Saturday, April 30, 2016

संरक्षण की बात जोहती अद्भुत कलाएं




क्या आप को पता है की भारत में अद्भुत कलाकार हैं जिनकी कला को कद्रदान की जरुरत है. ऐसे ऐसे कलाकार की उनकी कला के आधार पर पूरी दुनिया में भारत की अलग छाप बन सकती है और पूरी दुनिया को भारत की कलाकृतियों का एक्सपोर्ट शुरू हो सकता है. यानी रोजगार सृजन, क्षमता वृद्धि और आयोपार्जन का अद्भुत संगम. पर उन अद्भुत कलाकृतियों को जरुरत है संरक्षण की. संकीर्ण राजनीति से ऊपर उठ कर उन कलाकारों को सम्बल प्रदान करने की जरुरत है. 

जहाँ जहा पर भी कलाकार संगठित हो कर अपने आपको एक संगठन में पिरोकर काम करने में सफल हुए और जीआई लेने में कामयाब हुए वहां वहां पर आर्थिक प्रगति शुरू हो गयी. मोरादाबाद में मेटल कला, कल्लू में शाल, सहारनपुर में लकड़ी की कला और इस प्रकार की तमाम कलाकृतियों से जुड़े लोगों की तरक्की की कहानी इसी प्रकार शुरू हुई. भागलपुर साड़ी, फर्रुखाबाद, लखनऊ, चेट्टीनाद, पाटन आदि छोटे छोटे शहर भी अपनी अद्भुत कला के कारण पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाने में सफल हुए. आज वहां के कलाकार सफलता की कहानियां है. लेकिन उनकी सफलता इसलिए संभव हुई क्योंकि उनको कोई सहारा देने वाला था और उनको संगठित कर के उनको जीआई के रूप में रजिस्टर्ड करवा कर के मदद करने वाला था. जरुरत है की कोई बीकानेर और इस प्रकार के शहरों के कलाकारों की आवाज को सहारा देवे और उनको उस मुकाम पर ले जाए जिसके वो हकदार हैं. 

चित्तौड़गढ़ की ठेवा कला के बारे में आप ने सुना होगा. जब से ये कला जीआई के तहत रजिस्टर्ड हुई है इसकी कीमत बहुत बढ़ गयी है. सिर्फ ३-४ परिवार इस कला को जानते हैं लेकिन आज इस कला के कद्रदान पूरी दुनिया में है. लुप्त होती इस कला को इसका कद्रदान मिल गया है. काश अन्य कलाकारों को भी उनका कद्रदान मिल जाए. 

कश्मीर पश्मीना के बारे में आपने सुना होगा. आज कश्मीर पश्मीना को सबसे महंगे उत्पाद में माना जाता है और पूरी दुनिया में उनकी मांग है. कलाकारों को उनका उचित दाम मिल रहा है. चंदेरी, मैसूर, पोचमपल्ली, तंजावुर, कोटा, बनारस आदि वो स्थान हैं जिनकी अलग पहचान बन गयी है यहाँ पर बानी साड़ियों और वस्त्र परिधान के कारण. वर्षों की परम्परा को आज पूरी दुनिया सलाम कर रही है. इन साड़ियों को बनाने वाले कलाकार आज रोजगार पा रहे हैं और इज्जत भी. पूरी दुनिया उनके हुनर को सलाम कर रही है. 
भारत में सिर्फ २१८ ही जीआई रजिस्टर्ड है जबकि यहाँ तो हर शहर में कलाकार हैं और कलाकारों की कला को सलाम करने की जरुरत है. प्रश्न हैं की खुर्जा पॉटरी, आगरा पेठा और मथुरा के पेड़े जीआई ले सकते हैं तो सरदारशहर की फीणी, बीकानेर की उस्ता कला, बीकानेर की मिनिएचर पेंटिंग कला, और बीकानेर की भजन मंडलियों को भी जीआई मिलनी चाहिए. प्रश्न है की ऐसा क्यों नहीं हो सकता है. यहाँ जरुरत है की किसी एम पी या एम एल ऐ को अपने फण्ड से एक शुरुआत करवानी चाहिए ताकि इन अद्भुत कलाकारों को उनका हक मिले. इसके लिए जरुरत है की उस कला से जुड़े लोग एक संगठन बना कर सरकार पर दबाव डाले और जीआई रजिस्ट्रार को  अपना आवेदन प्रस्तुत करें. एक बार जीआई मिलने के बाद कीमत में इजाफा हो जाएगा और पूरी दुनिया में खरीददार मिल जाएंगे. इस प्रकार उन कलाकारों को ज्यादा मेहनताना मिल पायेगा यानी उनको अपनी मेहनत का फायदा मिल सकेगा. 

एक समय आएगा जब हमें अपनी अगली पीढ़ी को कहानियों में बताना पड़ेगा की एक समय बीकानेर में बेहतरीन उस्ता कलाकार हुआ करते थे. एक समय में यहाँ पर शंख बजने की कला जानने वाले लोग हुआ करते थे. एक समय यहाँ पर बेहतरीन चित्रकार हुआ करते थे. इससे पहले की सब कुछ हम से छीन जाए - समय निकालिये - खुद भी अधम्बित होइए और अगली पीढ़ी को भी इन लुप्त होती कलाओं से रूबरू करिये. कभी फुर्सत निकालिये और बीकानेर के उस्ता कलाकारों की कला को देखिये और आप देखते रह जाएंगे. कभी महावीर स्वामी की चित्रकारी को देखिये, कभी बारह बॉस में रात्रि के समय में भजन मंडलियों को भजन करते देखिये और आप अवाक रह जाएंगे. कभी ये सोचिये की इस अद्भुत पीढ़ी के बाद ये कला किस के पास रहेगी? इनकी अगली पीढ़ी ये कला क्यों अपनाएगी? क्यों सरकार इन कलाकारों की अनदेखी कर रही है.  कभी ये सोचिये की इन कलाकारों को इनकी अद्भुत कला का कद्रदान क्यों नहीं मिला? इनकी कला अगर पूरी दुनिया में फैलाई जाए तो बीकानेर में विदेशी मुद्रा की बरसात होने लग जायेगी. लेकिन इस केलिए कोई सोचता क्यों नहीं है? 

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