कैसे सिखाते हैं आप अंग्रेजी : डरा कर या प्रोत्साहन से
एक भाषा का अनावश्यक आतंक और गुलाम मनोवृति
कहते हैं की अगर हम एक भाषा में दक्ष हों तो दूसरी भाषा सीखना आसान हो जाता है. भाषा तो जीवन जीने का तरीका है, हर भाषा आसान होती है अगर हम इस को अपनी सोच में उतार सकें. ‘इंग्लिशविंग्लिश’ नामक फिल्म देखते हुआ मुझे अपने बचपन की याद आ गयी. इस फिल्म में दो बाते दर्शायी गयी है : १.अंग्रेजी न जानने पर होने वाला हीन भाव २. अंग्रेजी सिखाने वाले अध्यापक द्वारा अंग्रेजी बोलने हेतु प्रोत्साहन देनाऔर एक सरल व्यवस्था से अंग्रेजी सिखाना. पहली बात पर आप सब ने गौर किया होगा लेकिन दूसरी बात है जिस पर गौर देने की खास जरुरत है, खास कर शिक्षा से जुड़े हुए लोगों को तो इस इस पर विशेष जोर देना चाहिए
जब में कक्षा ११ में था तब मेरे मन में अंग्रेजी के प्रति विद्रोह भरा हुआ था. मैं अपने साथी विद्यार्थियों के साथअक्सर बात किया करता था की अगर अंग्रेजी हटा दी जाए तो पठाई कितनी सुगम हो सकती है. हमारी कक्षा कोअंग्रेजी हर साल आधा कर देती थी. कई फ़ैल हो जाते थे तो कई हिम्मत हार कर मैदान छोड़ देते थे. अंग्रेजी केअध्यापक अंग्रेजी का इतना दर बैठते थे की रटने के आलावा कुछ सूझता ही नहीं था. ग्रामर को कितना भी रटलोफिर भी धोखा दे जाती थी. ११ वि तक की पठाई की बाद भी अंग्रेजी तो कुछ पल्ले ही नहीं पड़ती थी. जो बच्चे अंग्रेजीभाषी परिवारों से आते थे उनको विशेष तबज्जो मिलती थी और वे ही विद्यार्थी आराम से शिखर पर पहुँच जाते थे.अंग्रेजी ने ऐसा खौफ पैदा कर दिया था की आगे पढ़ने की इच्छा ही खत्म हो गयी थी. चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने कीइच्छा भी इसी कारण दबा दी क्योंकि किताबें अंग्रेजी में थी. एकमात्र रहत की आशा यह थी की कॉलेज में अंग्रेजीहमारा पीछा छोड़ने वाली थी. अतः हम सभी विद्यार्थी कॉलेज का इन्तजार कर रहे थे. राम राम कर के ११वि पूरी हुईऔर कॉलेज में प्रवेश लिया और राहत की सांस ली.
मैंने अपने स्कुल में अनेक प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को अपना अधिकांश समय अंग्रेजी के साथ जूझते हुए देखा है.जो विद्यार्थी अंग्रेजी के माहौल में रहे, उनकी तो चांदी और जो अंग्रेजी सीखना चाहते थे उनके सामने पहाड़ जैसीचुनौतियां. अंग्रेजी के अध्यापक उसे इतना मुश्किल बना देते थे की जब भी कुछ बोलो तो मुंह से गलत ही निकलताथा. कभी ग्रामर की गलती, कभी उच्चारण की गलती, कभी शब्द ही नहीं मिलते तो कभी
कैसे छूटा मेरा अंग्रेजी से भय
१९८६ में बी.कॉम करने के बाद रामपुरिया कॉलेज में प्रोफ़ेसर एम आर खत्री साहब से मुलाकात हुई. उन्होंने ४५ दिनका (३ महीने का) एक नया कोर्स शुरू किया था. यह कोर्स कम्मुनिकेटिव इंग्लिश का था. मैंने हिम्मत कर के इसकोर्स में प्रवेश लिया. प्रोफ़ेसर खत्री ने चार बातें कही : - १. अंग्रेजी का भय छोड़ दो, २. आप लोग आपस में अंग्रेजी मेंबात करो, गलत सही की परवाह मत करो, ३. डिक्शनरी हमेशा अपनी जेब में रखो, रोज २०-३० नए शब्द सीखो ४.मन में यह सोचो की आप को अंग्रेजी आती है और आप अंग्रेजी में ही सोचने की कोशिश करो. उनकी कक्षाएं आमकक्षाओं से बिलकुल अलग होती थी. वे अपना अधिकांश समय हमें प्रेरित करने में लगा देते थे. वे हमें बहुत बोलनेका मौका देते थे. कक्षा भी एक गोल मेज के चारों तरफ लगती थी और नित नए वाद-विवाद आयोजित होते रहतेथे व् समूह चर्चा आयोजित होती रहती थी. हर ५-७ दिन बाद कोई खास मेहमान आता था जिसके साथ हमकोअंग्रेजी में बात करनी होती थी. उन्होंने हमको कहा की कोर्स समाप्त होने पर हम सबको १५-२० मिनट तक अंग्रेजीमें लगातार बोलना पड़ेगा. एक दिन उन्होंने हमको प्राचार्य प्रोफ़ेसर रवि टिक्कू के सामने अंग्रेजी में ५-५ मिनट बोलनेका कार्य भी दे दिया. जो काम में स्नातक तक की पढाई में नहीं कर पाया, वह उन ४५ दिन के कोर्स ने कर डाला. ४५दिन बाद मेने अपने आपको अंग्रेजी के विद्रोही के रूप में नहीं, बल्कि अंग्रेजी सिखाने वाला पाया (उनके अगले बेच मेंमेने भी विद्यार्थियों को अंग्रेजी सीखना पढ़ाया). ये ४५ दिन मेरी जिंदगी में पहले आ गए होते तो शायद में अपनीस्कुल में ज्यादा अच्छे से पढाई कर पाता और अंग्रेजी की पुस्तकों को पढ़ने में दिक्कत नहीं आती. पुराने अंग्रेजी केगद्य और पद्य जो हमेशा मुश्किल लगते थे अब बड़े अासान लगने लगे परन्तु अब बहुत देर हो चुकी थी . मेरेअंदर का सारा डर दूर हो गया और मैंने अपने आप को आत्मविश्वास से भरा पाया. उसके बाद मुझे कई विद्यालयोंमें अंग्रेजी शिक्षकों की नियुक्ति हेतु साक्षात्कार लेने का मौका मिला. मैंने हमेशा यही प्रश्न किया की क्या आपअंग्रेजी को रुचिकर तरीके से सीखा सकते हैं?
मैं आज भी देश में वही हाल देख रहा हूँ जो मेरे बचपन में थे. आज भी मैं विद्यार्थियों को छटपटाते हुए देख रहा हूँ. मैंआज भी यही सोच रहा हूँ की हम हमारे विद्यार्थियों की मदद करने के लिए कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाते. आपहम सभी को यह कोशिश करनी है की किस प्रकार हम अंग्रेजी की पढाई सरल और सुगम बना सकें ताकिविद्यार्थियों को यह एक बोझ नहीं लगे
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