Saturday, April 30, 2016

बजट पूर्व दरख्वास्त


बजट आने वाला है. गुलाम भारत में अंग्रेजों ने अपनी सुविधा से वित्त वर्ष १ अप्रेल से ३१ मार्च बनाया और बजट की तारीख और समय भी अपनी सुविधा से तय किया. आजाद भारत में आज तक उसको लगभग वैसे ही पालन किया जा रहा है (बजट प्रस्तुत करने का समय बदला गया है  मात्र). अंग्रेजों के बनाये हुए कानून भी लगभग वैसे ही हैं (या और ज्यादा मुश्किल कर दिए गए हैं). जैसे उस समय में नमक सहित ११ वस्तुओं पर एक्साइज टैक्स लगाया जाता था जिसका हम विरोध करते थे. आज वो टैक्स हमारी सरकार ने कई गुना जयादा बढ़ा कर हर उत्पाद पर लागू कर दिया है. आजादी से पहले हम सोचते थे की नमक जैसी वस्तुओं पर टैक्स हटा दिया जाएगा लेकिन आजादी के बाद ऐसा नहीं हुआ है. अब तो हर वस्तु पर टैक्स लगा दिया गया है. और टैक्स के कानून भी बड़े ही भयावह बना दिए गए हैं. लेकिन अफ़सोस है की जितनी राशि टैक्स के रूप में संकलित की जाती है उसकी अधिकाँश राशि टैक्स से सम्बंधित अलग अलग विभागों के प्रशाशनिक खर्च पर खर्च हो जाती है और कहा ये जाता है की आम आदमी की भलाई  के लिए टैक्स लगाया जाता है. इन टैक्सेज के कारण हमारा उत्पाद महंगा हो रहा है और हमारा निर्यात कम हो रहा है लेकिन तर्क ये है की चीन के कारण हमारा निर्यात नहीं हो रहा है. 

बजट देश के विकास के लिए  सबसे  महत्वपूर्ण औजार  बजट ही होता है. आइये हम सब मिल कर मन मन में ये दुआ करें की बजट आम जनता के लिए कुछ फायदा ले कर आये. आइये हम सब मिल कर प्रार्थना करें की : - 

बजट में शिक्षा, स्वास्थ्य, व् सामजिक सुरक्षा के लिए प्रस्तावित राशि कुछ बढे. विकसित देश शिक्षा के लिए हमसे कई गुना ज्यादा राशि खर्च करते हैं और इसी लिए उनका विकास हो रहा है. 

बजट में ग्रामीण विकास, ग्रामीण संसाधनों के विकास, व् लोग व् कुटीर उद्योगों के लिए कुछ प्रावधान बढे व् कुछ ढोस संसाधन बनाने के लिए सम्बल बने. हर सरकार शहरी क्षेत्रों के विकास के लिए तो प्रावधान करती है लेकिन गावों की टूटी फूटी सड़कें और खस्ता हाल स्कुल किसी को नहीं दिखाई देते हैं. उम्मीद करनी चाहिए की ये सरकार गावों के लिए कुछ करे. 

बजट में अलग अलग तरह के टैक्स के मकड़ जाल से छुटकारा दिलवाने का कुछ प्रावधान होना चाहिए. आम भारतीय अपनी आय का आधे से ज्यादा हिस्सा टैक्स में दे देता है. (लगभग ११  से २६ प्रतिशत एक्साइज, व् अन्य प्रकार के टैक्स के रूप में, लगभग १४% सर्विस टैक्स के रूप में व् लगभग ३०% इनकम टैक्स व् अन्य चार्जेज व् सेस्स के रूप में). हमारे देश में लगभग ३०००  कानून हैं जो किसी न किसी रूप में आम आदमी को अपनी जकड में जकड़े हुए हैं. हर कानून (प्रावधान व् रूल्स को मिला कर ) १००  से १००० पेज के बीच का है. लगभग हर कानून पूरी दुनिया का सबसे बड़ा कानून है. हर कानून मुश्किल भाषा में तैयार किया हुआ है जिसको समझना आम आदमी के लिए मुश्किल और उबाऊ है. ऐसा माना जाता है की हर व्यक्ति को कानून की जानकारी होनी चाहिए (ताकि वो कानून का पूरी तरह से पालन कर सके). लेकिन इस के लिए जरुरी है की कानून सरल और संक्षिप्त हों जिसको हर व्यक्ति समझ सके और पालन कर सके. हर व्यक्ति से अपेक्षा है की वो अलग अलग कानूनों का पूरी तरह से पालन करे और इस हेतु खुद सजग रहे. तरह तरह के टैक्स होने से उनके लिए अलग अलग कर्मचारी रखने पड़ते हैं और इस प्रकार टैक्स की वसूली के लिए प्रशाशनिक व्यय भी बहुत ज्यादा हो जाता है. इस लिए इस बात की जरुरत है की सभी तरह के टैक्स के लिए एक ही विभाग हो और अगर सारे तरह के टैक्स के लिए एक ही दस्तावेज हो तो और अच्छा हो जाएगा. हर व्यक्ति टैक्स चुकाना चाहता है लेकिन टैक्स की प्रक्रिया आटे में नमक की तरह हो न की नमक में आटे की तरह. यानी टैक्स की दर कम हो ताकि किसी व्यक्ति को टैक्स का भुगतान अखरे नहीं और टैक्स की वसूली गयी राशि का उचित  उपयोग भी हो न की सारी राशि प्रशाशनिक व्यय पर खर्च हो जाए. 

कई लोगों का तर्क है की टैक्स की डर कम कर देंगे तो सरकार अपने प्रशाशनिक खर्च को कैसे करेगी. हर दिन प्रशाशनिक खर्च बढ़ रहा है. ७ व वेतन आयोग आने वाला है और वो तक्खवाह बढ़ा देगा तो फिर उसका भुगतान सरकार कैसे करेगी. हर सरकारी दफ्तर आज ऐरकण्डीशनड है उसका खर्च कैसे चलेगा? प्रश्न उचित हैं. मैं अनुरोध करूँगा  की इस प्रकार  के बढ़ते  खर्च के लिए घाटे  का बजट ही लागू  किया जाए. लेकिन आम आदमी पर टैक्स का भार न बढ़ाया जाए. मैं शिक्षक हूँ लेकिन फिर भी अनुरोध करूंगा की उच्च शिक्षा पर खर्च कम कर दिया जाये. उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आज हमारे देश में अनेक विकसित संस्थाएं हैं जो सेल्फ-फाइनेंसिंग के द्वारा सफलता पूर्वक काम कर रही हैं और अन्य शिक्षण संस्थओां को भी उनसे सीख ले कर सेल्फ फाइनेंसिंग पर काम करना चाहिए. लेकिंग प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा पर सरकार को खर्च करना ही पड़ेगा और वोकेशनल शिक्षा और उद्यमिता को बढ़ावा देना ही पड़ेगा. सरकार को अब उच्च शिक्षण संस्थाओं (प्रोफेसनल शिक्षण संस्थाओं जैसे आईआईएम आदि को शामिल करते हुए ) से कहना ही पड़ेगा की वो सेल्फ फाइनेंसिंग के लिए तैयार हो जाए. ताकि ग्रामीण शिक्षण संस्थाओं के विकास के लिए अधिक से अधिक राशि खर्च की जा सकै. 

बजट से छोटे उद्योगों के लिए भी कुछ मदद की गुजारिश करनी चाहिए. बड़े उद्योगों को सरकारी मदद की जरुरत नहीं होती है क्योंकि वो शेयर मार्किट और विदेशी पूंजी से सक्षम हो जाते हैं लेकिन छोटे उद्योग कहाँ जाए ? प्रश्न है की सरकार छोटे उद्योग, कुटीर उद्योग, सूक्ष्म उद्योग, घरेलु उद्योगों के लिए क्या कर रही है? प्रश्न है की बजट के द्वारा सरकार सबसे छोटे व्यापारियों  (जैसे ठेला चलने वालों) की मदद करने के लिए क्या कर सकती है. आज हम सबको मिल कर ये अनुरोध करना चाहिए की हमारी आवाज सरकार तक पहुंचे और वो छोटे से छोटे व्यापारियों की मदद करने के लिए सोचे. बड़े उद्योग समूह तो अपनी मांगे वित्त मंत्री को सीधे ही भेज देते हैं. छोटे व्यापारी क्या करें? उनकी कौन सुनता है? आईये हम सब उनके लिए कुछ प्रार्थना करें ताकि सरकार उनके लिए भी सोचे. ये सरकार स्मार्ट सिटी की बात करती है. काश ये सरकार हर गाव को स्मार्ट गाव बनाने की बात करे ताकि आम भारतीय खुशियों का पिटारा पा सके. (खुशियां तो तब ही हो सकती है जब आम आदमी को मज़बूरी के कारण अपना गाव छोड़ कर शहर नहीं जाना पड़े). 

दुआ में बड़ी ताकत हैं दोस्तों. आइये मिल कर दुआ करते हैं. कोई तो हमारी सुनने वाला भी है. 

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