Sunday, March 13, 2016

विकास के रास्ते या विनाश की तैयारी ?

विकास के रास्ते या विनाश की तैयारी ?


विकास हर सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए और लिहाजा भारत सरकार भी विकास के एक मॉडल पर कार्य कर रही है. विकास का ये मॉडल चीन, सिंगापुर, और अन्य विदेशी मॉडल पर आधारित  है. यही   वो   बात   है जिसके कारण मेरे जैसे कुछ लोग इस विकास के मॉडल का विरोध कर रहे  हैं . हालांकि मैं यह जानता हूँ की आप और मुझ जैसे कुछ लोगों  की सोच को आज सुनने वाला कोई नहीं हैं लेकिन fir भी अगर हम सब  चुप  रहेंगे  तो यह भी उचित नहीं है. 
चीन  के विकास  का आधार बड़े उद्योग हैं और इस के लिए उसने  बड़े उद्योगों को बड़े पैमाने पर सुविधाएं प्रदान की है. चीन के इस मॉडल के परिणाम से प्रभावित हो कर भारत सरकार भी विकास के उसी मॉडल को लागू करने के लिए प्रयास कर रही है. चीन और भारत में फर्क है. भारत में गाव गाव में फैली हुई एक अद्भुत समृद्ध परम्परा है जिसको आर्थिक सम्बल की जरुरत है लेकिन जो अपने आप में सक्षम है. भारत की इस विविधता भरी सांस्कृतिक विरासत के कारण ही भारत पूरी दुनिया में अलौकिक और अप्रतिम है. इस वर्तमान व्यवस्था को अगर समुचित तकनीकी और व्यवस्थागत मदद प्रदान कर दी जाए तो ये हमारे विकास के लिए अद्भुत ढांचा है जो सिर्फ आर्थिक ही नहीं समाजशास्त्रीय और मनोविज्ञानिक आधार पर भी अद्भुत होगा. विकास के एक ऐसे मॉडल जो की भारत के विविधता से पूर्ण व्यवस्था को इसकी ताकत बना सके तो वो अपने आप में सक्षम होगा और पूरी दुनिया में हमें अलग स्थान देगा. 
प्रश्न है की हमारे देश की आधी जनसँख्या जो गावों में रह रही है उसको शहरों में मजदूर बना कर कैसा विकास होगा? प्रश्न है की हमारे देश की आधे से ज्यादा जनसँख्या जो कृषि, पशुपालन और इस प्रकार के कार्यों में लगी है उसको उद्योग धंधों और सेवा क्षेत्र में डालने के सरकार के सपने में kitna वजूद है? सरकार चिंतित है की ग्रामीण  जनता के पास स्किल्स की कमी है (ऐसा सरकार मानती है मैं नहीं) और इसीलिए उस जनता को स्किल ट्रेनिंग सरकार के सामने बड़ी चुनौती है. 
मैं अगर सरकार के विकास के मॉडल और मेरी सोच को एक तुलना के रूप में प्रस्तुत करूँ तो इस प्रकार होगा : - 

सरकार : - 
बड़े उद्योग, बड़े शहर, बड़ी सड़कें,लेकिन गाव और ग्रामीण विकास के लिए कोई योजना नहीं. बहुत बड़ी कंपनियों के सहारे विकास की उम्मीद. विदेशों की जरुरत का सामन बनाने के केंद्र के रूप में विकास. ऐसी तकनीक का विकास जो बड़े उद्योगों के लिए कारगर हो. 

मेरा मत : छोटे उद्योगों और उद्योगों के क्लस्टर के विकास पर बल दिया जाना चाहिए जिससे की छोटे छोटे उद्योग fail सकें और ऐसी तकनीक का विकास हो जो छोटे छोटे उद्योग आसानी से लागू कर सकें. ये उद्योग ज्यादा सृजनशील, परिवर्तनशील और ज्यादा तेजी से परिवर्तन को लागू कर पाएंगे और भविष्य के लिए ज्यादा उपयुक्त होंगे. इनमे भारतीय लोगों की उद्यमिता भी सफल हो पाएंगी और कोई स्किल गैप या स्किल ट्रेनिंग की जरुरत नहीं पड़ेगी. उद्योगों के क्लस्टर के साथ ही परंपरागत उद्योगों, पशुपालन और कृषि को सम्बल ताकि लोग आसानी से अपने परम्परागत उद्योगों में विकास कर सकें  और गावों में रहते हुए ही जीवन का आनंद भी ले सकें और आर्थिक प्रगति भी पा सकें. 

सरकार सिर्फ जीडीपी की प्रगति पर ही अपनी नजर लगाये हुए है. सरकार किसी भी तरह से चीन की १०% की जीडीपी की बढ़ोतरी को छूना चाहती है. जीडीपी पर ज्यादा ध्यान देने से लोगों के विकास और अमन और आनंद की तरफ ध्यान नहीं de पाएंगे. अर्थशाश्त्र आर्थिक प्रगति को ही ज्यादा तबज्जु देता है लेकिन असल में लोग ख़ुशी और आनंद की तलाश कर रहे हैं जो तभी संभव है जब विकास का एक ऐसा मॉडल लागू किया जाए जो लोगों को उनके सपनो को हासिल करने में मदद कर सकें और उनको अपने जहाँ में स्वर्ग बनाने में मदद कर सके. 

सरकारी मॉडल पर नजर डालें तो पाएंगे की जिस प्रकार की शिक्षा और स्किल ट्रेनिंग सरकार फैलाना चाहती है वो हमें सिर्फ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए और बहुत बड़ी कम्पनियों के लिए ही तैयार कर सकती है. जरुरत है की लोगों को उनके वर्तमान परिवेश (अगर वो गाव में रहते हो तो गाव में) में ही अधिक योगदान देने के लिए सक्षम बनाने की जरुरत है अतः सरकारी नीतियों से ये संभव नहीं लगता है. सरकार ने जब नीति आयोग बनाया था तो एक उम्मीद हुई थी की शायद भारत की पृष्ठभूमि में भारतीय विकास का मॉडल लागू किया जाएगा लेकिन नीति निर्माता विकास के विदेशी मॉडल्स से इतने प्रभावित है की शुद्ध भारतीय विकास मॉडल की उम्मीद करना भी मुश्किल है. 

विकास के इस मॉडल को लागू करने से हमारे गाव और छोटे शहर और उनकी विविधता की संस्कृति संकट में पद जायेगी. छोटे और कुटीर उद्योग मुशिकल का सामना करेंगे. अद्भुत भारतीय परम्पराओं और रीति रिवाजो की जगह एक जैसा माहौल देखने को मिलेगा जो बड़ी और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए तो मददगार होगा पर उसमे न तो उद्यमिता और न सृजनशीलता के लिए कोई जगह होगी. प्रश्न है की क्या ये ही हमारा विकास का मॉडल होना चाहिए. 

किसी भी गाव में जाइए - गरीब से गरीब व्यक्ति के पास भी गाय है, छोटा - मोटा खेत है और परिवार का जुड़ाव है जिसमे वो जीवन का आनंद प् सकता है. अगर सरकार उसके लिए गो-पालन आसान बनती या पशुपालन के लिए कोई मदद प्रदान करती या छोटे स्तर पर कृषि के लिए कोई मदद प्रदान करती तो शायद उस व्यक्ति को आनंद आता. लेकिन सरकार की प्राथमिकता अलग है और इस कारण उस व्यक्ति को अपने खेत - खलिहान और पशुधन को छोड़ कर उद्योगों में मजदूर बन कर शहर कीतरफ पलायन करना पड़ेगा और शहर में अपना आशियाना बनाने के लिए पूरी जिंदगी संगर्ष करना पड़ेगा. 

प्रश्न है की अगर आप और मुझ जैसे लोग अलग सोच रखते हैं तो हम क्या कर सकते हैं? विकास के इस मॉडल को बदलने का अब कोई उपाय नहीं दिख रहा है. जब तक नीति निर्माता नहीं चाहेंगे विकास का शुद्ध भारतीय मॉडल लागू नहीं हो पायेगा. 

No comments:

Post a Comment