Thursday, April 23, 2015

ज्यादा जरुरी है जीवन की तैयारी

 ज्यादा जरुरी है जीवन की तैयारी

हर दिन शोध यही बता रहा है की ८०% से ज्यादा ग्रेजुएट्स नौकरी रखने के लायक नहीं है. न वे विद्यार्थी मुश्किल परिस्थितियों को झेल सकते हैं न ही वे इतने शानदार व्यक्तित्व के मालिक हैं की कंपनी उनको  बुला कर प्रबंधक की कुर्सी पर बिठा दे. आज जरुरत है की शिक्षा-विद शिक्षा के ढांचे और उसकी विषय वस्तु पर फिर से गौर करें. आज जरुरत है की शिक्षा-विद फिर से प्राचीन गुरुकुलों से सीख लेवें और यह तय कर लेवें की उनको विद्यार्थियों को जीवन के संग्राम में विजय दिलाने के लिए तैयार करना है न की सिर्फ डिग्री धारक बाबू. 

डॉ. सुभाष चन्द्र (जी कंपनी के संस्थापक) के एक कार्यक्रम में एक गाव से आये बालक ने कहा की शहर के बालक बिलकुल नाजुक और कमजोर होते हैं आने वाले समय में गावों के बच्चों से ही देश में प्रगति होगी. डॉ. सुभाष चन्द्र ने उस बच्चे को खरी खरी बात कहने के लिए बधाई दी. बात सही है. हम तथा कथित पढ़े लिखे शहरी लोगों ने अपनी आने वाली पीढ़ी को इतना नाजुक बना दिया है की वे लोग कुछ भी नहीं कर सकते हैं (सिवाय फेसबुक और व्हाट्सप्प चलाने के). आज आम शहरी बच्चा न धूप  बर्दास्त कर सकता है, न ठण्ड-गर्म, न रूखी-सुखी खा सकता है न नल का पानी पी सकता है. न वो दौड़ लगा सकता है न वो शारीरिक श्रम कर सकता है, न वो समूह में काम कर सकता है न वो विपत्तियों को झेल सकता है. हमने उनको आराम के नाम पर कमजोरी प्रदान की है. जीवन कोई आराम भरी यात्रा नहीं है. जीवन में कदम कदम पर मुश्किलें आएँगी. जीवन में जो व्यक्ति कठोर परिश्रम और विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार होगा वो ही आगे बढ़ पायेगा. आज दिखने में आ रहा है की महानगरों के बच्चे ऑफिस - वर्क के आलावा कोई काम ही नहीं कर सकते हैं. ऐसे बच्चे किस काम आएंगे? ऐसे बच्चों से देश का विकास नहीं हो सकता है. 

हर विद्यालय - महाविद्यालय विद्यार्थिओं को शैक्षणिक भ्रमण पर महानगरों की तरफ ले जाता है और उनको शानदार होटल में ठहरा कर आनंद-दाई जीवनशैली के दर्शन करता है. असली शिक्षा तो तब होगी जब उन विद्यार्थियों को गाव - गाव भ्रमण करवाया जाए और जीवन की मुश्किलों में कैसे समाधान निकला जाए ये सिखाया जाए. काश हम फिर से जमीन पर लोटा लाएं अपने विद्यार्थियों को और उनको यथार्थ के लिए तैयार करें. 

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