Friday, January 2, 2015

शिक्षा : पैसा नहीं इच्छाशक्ति चाहिए 

आखिर हम पढाई से क्या चाहते हैं? 
पढाई जीवन के निर्माण की आधारशिला है या सच्चे अर्थ में नीव है. सभ्यता के अंकुर हम पढाई के माध्यम से ही फैला सकते हैं. दुनिया में जहाँ जहाँ पढाई को रोक गया तबाही हुई और जहाँ जहाँ पढाई को समर्थन दिया गया - प्रगति और उल्लास का माहौल बना. 

जीवन की चुनौतियों की तैयारी
हर शिक्षण संस्था को विद्यार्थियों को जीवन की चुनौतियों के लिए तैयार करना चाहिए. 
दिल्ली में हाल मैं एक शेर के पिंजड़े में एक आदमी गिर गया और शेर उसको खा गया. कितने दुःख की बात थी की आस पास खड़े लोग कुछ नहीं कर पाये सिवाय हल्ला मचने के या मोबाइल से वीडियो क्लिप बनाने और उसको लोगों को भेजने के. मैंने छोटे छोटे बच्चों को यह पूछा की शेर से बचने के लिए आप क्या कर सकते थे?  एक छोटा बालक बोला - "मेरी गली के पिल्लों को उस गधे में फेंक देता - वे शेर को भोंक भोंक कर उसको परेशान देते". एक अन्य बालक बोला "मैं बेहोश करने वाली पिस्तौल ल कर उसको चला कर शेर को बेहोश कर देता" एक अन्य बालक बोला :" मैं शेर से लड़ने के लिए कोई और जानवर पिंजरे में दाल देता ताकि दोनों लड़ते रहते तब तक इस आदमी को बचने के लिए रस्सी फैंक देता." विद्यार्थियों को इस प्रकार के प्रश्नों से हम जीवन की चुनौतियों के लिए तैयार कर एक बेहतर भविष्य की नीव रख सकते हैं. 

शिक्षा में निवेश कैसा हो
देश में आधारभूत ढांचे के निर्माण की बात हो रही है, परन्तु विद्यार्थियों की शिक्षा के लिए आधारभूत ढांचे की कोई बात नहीं कर रहा है. आज जरुरत है की हम शिक्षा के महत्त्व, उसकी व्यवस्था और प्रणाली पर निवेश करें. आज जरुरत है की हम फिर से शिक्षा को प्राथमिकता देवें. जब तक हर मोहल्ले, हर गाव, हर गली मैं बाल पुस्तकालय, बाल विज्ञानं-शालाएं, बाल क्रीडांगन व् बाल संसद बनाने की बात लोग नहीं करेंगे तब तक आगे की बात तो हम सोच ही नहीं सकते. विकास की शुरुआत तभी होगी जब हम मुलभुत ढांचे के निर्माण की बात से शुरुआत करेंगे और फिर एक ऐसा माहौल बनाएंगे जिससे लेखकों को बाल कविता, बाल कहानियां और बाल साहित्य सृजन की प्रेरणा मिलेगी और ऐसी परम्पराओं का निर्माण होगा जो बचपन से ही शिक्षा और विकास की नीव रख देगी. इसमें कोई बहुत ज्यादा निवेश नहीं हैं. निवेश है तो हमारी सोच और इच्छा शक्ति का. हाल ही में एक विश्वविद्यालय पर लगभग २५०० करोड़ का निवेश किया जा रहा है जहाँ पर सिर्फ १५ विद्यार्थी और सिर्फ २ पाठ्यक्रम होंगे. मैं ऐसे किसी निवेश की वकालत नहीं करता हूँ. मैं तो गाव में पीपल के गट्टे के पास साइबर-गट्टे की बात करता हूँ जिससे गाव-गाव का बालक अपने गाव के लोक गीत गाकर अपलोड कर सके और दूसरे गाव के बच्चों से बात कर सके और जहाँ पर वो दोस्तों के साथ बैठ कर अख़बार पर चर्चा कर सके. 

शिक्षण की परम्पराओं को बचाईये 
आधुनिकता के नाम पर हमने हमारी पुरानी शिक्षण संस्थाओं को समाप्त कर दिया या उनको इतना नजरअंदाज कर दिया की वे लुप्त हो गयी. अब कहाँ पचि हैं पुरानी ज्ञानशालाएं, पोशालाएं, मार्जा और गुरुकुल. उनके साथ ही शिक्षण की अद्भुत भारतीय परम्पराएँ भी लुप्त हो गयी हैं या धीरे धीरे लुप्त हो रहीं हैं . आधुनिकता के नाम पर शिक्षण की वर्षों से चली आ रही अनेक समृद्ध  परम्पराओं को हम रोज खोते जा रहें हैं. नयी परम्पराएं बना नहीं  प् रहें हैं और पुरानी  परम्पराएं खोते जा रहें. मैं यहाँ पर सिर्फ एक परंपरा की चर्चा करूँगा. जब हम छोटे थे तब राजस्थानी में पहाड़े बोल कर याद किया करते थे. आज वे पहाड़े लुप्त होते जा रहें हैं. उन पहाड़ों को तैयार कर के हमारी पीढ़ी आज भी अपनी रोजमर्रा की जरुरत की जोड़ बाकी कर सकते हैं. लेकिन नयी पीढ़ी को न तो पहाड़े आते हैं न ही " वैदिक गणित" और उनको छोटी छोटी जोड़-बाकी के लिए केलकूटर की जरुरत पड़ती है. 

बचपन - सबसे मजबूत आधारशिला 
हमारा मस्तिष्क हमारी सोच की कार्यशाला है. इसके निर्माण में कई वर्ष लगते हैं. बचपन के अनुभव मस्तिस्क की नीव बनाने वाली परतों का निर्माण करने में सहायक होते हैं. यह एक पुरानी कहावत है की अगर आप किसी बालक को बचपन  से यह सीखते रहते हैं की उसको एक राजा बनना है - तो वह बड़ा हो कर राजा बन के दिखता है. बचपन के संस्कार हमारे जीवन को बनाने में हमें मदद करते हैं. पुराने समय से हमारे यहाँ ऐसे रिवाज हैं जिनका मकसद संस्कार निर्माण हैं और यह संस्कार निर्माण गर्भाधान से शुरू हो जाता है. पुराने समय से ही ऐसी व्यवस्थाएं हैं जिनका मकसद यह है की छोटे बच्चों को पूरा ध्यान, सकारात्मक अभिप्रेरणा और प्रोत्साहन मिले. जो संस्कार बचपन में बन जाते हैं वे कभी बदल नहीं सकते हैं. 
अभी दिल्ली में प्ले स्कुल में हो रही एक घिनौनी घटना के बारे में पढ़ा. अभिभावक निराश हो रहें हैं - कैसे भेजें वे अपने बच्चों को ऐसी प्ले स्कूलों में ? हम किधर जा रहें हैं?  एक मजबूत भारत बनाने के लिए बच्चों के लिए समर्पित शिक्षण संस्थाएं चाहिए. क्या करें उसके लिए? 

भाषा और संस्कृति को बचाईये 
आप एक भाषा में दक्ष हैं तो आप एक शानदार लेखक, रचनाकार, साहित्यकार, कलाकार, और एक सफल व्यक्ति बन सकते हैं. परन्तु आज की दुविधा यह है की हमारे बच्चे न तो मातृ भाषा जानते हैं न ही विदेशी भाषा जानते हैं. आज फिर से जरुरत है की हम विद्यार्थियों को उनकी मातृ भाषा में इतना दक्ष बना देवें की जीवन में हर सफलता उनके कदम चूमे.  

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