Thursday, April 23, 2015

थार के अद्भुत कुटीर उद्योगों को जरुरत एक सहारे की

थार के अद्भुत  कुटीर उद्योगों को जरुरत एक सहारे की 

थर के मरुस्थल में सिर्फ मिटटी ही नहीं सृजनशीलता भी बहुत है. उस अद्भुत सृजनशीलता को एक सहारे की जरुरत है. अफ़सोस है की कोई सहारा देने वाला नहीं है. अगर सही सहारा मिले तो ये अद्भुत कुटीर उद्योग न केवल लोगों के लिए रोजगार के साथन बन जाएंगे बल्कि देश के लिए विदेशी मुद्रा कमाने के स्रोत भी बन जाएंगे. थर की मज़बूरी यही है की इस अद्भुत क्षेत्र को संवारने  वाले जोहरी यहाँ नहीं हैं. 

पूरी दुनिया आज बौद्धिक सम्पदा के सहारे चल रही है. दुनिया की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली कंपनियों में से एक एप्पल नामक कम्पनी कोई उत्पादन नहीं करती है. उसके पास इतनी बौद्धिक सम्पदा है की वो उस समपा के सहारे कमाई करती जाती है. यही हाल  अन्य बड़ी कंपनियों का है. जिस जिस प्रदेश के पास बौद्धिक सम्पदा हैं वे निहाल हो गए हैं जैसे की शेम्पेन, स्कॉच व्हिस्की आदि के कारण उन स्थानों की चांदी हो गयी है जहाँ पर ये वस्तुएं बनती हैं. ज्योग्राफिकल इंडिकेशन नामके रजिस्ट्रेशन करवाने के बाद एक वस्तु वहीँ बन सकती है जहाँ के लिए रजिस्टर्ड है और फिर उसकी कीमत दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जाती है. बीकानेर से अभी तक सिर्फ एक ही उत्पाद रजिस्टर्ड है - भुजिया - जबकि इस प्रदेश में अनेक ऐसे कुटीर उद्योग हैं जो इस प्रकार से रजिस्टर करवाये जा सकते हैं और अगर ऐसा होगा तो फिर रेगिस्तान के कुटीर उद्योगों का कायाकल्प हो जाएगा. प्रश्न है इस हेतु शुरुआत कब और कैसे हो. यह सारी दुनिया जानती है की बीकानेर की लोक कला, लोक संगीत, चित्रकारी, खाद्य और वस्त्रों से सम्बंधित कुटीर उद्योग आदि वाकई अद्भुत हैं. लेकिन उनको रजिस्ट्रेशन करवाने हेतु कोई प्रयास नहीं कर रहा है और इसी कारण बीकानेर के कलाकारों को वो आय और वो सम्मान नहीं मिल पा रहा जिसके वे हकदार हैं. हम सभी  जानते हैं की सरकारी विभाग और राजनेता अपने ढर्रे से काम करते हैं और उनसे सहारे की अपेक्षा करना ज्यादती होगा. लेकिन बीकानेर के स्वयं सेवी संगठन और समाज सेवी लोग काफी सक्रीय हैं और उम्मीद की जानी चाहिए की वे कुछ पहल करेंगे. डर तो यही लगता है की कहीं तब तक ज्यादा देर न हो जाए. 

सांगानेरी प्रिंट का उदहारण प्रासंगिक है. जब २००३ में सांगानेरी प्रिंट उद्योग बंद होने के कगार पे था तब श्री विक्रम जोशी और कुछ साथियों ने मिल कर इस अद्भुत कला को बचाने के लिए प्रयास किया. उन्होंने ६० पेज का प्रतिवेदन तैयार कर के सरकार को सौंपा और उनको २/१२/२००८ को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन मिल गया. आज पूरी दुनिया में सांगानेरी प्रिंट की मांग हो रही है और विक्रम जोशी और उनके साथियों को फुर्सत ही नहीं मिल पा रही है. पूरी दुनिया आज उनको सलाम कर रही है. ये तो सिर्फ शुरुआत है, आप कल्पना करिये आने वाले वर्षों में उनको अपने इन प्रयासों का कितना फायदा मिलेगा. श्री विक्रम जोशी का सभी ने सहयोग किया और वो एक अद्भुत काम करने में कामयाब रहे और हजारों लोगों को कलापूर्ण रोजगार और नाम दिलवाने में समर्थ हुए (श्री विक्रम जोशी को बीकानेर में स्थित आर्काइव्स से भी सहयोग मिला था, लेकिन बीकानेर में से कोई भी विक्रम जोशी जैसा  व्यक्ति निकल के नहीं आया है). 


प्रतापगढ़ (राजस्थान) में ६ परिवार थावा कला नामक अद्भुत कला में दक्ष हैं. ये लोग सोने के गहने बनाते हैं जिनमे कांच पर सोने की कलाकारी की जाती है. सही मार्गदर्शन और सहारा मिलने से आज यह कला एक रजिस्टर्ड ज्योग्राफिकल इंडिकेशन है और इस रजिस्ट्रेशन के कारण इसकी पूरी दुनिया में मांग है. इसकी कीमत भी बहुत बढ़ गयी है. कहने का मतलब है की इस कला को इसका वजूद मिल गया. थर में थावा जैसी अनेक कलाएं हैं  जैसे मीनाकारी आदि. उनको सहारा कब और कैसे मिलेगा - सिर्फ भविस्य ही बताएगा. 

बीकानेर में कोटा डोरिया नाम से साड़ियां बनती है. जबकि कोटा डोरिया साड़ियां सिर्फ कोटा में ही बन सकती है और उनकी पूरी दुनिया में मांग है. बीकानेर में अद्भुत कला में दक्ष डोरिया साडी बाने वाले लोगों को कब एक पहचान मिलेगी - भविष्य ही जाने. इसी प्रकार से बीकानेर की बंधेज, मांडना और इस क्षेत्र की अन्य कला भी अपना रजिस्ट्रेशन करवा के अमर हो सकती है. 

बीकानेर में बानी सुखी सब्जियों  (जैसे की खेलरे ) आदि  में अद्भुत स्वाद होता है और उनको अगर रजिस्टर करवा कर उनको ज्योग्राफिकल इंडिकेशन दिलाया जाएगा तो उनकी पूरी दुनिया में मांग शुरू हो जायेगी और फिर तो इस क्षेत्र में जुडी महिलाओं की आय बहुत बढ़ जायेगी. इसी प्रकार यहाँ की महिलाओं द्वारा बनाया जाने वाला खिचिया, गुनिया आदि अपने आप में अद्भुत हैं. ये सभी उत्पाद अपनी अलग पहचान पा  सकते हैं अगर इस दिशा में कोई प्रयास शुरू हों. 

बीकानेर में मिश्री बनाने वाले लोग अद्भुत हैं और इस मिश्री के स्वास्थ्य लाभ भी अद्भुत हैं. चिड़ावा और डूंगरगढ़ के पेड़े अद्भुत हैं. बीकानेर के पंधारी और सूरसाहि लड्डू अद्भुत होते हैं, बीकानेर की सुखी सब्जियों  और सूखे फलों का अद्भुत स्वाद होता है (जैसे सांगरी , भूंगड़ी आदि). बीकानेर की मिनिएचर पेंटिंग, उस्ता कला, पत्थर की नक्काशी आदि अद्भुत हैं प्रश्न है की इनको पहचान कैसे दिलवाएं. जल्दी जागिये, नहीं तो एक दिन  बीकानेर के लोक गीत, लोक कलाएं, और यहाँ के लोगों के हुनर किसी विदेशी कम्पनी के नाम रजिस्टर हो जाएंगे. 

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