Thursday, April 23, 2015

गरीबी का अर्थशाश्त्र


गरीबी का अर्थशाश्त्र
आपने बहुत सारे अर्थशाश्त्र के बारे में सुना होगा जैसे मौद्रिक अर्थशाश्त्र, उद्योगिक अर्थशाश्त्र आदि. आज में आप को कुछ ऐसे ही विषय के बारे में बताऊंगा  जिसके बारे में आप को जान कर भी कोई नहीं बताएगा. आप सभी को यही बताया जा रहा है की भारत एक गरीब देश था और अब आमिर देश बन रहा है.  सभी इस बात को मान रहे हैं की हमारा देश गरीब है और गरीब रहेगा. हमें भ्रमित करने वाले आंकड़े यह मानने के लिए मजबूर कर देंगे की हाँ भारत गरीब देश था और गरीब रहेगा. 

आजादी से पहले अधिकाँश किसान फसल का अधिकांश हिस्सा घर पर रखते थे और गाव के लोगों में बाँट ते थे.  वस्तुओं का लेनदेन ज्यादा होता था. मंडियों में उपभोग के लिए लाया जाने वाला सामान कम होता था. लोग बाजार में बने सामन की जगह घर में बना सामान प्रयोग में लाते थे.  हर घर में गाय, बकरी या भेंस होती थी जिससे घर का अर्थशाश्त्र चलता था. हर व्यक्ति हुनर जानता था और अपने बच्चों को भी हुनर सिखाता था.  हिंदी और अन्य भाषाओँ में काम करना हर व्यक्ति को आता था. शिक्षा के लिए मार्जा, पोशाला, ज्ञानशाला और अन्य भारतीय परम्परागत संस्थाए थी और शिक्षा में गणित, भारतीय विज्ञानं, आपसी सम्मान की संस्कृति सिखाई जाती थी . 

हम जिस भारत को गरीब कहते थे, उस गरीब भारत में आज हर व्यक्ति नौकरी का मोहताज है, उसके पास अपना कोई हुनर नहीं है और वह हर चीज बाजार से खरीदता है. उसके बच्चे अपना अधिकाँश समय    विदेशी भाषा  और संस्कृति    सीखने  में लगाते  हैं. विकास के आंकड़ों में इजाफा हुआ है क्योंकि जो उत्पाद पहले मंडी में आती ही नहीं  थी वो भी अब मंडी में आ रही है. चूँकि हर वास्तु बाजार से खरीदी जा रही है अतः जीडीपी तो बढ़नी ही है (पहले अधिकाँश सामान घर पर बनता था अतः वह सामान बाजार की बिक्री में नहीं आता था और जीडीपी की गणना में नहीं आता था). 

विकसित देशों की नजर में भारत आज एक इमर्जिंग इकॉनमी है .इस का मतलब क्या है. इसका मतलब है वो देश जहाँ पर उपभोग तेजी से बढ़ रहा हो. आज भारत का आम आदमी विदेशी वस्तुओं का उपभोग कर रहा है. वो हर रोज विदेशी ब्रांड की वस्तुओं को खरीद रहा है. इस का परिणाम यह है की आज भारत एक इमर्जिंग इकॉनमी बन गया है. 

विकास की बात करें तो हर तरफ आज विकास के चर्चे हैं. हम ये मान रहे हैं की शिक्षा में बेहत्तरिन प्रगति हुई है. अधिकांश उच्च शिक्षा संस्थान पूरी तरह से विदेशी पाठ्यक्रमों पर आधारित और पूरी तरह से विदेशी पुस्तकों से ही पढाई करवाते हैं. भारतीय भाषाओँ में कोई भी ज्ञान का सृजन बंद हो गया है सिर्फ विदेशी पुस्तकों का भारतीय भाषाओँ में अनुवाद हो रहा है. हर भारतीय को विदेश में पढ़ने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. देश के श्रेस्ठं संस्थान जैसे आईआईएम में प्रोफ़ेसर विदेशी केस स्टडी से ही पढाई करवाता है. मुझ जैसे बिरले ही प्रोफ़ेसर हैं जो भारतीय अद्भुत परम्पराओं पर केस स्टडी लिखने का प्रयास करते है (जिनको कोई भी भारतीय संस्थान लागू नहीं करेंगे). विकास की इस तथाकथित आंधी में हमें लगता है की विकास तभी हो पायेगा जब विदेशी संस्थओां और विदेशी कंपनियों को आमंत्रित किया जाएगा. इस देश में व्यापर करने वाले छोटे छोटे व्यापारी के लिए व्यापर करने मुश्किल बना दिया जाता है लेकिन विदेशी कम्पनी के लिए सिंगल विंडो क्लियरेंस है और इसकी तारीफ विदेशी कंपनियां और पत्रकार कर रहे हैं की यह ही तो विकास है 

गरीबी का भोम्पू बजा कर हम हर साल विदेशी बैंकों से ऋण पर ऋण लिए जा रहे हैं और यह कह रहे हैं की देखो ब्याज की दर बहुत कम है, हर भारतीय विदेशों के आगे झोली फ़ैलाने के लिए तैयार रहता है और विदेशी चंदा पाने के लिए हम कुछ भी कर सकते हैं. गरीब भारतीय पर टैक्स के 100 रूपये     वसूल    करने के लिए हम 120 खर्च   कर देते  हैं. पुलिस ढेले वाले को डंडा मार सकती है लेकिन इस देश पर बिना जरुरत का सामान बेचने वाले विदेशी कंपनियों को स्वागत करने वालों को सम्मान दिया जा रहा है. गरीबी के इस अर्थशास्त्र में काम खा कर खुश रहने वाले भारतीय को ज्यादा से ज्यादा उपभोग के लिए प्रेरित किया जा रहा है. गरीबी का एक ऐसा अस्त्र है हमारे पास की हम किसी भी विदेशी कंपनी के आशीर्वाद के मोहताज बन बाये हैं. अद्भुत भारतीय ज्ञान आज विदेशी कंपनियों के काम आ रहा है और हम विदेशी कंपनियों के गुणगान वाले शाश्त्र अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं. 

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