Sunday, March 13, 2016

पदयात्रा की अनूठी परम्पराएँ और प्रशाशनिक अनदेखी

पदयात्रा की अनूठी परम्पराएँ और प्रशाशनिक अनदेखी 

एक समय बीकानेर में पदयात्रा आम लोगों की बीच बहुत लोगप्रिय थी. लोग सभी जगह पैदल ही जाना पसंद करते थे. पैदल चलने के कारण लोग स्वस्थ भी रहते थे और समाज से जुड़े भी रहते थे. लोगों को पदयात्रा के दौरान आपस में बातचीत का मौका मिल जाता है और लोग एक दूसरे की मदद भी कर पाते हैं. तीन दशक पहले तक स्कुल और कॉलेज के लिए भी विद्यार्थी पैदल जाना पसंद करते थे. वक्त गुजर गया और पैदल यात्रा का प्रचलन कम हो गया. साथ में सामाजिक समरसता और आपसी मेलजोल भी कम हो गया. आज फिर से जरुरत है की हम समाज में पैदल यात्रा को फिर से प्रचलित करने के लिए प्रयास करें. 

पश्चिमी राजस्थान में खास कर बीकानेर क्षेत्र में पदयात्रा की अनूठी परम्पराएँ समाज के लिए एक महत्वपूर्ण सेतु के रूप में समाज को जोड़ने के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आई हैं. हरवर्ष भादवा में बाबा रामदेव के मेले के लिए हजारों पदयात्री जाते हैं. इसी प्रकार पूनरासर बालाजी, उदरामसर दादाबाड़ी, शिवबाड़ी आदि के मेले भरते हैं. इन सभी मेलों के लिए बड़ी संख्या में लोग उत्साह से भाग लेते हैं. इन मेलों के लिए जाने वाले पदयात्रियों के लिए आम जनता ही कुछ व्यवस्था करती है. प्रशाशन की तरफ से कोई भी इंतजाम नहीं होता है. इतने वर्ष हो गए हैं लेकिन आज दिन तक पदयात्रियों के लिए अलग सड़क तक नहीं है. आप सब जानते हैं की राष्ट्रीय राजमार्गों से पदयात्रा करना बहुत मुश्किल है और  जान का भी खतरा रहता है. पदयात्रा के लिए पगडण्डी होनी चाहिए जिस पर ट्रकऔर दूसरे बड़े वाहन न चढ़ पाएं. लेकिन अफ़सोस है की किसी भी पदयात्रा के लिए कभी भी प्रशाशन ने पदयात्रा को सुगम बनाने के लिए पगडण्डी नहीं बनवायी है. 

बीकानेर से रुणिचा की दुरी १८० किलोमीटर है जिसको पदयात्री १० - १२ दिन में तय करते हैं. इस दौरान ज्यादातर यात्रा हाईवे की सड़क पर करनी पड़ती है जिसपर बहुत ज्यादा ट्रक, और अन्य बड़े वाहन चलते हैं. इस कारण कई पदयात्रियों को दुर्घटना का सामना भी करना पड़ता है. यात्रियों को जगह जगह पर रात्रि विश्राम करना पड़ता है लेकिन उसके लिए भी प्रशाशन की तरफ से कोई सहयोग नहीं है - न ही सड़कों पर कोई सुलभ सोचालय या विश्राम-गृह की व्यवस्था है. १०-१२ दिन की ये पदयात्रा यात्रियों को बड़े ही कष्ट से पूरी करनी पड़ती है. बीकानेर शहर के नागरिक आगे आ आ कर पड़्याटिर्यों के लिए सुविधा व्यवस्था करते हैं लेकिन प्रशाशन की तरफ से कोई व्यवस्था नहीं होती है. 

बीकानेर से पूनरासर बालाजी के मंदिर की वर्तमान दुरी ६०  किोमेटेर है जो जयपुर रोड से है.जयपुर रोड पर ट्रैफिक बहुत ज्यादा होने के कारण पड़्याटिर्यों को भी परेशानी होती है और भरी वाहनों की कतार लग जाती है.  अगर उदासर बामब्लू से जाने वाले रास्ते को दुरस्त कर देते हैं तो बीकानेर - पूनरासर की दुरी सिर्फ ५० किलोमीटर हो जायेगी और उस रास्ते पर भारी ट्रैफिक और भरी ट्रकों से भी निजात मिलेगी. इसके आलावा पैदल यात्रियों  को पेड़ों की ठंडी छाया भी नसीब हो पाएगी क्योंकि राष्ट्रीय राजमार्गों के विस्तार के कारण वहां तो पेड़ अब बचते ही नहीं है (राष्ट्रीय राजमार्ग को चोडा करने के लिए आस पास लगे पेड़ों को काट दिया जाता है). 

पदयात्रा स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ी ओषधि है. पदयात्रा समाज को जोड़ने के लिए सबसे बड़ी ताकत है. पदयात्रा करने वाले लोग हजारों लोगों को हंसी ख़ुशी भक्ति और उत्साह का सकारत्मक सन्देश देते हैं. फिर भी अफ़सोस है की हमारे देश में कॉमनवेल्थ खेलों के लिए ६६००० करोड़ रूपये खर्च कर सकते हैं लेकिन सदियों पुरानी अद्भुत परम्परा के लिए हमारे पास कोई बजट नहीं है. अफ़सोस  है की राष्ट्रीय राजमार्ग में तेज दौड़ती ट्रकों के लिए एक्सप्रेसवे बनाने के लिए हम सोच सकते हैं लेकिन पैदल यात्रियों के लिए हम नहीं सोचते. अफ़सोस है की समाज के विकास के हर काम के लिए हमारे प्रशाशन के पास बजट है लेकिन पदयात्रियों के लिए कोई बजट नहीं है. 

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