Saturday, January 3, 2015


क्या आप सामजिक ज्ञान रटाते हैं?
भारत की अधिकाँश स्कूलों में नागरिक शाश्त्र व् सामजिक ज्ञान को वैसे नहीं सिखाया जाता है जैसे सिखाया जाना चाहिए. कैसे सिखाया जाना चाहिए? मैं शुरुआत करता हूँ बाल  संसद से. तिलोनिया (राजस्थान में अलवर में स्थित) में बेयरफुट कॉलेज से जुड़ी रात्रि कालीन स्कूलों में विद्यार्थियों की संसद चलती है. विद्यार्थी अपने प्राइम मिनिस्टर व् अन्य प्रतिनिधि चुनते हैं. लड़कियों के लिए आरक्षण है. विद्यार्थी बाकायदा चुनाव की तयारी करते हैं, चुनाव होता है और फिर बाकायदा संसद की गतिविधियाँ होती है. विद्यार्थी निर्णय  लेने  की प्रक्रिया सीखते  हैं और प्रजातंत्र क्या होता है यह समझते हैं. इस  प्रक्रिया से गुजरने वाले विद्यार्थी बाद में अपने जीवन में प्रजातंत्र को ज्यादा अच्छी तरह से समझ पाते हैं. विद्यार्थी समूह में निर्णय लेना, सबके भले के लिए अपने हित कुर्बान करना और सबके हितों के लिए आवाज उठाना सीखते हैं. विद्यार्थी सच्चाई और न्याय के निर्णय लेना सीखते हैं. अगर किसी अध्यापक से कोई गलती हो जाती है तो विद्यार्थियों की संसद उस पर तुरंत निर्णय लेती है. विद्यार्थी एक दूसरे को समझते हैं और जिम्म्मेदार नागरिक का फर्ज समझते हैं. यही सामाजिग ज्ञान की सच्ची पाठशाला  है. बीकानेर में विद्या कुञ्ज नामक स्कुल में गरीब परिवारों के विद्यार्थी पढ़ने आते हैं लेकिन वे विद्यार्थी प्रजातान्त्रिक व्यवस्थाओं के कारण इतने परिपक्व हो जाते हैं की वे अपने सभी निर्णय स्वयं लेते हैं. स्कुल के सभी आयोजन विद्यार्थी आयोजित करते हैं. जब १५ अगस्त या २६ जनवरी के आयोजन होते हैं तो विद्यार्थियों का आयोजन देखते ही बनता है. कोई भी विद्यार्थी देर से नहीं आता. हर विद्यार्थी खुद अनुशाशन के लिए जिम्मेदार होता है. आप स्कुल में कचरा फेंक कर देखिये - तुरंत कोई विद्यार्थी आएगा और उस कचरे को उठा कर कचरा पात्र में दाल देगा. विद्या कुञ्ज का दूँन स्कुल की तरह नाम या फीस भले ही न हो परन्तु जिस प्रकार से यह स्कुल विद्यार्थियों को सामजिक ज्ञान सिखाती है वह काबिले तारीफ़ है.
 बात करते हैं अलग अलग सामजिक व्यवस्थाओं की. जब राज तंत्र था तब राजा लोग अपने उत्तराधिकारी को वर्षों तक प्रशिक्षण दिलाया करते थे. उनका मकसद यह रहता था की उनके बाद उनका उत्तराधिकारी श्रेष्ठ शाशन करे. राजतंत्र की सफलता इस बात पर होती थी की राजा प्रशासन में कितने दक्ष हैं और राजा प्रशासन को गुरुकुल में जाकर वर्षों तक सीख कर आता था. आज प्रजातंत्र है यानी प्रजा को ही शासन चलना है लेकिन क्या प्रजा इस हेतु प्रशिक्षण ले रही है? प्रशिक्षण का कार्य करवाने की जिम्मेदारी है विद्यालयों और महाविद्यालयों की. क्या वे यह कार्य कर पा रहें हैं? शक्ति को हासिल करने हेतु हर व्यक्ति उतावला है. प्रजातान्त्रिक  व्यवस्था में शक्ति कैसे हासिल की जाए यह भी विद्यार्थी को सीखना चाहिए. शक्ति और सत्ता की लड़ाई  और इसका समाज के विकास हेतु उपयोग ही हमारे जीवन की वास्तविकता है. जातिगत और संकीर्ण दायरों से उठना आसान नहीं हैं. लेकिन पाठशाला तो वही है जहाँ विद्यार्थी इन सब से ऊपर उठ कर सच्चे अर्थों में प्रजातंत्र और देश के निर्माण की तयारी में जुट सकता है. संकीर्ण हितों के चलते आदमी ने आदमी को मारा है और पाठशाला के ज्ञान से  आदमी को आदमी ने ऊपर उठाना सीखा है. रवांडा नामक एक देश में १९९४ में १० लाख लोगों की हत्या कर दी गई थी - यह सब संकीर्ण सोच  और सत्ता संघर्ष का नतीजा था. आज उसी देश में ज्ञान की पाठशाला के कारण लोग हिल मिल कर विकास की बात सोच रहें हैं.  
एक महाविद्यालय के प्राचार्य ने चुनाव व्यवस्था और छात्र राजनीति को व्यवस्थित करने की बात सोची लेकिन उसको सबसे यही जवाब मिला की यह सर्फ गुंडा गर्दी की व्यवस्था है इस में कोईहस्तक्षेप नहीं करना है. जो कार्य बुनकर रॉय और उनके साथी तिलोनिया में कर सकते हैं उसको करने के लिए एक विश्वास और इच्छा शक्ति चाहिए. अगर हम यह नहीं कर सकते हैं तो फिर आने वाले वर्षों में हमें नेतृत्व का अकाल झेलना पड़ेगा और गुंडा गर्दी और अराजकता को सहन करना पड़ेगा. हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी यही है की हम हमारे स्कुल और कॉलेज में प्रजातान्त्रिक व्यवस्थाओं और सामाजिक चेतना को सिखाएं न की रटायें .
आजादी से भी ज्यादा जरुरी है आजादी को इस्तेमाल करने की कला और उस  हेतु प्रशिक्षण. आजादी से भी ज्यादा जरुरी है की हम आजादी को सृजनशीलता में प्रयोग में लाएं. एक कला सीखने के लिए एक मंच चाहिए. गूगल कंपनी में हर कर्मचारी को यह छूट होती है की वह अपने २०% समय को ऐसे कार्य में लगाए जो उसका मनपसंद हो. गूगल कम्पनी के अधिकांश आविष्कार इन्ही २०% कार्य-घंटों से आते हैं. कर्मचारी खुश और संगठन को अत्यधिक मुनाफा. गिजुभाई बधेका ने अपनी स्कुल में विद्यार्थियों को यह छूट दे रखी थी की वे वो विषय पढ़ें जो वे पढ़ना चाहते हैं. हर स्कुल और कॉलेज को विद्यार्थियों को यह मंच देना चाहिए. जिस दिन विद्यार्थी अपनी मर्जी से किसी सृजनशील कार्य को करने लग जाएंगे उस दिन से वे आजादी के मालिक बन जाएंगे. हमारे विश्वविद्यालय में हर विद्यार्थी को एक क्लब का सदस्य बनने का मौका मिलता है. उसकी  रूचि के अनुसार वह एक क्लब का सदस्य बन सकता है. उस क्लब में वह वो कार्य करता है जोजो उसका मनपसंद हो. इस हेतु उसको सप्ताह में दो कालांश मिलते हैं. इस प्रकार विद्यार्थी अपनी मनपसंद हॉबी को अपने आप को समर्पित कर पाता  है. हर कॉलेज में राष्ट्रीय सेवा योजना और इस प्रकार के मंच इसी लिए होते हैं ताकि विद्यार्थी अपनी रूचि के कार्य करे. इस प्रकार के मंच का व्यवस्थित सञ्चालन ही सामजिक ज्ञान की शिक्षा है. कई बार हम अपने रूचि के कार्य करते करते उसी में अपने रोजगार को बना लते हैं. कई बार हमारी हॉबी ही हमारा रोजगार बन जाती है. इससे अच्छा क्या होगा. हर स्कुल और कॉलेज समाज सेवा और सामाजिक कार्य को इस प्रकार से प्रस्तुत करे की विद्यार्थी इसकी गहराई तक जा सके और उसको इस कार्य में मजा आने लगे. फिर तो उसका पूरा जीवन की देश के नाम हो जाएगा. संजोय घोष ने राष्ट्रीय सेवा योजना के प्रोजेक्ट के तहत उनलोगों के लिए कार्य किया जिनको उनकी (संजोय घोष की)ज्यादा जरूरत थी. फिर उनके मन में समाज सेवा का जूनून पैदा हो गया. उनका आईआईएम अहमदाबाद आदि सभी प्रतिष्ठित संस्थाओं में चयन हो गया लेकिन उन्होंने आनंद के इंस्टिट्यूट ऑफ़ रूरल मैनेजमेंट में इसी लिए प्रवेश लिया ताकि वे गावों की सेवा कर सकें. फिर उन्होंने बड़ी कंपनियों में काम करने की जगह उरमूल से जुड़ कर गावों के विकास हेतु अपने आप को समर्पित कर दिया.
मेरी पूरी चर्चा से निम्न बातें अगर आप को ठीक लगे तो आगे बढाइये  : -
  • सामजिक ज्ञान उतना ही जरुरी है जितना की अंग्रेजी गणित और विज्ञानं. परंतु जिस प्रकार विज्ञानं की पढाई प्रयोगशाला के बिना संभव नहीं होती है वैसे ही सामजिक ज्ञान की पढाई को जीवन में उतारने हेतु उसके व्यवहारिक पक्ष को मजबूत बनाना पड़ेगा ताकि विद्यार्थी उसको अपने जीवन में उतारना सीखे
  • प्रजातंत्र, शक्ति, सत्ता, और सामूहिक कार्य शैली हम सबको सीखनी चाहिए और जिस स्कुल में ये सब सिखाये जाते हैं वही सच्चे अर्थ में प्रजातंत्र की पाठशाला है.
  • विद्यार्थी को अपनी आजादी को सृजनशील कार्य में लगाना सीखना चाहिए. जिस दिन हॉबी ही आजीविका का जरिया बन जायेगी, वह विद्यार्थी पूरी जिंदग़ी जूनून से कार्य करेगा और सफलता के उच्छ्तम् शिखर तक पहुँच पायेगा. 

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