Wednesday, August 1, 2018

फ़ुटबाल से - कुछ अपने वतन के लिए......

फ़ुटबाल से - कुछ अपने वतन के लिए......


४२ लाख से भी कम जनसंख्या वाली क्रोएशिया की टीम ने फ़ुटबाल में फाइनल में जगह बना ली है (फीफा वर्ल्ड कप). ये एक आश्चर्य भी है तो ये एक प्रेरणा भी है. इस देश का इतिहास  भी २७ साल का ही है. इस छोटे से देश की दो खासियत है : १. बहुत संघर्ष भरा समय जो लोगों ने साथ साथ बिताया है  २.  अद्भुत राष्ट्रवाद की भावना. इस देश के प्रधानमत्री  ने  अपने पैसों से फ़ुटबाल का मैच देखने के लिए टिकट खरीदा और अपने पैसों से ही हवाई जहाज का टिकट खरीदा ताकि वे टीम का हौसला बढ़ा सकें. इस देश में फ़ुटबाल को देश-प्रेम की भावना को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. जो भी व्यक्ति देश के खिलाफ बात करता है या राष्ट्र-भक्ति में कोई भी कमी दिखाता है उसको तुरंत सजा दी जाती है. सबसे पहले राष्ट्रभक्ति - और उसी के कारण ये टीम आगे बढ़ पायी है. एक अधिकारी ने प्रतिद्वंदी टीम यूक्रेन की तारीफ़ कर दी तो उसको तुरंत बर्खास्त कर दिया गया. टीम मैनेजर पर टीम चयन में गुणवत्ता को महत्त्व  न देने का आरोप लगा तो उसको भी बर्खास्त कर दिया गया और नए टीम मैनेजर को श्रेष्ठ टीम बनाने का काम दिया गया. पिछले कोच परिणाम नहीं दे पाए  तो उसको भी हटा दिया गया. (आप इस बात पर गौर करिये की लोग सिर्फ सर्वश्रेष्ठ चाहते थे - उससे कम कुछ भी नहीं - और इसी लिए वो लोग गुणवत्ता से समझौता नहीं कर रहे थे और लगातार सुधार के लिए आवाज उठा रहे थे - हमारे लिए एक सीख है.).  कोच विदेशों से आयात नहीं किया गया परन्तु सिर्फ ये ध्यान रखा गया की टीम को सिखाने और जिताने का जज्बा हो. हर जीत को पूरा देश हंसी- ख़ुशी मनाता है और हर दिन और ज्यादा राष्ट्रीयता की भावना भर दी जाती है. वहां की राष्ट्रपति से ले कर वहां का आम आदमी - हर व्यक्ति एक ही बात कहता है - हमारा देश सबसे पहले. ये जज्बा जहाँ हो वो देश अपने आप को बना ही लेगा. एक संगठन और एक व्यवस्था के निर्माण के लिए ये ही तो चाहिए. इस देश का जिक्र में इसी लिए कर रहा हूँ की हर संगठन, हर समूह, हर देश और हर व्यवस्था को इससे सीख लेनी चाहिए और अपने हर सदस्य को संगठन निर्माण और संगठन के प्रति समर्पण के भाव को पैदा करने में मदद करनी ही चाहिए. राष्ट्र - वाद कोई विकल्प नहीं - ये जरुरी है. हर संगठन - अपने सदस्यों के सम्मिलित प्रयासों से ही आगे बढ़ सकता है. हमारे राष्ट्र के निर्माता भी हम ही है और ये ही हमारा प्रथम संगठन है - लेकिन हम ही उदासीन है. राष्ट्र नामक संगठन के निर्माण की प्रक्रिया का नाम है चुनाव - लेकिन हम में से कई लोग तो चुनाव में वोट भी नहीं देते हैं - ये बेरुखी क्यों?

दुनिया में संगठन निर्माण, प्रबंध और प्रशासन सिर्फ किस्मत से तुक्के से नहीं होता - इसके लिए बहुत परिश्रम और दिमागी मेहनत की जरुरत होती है. कितने संगठन हैं जो १०० साल से ज्यादा पुराने हैं? कितने प्रशासन हैं जो वर्षों तक सलामत रहे? अच्छी कंपनियों के संस्थापक लगभग अपना आधा समय अपने कर्मचारियों को प्रेरित करने और संगठनकी बेहतर प्रबंध व्यवस्था बनाने में लगा देते हैं. हमें भी अपने सबसे पहले संगठन और अपने सबसे प्रिय संगठन हमारे अपने राष्ट्र के निर्माण में लगना ही चाहिए - और उसके लिए ज्यादा समय भी नहीं चाहिए - चुनाव व्यवस्था में भाग लेना है और इस व्यवस्था में सुधार के लिए आवाज उठानी है (सुधार की गुंजाइश तो हमेशा ही रहेगी -  - हम आवाज नहीं उठाएंगे तो सुधार नहीं होगा).  चुनाव एक बहुत ही शानदार प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम लोग अपने देश के निर्माताओं का चयन कर सकें. लेकिन चुनाव की प्रक्रिया में पैसे और विज्ञापन के मेल  ने लोगों से उनकी सोचने की आजादी छीन ली है. ऐसा हो सकता है की  एक बड़ी कम्पनी एक राजनीतिक पार्टी को खरीद लेती है और फिर उस राजनीतिक पार्टी से आवांछित लोगों को चुनाव लड़वाती है. सोशल मीडिया और विज्ञापन के द्वारा लोगों को वोट देने के लिए प्रेरित किया जाता है और वो अवांछित लोग चुनाव जीत जाते हैं - सोचिये ऐसा होगा तो क्या होगा? चुनाव की पूरी प्रक्रिया में बदलाव की जरुरत है. चुनाव की पूरी प्रक्रिया सरकार के द्वारा निष्पक्षता से संचालित की जानी चाहिए. चुनाव से सम्बंधित सारे खर्च सरकार के द्वारा होने चाहिए. हर उम्मीदवार को लोगों के सामने अपनी बात कहने और फिर  एक वाद-विवाद में हिस्सा लेने का मौका मिलना चाहिए जिसमे वो वोट मांग सके और अपनी कार्य प्रणाली और अपने लक्ष्यों के बारे में बता सके. चुनाव की प्रक्रिया में धन के इस्तेमाल को कम करने के लिए सरकार को पहल ले कर इस प्रकार की पहल करनी चाहिए. आम लोगों को ये प्रश्न पूछने का अधिकार है की देश के लिए चुने गए उनके प्रतिनिधि किस प्रकार से देश की सेवा करना चाहते हैं.

आज ये देख के अफ़सोस होता है की चुने गए प्रतिनिधि देश के लिए नीति - निर्माण के कार्य में कोई रूचि ही नहीं दिखाते हैं. आज लोक-सभा और राज्य-सभा के सदस्यों को अच्छा पारिश्रमिक भी मिलता है लेकिन फिर भी वे लोग राष्ट्र निर्माण के कार्य को उतनी शिद्दत से नहीं करते जो उनसे अपेक्षा है. कई राज्य सभा सदस्य तो पुरे साल में सिर्फ कुछ दिन ही उपस्थित होते हैं - और ज्यादातर समय अनुपस्थित रहते हैं. जब देश को नेतृत्व देने वाले लोग इस प्रकार व्यवहार करेंगे तो फिर देश का क्या होगा?  अफ़सोस तो ये हैं की उन लोगों को वोट दे कर वहां भेजने वाले लोग अपने आप को ठगा महसूस करते हैं. देश भक्तों की कमी नहीं है परन्तु अफ़सोस ये है की मुट्ठी भर अयोग्य लोग धन-बल और गलत चुनाव व्यवस्था के कारण सत्ता के शीर्ष पर पहुँच जाते हैं और इस देश के विकास को रोक देते   हैं.

कई वर्ष पहले मैंने बीकानेर में (अजित फाउंडेशन के माध्यम से ) चुनाव आयोग के लिए एक प्रोजेक्ट पर कार्य किया. कार्य था बीकानेर में लोगों में चुनाव के प्रति रुझान पैदा करना और लोगों में वोट देने की भावना पैदा करना. कार्य मुश्किल था. हमने पहले सर्वेक्षण कर के लोगों के विचार जाने की वे वोट क्यों नहीं देना चाहते. हमें पता चला की चुनाव न देने के पीछे लोगों के तर्क उचित थे. लोग पूछने लगे की जो लोग चुनाव लड़ रहे हैं उनका क्या मकसद है? उन लोगों ने देश और समाज के लिए क्या योगदान किया है. उनका चुनाव के पीछे क्या मकसद है? हमको उनके उत्तरों में एक रौशनी की उम्मीद नजर आयी. हमने कोशिश कर के उस समय चुनाव में भाग ले रहे लोगों के आंकड़े और उनके लक्ष्य इकट्ठे किये और दैनिक युगपक्ष अख़बार में प्रकाशित किये. हम लोगों ने छोटे बच्चों को अनुरोध किया की वे अपने घर जा कर अपने माता- पिता को चुनाव में वोट डालने के लिए प्रेरित करें ताकि  हर व्यक्ति देश के निर्माण में योगदान दे सके. बच्चों ने कई महत्वपूर्ण प्रश्न किये. एक बच्चे ने पूछा की चुनाव लड़ने वाले लोग क्या कह कर चुनाव में वोट मांग रहे हैं - मैंने उसको बताया की वो व्यक्ति अपनी राजनीतिक पार्टी के चुनाव के घोषणापत्र  (अजेंडे) के आधार पर वोट मांग रहे हैं. उस बच्चे का प्रश्न था - क्या घोषणा पत्र में क्या लिखा है? मैंने उसको बताया की कोई पार्टी गरीबों के कल्याण के लिए वोट मांग रही है तो कोई पार्टी पिछड़ी जाती के लोगों की भलाई के लिए वोट मांग रही है. उस बच्चे का प्रश्न था - "क्या कोई व्यक्ति भारत माता के लिए वोट मांग रहा है क्या?". आज कई लोगों को ये लगता  है की ये  बात सही है - अगर भारत का विकास होगा तो हर वर्ग का विकास होगा और हर व्यक्ति का भला हो जाएगा. लेकिन  अगर वर्ग विशेष के कल्याण की बात की जायेगी  तो देश का विकास नहीं हो  पायेगा. जिस बात को छोटे से बच्चे ने बड़े आराम से मुझसे पूछा - उसी बात को हर व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए मैंने ये लेख लिखा है - शायद इससे हमारे देश का भविष्य बदल सकता है.

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