Friday, January 2, 2015

शिक्षा के बिना हर विकास अधूरा 
आज विकास की बात हो रही है लेकिन विकास में मायने सही नहीं हैं. विकास की परिभाषा अगर आप राष्ट्रीय उपभोग के आंकड़ों से ही देखते रहेंगे तो फिर आप विकास को समझ नहीं पाएंगे. असली विकास तभी है जब हर व्यक्ति का विकास हो रहा है और विकास का सबसे अच्छा माप है शिक्षा और प्रशिक्षण. जब आप विकास के पैमाने को शिक्षा और प्रशिक्षण पर तोलते हैं तो फिर सही अर्थों में आप विकास को माप सकते हैं और लोगों में आ रहे बदलाव से विकास को भी देख सकते हैं. जैसे ही शिक्षा फैलती है, लोगों के जीवन में बदलाव शुरू हो जाता है. शिक्षा को जीवन के हर पहलु से जोड़ने की जरुरत है. चाहे वह संस्कृति हो या हमारे त्योंहार, हमें इन सबको शिक्षा से जोड़ना है ताकि हम लोगों को अपनी जिंदगी और बेहतर बनाने में मदद कर सकें. 

यह अत्यंत ख़ुशी की बात है की हमारे देश के नीति निर्धारकों को यह समझ आ गया है की विकास के लिए छोटे छोटे कदम उठाने की जरुरत है, कदम छोटे हों, पर हर व्यक्ति की भागीदारी हो, जान-भागीदारी ही विकास को सुनिश्चित करती है. जिस दिन हर व्यक्ति को विकास नजर आने लगेगा तभी विकास की शुरुआत होगी. 

कैसे मनाएं ये त्योंहार 
त्योंहार वो होता है जो आप में उल्लास और ख़ुशी भर दे. इसको मानते मानते आप अपनों से और जुड़ जाते हैं और जीवन में एक नयी सुबह पाते हैं. आपको अपने रिश्तेदारों से जोड़ने ही तो आते हैं ये त्योंहार. आजकल नए जमानें में हम अपना ज्यादातर समय दफ्तर में बिताते हैं तो अब ये त्योंहार दफ्तर के हमारे साथियों को भी जोड़ सके तो मजा आ जाये. इस बार क्या आप दफ्तर में भी त्योंहार मानाने की सोच सकते हैं? शायद हा - क्योंकि शुरुआत तो हो गयी है. 

तयारी एक अनोखी दिवाली की 
दिवाली आ रही है. दशहरा और दिवाली बुराई पर अच्छे की जीत और प्रगति की तरफ उड़ान की तयारी है. यह सिर्फ एक परंपरा ही नहीं एक सालाना जलसा है जिसका मकसद है कुछ नया करने का ताकि हम अपने काम को और बेहतर बना सकें. इस बार दिवाली के मोके पर कुछ नया शुरू हो रहा है. सबसे बड़ी बात है स्वछता अभियान 

साफ़ सफाई का अद्भुत कार्य
दिवाली पर हर घर में साफ़ सफाई की परंपरा है. हर व्यक्ति अपने घर को नया सा बना लेता है और साफ़ सफाई कर के उसको चमका देता है. इसी से तो जीवन में खुशियां आती है. इस बार भारत के प्रधान मंत्री जी ने हर सड़क, हर मोहल्ले और हर दफ्तर में भी साफ़ सफाई की एक नै शुरुआत कर दी है. अब यह सफाई की व्यवस्था चालू रहनी चाहिए. यही तो असली दिवाली है. इस प्रक्रिया में विद्यार्थियों की भागीदारी जरुरी है. शिक्षण संस्थाओं को मिल कर इस कार्य को अंजाम देना चाहिए. 

हर राष्ट्रीय मिशन  के आयोजन में  शिक्षकों की भागीदारी जरुरी 
स्कूलों की भागीदारी और शिक्षकों के योगदान से हर राष्ट्रीय कार्यक्रम सफल हुआ है. चाहे वह जनगणना हो या चुनाव, शिक्षकों का योगदान अतुलनीय है. शिक्षक सिर्फ ज्ञान ही नहीं देते है उसको अमल में लाना भी सीखते हैं. शिक्षक सिर्फ शिक्षा ही प्रदान नहीं करते, वे लोगों के जीवन को बदलने का काम भी करते हैं. शिक्षा के साथ वे आस पास रहने वाले लोगों की मदद कर के उनके जीवन में एक नया सवेरा लाते हैं. शिक्षण संस्थाएं जब तक समाज से जुड़ कर काम नहीं करेगी, वे समाज के लिए नहीं बल्कि किसी और उद्देश्य के लिए काम करेगी. गुजरात में पोपट भाई देवलुक नामक एक शिक्षक ने एक गाव को बदल कर रख दिया. घोघा तालुका में जूना पदार स्कुल में जब वे गए तो वे अकेले शिक्षक थे और कोई विद्यार्थी नहीं थे. वे घर घर गए और अनुरोध किया और शिक्षा का महत्त्व समझाया. गाव के लोगों की मदद की तब लोगों ने उनकी बात मानी और अपने बच्चों को स्कुल भेजना शुरू किया. फिर तो देखते ही देखते गाव की तस्वीर बदल गयी. जहाँ जहाँ भी शिक्षक किसी कार्यक्रम से जुड़े हैं, वह कार्यक्रम राष्ट्रीय आंदोलन बन गया है.  प्रोफ़ेसर पि सी जैन ने राजस्थान में स्कॉउट कार्यक्रम द्वारा एक दिन में एक घंटे में ११ लाख से ज्यादा पेड़ लगाकर एक अद्भुत कार्य किया था. अब इन्तजार है की इस बार और हर बार दशहरा - दिवाली पर शिक्षक कैसे हर विद्यार्थी को स्वछता आंदोलन से जोड़ पाते हैं. 

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