Saturday, June 4, 2016

विद्यार्थियों को दीजिये व्यावहारिक शिक्षा


परीक्षा परिणाम आ रहे हैं. विद्यार्थी परेशान हो रहे हैं. क्या करें? हम जब पढ़ते थे तो गिने चुने पाठ्यक्रम होते थे - या कम से कम को जानकारी गिने चुने पाठ्यक्रमों की होती थी. आज तो बाढ़ है और विद्यार्थी को नहीं पता वो क्या करे. ऊपर से विद्यार्थियों के मन में ये जिद होती है की वो पाठ्यक्रम का चुनाव अपने आप करेंगे न की मात पिता के कहने पर कोई पाठ्यक्रम करने को राजी हो जाएंगे. लगता है जमाना बदल गया है. आज हर विद्यार्थी 12वि के बाद सपनों के उड़न खटोलों पर होता है. जमीनी हकीकत से बिलकुल बेखबर. लेकिन इन सब के बावजूद विद्यार्थियों में व्यावहारिक कौशल सीखने की प्रबल तमन्ना है. विद्यार्थी वो सीखना चाहता है जिससे वो अपने आप में परिवर्तन महसूस कर सके. 

आज तो चुनौती शिक्षण संस्थाओं के सामने है की वो अपने पाठ्यक्रम को कैसे व्यावहारिक बनाए और विद्यार्थी की सही अर्थों में मदद करे. विद्यार्थी ३ साल की पढाई के बाद बेरोजगारों की पंक्ति में नहीं खड़ा होना चाहता. आज ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थी वो पाठ्यक्रम करना चाहते हैं जिसमे उनको साथ में व्यावहारिक हुनर व् दक्षता का प्रशिक्षण मिले ताकि वो बाद में अपना रोजगार / स्वरोजगार उसी से बना सकें. विद्यार्थी आज अपने आप को सैद्धांतिक शिक्षा के व्याख्यानों में नहीं देखना चाहता है. विद्यार्थी अपने आप को एक दक्ष व् परिपक्व व्यक्ति के रूप में निखारना चाहता है. 

नए ज़माने में नयी तकनीक के दौर में विद्यार्थी को उन पाठ्यक्रमों को करना चाहिए जिनकी आने वाले समय में बहुत मांग होगी. मसलन प्रोडक्ट डिजाइनिंग, आर्गेनिक फार्मिंग, एनवायरनमेंट ऑडिट, क्वालिटी मैनेजमेंट, सोलर एनर्जी, विंड एनर्जी, डिजिटल मार्केटिंग, फिल्म मेकिंग, सोशल मीडिया मैनेजमेंट, बिग डेटा एनालिटिक्स, हॉस्पिटैलिटी, आदि वो क्षेत्र हैं जिनकी आने वाले समय में बड़ी मांग होगी. ये सभी क्षेत्र एक उदहारण के रूप में बताये गए हैं. ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं जिनमे आने वाले समय में बहुत मांग होगी. विद्यार्थी अद्भुत क्षमता रखता है लेकिन ज्यादातर पाठ्यक्रम उसको पूरी तरह से शामिल ही नहीं कर पाते हैं. इसके कारण विद्यार्थी अपनी क्षमता का सिर्फ २०% ही तैयार कर पाता है. विद्यार्थी में जो क्षमता है और जो अदम्य सम्भावना है उसका पूरा विकास तो होना ही चाहिए. 

अधिकाँश विद्यार्थी 12वि के बाद जल्दबाजी में कोई पाठ्यक्रम चुन लेते हैं और बाद में पछताते हैं. वो बाद में अपने पाठ्यक्रम को बदल भी नहीं पाते हैं और पूरी जिंदगी उनको मलाल रहता है. लेकिन जो विद्यार्थी व्यावहारिक शिक्षा में शामिल हो पाते हैं वो पूरी तरह से तल्लीन हो जाते हैं और ये सोचने का समय ही नहीं मिल पाता की पाठ्यक्रम कैसा है. लगातार म्हणत करनी पड़ती है और लगातार प्रशिक्षण लेना पड़ता है. ३ साल बाद तो विद्यार्थी पूरी तरह से दक्ष और हुनर मंद हो जाता है. विद्यार्थी की ये सफलता ही तो शिक्षण संस्था का उद्देश्य होता है. 

बड़ी संख्या में विद्यार्थी अपनी पढ़ाई छोड़ देते हैं - वो इस कारण से क्योंकि उनको सिर्फ सैद्धांतिक शिक्षा मिल रही होती है और उस शिक्षा में उनको अपना कोई भविष्य नहीं नजर आता है. अगर विद्यार्थी को व्यावहारिक शिक्षा मिलेगी तो वो भी पढ़ाई नहीं छोड़ेंगे. शिक्षा प्रणाली में सुधार की जरुरत है. वार्षिक परीक्षा के स्थान पर व्यावहारिक कौशल पर बल देने की जरुरत है और लगातार विद्यार्थी को मार्गदर्शन और व्यावहारिक प्रशिक्षण देने की जरुरत है

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