Wednesday, August 15, 2018

सरकार और लोगों के बीच की खाई

सरकार और लोगों के बीच  की खाई 

किसी भी समाज की हालत जांचने के लिए वहां के लोगों के साथ बात करिये - उनके ज्ञान,  आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान से आप समाज की स्थिति का अनुमान लगा सकते हैं. हमारे आस पास क्या हो रहा है? समाज में हर तबके के लोग मिल जुल कर एक दूसरे की मदद कर के विकास का मार्ग प्रशश्त करते हैं. आज सरकारें अनेक योजनाएं ले कर आ रही है - लेकिन पहले तो सरकारी अधिकारी ही उन योजनाओं को असफल बनाने में लगे हैं और फिर आम लोगों को वो योजनाएं समझ में भी नहीं आ रही है. नतीजा है की कुछ गिने चुने लोग ही उन योजनाओं का लाभ ले पा रहे हैं. आप लोगों से बात करते हैं तो वे पूछते हैं -" हमारे लिए सरकार ने क्या किया?"   क्या सैकड़ों सरकारी योजनाओं में उनके लिए भी कुछ है ? असल में सरकार और लोगों के बीच एक खाई है और ये खाई लगातार बढ़ती जा रही है. सरकार लोगों के लिए कुछ करना चाहती है लेकिन लोगों को हकीकत में कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है.

आज राजस्थान सरकार २५००० मेगावाट सौर ऊर्जा के उत्पादन के लक्ष्य के लिए काम कर रही है. क्या आम राजस्थानी इस योजना में भाग नहीं ले सकता है? अगर हर व्यक्ति इस योजना में भाग ले तो ये लक्ष्य बहुत जल्द हासिल हो सकता है. लेकिन क्या कोई ऐसे प्रयास हो रहे हैं जिनसे अधिक से अधिक लोग  इन योजनाओं का लाभ ले सके और इनमे भागिदार बन सके? (अधिकांश सरकारी योजनाएं आज भी अंग्रेजी में बहुत ही मुश्किल भाषा में है और उनके क्रियान्वयन  की जिम्मेदारी आम तोर पर ऐसे अधिकारियों के हाथ में है जो उन योजनाओं को जटिल बनाने के चक्रव्यूह को गढ़ने की कला में सिद्धहस्त हैं. 

अभी सरकारी योजनाओं की एक लिस्ट आप सभी देख रहे हैं: -
राजस्थान स्टार्टअप पालिसी
सोलर एनर्जी पालिसी
जन आवास योजना
सरकार आपके द्वार
टूरिज्म यूनिट पालिसी
स्किल लाइवलीहुड डेवलपमेंट योजना
पालनहार योजना
आपका जिला आपकी सरकार
जन स्वावलम्बन योजना
भामाशाह स्वास्थ्य  बीमा  योजना
अन्नपूर्णा भण्डार योजना
मुख्यमंत्री हमारी बेटी योजना
राजस्थान संपर्क योजना
भामाशाह योजना
राजश्री योजना
अन्नपूर्णा रसोई
न्याय आपके द्वार
इ-मित्र योजना
राजस्थान डिजिफेस्ट

इन योजनाओं को लाने के लिए सरकार बधाई की पात्र है लेकिन असल कार्य योजना लाना नहीं बल्कि योजना से जन-जन को लाभान्वित करना है. 
अन्नपूर्णा रसोई, इ-मित्र और भामाशाह को छोड़ कर अन्य योजनाओं से आमजन अनभिज्ञ है. जो व्यक्ति अंग्रेजी नहीं जानते, इंटरनेट नहीं जानते, सरकारी महकमों में जुते घिसना नहीं जानते - उन लोगों को भी इन योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए. सरकारी योजनाओं को आम लोगों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सहयोगी राजनीतिक दलों की होती है - जिनको चाहिए की इन योजनाओं को आम लोगों की भाषा में अनुवाद कर के हर व्यक्ति को समझाएं और हर व्यक्ति को इन का लाभ पहुंचाएं. लेकिन ऐसा नहीं होता है. राजनीतिक संगठन सरकार के साथ कदम से कदम मिला कर काम करे तभी सरकार सफल हो सकती है - लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. विपक्षी दलों को भी सरकारी योजनाओं की कमियों को रेखांकित करने की अपनी भूमिका को अंजाम देना चाहिए - लेकिन वो भी ऐसा नहीं कर पा रहे हैं.

सरकारी योजनाओं की सफलता के लिए ये जरुरी है की इन योजनाओं की क्रियान्विति को बहुत ही बारीकी से जांचा जाए. ये सिर्फ अमुक सरकार की योजना नहीं है  -  ये आम लोगों की मेहनत की कमाई की गंगा है.  सरकारों  को भी पुनः चुन कर आने के लिए ये सुनिश्चित करना चाहिए की उनकी योजनाओं को हर व्यक्ति समझ रहा है और उनसे लाभान्वित हो रहा है.

अगर पिछले ८  सालों की सरकारी योजनाओं और नीतियों की सूचि बनायी जाए तो इस सूचि में करीब २०० योजनाएं और नीतियां शामिल होगी. लेकिन उनमे से कितनी हैं जो लोगों को याद है या जिनसे लोग लाभान्वित हुए हैं? चुनाव आते हैं तो योजनाओं  और नौकरियों जैसे लुभावने आकाश-कुसुमों  की बरात शुरू  हो जाती  है लेकिन नतीजा क्या निकलता है? अधिकाँश योजनाएं किसी वर्ग विशेष के लिए होती है या उसमे कई ऐसे नियम बना दिए जाते हैं की अधिकाँश लोग उन योजनाओं का लाभ ही नहीं ले सकें. स्किल डेवलपमेंट योजनाओं की बात करते हैं. अधिकाँश प्रशिक्षण संस्थान उन योजनाओं का लाभ ही नहीं ले पाते हैं क्योंकि उन योजनाओं की पात्रता के लिए १.५ करोड़ का सालाना टर्नओवर (सालाना बिक्री)  जरुरी है. 
सौर ऊर्जा की अधिकाँश योजनाएं आसानी से गरीबों की मदद कर सकती है लेकिन योजना बनाने वालों ने इस प्रकार से योजनाएं बनायीं हैं की उनका फायदा बहुत गिने चुने लोग ले पाएं. प्रतिस्पर्धा और स्किल डेवलपमेंट की कई योजनाएं सिर्फ एक वर्ग विशेष के लिए होती है - क्यों? क्या अन्य लोगों को उनकी जरूरत नहीं है? क्या सिर्फ एक वर्ग विशेष के लोग उनसे फायदा ले पाएंगे? नतीजा ये निकलता है की समाज की समरसता कम होती है. योजनाएं भी असफल हो जाती है. सिर्फ एक वर्ग विशेष के लोग अगर एक कक्षा में पढ़ाई करते हैं तो उनमे सहिष्णुता और अन्य लोगों के साथ सामंजस्य स्थापित करने की कला का विकास नहीं हो पाता है. होना तो ये चाहिए की सरकारी पैसे से चलने वाली हर योजना, हर शिक्षण संस्था, हर प्रशिक्षण संस्था का लाभ हर व्यक्ति को मिलना चाहिए - और किसी एक वर्ग विशेष के ही सारे विद्यार्थी तो हर हाल में नहीं होने चाहिए ताकि लोगों को मिल जुल कर पढ़ाई करने और मिल जुल कर अपने भविष्य की तैयारी करने का मौका मिले और इस प्रकार हर व्यक्ति अन्य वर्ग के लोगों को मदद देना शिक्षण संस्था से ही सीख जाए.  

तकनीक का बहुत अधिक इस्तेमाल लोगों को तोड़ता है और उनमे आपसी रिश्ते नहीं बनने देता. जैसे जैसे तकनीक हावी हो रही है लोगों का आपसी नाता कमजोर हो रहा है. माता-पिता, भाई-बहिन, गुरु-शिष्य आदि सभी रिश्ते कमजोर हो रहे हैं. तकनीक हमारी मदद के लिए है लेकिन तकनीक लोगों की एक दूसरे पर निर्भरता कम कर देती है और लोगों को एक दूसरे की मदद करने के मोके भी नहीं देती है. वर्तमान सरकारें तकनीक के अत्यधिक इस्तेमाल पर जोर दे रही है. अकुशल सरकारी विभागों से लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए तो ये उपाय प्रशंशनीय हैं लेकिन अगर कर्मठ सरकारी कर्मचारियों को इन योजनाओं को लागू करने की जिम्मेदारी दी जाती तो शायद हर व्यक्ति तक ये योजनाएं पहुँच पाती. आज न तो सरकारी कर्मचारी और न आम जनता सरकार के साथ हैं. सरकारी कर्मचारी किसी तरह से अपनी "ड्यूटी" पूरी कर रहे हैं और आम लोगों को लगता है की उनकी कोई सुनता ही नहीं है.

एक उदाहरण से अपनी बात कहता हूँ: - आजादी से पहले शहर में सड़क के निर्माण कार्य में हर व्यक्ति की बड़ी रूचि होती थी. सड़कों के दोनों तरफ नालियां होती थी और पानी के निकासी के लिए समुचित व्यवस्था होती थी. अगर सड़क निर्माण के समय नाली नहीं बनायीं जाती तो मोहल्ले के लोग सड़क बनाने वाले से जिरह कर के नाली बनवा ही लेते थे. आज सड़कें तो बनवायी जाती है लेकिन उनके दोनों तरफ नाली नहीं बनवायी जाती - और बारिश होते ही सड़कों पर पानी इकठा हो जाता है. लोगों को लगता है की लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर  सक्षम हैं - और इंजीनियर को सिर्फ कागजी "ड्यूटी" पूरी करके अपनी नौकरी बचाने की चिंता है. न लोगों की कोई सुनता है न प्रशाशन को कोई चिंता है - सरकारी योजनाओं का पैसा बह रहा है - लेकिन लोगों को फायदा नहीं मिल रहा है.

एक और उदाहरण देना चाहता हूँ. आज अनेक सरकारी शिक्षण संस्थाओं में शिक्षकों की कमी है. विद्यार्थी परेशान है क्योंकि गणित जैसे मुश्किल विषय पढ़ाने के लिए कोई शिक्षक नहीं है. आसान विषय तो विद्यार्थी स्वयं ही पढ़ लेते हैं. शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए सरकार इग्नू और अन्य शिक्षण संस्थाओं की मदद से ऑनलाइन कक्षाएं संचालित करती है - लेकिन वे भी अक्सर ऐसे विषय पर होती है जो विद्यार्थी स्वयं ही पढ़ सकते हैं   - वो विषय नहीं रखे जाते जो विद्यार्थी को हर हाल में चाहिए. सरकारी शिक्षक अपनी जुगाड़ बिठा कर सरकार में कोई न कोई अधिकारी या इन्स्पेक्टर बन कर खुश हो जाते हैं और उनकी जगह पर कोई शिक्षक नहीं जा पाता है. अगर कोई ये पूछे की इन इंस्पेक्टर की ज्यादा जरुरत है या शिक्षकों की - तो उत्तर साफ़ है - शिक्षकों की - लेकिन सरकारी अधिकारियों को भी अपने लोगों की मदद करनी है और लोगों की कोई सुनता भी नहीं है. 

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