स्किल इंडिया प्रोग्राम अब काफी लोकप्रिय हो रहा है. नेशनल स्किल डेवलपमेंट कौंसिल के द्वारा सरकार सितबंर १४ तक ३३ लाख से ज्यादा लोगों को प्रशिक्षण प्रदान कर चुकी है. सरकार उस समय तक २३०० करोड़ से ज्यादा निवेश कर के ८०० से ज्यादा तरह के अलग अलग पाठ्यक्रमों में विद्यार्थियों को प्रशिक्षित कर चुकी है. ३५६ जिलों में १४०८ से ज्यादा प्रशिक्षण केन्द्रों पर ये विद्यार्थी प्रशिक्षण ले चुके हैं. आंकड़ों को देखे तो लगता है की ये वाकई बहुत लाबदायक प्रोजेक्ट है. लेकिन कई बार आंकड़ों से ज्यादा पता नहीं चलता है. मुलभुत प्रश्न बाकी है. मैं यहाँ पर कुछ मुलभुत प्रश्न उठाने का प्रयास करूंगा.
स्किल्स इंडिया प्रोजेक्ट ये मान कर चल रहा है की इंडस्ट्री को एक विशेष स्किल की जरुरत है और उस स्किल के प्रशिक्सिट कर्मचारी प्रदान करना ही हमारा फर्ज है. स्किल इंडिया इस अवधारणा पर आधारित है की इंडस्ट्री की जरुरत को पूरा करना ही हमारी शिक्षा का मकसद है. ये भी माना गया है की सिर्फ तकनीकी प्रशिक्षण और उद्योग धंधों की जरूरतों को समझ कर विद्यार्थियों का विकास किया जा सकता है. अगर सरकारी आंकड़ों पर दृस्टि डालें तो ये लगता है की स्किल इंडिया से ज्यादा सफल कोई कार्यक्रम हो ही नहीं सकता है और वर्षों से हम फ़ालतू ही उच्च शिक्षा की वकालत करते आये हैं.
स्किल इंडिया प्रोजेक्ट के तहत बड़े पैमाने पर आईटी, रिटेल, बीपीओ आदि क्षेत्रों के लिए प्रशिक्षण दिया गया. क्या हुआ? ज्यादातर इन क्षत्रों में मांग कम हो गयी और पूर्ति ज्यादा हो गयी. अब क्या करेंगे वो प्रशिक्षित कर्मचारी? कौन नौकरी देगा उनको?
शिक्षा का मकसद किसी एक हुनर का प्रशिक्षण नहीं बल्कि व्यक्ति की चेतना का विकास और उसकी समझ और सूझ बुझ का विकास है ताकि वो किसी भी क्षत्र में सफल हो सके. उच्च शिक्षा का जो मॉडल हम अपना रहे थे उसमे विद्यार्थी को इस प्रकार से प्रशिक्षित किया जाता था ताकि उसको जरा सी और मेहनत कर के किसी भी उद्योग को जमझने और उसमे अपनी पकड़ बनाने में दिक्कत नहीं आये. एक मेकानिकल इंजीनियर जरुरत पड़ने पर सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री में भी भाग ले सकता है और जरुरत पड़ने पर इन्जिनीरिंग के अन्य क्षेत्रों में भी काम कर सकता है. लेकिन स्किल इंडिया प्रोजेक्ट में ये संभव नहीं है. यहाँ पर विद्यार्थी की नीव बनाने की जगह पर उसको किसी एक इंडस्ट्री के लिए तैयार किया जाता है. अगर वो इंडस्ट्री खस्ता हाल हो जाए या उसमे तकनीक और कार्यप्रणाली पूरी तरह से बदल जाए तो फिर उस व्यक्ति के पास कोई रास्ता नहीं है. वो व्यक्ति फिर रोजगार के लिए भटकता नजर आएगा.
उद्योगों को अपनी जरुरत की तकनीक स्वयं प्रदान करनी चाहिए. शिक्षण संस्थाओं का मकसद विद्यार्थियों की नीव को मजबूत बना कर उनको इस योग्य बनाना है की वो किसी भी परिस्थिति में अच्छे कार्यकर्ता बन सकें और उनको मुलभुत तकनीकी और व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करना है. लेकिन ये बात समझ आने में देर लगेगी क्योंकि जब हम ५-१० साल बाद स्किल इंडिया के द्वारा प्रशिक्षित विद्यार्धियों की स्थिति पर गोर करेंगे तो पाएंगे की ज्यादातर लोग बदलते समय के साथ अपने आप को एडजस्ट नहीं कर पाये हैं और जीवन की मुश्किल घड़ियों में अपने आप को असहज महसूस कर रहे हैं. जब १० साल बाद हम स्किल इंडिया के प्रशिक्षति लोगों को नयी तकनीक और नए कार्यप्रणाली के लिए तैयार होने के लिए कहेंगे तो उनको बड़ी दिक्कत आएगी (आम तोर पर हर ८-१० साल में तकनीक और कार्यप्रणाली पूरी तरह से बदल जाती है और उस बड़े बदलाव के लिए तैयारी अपने आप में बड़ी चुनौती होता है - जैसे पिछले दशक में बैंकों में कम्प्यूटरीकरण से बड़े पैमाने पर बदलाव आया. )
स्किल इंडिया प्रोग्राम के तहत आज वो पाठ्यक्रम हैं जिनके लिए पहले से ही काफी प्रशिक्षण पाठ्यक्रम मौजूद हैं. जिन पाठ्यक्रमों की आज जरुरत हैं और जिन पाठ्यक्रमों की भविष्य में जरुरत पड़ेगी उनका कहीं अता पता नहीं है. जैसे आज सोलर एनर्जी, विंड एनर्जी, बायो-वेस्ट मैनेजमेंट, प्लास्टिक रीसाइक्लिंग, फाइनेंसियल रिपोर्टिंग, कार्बन क्रेडिट एकाउंटिंग आदि पाठ्यक्रमों की सख्त जरुरत है और इस प्रकार के पाठ्यक्रम कहीं पर भी उपलभ्ध नहीं हैं. लेकिन फिर भी इस प्रकार के पाठ्यक्रम स्किल इंडिया प्रोग्राम के तहत नहीं शुरू किये गए हैं. जब पूरी दुनिया आज सावर ऊर्जा और इस प्रकार की तकनीक पर जोर दे रही है तो फिर हमारी सरकार इस दौड़ में पीछे क्यों है? स्किल इंडिया प्रोग्राम में सरकार और निजी क्षेत्र मिल कर करोड़ों रूपये के संसाधन खर्च कर रहे हैं तो क्यों नहीं फिर सस्टेनेबल डेवलपमेंट और नवीन तकनीक पर आधारित उद्योगों पर ही जोर दिया जाए.
स्किल इंडिया प्रोग्राम के लिए संस्थाओं के पंजीयन के लिए जो मानदंड बनाए गए हैं वो भी मुझ जैसे शिक्षाविदों के गले नहीं उतरते - समझ नहीं आता है की लोगों को सक्षम बनना है या सक्षम कंपनियों को और सक्षम बनना है. सरकारी नीतियां जिस प्रकार से बड़े उद्योगों को मदद कर रही है उसी प्रकार से स्किल इंडिया प्रोग्रम्म को चलाया जा रहा है.
स्किल इंडिया प्रोजेक्ट भयंकर बेरोजगारी के इस भीषण समय में एक दवाई की तरह है जो शायद एक बार के लिए तो राहत दे सकती है लेकिन ये हमारे युवाओं को एक मजबूत नीव नहीं प्रदान कर सकती और उसके लिए हमें चाहिए की हमारे यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम इतने सक्षम हो की हम युवाओं को एक चुनौती भरे कल के लिए तैयार कर सकें.
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