Saturday, April 30, 2016

खुशिओं का अर्थशास्त्र


तथाकथित अर्थशास्त्री (जो कि पश्चिमी ज्ञान से लवरेज हैंहमेशा दिवा स्वप्न दिखाते रहेंगे और आप को ये दिलाशा देते रहेंगे की भारत एक महाशक्ति बन कर उभरेगाक्योंकि भारत की जीडीपी दुनिया में जल्द ही दूसरे नंबर पर  जायेगीयह एक ग़लतफ़हमी है की जीडीपी बढ़ने से देश में लोगों को अधिक खुशियां मिलती हैयह एकअफ़सोस है की देश के नीति निर्माता इस ग़लतफ़हमी के साथ अपनी नीतियां बनाते हैं कि देश की तरक्की तभी होगी जब जीडीपी बढ़ेगीमेरी बात को सिर्फ भारतीयसोच रखने वाले लोग ही समझ पाएंगे - क्योंकि अमेरिका में अर्थशास्त्र पढ़ा व्यक्ति तो जीडीपी बढ़ाने की ही रट लगाता रहेगाअतः मेरी ये बात नीति निर्माताओं कोहजम नहीं होगीलेकिन इस लेख को पढ़ने वाले लोग मेरी बात को समझ पाएंगे इसी लिए में ये लेख लिख रहा हूँचूँकि आप मेरी बात समझ सकते हैं अतः मैं आपजैसेलोगों से ही गुजारिश करूंगा.
इस जीडीपी बढ़ाने के लालच ने देश के नीति निर्माताओं का क्या हाल किया हैपूछिए आम व्यक्ति से और आपको खुद ही जवाब मिल जाएंगेएक व्यक्ति मुझसेकहता है की जब सिगरेट ख़राब हैतम्बाखू ख़राब है तो सरकार उसको बिकने क्यों देती है - फिर वो ही बोलने लगा - सरकार भी अपनी आय की तरफ देख रही है -उसको भी अपनी आम्दानी की चिंता है.
जीडीपी बढ़ाने के लिए हर कोई प्रयास कर रहा हैकोई खेतों में फ़र्टिलाइज़र का उपयोग बढ़ा रहा है तो कोई गायों को केमिकल दे रहा है कोई फैक्ट्रियों को तीन शिफ्ट मेंचला रहा हैकुल मिला कर हर तरफ उत्पादन बढ़ाने पर जोर हैलोगों को जरुरत किस चीज की है इसकी परवाह नहीं है - उत्पादन बढ़ना चाहिएसरकार खुद मिल करउत्पादनउपभोग और विज्ञापन की संस्कृति को बढ़ावा दे रही है ताकि जीडीपी बढेउत्पाद होइ भी हो - बस उससे जीडीपी बढ़नी चाहिए - जितना महंगा उत्पाद होगाउतना ही अच्छा हैजितना बड़ा प्रोजेक्ट होगा उतना ही अच्छा हैजितना ज्यादा उपभोग होगा उतना ही ज्यादा अच्छा है - क्योंकि जीडीपी बढ़ेगीप्रश्न है की इस तरहजीडीपी बढ़ाने से क्या नतीजा निकलता है - पूरी दुनिया में भारत का नाम हो जाएगा की ये दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैपर क्या इससे लोगों को खुशियांमिलेगी - शायद कभी नहींजीडीपी वाले अर्थशास्त्रियों को फिजूलखर्ची लोग बहुत पसंद हैं क्योंकि वो जीडीपी को बढ़ा रहे हैंइन लोगों को सरकारी सब्सिडीसरकारी तामजहां भी बहुत पसंद है क्योंकि वे जीडीपी बढ़ा देते हैं.
बड़ा उद्योग लगाएं -सरकार से सब्सिडी पाएंघरेलु उद्योग चलाएं सरकार से फटकार खाएंमेगा प्रोजेक्ट लाएं सरकार से सहायता पाएंछोटे प्रोजेक्ट्स चलाएं औरइंस्पेकटर राज से दुखी हो जाएँअगर आप करोड़ों के प्रोजेक्ट लगा सकते हों तो सरकारें आप के आगे पीछे घूमेगीसिंगल विंडो से इजाजत मिलेगीअगर आप अपनाठेला चलाना चाहते हों तो पुलिस इंस्पेक्टर भी आपको नहीं बख्शेगाआज सरकार हर महँगी वस्तु के उपभोग को बढ़ावा देने में लगी है ताकि देश की जीडीपी बढेभारतकी वर्षों पुरानी वस्तु विनिमय व्यवस्था को आज कोई बढ़ावा देने वाला नहीं है क्योंकि उससे जीडीपी की बढ़ोतरी की कोई उम्मीद नहीं नजर आतीभारत में वर्षों से चली रही ठेला व्यवस्था और परचून की दूकान खतरे में हैं क्योंकि सरकारी अधिकारी नहीं चाहते की ये चल पायेउनको तो बड़े बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर और मॉल्स चाहिएजो खूब टैक्स दे सकें और जीडीपी बढ़ा सकें.
क्या है खुशियों का अर्थशास्त्र?
गांधी जी ने जिस ग्राम  स्वराज्य की कल्पना की थी या महाप्रज्ञ जी ने जिस रिलेटिव इकोनॉमिक्स की बात की थी या चाणक्य ने जिस अर्थव्यवस्था की बात की थी -उसका आज कही भी कोई नामो निशान तक नहीं नजर आता है क्योंकि हर सरकार जीडीपी बढ़ा कर विश्व मंच पर अपनी वाह वाही लूटना चाहती हैपरन्तु जनताखुशियां चाहती हैखुशियों को बढ़ावा देने के लिए एक ऐसी व्यवस्था चाहिए जहाँ पर लोगों को सहज होकर जीने का मौका मिले और अपना पन और सम्मानमिलेकुटीरउद्योगकृषिघरेलु धंधेछोटे छोटे सूक्ष्म उद्योगों को प्रोत्साहन मिले तब खुशियों का अर्थशास्त्र शुरू होगाफिर से लोगों को इंस्पेकटर राज से मुक्त करवाने के लिएपहल करनी पड़ेगीफिर से लोगों को अपनी जड़ों से जोड़ने के लिए पहल करनी पड़ेगी.
आम जन में आपसी प्रेममृदुतामधुर व्यवहारआपसी मेलजोल को बढ़ावा देने के लिए एक अलग आर्थिक सोच चाहिएजो अर्थशास्त्री सिर्फ बहुराष्ट्रीय पूंजीपतियों केहितों के रखवाले होंजो सरकारें सिर्फ विदेशी कम्पनियों के लिए देश के द्वार खोल कर दुनिया में वाहवाही लूटना चाहती हों उनसे खुशियों के  अर्थशास्त्र की उम्मीदरखना गलत हैउसके लिए आप हम जैसे आम लोगों को फिर से पहल कर के देश को एक जड़ों से जुड़ी हुई सोच देनी पड़ेगी और जिस दिन हमारी समझ सरकार जमझपाएगी उस दिन निश्चित रूप से सरकार अपने अधिकाँश नौकरशाहों को सेवामुक्त कर देगी.
भारत की अद्भुत संस्कृति के पीछे विविधता भरी संस्कृति रही है जिसमे जहाँ जो साधन मिल गए उन का उपयोग कर के लोगों की सामर्थ्य के अनुसार विकास के साधनशुरू किये गएहर जगह पर आम आदमी को पूरी स्वतंत्रता मिलीकृषिव्यापारउद्योगऔर कला को सरकारी सम्मान और संरक्षण मिला तो ठीक नहीं मिला तो भीकोई बात नहीं पर इंस्पेकटर राज का सामना नहीं करना पड़ाजब जब सरकारें शोषण करती थी तब तब कोई आवाज उड़ाता था कोई कहता "चौथ वसूली नहीं चलेगीतोकोई कहता "नमक पर टैक्स नहीं देंगे". हर समय जब आम आदमी की खुशियां संकट में थी तब कोई  कोई रखवाला जरूर आयादेखते हैं आज कौन आगे आता है?
सरकार को ये बात समझ लेनी चाहिए की लोगों को सरकार से मिलने वाली खैरातसब्सिडीऔर चंद टुकड़े खुशियां नहीं दे सकते हैंलेकिन जिस दिन लोग अपनीमेहनत की कमाई से दो जून की कमाई कर के अपने व् अपने परिवार का पेट भर के परिवार के साथ परिश्रम से खुद अपनी रोटियां कमाएगा उसको जरूर खुशियांमिलेगीलोगों का जज्बा और जुझारूपन सरकार की जीडीपी में नहीं आता है लेकिन देश की असली अर्थव्यवस्था तो वो ही है  की कितने रूपये किस किस ने उड़ाए(चाहे वो फिजूलखर्ची ही क्यों  हो).
आइये फिर से वस्तु विनिमय व्यवस्था को नमन करेंआइये मिल कर उन उत्पादों का बहिस्कार करें जो लोगों की जिंदगी ख़राब करने के लिए बनाए जाते हैंआइयेमिल कर  एक नयी अर्थव्यवस्था की शुरुआत करें जहाँ पर इंसानी रिश्तोंआपसी मेलजोलभाईचारेऔर हिलने मिलने को प्रोत्साहन होआइये लोगों को छोटे छोटे औरसूक्ष्म उद्योग लगने को प्रेरित करें.  आइए फिर से लोगों को आपस में हंस मिल कर एक दूसरे की मदद करने के लिए प्रेरित करें (भले ही इनसे जीडीपी को नुक्सान हो).उपभोग नहीं उल्लासउमंग और अध्यात्म को समर्पित हो हमारे हर प्रयासआइए खुशियों की अर्थव्यवस्था की शुरुआत करें.

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