Saturday, June 4, 2016

मेरे शहर को गाव बना रहने दो ( पांच शताब्दियों का अपनापन यानि : बीकानेर)


किसी भी शहर का स्थापना दिवस उस शहर के लोगों के लिए बहुत महत्व्पूर्ण होता है और उस शहर के लोग उसको बड़े दिल से मानते हैं. बीकानेर की स्थापना दिवस पर मैं तो ये ही कामना करता हूँ की इस शहर की अद्भुत संस्कृति और इस शहर का अपनापन बना रहे. कुछ लोग अफ़सोस कर रहे हैं की बीकानेर को स्मार्ट सिटी का दर्जा नहीं मिला. मैं तो बहुत खुश हूँ मेरे इस शहर मैं और मैं तो नहीं चाहता की इस शहर की आबोहवा को कोई नजर लगे और कोई इस शहर को मेट्रो शहर के जैसा बनने की कोशिश करें. मुझे इस शहर के तथाकथित पिछड़ेपन में इसका अद्भुत सौंदर्य और अद्भुत वात्सल्य नजर आता है. 

बीकानेर एक शाहर नहीं एक कुनबा, एक गाव, या एक बड़ा परिवार है. ये एक अद्भुत संस्कृति है जहाँ पर लोगों में अपनापन, आपसी भाईचारा, और सहजता है. इस शहर के समकक्ष शहर अपने आप को स्मार्ट सिटी घोषित करवा क्र गर्व महसूस कर सकते हैं लेकिन बीकानेर जीतन संतोष और आनंद कहीं और कहाँ है  अतः, जिसको आनंद और उल्लास चाहिए उसको तो बीकानेर ही आना पड़ेगा. 

आज जब पूरा शहर अपने स्थापना दिवस को मनाने की तयारी कर रहा है तो जरूरत है की इस शहर को अद्भुत बनाने   वाली इसकी संस्कृति को बचाने और पल्लवित करने की कोशिश की जाए 

कहाँ मिलेंगे पाटे
लोगों में आपसी तालमेल बनाये रखने के लिए पाटे की संस्कृति अद्भुत  और अद्वितीय  है - इसको  आगे  कैसे  फैलाएं ? 

कहाँ मिलेंगे मोहल्ला पुस्तकालय 
बीकानेर में हर मोहल्ले में पुस्तकालय होते थे. उस परम्परा को अजित फाउंडेशन ने चालु रख और मोहल्ला पुस्तकालय की परम्परा  को जीवंत  रखा . इस अभिनव प्रयास को साधुवाद.  साहित्य और संस्कृति का आपस में गाढ़ा   रिश्ता होता है. पुस्तकालय ही हमारे   शहर को बचा  पाएंगे   

कहाँ मिलती है ऐसी मिठास 
"भइला" "भतीज" "काकोसा" शब्द तो ऐसे जो दिल को छू जाए. शब्दावली ऐसी जहाँ पर हर इंसान को अपनेपन से सम्बोधन. यही तो मेरे शहर को अद्भुत बनता है. 

शहरी सभ्यता खतरे में 
भारत   ही नहीं पूरी दुनिया में शहरी सभ्यता खतरे में है. गाव और ढाणी ही जीवन को सुरक्षित रख पा  रही है. शहरी सभ्यता को जंग लग रही है. शहर के शहर तबाह  हो  रहे  हैं. अबकी   बार  चुनौती इटरनेट से आ रही है. अश्लील फ़िल्में और परिवारों को तबाह  करने की संस्कृति इंटरनेट  से बरस  रही है. इस aandhi में परिवार के परिवार उजड़ रहे हैं. तथाकथित विकसित देशों में तलाक, टूटते  परिवार, और चरित्रहीन समाज  की विभीषिका  शहरों  को नेस्तनाबूद  कर रही है. हमारे शहर को अभी  तक  अगर  किसी  ने बचा रखा है तो वो हैं शहर के प्रबुद्ध चिंतक लोग  (जैसे संवित सोमगिरि जी ) जिन्होंने  शहर की आध्यात्मिकता  को आज भी बचा कर रखा है. उस बची  खुची  आध्यात्मिकता  के कारण ही ये शहर अाज भी बीकानेर की अद्भुत संस्कृति का रखवाला  बना  हुआ  है. 

जिंदगी के मकसद से दूर भागती मेट्रो शहरों की संस्कृति 
देश में आर्थिक विकास के साथ ही मेट्रो शहरों का भौतिक विकास होता जा रहा है. बीकानेर जैसे शहरों के लिए तो बजट नहीं होता है पर मेट्रो शहरों के विकास को देख क्र कोई भी चकित हो जाता है और हम जैसे लोग उन शहरों की चकाचौंध से एक बार तो आकर्षित हो ही जाते हैं. शहरों की खूबसूरती और ढांचागत विकास से शहरों की प्रमाणिकता का कोई सम्बन्ध नहीं है. उस शहर का क्या जहाँ पर जा क्र मैं जिंदगी के मकसद को भूल जाऊं. उस शहर का क्या जहाँ पर जा कर लोग इंसानियत ही भूल जाएँ. उस शहर का क्या जयन पर जा कर लोगों में आपसी भाईचारा और अपनापन ही न रहे. भौतिकता का चरम अगर हमें अपने मकसद से दूर करता है तो उस भौतिकता का क्या मकसद? मेरे शहर में आज भी आध्यात्मिकता जिन्दा है. मेरे शहर में आज भी लोगों को जिंदगी का मकसद पता है. मेरे शहर में आज भी लोगों इंसान को भौतिकता से ज्यादा तबज्जो देते हैं. तो मेरे इस शहर की इस खासियत को मैं दिल से सलाम करता हूँ. 

आइए शहर को अपने मौलिक स्वरूम में बनाये रखें. आइए मेरे शहर को गाव ही बना रहने दें. आइए देश के आलाकमान को कहदें की आपने हमारे शहर को स्मार्ट सिटी के लिए उचित नहीं मान कोई बात नहीं  लेकिन जब भी आपको अपनेपन की मिसाल देने की लिए किसी शहर की जरुरत पड़े तो वो बीकानेर ही होगा. आइये अपने इस शहर को इसकी अद्भुत पहचान के लिए नमन करें और इसकी इस खुशबु को पूरी दुनिया में फैलाने का प्रयास करें. 

No comments:

Post a Comment