Wednesday, August 1, 2018

शिक्षा में नए दौर की जरुरत - गुरु और गुरुकुलों की जरुरत

शिक्षा में नए दौर की जरुरत - गुरु और गुरुकुलों की जरुरत



दो शताब्दियों की अंग्रेजों की गुलामी के दौर ने भारत के महान शैक्षणिक तंत्र को खत्म कर दिया. उसी महान तंत्र के कारण भारत में अनेक ऋषि, अनेक विद्वान  और अनेक वैज्ञानिक हुए. उस शिक्षा व्यवस्था में मानवीय मूल्यों, संस्कारों और जीवन के प्रति समग्र दृष्टिकोण को स्थापित किया जाता था. आज पूरी दुनिया को उस अद्भुत व्यवस्था की जरुरत है.
आज  शिक्षा को ले कर अनेक प्रयोग हो रहे हैं लेकिन आज पूरी दुनिया को फिर से गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था की जरुरत है. उस व्यवस्था में शिक्षक विद्यार्थी को परखता था और फिर उसको शिक्षा प्रदान करता था. गुरुकुल के गुरु जीवन से सम्बंधित हर महत्वपूर्ण  विषयों पर विद्यार्थियों  का  मार्गदर्शन करते थे और हर एक विद्यार्थी  को अपनी अपनी रुचि का ज्ञान पाने का अवसर मिलता था ।
एक बार विषय निश्चित हो जाता, तो उसकी शिक्षा का आरंभ होता था । गु्रुकुल की शिक्षा पध्दति आज की शिक्षा पध्दति से भिन्न थी । जिसे जो विद्या सीखनी होती थी, उसे उसी विषय के शिक्षक के तथा अन्य विद्यार्थियों के साथ ही रखा जाता था । उसी वातावरण में रहकर वह अन्य लोगों का अनुकरण करके विद्या ग्रहण करता था । यह सब सीखते समय कुछ शंका निर्माण होती थी, तब शिक्षक उसका मार्गदर्शन करते थे । विद्यार्थी अपनी शिक्षा उचित प्रकार से ग्रहण करता नहीं हो, तो यह बात ज्येष्ठ विद्यार्थी या शिक्षक जान जाते थे और उसकी गलती सुधारी जाती थी ।
शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए सही परीक्षा प्रणाली बहुत आवश्यक है. आज विद्यार्थी सिर्फ रट कर के परीक्षा उत्तीर्ण कर लेते हैं. मास्टर्स तक की पढ़ाई करने के बाद भी विद्यार्थी अपने विषय के भी काम नहीं कर सकते हैं - किसी और विषय के बारे में तो क्या बात करें. इसका कारण है की हमारी परीक्षा प्रणाली सैद्धांतिक है.

गु्रुकुल में परीक्षा की पध्दति आज जैसी नहीं थी । इसलिये ज्ञान ग्रहण करते समय विद्यार्थी के मन में कोई भय नहीं होता था । विद्यार्थी को क्या करना चाहिए और क्या नहीं, इस पर शिक्षकों का ध्यान होता था । यही कारण था कि विद्यार्थी अपनी प्रगति समझकर, आगे की शिक्षा प्राप्त करने या न करने का निर्णय ले सकता था । इसी प्रकार शिक्षा प्राप्त करने के साथ ही वह उसमें प्रवीण हो जाता था और उसी के अनुसार व्यवसाय चुनता था
अपने घर का मोह त्यागकर विद्यार्थी को गु्रुकुल में ही रहना प‹डता था। यहां सभी विद्यार्थियों की वेशभूषा बड़ी ही सादगी वाली होती थी, सब को एक जैसा ही सादा लेकिन  सात्विक  भोजन मिलता था और अल्प जरूरतों के साथ कैसे रहें, इसकी भी शिक्षा दी जाती थी क्योंकि गु्रुकुल में प्रवेश करने के बाद केवल विद्या अर्जित करना ही हर एक का लक्ष्य होता था। विद्यार्थी को सुबह जल्दी उठने, जल्दी नित्य क्रिया कर्म करने और सुबह सुबह बड़ों का सम्मान करने की आदत गुरुकुल से ही मिल जाती थी जो पूरी जिंदगी साथ ही चलती थी. 
आज की शिक्षापध्दति में विद्यार्थी यही मानकर चलते हैं कि विद्यार्जन करना गौण बात है । इसलिए उनका ज्यादा समय अन्य बातों में ही गुजरता है। शिक्षा लेने का समय काफी कम होता है, किंतु ज्ञान ग्रहण करने का जो प्रमुख काल होता है, उसमें ज्यादा से ज्यादा समय ज्ञान ग्रहण में दिया जाए, तो परिपूर्ण विद्या प्राप्त होती है । इसीलिये जहां ज्ञान ग्रहण करना हो, वहां का वातावरण भी उसके लिए उचित होना जरूरी है और ऐसे उचित वातावरण में रहने से मन पर केवल विद्या ग्रहण करने के ही संस्कार होते हैं । यही कारण है कि भारत में विद्या ग्रहण करने के लिए गु्रुकुल में ही रहने की अनिवार्यता थी । गु्रुकुल में अनेक विद्याएं सिखाई जाती थीं और उस विषय का तज्ज्ञ व्यक्ति उसका ज्ञान देता था । ऐसे व्यक्ति को शिक्षक कहा जाता था । शिक्षक विद्यार्थी को एक विषय के अंदर सफल बनाता है लेकिन गुरु तो जीवन में सफल बनाता है. आज गुरुओं की जरुरत है. जीवन को सफल बनाना है. फिर से स्वर्णिम काल आ रहा है. अगर हर व्यक्ति को दिशा मिल जाए तो फिर इसी जीवन में हर कोई केवली यानी परम ग्यानी बन सकता है. भारतीय भूमि में सुख शान्ति और सुशाशन का नया दौर लाने के लिए सबसे पहली पहल शिक्षा व्यवस्था में सुधार से ही शुरू होगी. शिक्षा सिर्फ रोजगार का जरिया नहीं है - ये तो जीवन को निखारने का और जीवन को नयी दिशा देने का जरिया है ताकि जीवन को हर क्षेत्र में सफल बना सकें. ये सिर्फ भारतीय शिक्षा व्यवस्था से ही सम्भव है.

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