Monday, January 26, 2015

NAMO REPUBLIC

नमो गणतंत्र 

(गणतंत्र दिवस विशेष )
कहीं इतिहास के पन्नों पर न खो जाए
की किसी रोज मेरे देश में भी लोग हँसते गाते थे. 
कहीं किसी और को पता न चल जाए 
मेरे देश में ऐसे भी बच्चे  है भूखे पेट
कहीं  शर्म न आ जाए ये देख कर
हुनर के बिना ही रही १८ साल की पढ़ाई . 
आज भी जिन्दा है सपने आजाद और बिस्मिल के  
क्योंकि आप भी तो वाही चाहते हैं. 
कहाँ गया देश का पैसा, विकास के रस्ते पर क्यों है  फाटक , 
जब लोग  आवाज उढ़ायेंगे, क्या तभी  बदलेंगे  बजट  

विकास के आंकड़ों का मोहताज नहीं ये देश 

देश का त्योंहार आ गया. एक बार फिर वक्त आ गया है की हम देश की किस्मत और देश के कर्णधारों की तरफ देखें और इस देश की तरक्की से भी ज्यादा अहम सवाल उड़ाएं. आज हर व्यक्ति को विकास दर और प्रगति के आंकड़े भ्रम में दाल रहे हैं. प्रश्न है की विकास के मायने क्या हैं. वह विकास किस काम का जिसका परिणाम एक तरफ गगनचुम्बी इमारते हैं और दूसरी तरफ भूखे लोग हैं. विकास की परिभाषा अगर सिर्फ औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने से है तो ऐसी परिभाषा का तिरस्कार कीजिये क्योंकि आप उस देश से हैं जहाँ पर मानवीय मूल्यों को भौतिक विकास के इन आंकड़ों से ऊपर रखना आज नहीं हजारों वर्हों से सिखाया जाता रहा है. आप उस देश की परम्परों से जुड़े हैं जहाँ पर मानवीय मूल्यों के लिए राम के छोटे भाई भारत ने राजसिंहासन ढुकरा दिया, जहाँ पन्ना धा ने अपने पुत्र को भी देश के लिए अर्पित कर दिया, जहाँ महर्षि दधीचि ने अपने जीवन को भी स्वेच्छा से त्याग दिया. तो फिर इन विकास की गाथाओं और शेयर बाजार की उछाल का क्या मायने. 

किधर जा रहा है हमारा पैसा ? 
पिछले वर्ष ४००० करोड़ रूपये  गरीब लोगों के लिए आवासीय कालोनी बनाने के लिए रखा गया. क्या हुआ उनका? अगर लोक-कल्याणकारी सरकार और लोक-कल्याणकारी संगठन एक साथ काम करें तो क्या यह असंभव है की हम हमारे देश के करोड़ों लोगों को बिना छत के देखें. पिछले वर्ष ७०६० करोड़ रूपये १०० स्मार्ट शहर बनाने के लिए तय किये गए, क्या हुआ उन स्मार्ट शहरों का? पिछले वर्ष यह घोषणा की गयी थी की १०००० करोड़ रुपयों से एक स्टार्ट-अप फण्ड बनाया जाएगा जिससे नए उद्यमियों को मदद दी जायेगी ताकि वे अपना स्वरोजगार शुरू कर सकें. क्या हुआ उसका?  पिछले बजट में एक नए टीवी चैनल कृषि चैनल की घोषणा की गयी थी जिसको गाव गाव दिखा कर किसान भाईओं की मदद की जानी थी. क्या हुआ उसका. पिछले बजट में सरकार ने कहा था की ऍफ़ सी आई का सुधार करेंगे और फसल के रख रखाव के लिए बड़े पैमाने पर गोदाम (वेयरहाउस) बनाये जाएंगे ताकि किसानों को मदद मिले. क्या हुआ? सरकार ने कहा था की एक्सपेंडिचर मैनेजमेंट कमीशन (सरकारी खर्च की जांच करने वाला आयोग) स्थापित किया जायेगे, क्या हुआ? केंद्रीय सकरार एक  इ-गवर्नेंस का पोर्टल इ-बिज शुरू करने वाली थी जिससे सभी व्यक्तियों के सरकारी महकमों के चक्कर ख़त्म हो जाएंगे (ऐसा कहा गया था) और (शायद ऐसा होता तो भ्रस्टाचार भी कम होता). क्या हुआ? बेटी बचाओ आंदोलन, शिक्षक प्रशिक्षण के लिए प्रावधान, गाव गाव के बच्चों को क्लिक (एक ऑनलाइन शिक्षा का चैनल) के जरिये श्रेष्ठ शिक्षा की बात भी सुनी थी. सरकार ने डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिए 16 नए मेडिकल कॉलेज खोलने का आश्वासन दिया था (जिसमे से ४ तो आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस ही होने थे). टैक्स की दर कम करने की बात काफी समय से सुन रहा हूँ. पिछले बजट में वित्त मंत्री ने कहा था की टैक्स की सभी व्यवस्थाओं का खत्म कर के एक सरल सा गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स शुरू किया जाएगा और एक उम्मीद बानी थी की टैक्स का सरलीकरण हो जाएगा. स्किल  डेवलपमेंट के लिए बड़ी बड़ी योजनाएं सुनी थी. क्या हुआ. मैं ऐसे लिखता ही चला जाऊँगा तो अच्छा नहीं होगा. प्रश्न है की आप भी अपनी आवाज उठाईए. 

कौन ले जाएगा मेरी चिठियां वित्त मंत्री के नाम 
कुछ दिन पहले सभी आईटी कंपनिया वित्त मंत्री से मिली और बजट में डेटा सेंटर शुरू करने के लिए फायदे देने के लिए अनुरोध किया. आज जिस बहुराष्ट्रीय कम्पनी को देखो वो वित्त मंत्री को ज्ञापन दे रही है. जितनी भी बड़ी कम्पनियाँ है वे अपने हितों के लिए अपने ज्ञापन दे रहे हैं. आम आदमी के हितों के लिए कौनज्ञापन दे रहा है? देश में आज भी ऐसे गाव हैं जहा स्कुल नहीं लगते, स्कुल हैं तो ऐसे जिसमे  भवन जैसा कुछ भी नहीं. व्यावसायिक शिक्षा लेने वाले व्यक्तियों को आगे प्रतियोगी परीक्षा में बैठने से वंचित किया गया है (एक तरफ सरकार कहती है की व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा दिया जाएगा). अगर किसी भी विकसित देश का इतिहास देखेंगे तो पाएंगे की वहां पर व्यावसायिक शिक्षा को तबज्जु दी गयी है और तभी स्वरोजगार को बढ़ावा मिला है. हमारे देश की सरकार क्या करेगी, और कब करेगी? 

किसी विकसित देश के राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए लगने वाले हजारों कैमरों की बात करने से ज्यादा जरुरी है की हम बात करें की आने वाले बजट में आम भारतीय की भलाई के लिए वित्त मंत्री से खरी खरी बात करने वाला कौन है?  पडोसी देश पाकिस्तान और जापान की तुलना कीजिये. पाकिस्तान ने एक तिहाई बजट हथियारों पर खर्च कर दिया, और जापान ने एक तिहाई बजट बच्चों, उनकी पढ़ाई, उनकी व्यावसायिक और औद्योगिक शिक्षा पर खर्चा किया और पिछले ५० वर्षों का परिणाम आप के सामने हैं. आप बजट को कैसे खर्च करते हैं वह तय करता है की आप देश को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं. हमारे देश में बजट में बाल स्वास्थ्य पर .५%, बाल शिक्षा पर ३%, बाल सुरक्षा पर .०३%, बाल विकास पर .८% प्रावधान होता है. आप इस की तुलना अन्य मदों से करिये. आप अपने भविस्य के लिए क्या कर रहे हैं आप स्वयं समझ जाएंगे. आज भी अनेक बालक कुपोषण, स्वास्थ्य सेवा के अभाव और ऐसे ही अन्य कारणों से .... (आप समझ सकते हैं की मैं क्या लिखना चाहता हूँ).   पिछले बजट में घोषणा के बावजूद भी आज भी अनेक ऐसे विद्यालय हैं जहाँ पर छात्राओं के लिए शौचालय नहीं है. आप किस विकास की बात कर रहे हैं? 

दुनिया में ऐसे कई देश हैं जहाँ सरकारों ने आवश्यकता पड़ने पर देश के हिट में सकल राष्ट्रीय आज से भी ज्यादा ऋण लिया है. हम भी सरकार का स्वागत करेंगे अगर जरुरत पड़ती है तो सरकार जितना चाहे ऋण ले और हर व्यक्ति सरकारी प्रयास में मदद करेगा परन्तु प्रश्न है की सरकार कब मानेगी की छात्राओं के लिए शौचालय पंचवर्षीय योजना नहीं बल्कि एक महीने की योजना से बनना चाहिए, गरीबों के लिए आवासीय योजनाएं कागजी नहीं बल्कि हकीकत में होनी चाहिए, और बाल स्वास्थ्य के लिए अस्पतालों और तकनीक का प्रसारण युद्ध स्तर पर होना चाहिए. सरकारी प्राथमिकताओं की दिशा बदलने के लिए आप को ही आवाज उठानी पड़ेगी क्योंकि अब विपक्ष तो मोन ले कर बैठा है. . 

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