Thursday, April 23, 2015

बिजली पानी है नहीं - पर हम चले मंगल ग्रह

अंतरिक्ष यात्रा : विकसित देशों के तथा-कथित शोध अभियान और गरीब देशों की भेड़ चाल



(अंतरिक्ष यात्रा दिवस पर विशेष)

 

कहते हैं उतने पाँव पसारने चाहिए जितनी लम्बी चादर हो. आज विकसित देशों में बहुत से मामलों पर शोध हो रही है - परन्तु क्या हमको भी उस प्रकार के कार्य करने चाहिए? उनकी प्राथमिकताएं हमसे अलग हैं. हम को तो सड़क और स्कुल बनाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ता है. ऐसा ही एक क्षेत्र है अंतरिक्ष पर्यटन का.

१२ अप्रैल १९६१ को किसी भी  मानव ने (रूस के श्री यूरी गगारिन) ने पहली बार अंतरिक्ष में प्रवेश किया. इस उप्लभ्धि को याद रखने के लिए १२ अप्रैल को मानव की अंतरिक्ष यात्रा दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन वाकई बहुत महत्वपूर्ण है. अंतरिक्ष की यात्रा विज्ञानं की सबसे बड़ी उप्लाभ्दियों में से एक है. यह मानव की शानदार तकनीकी क्षमता का प्रदर्शन है. भारत के राकेश शर्मा ने भी अप्रैल १९८४ में अंतरिक्ष की यात्रा की और लगभग ८ दिन अंतरिक्ष में गुजारे. जब उनसे प्रधानमंत्री ने पूछा की अंतरिक्ष से भारत कैसा दीखता है तो उनका जबाब था : "सारे जहाँ से अच्छा"

 

अंतरिक्ष की फतह मानव के लिए शोध के नए क्षेत्र खोल रही है. फिजिक्स, बायो-मेडिकल और बायो-केमिस्ट्री के कई प्रयोग जो धरती पर संभव नहीं है वे प्रयोग अंतरिक्ष में किये जा सकते हैं.  आने वाले समय में अंतरिक्ष में हॉस्पिटल्स (क्योंकि अंतरिक्ष में बैक्टीरिआ और वाइरस नहीं होते हैं)  और होटल्स भी हो पाएगी और अंतरिक्ष एक पर्यटन  का विषय बन  जाएगा (इस क्षेत्र को स्पेस टूरिज्म कहा जा रहा है). विकसित देशों में  तो स्पेस टूरिज्म एक नया क्षेत्र बन गया है. वर्ष २००१ में  २० मिलियन डॉलर चूका कर अंतरिक्ष में घूमने वाले डेनिस टिटो पहले स्पेस पर्यटक (टूरिस्ट) थे. उनके बाद तो अब एक झड़ी सी लग गयी है. अब तक ७ पर्यटकों ने स्पेस पर्यटन किया है लेकिन अब पर्यटन की लागत बहुत बढ़ गयी है. लेकिन आने वाले समय में सोलर ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांति आने से स्पेस यात्रा भी सस्ती हो जायेगी और इस क्षेत्र में फिर से लोगों का रुझान बढ़ जाएगा. आज एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विद्यार्थियों का पसंदीदा क्षेत्र है और हर विद्यार्थी इस क्षेत्र में शोध करना चाहता है. उम्मीद की जानी चाहिए की इस क्षेत्र में बढ़ती लोकप्रियता के कारण इस क्षेत्र में कुछ नए शोध अंतरिक्ष यात्रा की लागत को बहुत कम कर देंगे और लगता है की आने वाले समय में इस क्षेत्र में पर्यटन का एक नया क्षेत्र खुल जाएगा. स्पेस एडवेंचर्स, बोइंग, वर्जिन एयरलाइन्स आदि कई कम्पनियाँ इस क्षेत्र में शोध कर रही हैं. खैर - अगर निजी क्षेत्र इस तरफ पैसा लगाये तो वो अलग बात है और सरकारें इस तरफ पैसा लगाए तो वो अलग बात है. निजी क्षेत्र अपना पैसा वसूल भी लेते हैं जब वो एक एक यात्री से लाखों रूपये इस विलासिता के क्षेत्र में मांगते हैं. वो दिन दूर नहीं जब धनवान लोग शादियां रचाने अंतरिक्ष जाएंगे. खैर उस विलासिता के क्षेत्र के बारे में नहीं हम तो अपने देश की प्राथमिकताओं की बात करेंगे.   

 

शांत अंतरिक्ष से खतरनाक  अंतरिक्ष

जहाँ जहाँ मानव के पाँव पड़ते हैं वहा वहा पर प्रदुषण फैलता है. जब मानव ने जब समुद्र पर पाँव रखा तो वहां भी गंदगी फैला दी,  हिमालय पर पाँव रखा तो वहां भी प्रदूषण फैला दिया  और अब अंतरिक्ष भी नहीं बचा. अंतरिक्ष में लाखों अवशिष्ट टुकड़े तैर रहे हैं और यह संख्या बढ़ती जा रही है. १९५८ में अमेरिका ने वैनगार्ड फर्स्ट नामक उपग्रह छोड़ा था जो कब का बंद भी हो गया परन्तु वह २४० साल अंतरिक्ष में तैरता रहेगा. उसके बाद रूस, चीन, और अमेरिका ने दुनिया भर के हथियार और सामान अंतरिक्ष में छोड़ दिए. ये सब सामान वापस तो लाया जा नहीं सकता और अंतरिक्ष में हम "स्वच्छ भारत" अभियान नहीं चला सकते. ये अवशिष्ट पदार्थ आने वाले समय में हम सबके लिए बड़ी मुसीबत बनेगे. जब भी कोई रॉकेट अंतरिक्ष में जाएगा - उसको इन अवशिष्ट टुकड़ों से बड़ा खतरा है. १९६९ में जापान के एक नाविक पर आसमान से रुसी रॉकेट का एक अवशिष्ट टुकड़ा आकर गिर गया था. इस प्रकार के हादसे भविष्य में ज्यादा होंगे.

गाव-गाव बिजली पानी देने के लिए पैसे नहीं - पर हम चले मंगल ग्रह
अंतरिक्ष से सम्बंधित शोध पर सिर्फ नासा ही सालाना  १००० अरब से ज्यादा रूपये खर्च कर देता है अतः अंतरिक्ष की शोध पर जितना रुपया खर्च हो रहा है उस राशि से अगर गरीबी, बिमारी और बेरोजगारी के खिलाफ लड़ाई लड़ी जाए तो दुनिया की साड़ी समस्याएं मिट जाए. भारत भी सालाना ७० अरब से ज्यादा रूपये अंतरिक्ष शोध पर खर्च करता है. हमारा सीना उस समय गर्व से फूल गया था जब सितंबर २०१४ में  मंगलयान ने मंगल की परिक्रमा शुरू कर दी थी. भारत का मंगल यान प्रोजेक्ट सिर्फ ४५० करोड़ रूपये में सफल हो गया जबकि विकसित देशों में इसका कई गुना खर्च हो जाता है. लेकिन फिर भी प्रश्न है की क्या भारत जैसे देशों को इस प्रकार के प्रोजेक्ट को प्राथमिकता देनी चाहिए? क्या भारत सरकार को इस प्रकार के बजट के लिए संसाधन आबंटिक करने के लिए हम बधाई देवें? कम से कम भारत जैसे  देश को तो इस दौड़ में शामिल न होकर देश की प्राथमिकताओं पर पैसा खर्च करना चाहिए ताकि ताकि उनको मदद मिले जिनको वाकई सरकारी मदद की जरुरत है जैसे की  वो बालक जो आज शिक्षा से वंचित है या वो बालिका जो कुपोषण में जी रही है या वो मरीज जो बिना इलाज-दवा के बेमौत मर रहा है. आज भी हमें यह समझना पड़ेगा की हमारे देश की पहली प्राथमिकता बेरोजगारों को रोजगार, भूखों को रोटी, बीमार को इलाज, और गावों को बिजली पानी और सड़कें देना है न की अंतरिक्ष की यात्रा.

No comments:

Post a Comment