Saturday, April 30, 2016

डिग्रीयों का मुकुट और जमीनी हकीकत




शीघ्र ही भारत दुनिया में सबसे ज्यादा डिग्री धारक लोगों का देश बन जाएगा. हर दूसरा व्यक्ति डिग्रीयों का पुलिंदा लिया खड़ा होगा. तरह तरह की डिग्रीयां. हर डिग्री एक मुकुट के सामान होती है. जिसके सर पे चढ़ जाए उसका सर सातवें आसमान पर. डिग्री मिलते ही व्यक्ति की सोच बदल जाती है. डिग्री मिलते ही व्यक्ति अपने आप को अफसर समझ सिर्फ अफसरी करने के सपने देखने शुरू कर देता है. अगर वो कुछ और भी करना चाहता है तो समाज नहीं करने देता - "अरे तुम तो डिग्री धारी हो ये काम तुम को शोभा नहीं देता है."  आदि आदि टिप्पणियां शुरू हो जाएंगी. 

क्या मतलब है डिग्रीयों का : - 

भारत में डिग्री पाने के लिए व्यक्ति साल के अंत में १-२ महीने टूशन पढ़ेंगे, वन वीक सीरीज पढ़ेंगे और महत्व्पूर्ण प्रश्नों को याद करेंगे. डिग्री मिलते ही सबसे पहले अपने आप को बदल डालेंगे. फिर तो सिर्फ हुक्म झड़ने का काम करेंगे. अफसर बन कर राज करेंगे. 

एक डिग्री अपने आप में एक सबूत है की आप के पास एक विशेष दक्षता है. उस दक्षता के प्रतीक के रूप में डिग्री आपकी उस हुनर के प्रति प्रतिबढता को प्रदर्शित करती है. अगर आप अंग्रेजी में एम ऐ हैं तो इसका मतलब आप अंग्रेजी साहित्य के विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं और लगातार उस साहित्य का अध्ययन और विकास कर रहे हैं. लेकिन भारत में एस नहीं है. यहाँ तो डिग्री एक नौकरी पाने का प्रमाण पत्र है और जरुरी नहीं की डिग्री धारक को अमुक हुनर है या नहीं है. 

विदेशों में डिग्री क्रेडिट पर आधारित होती है. ३० घंटे किसी एक विषय पर अध्ययन और उसपर शोध करने पर १ क्रेडिट मिलता है. इस प्रकार एक विद्यार्थी को उसकी मेहनत के अनुसार क्रेडिट मिल जाता है और उस क्रेडिट के आधार पर उसको डिग्री मिल जाती है. डिग्री इस बात का प्रमाण है की उसने कमसे कम २-३ हजार घंटे एक विशेष अध्ययन या एक विशेष हुनर को सीखने में लगाए हैं. 

कहाँ कमी है? 
भारत में किसी भी डिग्री धारी व्यक्ति से शारीरिक  श्रम की उम्मीद नहीं की जा सकती. उससे किसी एक क्षेत्र में विशेष दक्षता की उम्मीद भी नहीं की जा सकती है. इसी कारण वो व्यक्ति कोई भी काम नहीं करना चाहता है. डिग्री की पढ़ाई के दौरान उससे कोई भी काम नहीं करवाया जाता है जिसके कारण उसमे काम करने की न तो कोई ललक होती है न कोई समझ होती है. कोई व्यक्ति बी.कॉम की पढ़ाई पूरी कर लगा लेकिन आप उसको केश बुक या बेलेंस शीट बनने को कहेंगे तो वो नहीं बना पाएगा. आखिर कमीं कहाँ है? 

हमारे देश में पढ़ाई के साथ प्रैक्टिकल ज्ञान को तरजीह नहीं दी जा रही है. विदेशों में हर पाठ्यक्रम के साथ विद्यार्थी को किसी कम्पनी के साथ काम करने की इजाजत मिलती है. इससे उस विद्यार्थी की आम्दानी भी हो जाती है और उसको इसकी क्रेडिट भी मिलती है. उस प्रैक्टिकल कार्य की वजह से उसको उसकी डिग्री मिल जाती है. भारत में भी एस ही होना चाहिए. किसी भी डिग्री का विद्यार्थी रोज ३ से ४ घंटे का समय आराम से निकाल सकता है. अगर वो ३-४ घंटे रोज किसी कम्पनी या उद्योग में काम करता है तो उसको काफी प्रैक्टिकल ज्ञान और दक्षता मिल जायेगी जिसकी मदद से वो हुनर वाला डिग्री धारक बन पाएगा. फिर उसको कोई नौकरी जरूर मिल जायेगी और नौकरी नहीं मिलती है तो वो अपने हुनर की मदद से कुछ न कुछ काम करके अपना पेट तो भर ही लगा. ऐसा डिग्री वाला व्यक्ति जमीनी हकीकत जानने वाला होगा और वो कार्य करने से पीछे नहीं हटेगा. 

जरुरी है उद्योगों से जुड़ाव 
आज इस बात की जरुरत ही की शिक्षण संस्थाएं उद्योग धन्दों के साथ मिल कर चले और अपने विद्यार्थियों को प्रैक्टिकल ज्ञान अधिक से अधिक प्रदान कर उनको सक्षम और सुयोग्य बनाए. आज इस बात की जरुरत है की विद्यार्थी भी अपने प्रैक्टिकल प्रोजेक्ट को उद्योगों के साथ मिल कर करें ताकि उनके प्रोजेक्ट से उद्योगों को फायदा मिले. हर साल लाखों विद्यार्थी गर्मियों में प्रैक्टिकल ट्रेनिंग करते हैं. ये विद्यार्थी अगर ईमानदारी से उद्योगों के साथ मिल कर काम करते हैं तो उद्योगों को बहुत फायदा मिलेगा और विद्यार्थियों का भी बहुत विकास हो जाएगा. 

जहरीला है बड़ों का प्यार
आज मात पिता अपने बच्चों से हद से ज्यादा प्यार करते हैं - जो की बच्चों के लिए नुकसानदेय है. मात पिता बच्चों से कोई काम नहीं करवाते हैं और न हीं उनको प्रैक्टिकल प्रोजेक्ट्स करने देते हैं. वे अपने बच्चों को कोई भी कष्ट नहीं उठाने देना चाहते हैं. इस प्रकार बच्चे दुनियावी हकीकत से दूर होते जा रहे हैं. वो ये नहीं समझ पा रहे हैं की दुनिया में कितनी मुश्किलें आएँगी. इसका नतीजा ये निकलता है की बच्चे विपरीत परिस्थितियों के लिए तैयार नहीं होते हैं. वो हर स्थिति में अपनी जिद मनवाना चाहते हैं. घर में एक - दो बच्चे होने के कारण उनकी हर जिद मानी जाती है लेकिन व्यवहारिक जिंदगी में ऐसा संभव नहीं होता है. 

बढ़ती डिग्री धारी बेरोजगारों की संख्या 
आज डिग्री धरी लोगों की लम्बी कतार है. एक डिग्री धारक के लिए विज्ञापन निकालो तो ५० आएंगे और काम कोई नहीं कर पाएगा. दोषी हम सभी लोग हैं. शिक्षण संस्थाएं चाहे तो एक नयी शुरुआत क्र सकती हैं. उनको अपनी शिक्षण व्यवस्था में बदलाव करना पड़ेगा ताकि विद्यार्थी को डिग्री के साथ काम का प्रैक्टिकल ज्ञान मिले और उसको कोई  न कोई हुनर मिले. शिक्षण संस्थाओं को इस दिशा में जल्द से जल्द शुरुआत करनी पड़ेगी ताकि डिग्री धरी बेरोजगारों की संख्या पर लगाम हो सके. 

कमीं है प्रयोगशालाओं और प्रैक्टिकल प्रोजेक्ट्स की 
हर शिक्षण संस्था में भरपूर प्रयोगशालाएं और प्रैक्टिकल प्रोजेक्ट्स होने चाहिए जहाँ पर युवा कोई न कोई हुनर सीख सके. हर विषय में प्रयोगशाला होनी चाहिए. अगर अंग्रेजी सीखने के लिए भी प्रयोगशाला हो तो अगर कॉमर्स सीखना है तो उसकी भी प्रयोगशाला हो. तभी विद्यार्थियों का विकास हो पाएगा. 
हर विषय में विद्यार्थी स्वयं प्रैक्टिस कर के सीखे. अगर उसको कानून की पढ़ाई करवानी है तो उसको कृतिम कोर्ट बना कर के उसमे वकील के रूप में या जज के रूप में काम करवा कर के प्रशिक्षण प्रदान करवाना पड़ेगा. तभी शिक्षा अपने आदर्श स्वरुप में होगी. 

जरुरी है विद्यार्थियों को प्रोत्साहन की
तेकपेडिया जैसी वेबसाइट उन विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करती है जो कोई नया प्रोजेक्ट करते हैं और उस प्रोजेक्ट से प्राप्त ज्ञान को साझा करते हैं. इस प्रकार के प्रयासों से विद्यार्थियों को नवाचार करने और उद्योगों को समझने के लिए प्रोत्साहित करेगा. इस प्रकार के प्रयासों से विद्यार्थियों में प्रैक्टिकल प्रोजेक्ट्स करने की होड़ लग जायेगी. विद्यार्थियों में नवाचार करने की अद्भुत क्षमता है और उनको प्रोत्साहन देने की जरुरत है फिर तो वो कमाल कर सकते हैं. 
डिग्री के साथ हुनर भी 
मेरा मकसद डिग्री के प्रति निराशा पैदा करना नहीं बल्कि एक सन्देश देना है की डिग्री के साथ हुनर भी जरुरी है. इसकी जिम्मेदारी हम सबकी है. शिक्षण संस्थाओं को पहल करनी पड़ेगी. विद्यार्थियों को इससे बहुत लाभ मिलेगा और हमारा आने वाला कल सुनहरा होगा. आइए डिग्रीयों को कागजी डिग्री नहीं बल्कि हुनर के साबुत के रूप में स्थापित करें. आइए विद्यार्थियों को श्रम, नवाचार और जमीनी धरातल से जोड़ें. आइए विद्यार्थियों को एयरकंडीशन कक्षाओं से निकाल कर मेहनत और मजदूरी करने वाला इंसान बनाएं. आइये आराम पसंद युवाओं को श्रमिक बनायें और फिर से पसीने की मिठास से हमारी अगली पीढ़ी को जोड़ देवे. काश हमारी अगली पीढ़ी भी परिश्रम से उतना ही प्यार करें जितना हमारी पिछली पीढ़ी करती थी. 

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