Thursday, April 23, 2015

स्वास्थ्य से पहले संस्कृति

स्वस्थ रहने के लिए सांस्कृतिक प्रदुषण से बचें 

(विश्व स्वास्थ्य दिवस पर विशेष) 
स्वास्थ्य से पहले संस्कृति 

७ अप्रैल को विस्व स्वास्थ्य दिवस है. आप भी कमर कस कर अपना और अपने प्रिय जनों का स्वास्थ्य बचाने के लिए प्रयास करें. आज सबसे ज्यादा खतरा संस्कृतक प्रदुषण से है. स्वास्थ्य सम्बन्धी सभी समस्याएं भी सांस्कृतिक प्रदुषण के कारण हो रही है. 

अगर आप वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन के डेटा देखेंगे तो आप पाएंगे की दुनिया में हर साल ५६० लोगों की मृत्यु होती है जिनमे से निम्न कारणों / बीमारियों के कारण सबसे ज्यादा मौतें होती हैं.: - 
१. ह्रदय आधात और दिल के दौरे से मौत : १५० लाख
२. सांस और फेफड़े सम्बन्धी बीमारियों से मृत्यु : ७५ लाख 
३. एड्स के कारण मृत्य : १५ लाख
४. पेट की बीमारियों के कारण मृत्य : १५ लाख 
५. शुगर की बीमारी के कारण मृत्यु : १३ लाख 
६ . सड़क दुर्घटना से मृत्यु : १३ लाख 

आप देख सकते हैं की विकसित देश भौतिकता की अंधी दौड़ में शामिल को कर हृदय आधात और ऐसी बीमारियों की गिरफ्त में जाते जा रहे हैं और वहां इन बीमारियों के कारण सबसे ज्यादा मौतें होती है. उन्मुक्तता की संस्कृति और सांस्कृतिक   प्रदुषण के कारण एड्स की बिमारी फ़ैल रही है और उससे ज्यादातर अल्प विकसित देश प्रभावित हो रहे हैं. भारत अपनी संस्कृति और अपनी विरासत के कारण इन सभी बीमारियों से बचा हुआ है. आध्यात्म आधारित संस्कृति के कारण ही यहाँ के लोग स्वस्थ है और इन बीमारियों से बचे हुए हैं. 
उपभोग आधारित उच्छृखलता की संस्कृति 
आज हर तरफ एक प्रयास हो रहा है की किसी भी तरह से भारतीय संस्कृति की दिवार को तोड़ी जाय. शिक्षण संस्थाओं को मीठा जहर परोसा जा रहा है और आप और हम को पता भी नहीः चलेगा की कब पुस्तकों में ये लिख दिया जाएगा की "मांस खाना स्वस्थ के लिए अच्छा होता है" और "घी खाना स्वास्थ्य के लिए ख़राब होता है". इस संस्कृतक प्रदुषण के पीछे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का आर्थिक ढांचा है. उनको तभी मुनाफा मिलेगा जब भारत के १२५ करोड़ लोग उनके उत्पादों को खरीदेंगे. वो तभी संभव होगा जब यहाँ के लोग यहाँ की स्वस्थ जीवन शैली छोड़ कर पश्चिमी संस्कृति और उन्मुक्तता अपनाएंगे. तभी बहुराष्ट्रीय कम्पनियो के वे उत्पाद बिकेंगे जो अभी पश्चिमी देशों और बैंकॉक जैसे देशों में ही ज्यादा बिकते हैं. 


हर व्यक्ति, हर वस्तु, हर पल को उपभोग की नजर से देखने वाली एक ऐसी संस्कृति अपने पैर पसार रही है जिसके बारे में हम सोच ही नहीं रहे हैं. देखते ही देखते हमारे पैरों के निचे से जमीन खिसक जायेगी और हम अवाक रह जाएंगे. हमारी सारी व्यवस्थाएं -  स्वास्थ्य, शिक्षा, खान - पान और जीवन शैली उस संस्कृति की मार से पूरी तरह से बदल जायेगी. 
फिल्मों और शिक्षा तंत्र की मदद से हर तरफ ये प्रयास हो रहे हैं की हमारे खान, पान, जीवनशैली, संस्कृति, और हमारे मूल्यों को बदला जाए. आप भी इस बात को महसूस कर सकते हैं. जब आप अपने बच्चों को टाई पहना रहे हैं और धोती कुरता या साडी पहनने से मना  कर रहे हैं तो आप भी उस गिरफ्त में शामिल हैं जो आप को आपके ही साथियों के द्वारा एक नयी गुलामी की तरफ धकेलने का प्रयास कर रहे हैं. आप इस बात को शायद न माने लेकिन भारत का प्राचीन ज्ञान पूरी तरह से विज्ञानं पर आधारित था और यहां की सांस्कृतिक विरासत किसी व्यक्ति को स्वस्थ और आनंद के साथ जीवन के चरम उद्देश्य की तरफ ले जाने के लिए प्रयाप्त थी. आज हमारी नयी पीढ़ी  हमारे पुराने रीतिरिवाज को तिरस्कार की निगाह से देख रही है. गुजरात और राजस्थान के कुछ भागों में अभी भी सुबह सुबह लोग मंदिर जाते नजर आ जाते हैं लेकिन शिक्षित  लोग तो भारतीय संस्कृति से परहेज करने में ही अपनी विद्वता मान रहे हैं. आज पूरा विश्व सांस्कृतिक प्रदुषण की बिमारी को झेल रहा है. इस प्रदुषण को फैलाने वालों के साथ सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियां और पूरा वित्त तंत्र है क्योंकि सबके आर्थिक हित जुड़े हैं. आप को पता ही नहीं चलेगा कब आप के ही बच्चों को आप अपने स्वयं के प्रति तिरस्कार पैदा करने वाले लोगों के पास शिक्षा के लिए भेज देंगे और जब आप को इस बात का पता चलेंगे तब तक  बहुत देर हो चुकी होगी . 

अद्वितीय भारतीय सांस्कृतिक विरासत पर एक श्लोक काफी है  : - 
युग  सहस्त्र  योजन  पर  भानु  (भानु का अर्थ होता है सूरज) 
1 युग  = 12000 साल  
 1 सहस्त्र  = 1000 
 1 योजन  = 8 मील  
 युग  x सहस्त्र  x योजन  =  12000 x 1000 x 8 मील  = 96000000 मील  
 1 mile = 1.6kms 
96000000 miles = 96000000 x 1.6kms = 1536000000 kms 
जो की सूरज की पृथ्वी से दुरी है.  इससे ज्यादा वैज्ञानिक गणना कैसे हो सकती है? 

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