Monday, January 26, 2015

restart the entrepreneurship education



फिर से शुरू करो उद्यमिता की पाठशाला 

३००० वर्ष पहले भारत में हर घर में उद्यमिता की पाठशाला चलती थी और हर व्यक्ति अपने बच्चों को उद्यमी बनना सिखाता था. यही कारण था की भारत सोने की चिड़िया था. विगत ६ दशकों में हमने अपने बच्चों को सिर्फ नौकरी के लिए तैयार किया है. आज ये समय आ गया है की हम अपनी गलती को स्वीकारें और फिर से उद्यमिता को प्राथमिकता देना शुरू करें. हमारी किताबों में यह लिखा गया की मुनाफे के लिए काम नहीं करना चाहिए और निजी क्षेत्र सिर्फ शोषण करता है. हमारी पुस्तकों में यह लिखा गया की सिर्फ सरकारी तंत्र ही विकास कर सकता है. आज ६ दशक के बाद हम फिर से एक मोड़ पर आ गए हैं जब हम को विकास के लिए आम आदमी और खास कर निजी क्षेत्र की भागीदारी की जरुरत महसूस हो रही है. आज हमारी ही सरकार यह मान रही है की विकास के लिए जरुरी है की निजी क्षेत्र की भागीदारी हो. आज सभी यह मान रहे हैं की मुनाफा बुरा नहीं है और अगर निजी क्षेत्र आगे आएगा तो विकास ज्यादा तेजी से होगा. आज हम उस मोड़ पर आगये हैं की हम यह मानने लग गए हैं की हर व्यक्ति को उद्यमिता प्रशिक्षण देना चाहिए. यहाँ तक की नौकरी पर रखे जाने वाले कर्मचारियों में भी उद्यमिता द्रिस्टीकोण होना जरुरी माना जा रहा है. इसी उद्यमिता द्रिस्टीकोण के कारण एम बी ऐ कर  के हमारे विद्यार्थी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नौकर बन रहे हैं और उनको अच्छी पगार मिल रही है. लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है वह है देश और समाज की सेवा का. वो फिर से नजरअंदाज हो रहा है. उस क्षेत्र का नाम आजकल सामाजिक उद्यमिता के रूप में प्रचलित है. इस क्षेत्र में बहुत प्रयास की जरुरत है. 

सामजिक उदयमिता की ये नयी पाठशालाएं 
आज कई नयी संस्थाएं और संगठन उभर कर आगे आ रहे हैं जो सामाजिक उदयमिता और सामाजिक परिवर्तन के लिए तयारी करवाते हैं. इन संस्थाओं को इनके शानदार कार्य के कारण लोगों को एक नयी पहचान और प्रशिक्षण देने का मौका मिल रहा है. अनकन्वेंसन नामक एक संस्था उन लोगों को फेलोशिप देती है जो सामाजिक परिवर्तन और सामाजिक विकास के लिए कुछ नया और प्रभावशाली करना चाहते हों. कम्युटिनी नामक एक अन्य संस्था भी इसी तरह के प्रयास कर रही हैं. इन संस्थाओं से जुड़ कर लोग सामाजिक बदलाव लाने और सामाजिक चेतना लाने ले लिए अभिनव प्रयास कर रहे हैं. टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस, नरसी मोनजी इंस्टिट्यूट और कई ऐसे संस्थान आज सामाजिक उद्यमिता का पाठ्यक्रम चला रहे हैं. उनके विद्यार्थी समाज में बदलाव लाने के लिए अभिनव प्रयास कर रहे हैं. 


नए ज़माने के सृजनशील विद्यार्थी 
जयपुर के चिन्मय ने जयपुर से इम्फाल तक साइकिल पर यात्रा की और गाव गाव में अमन और सृजनशीलता का सन्देश पहुँचाया. बम्बई की जुइ गंगन ने नरसी मोनजी से सामाजिक उद्यमिता का पाठ्क्रम पूरा करने के बाद सामाजिक उद्यमिता के क्षेत्र में विलग्रो नमक संस्था के साथ जुड़ कर गाव गाव में सामाजिक उद्यमिता को पहुचाने का प्रयास शुरू किया. उन्होंने "फिर से साइकिल चलाओ" का आंदोलन शुरू किया और लोगों को फिर से साइकिल से जोड़ने का प्रशंशनीय प्रयास किया. ये वे युवा हैं जो चाहते तो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में नौकरी की दौड़ में शामिल हो सकते थे लेकिन इनको सामाजिक उद्यमिता का क्षेत्र बेहतर लगा. आज के युवा फिर से अपनी जड़ों से जुड़ रहे हैं. हमें भी अपने भविष्य के खातिर सामाजिक उद्यमिता को बढ़ावा देना पड़ेगा और सामजिक उद्यमियों को सहारा देना पड़ेगा. 

स्कुल से शुरू हो सामाजिक उद्यमिता की पाठशाला 
श्री ईश्वर भाई पटेल के प्रयासों से स्कूलों में सामाजिक कार्य की कक्षाएं शुरू हुई थी. लेकिन वे इतनी लोकप्रिय नहीं हो पायी. फिर भी उनका बहुत सकारात्मक प्रभाव रहा. उनके साथ ही अब सामाजिक उद्यमिता की सृजनात्मक पढ़ाई भी शुरू होनी चाहिए. इस हेतु प्रयास शुरू होने चाहिए. इन प्रयासों का फायदा मिलेगा जब हम विद्यार्थियों को सामाजिक और सृजनशील काम करते हुए देखेंगे. विद्यार्थियों को सृजनशील कार्यों से जोड़ने में ये प्रयास बहुत प्रभावशाली होंगे. 

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