Thursday, April 23, 2015

ख़ुशी और बाल-उत्साह का एक अद्भुत त्योंहार



होली  और बसंत ऋतू का स्वागत 


भारतीय संस्कृति में रची बसी अद्भुत गाथाओं में से एक गाथा है प्रह्लाद की. जिस प्रह्लाद की भक्ति के आगे स्वयं ईश्वर  को नरसिम्हा के रूप में अवतार लेना पड़ा और जिस अद्भुत बालक की चेतना के आगे अग्नि को नतमस्तक होना पड़ा. प्रह्लाद एक बालक के रूप में अद्भुत प्रतिभा और अटूट आस्था का प्रतिक है. इस कहानी ने हमें बहुत बड़ी सीख दी है. 
ख़ुशी और बाल-उत्साह का एक अद्भुत त्योंहार 

होली एक ऐसा त्योंहार है जो पुरे भारत में जोश और उत्साह भर देता है. यह एक ऐसा त्योंहार है जब हर व्यक्ति अपने अंदर अपना खोया हुआ बचपन जग लेता है और पुरे उत्साह से सबके साथ रंगों से खेलता है. 

जीवन के प्रति हमारा द्रिस्टीकोण और जीवन जीने का तरीका बहुत महत्वपूर्ण है. करोड़ों कम कर भी लोग भिकारी सा जीवन बिता रहे हैं, और फकीरी में भी लोग आनंद और उत्साह का जीवन जी रहे हैं. ऐसे भी लोग हैं जो विपरीत परिस्थितियों में भी हँसते रहते हैं और ऐसे भी लोग हैं जो सब कुछ होते हुए भी चिंता के भार में दबे जा रहे हैं. आज शारीरिक बीमार लोगों से ज्यादा मानसिक रूप से बीमार लोगों की है. मनो-चिकित्सकों के पास समय ही नहीं है. हर दूसरा व्यक्ति अपने अंदर एक नए जीवन की चाह में मनोवैज्ञानिकों के चक्कर लगा रहा है. आज की बेस्ट-सेलर किताबें वाही हैं जो मनोविज्ञान पर आधारित हैं और उनके नाम भी कुछ ऐसे ही हैं जैसे "सफलता कैसे" "आनंद से कैसे जियें"  "जीवन में उत्साह कैसे भरें". इन सभी किताबों को पढ़ कर भी आप को जीवन में आनद लाने का रास्ता नहीं मिलेगा. मनोविज्ञान के पास भी कोई उपाय नहीं है. आज का मनोविज्ञान यह कहता है की हर व्यक्ति को जीवन के हर पल का आनंद उठाना चाहिए और इस हेतु उसको अपने अंदर बचपन, जवानी और परिपक्वता तीनों एक साथ रखनी चाहिए. परन्तु ये तीनों एक साथ कैसे आएं? मनोविज्ञानिक कहते हैं की उम्र  के साथ कई बार हम अपने बचपन के जोश, उत्साह, उमंग और उल्लास को गवां देते हैं. भारतीय संस्कृति एक ऐसी संस्कृति है जिसमे हर समस्या का समाधान भी है. होली जैसा एक ऐसा त्योंहार है जिसमे लोग एक बार के लिए अपनी उम्र भूल कर खुल कर अपना बचपन फिर से जी सकते हैं और उलास से फिर से मिटटी और पानी से खेल सकते हैं. यह वह त्योंहार है जो हमें हमारे अंदर छुपे हास्य कलाकार, व्यग्ंय कलाकार, बाल कलाकार और हमारे मौलिक स्वरुप को आगे लाने का मौका देता है. होली की रम्मत में आप अच्छे अच्छे फ़िल्मी  कलाकारों को मात देने वाली वेशभूषा, अभिव्यक्ति और अदाकारी देख सकते हैं. होली के गीतों को झूम के गाते हमारे युवा घंटों तक एक साथ नाचते रहते हैं और एक अनोखे आनंद का लुत्फ़ उठाते हैं. सही तो यही है की इस जिंदगी का बेहतरीन आनंद उठाना ही हमारी संस्कृति की हर परंपरा में छुपा है.


शीट ऋतू की जगह पर बसंत ऋतू का आगमन हो रहा है और होली जैसे रंगों के त्योंहार से हम उसका स्वागत करते हैं. बसंत ऋतू का अपना ही अलग आनंद है. जीवन में हम सब लोग आनंद और उल्लास से जियें इस हेतु आनंद के त्योंहार से ही इस ऋतू का स्वागत होना चाहिए. रेगिस्तान में पहले पानी की कमी के कारण लोग सर्दियों में स्नान नहीं किया करते थे. होली के अवसर पर वे मिटटी से खेलते थे और फिर स्नान करते थे. ये एक ऐसी परम्परा थी जिसका कोई मुकाबला नहीं है. मिटटी शरीर को स्पर्श कर उसमे ऊर्जा भर देती है और फिर स्नान करने से एक नयी ताजगी आ जाती है. आज मिटटी का लेप सिर्फ प्राकृतिक चिकित्सा का भाग रह गया है. लेकिन मिटटी के लेप और फिर स्नान की इस परंपरा का अद्भुत महत्त्व वैज्ञानिकता की कसौटी पर भी खरा है. 

आईये कामना करें की हर दिन उत्साह और आनंद से सराबोर रहें और हर बालक प्रह्लाद सा बन जाए. आईये कामना करें की अद्भुत भारतीय परम्पराओं को उनकी जड़ों के साथ संजो कर रखें और हमारे भविस्य में हमारी अगली पीढ़ी को इस अद्भुत ज्ञान का खजाना मिल सके. आईये होली के त्योंहार पर हम सभी अपने अंदर भर गए  अहम भाव, तमो प्रविृत और घमंड  को निकाल बाहर करें और अपने अंदर उत्साह, उमंग, बच्चों के जैसा जोश भर लेवें और मिटटी और पानी से नजदीकी फिर से बढ़ाएं. इस रंगों के त्योंहार से सबक ले कर अपने जीवन में ख़ुशी और आनंद के रंग भर लेवें. 

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