजिस्टर करने और बौद्धिक सम्पदा को सुरक्षित करने की अद्भुत मिसाल है जो हमको उनसे सीखनी चाहिए. अगर हम उनसे उनके त्योंहार सीख रहे हैं, तो जरुरी है की हम उनसे उनका वैज्ञानिक द्रिस्टीकोण, अभ्व्यक्ति की कला, और शिक्षा और ज्ञान को बढ़ावा देने की मानसिकता भी सीखनी चाहिए. अगर हम उनसे उनके रहन सहन का तरीका, खान - पान, और जीवन शैली सीख रहे हैं तो हम को उनसे उनकी सिविक गवर्नेंस (नागरिक प्रशाशन) व्यवस्था, अनुशाशन, और स्वतछता भी सीखनी चाहिए. 

यह प्रकृति का नियम है की बिना चुनौती हर चीज का कि निश्चित है. यह भी प्रकृति का नियम है की बिना प्रयास के कोई भी ज्ञान, सम्पति, और प्रगति हासिल नहीं होती है. हमारी सबसे बड़ी सम्पदा हमारे पुरखों के द्वारा संचित ज्ञान, अध्यात्म, जीवनमूल्य, वैचारिक द्रिस्टीकोण, और परम्पराएँ हैं जो न तो हमने मानी, न उनका हमने अभ्यास किया, न हमने उनको सीखने का प्रयास किया. स्वाभाविक है की हम उनको कैसे हासिल करेंगे. सिर्फ बपौती में मिलने से ही ज्ञान नहीं मिल जाता. आज भी अगर हम इन चुनौतियों को मान कर अपने आपको फिर से अद्भुत और अद्वितीय भारतीय ज्ञान व् परम्पराओं को परिमार्जित करने और उन पर अभ्यास करना नहीं शुरू करते तो फिर यही होगा की भविस्य में हमारे विद्यार्थी योग सीखने के लिए अमेरिकी विष्वविद्यालयों में जाएंगे. 

गीता के अद्भुत ज्ञान में हर व्यक्ति की जीवन में सफलता की पाठशाला मिलती है और दिल से कर्म करने का सन्देश मिलता है. किसी भी कारण से आज इस ज्ञान का उपहास करना और हमारी परम्पराओं का मजाक बनाना एक फैशन बन गया है. कमिया किस व्यवस्था में नहीं होती. लेकिन अपनी कमियों का उपहास भरा मजाक बनाना किस हिसाब से अच्छा होगा. आज भी अगर हम फिर से अपने आपको आईने में देखने का प्रयास करें (जो शायद मुश्किल है) या फिर पश्चिम की नजर से भी देखते हैं तो हम एक ऐसी अद्भुत सभ्यता की धरोहर के मालिक है जहाँ पर हर व्यक्ति जो जन्मते ही जीवन का मकसद सीखा दिया जाता है, जहाँ पर कर्तव्य की पाठशाला हर घर में चलती है और जहाँ पर जीवन की हर उलझन से निपटने के रास्ते हर व्यक्ति को बचपन से रटा दिए जाते हैं. ये वाही देश है जहाँ आज भी मेजर जेम्स थॉमस और मेजर शैतान सिंह जैसे सपूत पैदा होते हैं जो अपने देश की रक्षा के लिए अपने से ज्यादा ताकत वार इंसान के सामने सिर्फ अपने मजबूत इरादों के साथ जान हथेली पर लेकर मैदान में उत्तर जाते हैं. 

आईये हर भारतीय में सोये हुए कुम्भकर्ण को जगाने और हर भारतीय घर को फिर से ज्ञान गंगा में नहाने के लिए अपने प्रयास शुरू करें. आज से ही सही, पश्चिम से वो सीखें जो हमें सीखना है और अपनी अद्भुत धरोहर को बचाने और संरक्षित कर अपनी अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास करें. आज पश्चिम का हर युवा नशे, जुवे, व्यभिचार, और मशीनी जिंदगी से तंग अगर भारत में बसना चाहता है. असल में भारत तो पूरी दुनिया के लिए जीवनशैली की पाठशाला बन सकता है. हार्वर्ड, ऑक्सफ़ोर्ड और केम्ब्रिज भी जीवन में आनंद, सफलता और उल्लास के वे मन्त्र नहीं सिखाते जो हर भारतीय के घर में मौजूद है. आईये आजसे हर गृहणी को उसकी पाक-कला के लिए सम्मान करें, हर बुजुर्ग को उसके जीवन भर के ज्ञान के लिए सम्मानित करें, हर पंडित से गीता का सार सीखें, हर मंदिर-मस्जिद में तन्मय हो उस अलोकिक चेतना   में लवलीन हो जाएँ. आईये हर बालक की उमंग को रोकने वालों को रोकें, हर वाणी में मिठास भर दें, हर व्यक्ति को आदर और सम्मान से नमन करें, पश्चिम को भी नमन करें क्योंकि आज नहीं तो कल वे ही हमें इस बात का  अहसास दिलाएंगे की हम क्यों महान हैं.  

जो दीखता है वो ही हमेशा सत्य नहीं होता. जो महसूस होता है, वह ही हमेशा सत्य नहीं होता, जो फैशन है वो ही हमेशा सत्य नहीं होता. कई बार बहुत इन्तजार के बाद सत्य समझ में आता है और तब तक बहुत देर हो जाती है. एक महिला ने अपने पालतू नेवले के मुह में खून देख कर ये सोचा की जरूर उस नेवले ने उसके बच्चे को खा लिए और बिना आगे सोचे उसने उस नेवले को मार दिया. बाद में उसको पता चला की नेवले ने उसके बच्चे को बचने के लिए एक सांप को मारा था. लेकिन अब उसके पास सिर्फ अफ़सोस था.  काश उसने इन्तजार किया होता, काश उसने तथ्यों को समझने का प्रयास किया होता. काश आज का हमारा युवा भी एक बार अलोकिक भारत की अलोकिक संस्कृति का आनंद ले, योग, गीता, ज्ञान, ध्यान, अध्यात्म, और अद्भुत भारतीय संस्कृति में रचने और रमने का प्रयास करे ताकि उसको अफ़सोस ने करना पड़े. 

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