Monday, January 26, 2015

Diversity in thoughts and culture must be passed on to the students

विद्यार्थियों को सोम्पिये  विविधता की संस्कृति


हमारा देश विविधता की संस्कृति के लिए जाना जाता है. विविधता की इस भूमि में अलग अलग विचारों वाले लोग एक साथ आपसी सामंजस्य बनाये हुए रह सकते हैं. इस विविधता की भूमि में विद्यार्थी तरह तरह के विचार देखते हैं और विविध संस्कृतियों को देख कर उनमे स्वतंत्र दृष्टिकोण विकसित होता है. यह विविधता की संस्कृति हमारी सबसे बड़ी ताकत है और इस को बचने के हर संभव प्रयास होने चाहिए. सिर्फ अलग अलग धर्म और अलग अलग भाषाओँ को पनाह देने से विविधता की संस्कृति नहीं बढ़ती. यह एक वैचारिक आंदोलन हैं जिसमे हम हर द्रिस्टीकोण को देखने और समझने का प्रयास करते हैं और यह मानते हैं की कोई भी विचार अंतिम नहीं है. वैचारिक स्तर पर विकास एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है और जब भी कोई यह मान लेता है की वो ही सर्वज्ञ है या दूसरे लोग सब गलत है तो फिर मान लीजिये विकास की यह यात्रा ठप्प हो गयी है. 


क्या कट्टरवाद बढ़ रहा है? 
किसी भी प्रकार का कट्टरवाद (चाहे वह धार्मिक कट्टरवाद हो या वैचारिक कट्टरवाद) हमारे देश और हमारी संस्कृति के लिए हानि करक है. यह कट्टरवाद किसी भी रूप में प्रकट हो तो उसको एक बिमारी के रूप में देख कर हमें तुरंत सुधर के लिए प्रयास शुरू करने चाहिए. हमें इस मामले में सबसे ज्यादा चुस्ती दिखने की जरुरत है. 

तमिल लेखक पेरुमल मुरुगन की त्रासदी 
हाल ही में तमिल लेखक पेरुमल मुरुगन को अपने एक उपन्यास का विरोध झेलना पड़ा. उनको अपना उपन्यास वापस लेना पड़ा. उन्होंने दुखी हो कर हमेशा के लिए लेखन छोड़ने की घोषणा कर दी. यह घटना हम शिक्षा से जुड़े लोगों के लिए एक सबक है. हमें यह महसूस करना चाहिए की कही यह एक खतरे की घंटी तो नहीं है. कहीं समाज में वैचारिक खुलापन, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रबुद्धता कम तो नहीं हो रही है. यह हमारी बुजदिली होगी की हम किसी भी लेखक या चिंतक को उसके वैचारिक अभिव्यक्ति के प्रयास को समर्थन नहीं दे पाते हैं या कट्टरपंथी ताकतों से दर कर अपनी आवाज दबा देते हैं. जिस जिस देश में वैचारिक विविधता को रोकने वाली ताकतों को पनाह मिलती है उस उस देश का ह्रास शुरू हो जाता है. 


कैसे करें शुरुआत ?  
हर स्कुल और कॉलेज को एक ऐसा प्रयास करना चाहिए की विद्यार्थी विविधता की संस्कृति और वैचारी स्वतंत्रता का आस्वादन ले सके. उनको विविध भाषा, संस्कृति और वैचारिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को अपने विचार रखने और अपनी संस्कृति / विचारधारा के बारे में बताने के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए. इससे विद्यार्थियों को विविधता की संस्कृति से रूबरू होने का मौका मिलेगा और उनमे चेतना का जागरण होगा. 

सांस्कृतिक कार्यक्रमों से शुरुआत करें
जब भी सांस्कृतिक कार्यक्रम हो, तो यह प्रयास करें की अलग अलग राज्यों के लोग अपनी संस्कृति को प्रस्तुत कर सकें जैसे पंजाब के लोग भंगड़ा प्रस्तुत कर अपनी संस्कृति के बारे में बताएं. ये एक शुरुआत होगी. फिर इसी प्रकार से बौद्धिक चेतना के क्षेत्र में विविध विचारधारा के लोगों को परिचर्चा के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए. 

वैचारिक द्वन्द के मेरे यादगार अनुभव 
जब में एम बी ऐ की पढाई कर रहा था तो सौभाग्य से उस समय वैचारिक विविधता और वाद-विवाद को प्रोत्साहन देने की संस्कृति थी.  हमारे प्राचार्य प्रोफेसर रवि टिक्कू नेहरू के समाजवाद से प्रभावित थे और हमारे निदेशक प्रोफेसर मोहन लाल मिश्र निजी क्षेत्र के पक्षधर थे. नीतिगत मामलों में दोनों के विचार अलग अलग होने का हमको बहुत फायदा मिला. क्योंकि ये दोनों लोग विविध विचारधाराओं को सिर्फ अभिव्यक्त ही नहीं करते थे, परन्तु वाद-विवाद और परिचर्चा के लिए एक बेहतरीन माहौल भी बनाते थे. जब भी सेमिनार या परिचर्चा होती थी तब विविध विचारधाराओं का संगम होता था. वाद विवाद को प्रोत्साहित करने की नीति के कारण विद्यार्थियों को भी वैचारिक विविधता के अंदर डुबकी लगाने का मौका मिलता था. 

सारांश : 

मैं हर विद्यालय - महाविद्यालय से अनुरोध करता हूँ की वैचारिक बहस (वाद-विवाद), परिचर्चा, और चिंतन को बढ़ावा देने के लिए प्रयास शुरू करें और एक ऐसा माहौल शुरू करें जिसमे विद्यार्थियों को हर वैचारिक द्रिस्टीकोण को गहराई से समझने का मौका मिले और अपने स्वयं के विचार अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता का आनंद मिले. हर व्यक्ति निडर और निर्भीक हो कर सच्चाई के अपने पक्ष को प्रस्तुत कर सके और सच्चाई को गहराई से समझने की दिशा में आगे बढ़ सके और विरोध करने वालों से भी आपसी सौहार्द के माहोल में चर्चा कर सके. 

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