Wednesday, August 1, 2018

इंडिया बनाम भारत - क्या है हकीकत ?

इंडिया बनाम भारत - क्या है हकीकत ?

राजा नाभि के पुत्र ऋषभ देव हुए और उनके पुत्र भरत ने भारत वर्ष की स्थापना की और महान भारत पूरी दुनिया पर छा गया. भारत की सिंधु नदी समूह (पहले 8 
नदियाँ थी अब सिर्फ ६ नदियाँ ही बची हैं) के कारण विदेशी लोग इस प्रदेश को हिन्दुस्तान (वो लोग स को ह बोलते थे) कहने लगे. सिंधु से हिन्दू - और हिन्दू से  इंडिया (स से ह बना और फिर ह भी गायब हो गया). और सिर्फ नाम ही नहीं बदला बहुत कुछ बदल गया. कंधार से आसाम तक फैला भारत  आज इंडिया में सिर्फ गाँव में रहने को विवश है. एक समय भारत पूरी दुनिया के लिए स्वर्ग था लेकिन फिर वर्षों तक उसको शोषण झेलना पड़ा. उसका सोना उसका बैरी बन गया ओर विदेशियों ने उसका शोषण किया. लेकिन आज तो गजब हो रहा है - उसके ही लाडले इंडिया से उसका शोषण हो रहा है. भारत यानी आम भारतीय नागरिक - जो आम लोगों के लिए उपलभ्ध व्यवस्थाओं के बीच परेशान है - ओर इंडिया मतलब अंग्रेजी पढ़े लिखे नव-अभिजात्य वर्ग के लोग जो विलासिता भरी जीवनशैली को बढ़ावा दे रहे हैं. विस्तार से चर्चा करते हैं की  क्या है भारत और इंडिया की कहानी?

आज भारत ओर इंडिया एक साथ रहते हुए भी अलग अलग हैं. सरकारी अधिकारी, पूंजीपति, राजनेता, फिल्म-सितारे, प्रोफेशनल लोग ओर बड़े बड़े ठेकेदार (कोई जाती का ठेकेदार बना हुआ है तो कोई किसी वर्ग का ठेकेदार) इंडिया में रहते हैं लेकिन आम लोग जिनमे कृषक, मजदुर, लघु व्यवसायी, लघु उद्यमी, पशु-पालक, हस्त-शिल्पी, कुटीर उद्यमी आदी भारत में रहते हैं (रहते तो क्या हैं - अपना जीवन बसर करते हैं). आज इंडिया बहुत फ़ैल रहा है ओर लगातार बढ़ता जा रहा है. बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ आ रही है ओर उनके सभी कर्मचारी इंडिया में ही रहते हैं ओर उनका लगातार फैलाव जारी है. सरकारी अधिकारियों का भी लगातार फायदा ही हो रहा है. अभी अभी उनका वेतन भी बढ़ा दिया गया है. यानी इंडिया की तरक्की लगातार जारी है. लेकिन भारत की हालत खराब है. जी. एस. टी. (GST) तो कभी नोट बंदी तो कभी हड़ताल तो कभी भारत - बंद (कभी आपने इंडिया
बंद नहीं सुना होगा) भारत के लोगों को लगातार कमजोर कर रहा है. इधर सुना है सरकार ने खस्ता हाल भारत की मदद करने के लिए १४ फसलों के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की है ओर अर्थशास्त्रियों को लगने लगा है की इससे महंगाई बढ़ जायेगी (जब सरकारी अधिकारियों या सांसदों की तनख्वाह बढ़ाई जाती है तो कोई अर्थशाष्त्री ऐसी बात  नहीं कहता है). खैर भारत की किस्मत में ही शायद दब कर रहना लिखा है - कभी अंग्रेज आये - तो कभी अंग्रेजों के मुरीद (आधुनिक इंडिया) आये. हद तो तब हो जाती है की इंडिया के लोग (आधुनिक सरकारी अधिकारी) जानबूझ कर ऐसे कानून ओर व्यवस्थाएं बनाते हैं जो न तो उनको समझ आती है न भारतीय लोगों को - वे तो किसी तरह अंग्रेजी में गिट-पिट कर के बच निकलते हैं लेकिन भारतीय फंस जाते हैं. इंडिया के सारे उच्च अधिकारी आज भी अंग्रेजी में ही अपने कानून ओर नियम निकालते हैं ओर अंग्रेजी में ही बात करना पसंद करते हैं (ये दूसरी बात है की हर साल हिंदी भाषा के विकास के लिए उच्च इनाम ले लेते हैं). आज भी ३००० से ज्यादा कानून हैं (जो बहुत ही जटिल हैं ओर इंडिया के लोग ही समझ सकते हैं) ओर हर वर्ष नए नए कानून जोड़े जा रहे हैं. नए कानूनों में जी. एस. टी. को ही लीजिये -  पूरी तरह से इंडिया के लोगों के लिए है -  आम आदमी तो इसको समझ ही नहीं पाता है.
भारतियों के लिए सरकारी स्कुल, सरकारी अस्पताल, सरकारी दवाखाना ओर रेल में जनरल कोच है. लेकिन इनके अफसर तो सारे इंडिया में रहते हैं. वे निजी क्षेत्र के अस्पताल, निजी क्षेत्र के विद्यालयों ओर निजी क्षेत्र की आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित हवाई यात्राओं का आनंद लेते हैं - कभी कभार रेल में भी यात्रा करते हैं (जो की वे रेल के किसी एयर कंडीशन  कोच में कभी कभार नजर आ जाते हैं). नतीजा यही है की इंडिया (यानी अभिजात्य वर्ग) के लोगों को भारत के लोगों की दुर्दशा के बारे में या तो जानकारी नहीं है या वे उनके लिए कुछ करना ही नहीं चाहते हैं.  भारत ओर इंडिया को समझने के लिए लोगों के बीच में जाना पड़ेगा ओर उनके रोजमर्रा के जीवन को देखना पड़ेगा.  

आइये छुक छुक रेल गाडी की सैर करते हैं. बीकानेर स्टेशन पर खड़ी इस गाडी में जनरल डिब्बा भारत के लिए है जहाँ 8 सीट पर 16 लोग एक साथ सवारी करते हैं और स्थानीय भाषा में सारी समस्याओं पर बात करते हैं - उसी रेल में एयर - कण्डीशन  कोच में इंडिया सफर करता है जो अंग्रेजी में बात करते हुए अमेरिका और वैश्वीकरण की समस्याओं पर चर्चा करते हुए भारत की गरीबी को नफ़रत की दृष्टि से देखता है. ये छुक छुक रेलगाड़ी बीकानेर स्टेशन से रतनगढ़ तक पहुँचती है.

जनरल डिब्बे में लोग आपस में जल्दी ही हिल-मिल जाते हैं. कुछ व्यक्ति बैठ नहीं पाते हैं तो वे खड़े ही रहते हैं. भीड़ के बावजूद भी लोग एक दूसरे का सहयोग कर के किसी तरह अपनी यात्रा का आनंद लेते रहते हैं.  रावण हत्था  लिए साधराम और उसकी पत्नी जनरल डिब्बे में  चढ़ते हैं  और रावण हत्था बजाते हैं. हर व्यक्ति उनकी वाह-वाही करता है और ५-१० रूपये उनको बक्शीश के रूप में भी देता है. उसके  बाद रामु समोसे ले कर आता है और हर व्यक्ति एक एक समोसा तो खरीद ही लेता है. कई लोग बहुत परेशान है ओर आप पूछते हैं की परेशानी का क्या कारन है तो पता चलता है की इनका व्यापार ही बंद हो गया है क्योंकि लोगों ने इनसे माल खरीदने की बजाय ऑनलाइन खरीदना शुरू कर दिया है. कोई ऐसा भी है जो इतनी भयंकर गरीबी में जी रहा है की रेल की टिकट खरीदने में ही उसका महीने भर का बजट चला गया है ओर अब उसको नहीं पता की कैसे पूरा महीना निकालेगा.

उधर इंडिया के  कोच में सब लोग मोबाइल पर विदेशी फ़िल्में देखने में व्यस्त हैं और उनमे से कुछ लोग बैठे बैठे अपने ऑफिस का भी काम कर रहे हैं. यहाँ कोई साधराम या रामु नहीं आ सकता है. अगर आ भी जाए तो लोग उसको बहार निकलवा देंगे. इस कोच में "कॉन्वेंट प्रशिक्षित" लोग हैं जो अंग्रेजी और अंग्रेज जीवन-शैली को अपना चुके हैं. ये बहुत चिंतित नजर आ रहे हैं. आप इनसे पूछेंगे तो कहनेगे - बेटे का एडमिशन ऑक्सफ़ोर्ड में करवाना है - बड़ी बेटी की शादी के लिए ढंग की होटल नहीं मिल पा रहा है आदी आदी.

भारत आज गावों में बसता है. लेकिन आज भी गांव हमारी प्राथमिकता नहीं है. गावों में न अस्पताल है न शिक्षण संस्थान, न सड़कें हैं न बिजली- पानी. जो लोग मजबूर हैं वे गाँव में रुके हुए हैं. जो लोग अच्छी पढ़ाई कर लेते हैं वो गांव वापिस नहीं आते हैं. शिक्षण संस्थाओं में भी विद्यार्थियों को शहरों की ओर पलायन के लिए तैयार किया जाता है.  गावों में रहने ओर गावों में स्वरोजगार के लिए कोई संस्था न तो प्रेरित करती है न प्रशिक्षित करती है. कुछ शिक्षण संस्थाओं ने ग्रामीण प्रबंधन का पाठ्यक्रम शुरू किया है - उनके विद्यार्थी भी पढ़ाई करने के बाद बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नौकरी करते हैं ओर इन कंपनियों की  इस प्रकार के उत्पाद बनाने में मदद करते हैं जो भारत के गावों में आसानी से बिक सके. सही मायने में गावों में रहने ओर गावों को आबाद करने की प्राथमिकता किसी की नहीं है. इसी लिए भारत उजड़ रहा है ओर इंडिआ आबाद हो रहा है. भारत की ख़ास बात क्या है? भारत में आज भी आपको वर्षों पुरानी संस्कृति मिल जायेगी. लोग आज भी समाज, परिवार, रीति-रिवाज, अध्यात्म, कर्म, पुनर्जन्म, ओर सत्संग के कारण एक दूसरे से गुंथे हुए हैं. लोग गरीब है लेकिन आज भी भुखमरी के शिकार नहीं है. लोग अशिक्षित है लेकिन उनकी चेतना ओर सामजिक समझ बहुत उच्च है. कम साधनों में जीवन जीने के आदी ये लोग हर संसाधन की बचत करने की कोशिश करते हैं. आज भी किसी गांव की कोई भी शादी का आयोजन देखिये - १५ से ज्यादा व्यंजन नहीं होंगे - आज भी प्लास्टिक का इस्तेमाल नजर नहीं आएगा. पानी पीने के लिए लोटे रखे होंगे ओर लोग बुक (हाथ की एक मुद्रा) से पानी पीते नजर आएंगे. गावों में पेड़ों के नीचे ही दरी बिछा कर के लोगों के बैठने की व्यवस्था कर दी जायेगी. आपको लगेगा की ये लोग अज्ञानी हैं लेकिन आज भी इन लोगों को एक - एक पेड़ का महत्त्व पता है ओर बचपन से ही पेड़ों, वनस्पतियों ओर जानवरों (जैसे गाय- बकरी) को संरक्षित करने का प्रशिक्षण मिल जाता है.

आइये इंडिया को देखते हैं.  ये महानगरों ओर शहरों में बसता है.
सबसे पहले इंडिया पेड़  काट - काट  कर लम्बी - चौड़ी सड़के बनाता है और फिर गगन चुम्बी इमारते और फिर सड़कों के किनारे फिर से पेड़ लगाने की कोशिश करता है जिसके लिए निजी क्षेत्र को ठेका दिया जाता है. सरकार से स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत काफी बजट भी मिल ही जाता है और लीजिये  इंडिया का स्मार्ट सिटी तैयार जहाँ आदमी आदमी को नहीं जानता - न मोहल्ले बचते हैं न समाज - न लोगों का अपना पन. शहरों में जितना बजट सड़कों के किनारे कृत्रिम  बाग़-बगीचे लगाने के लिए दिया जाता है - उतना गावों में सड़कों के लिए भी नहीं होता है. इंडिया विकसित देशों के रास्ते पर चल रहा है. पांच सितारा संस्कृति हावी  है. ये वो लोग हैं जो पांच सितारा होटलों में बैठ  कर पर्यावरण को बचाने के लिए बड़े बड़े भाषण देंगे. ये वो लोग हैं जिनको पर्यावरण संरक्षण के लिए अनेक सम्मान भी मिलेंगे. अपने व्याख्यानों में ये लोग प्लास्टिक का कोई विकल्प खोजने का आह्वान करेंगे. इनके शादी के आयोजन में आप जाएंगे तो कम से कम 50 व्यंजन मिलेंगे - लेकिन अधिकाँश भोजन व्यर्थ ही फेंक दिया जाएगा. यह वर्ग शिक्षित - प्रशिक्षित वर्ग है अतः इन्हें पर्यावरण, जल-संकट, खाद्य पदार्थों के अपव्यय को रोकने, आदी पर पर बड़े बड़े व्याख्यान देते हुए देखा जा सकता है. ये लोग अक्सर गावों के अनपढ़ लोगों को (भारत के लोगों को ) इन विषयों पर प्रशिक्षण प्रदान करना चाहते हैं ओर इस हेतु कोई न कोई आयोजन करते ही रहते हैं ओर सरकार भी इस हेतु इन को अनुदान भी प्रदान करती है ओर हाँ ये आयोजन पांच सितारा होटलों में होते हैं जहाँ पर गावों के अशिक्षित लोगों को प्रशिक्षित किया जाता है ताकि वे पर्यावरण की महत्ता को समझ सके.   

कुल मिला कर शोषण जारी है. देश के नेताओं की प्राथमिता तो इंडिया है लेकिन इंडिया की जड़ों को देखोगे  तो भारत ही मिलेगा. इंडिया के लिए अनेक योजनाएं आती है. कभी कोई योजना तो कभी कोई योजना. लेकिन भारत को तो अपनी जरूरतों के लिए भी मोहताज होना पड़ रहा है.  भारत को नजरअंदाज कर के इंडिया को कैसे बचा पाओगे? यानी आज हम सबके सामने एक चुनौती है  -  भारत को बचाना . पर  बचाएं कैसे? किसी ने  इसका एक सुझाव भेजा : अगर सभी नेता ओर सभी अफसर भारत में रहने लग जाए या अपने बच्चों को भारत में भेजने लग जाएँ तो भारत सुधार जाएगा. कैसे ? उसने कहा - अगर नेताओं के बच्चे सरकारी शिक्षण संस्थाओं में पढ़ेंगे, वे रेल में  जनरल कोच से यात्रा करेंगे, वे गावों में जाएंगे तो नीति बनाते समय उनके कष्टों को ध्यान में रखेंगे - तो शायद भारत के कष्टों का निवारण हो जाएगा.  

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