Sunday, March 13, 2016

मुस्कुराइए - दिल से

मुस्कुराइए - दिल से 

मैंने ऐसा कई लोगों को देखा है जो हर हाल में खुश रहते हैं. कोई भी परिस्थिति उनको विचलित नहीं कर सकती. कोई भी स्थिति उनको क्रोधित नहीं कर सकती. कोई भी परिस्थिति या कोई भी इंसान उनको उद्वेलित नहीं कर सकती. ये लोग न सिर्फ खुश रहते हैं बल्कि दूसरों को भी खुश रहना सीखा देते हैं. ऐसे लोगों के साथ रहने से आप भी खुश रहना सीख जाएंगे. ये लोग वाकई हमारी दुनिया को स्वर्ग में बदल सकते हैं. इनके पास वो हुनर है जो अद्भुत है. पर ऐसे लोग सब क्यों नहीं हो सकते? शायद परिस्थितियां, माहौल, जीने का तरीका आदि. आस्ट्रेलिया के निक यूजीविक नामक व्यक्ति के न तो हाथ हैं न पैर. पहले तो वो बहुत विचलित रहते थे लेकिन फिर उन्होंने खुश रहने और जोश से जीवन जीने की कला सीख ली. आज वो पूरी दुनिया में लोगों को जीवन जीने की कला सीखा रहे हैं. 

खुश रहने वाले लोग कुछ मामलों में हमसे अलग होते हैं जैसे :- 
वो जीवन को सिर्फ हार और जीत की लड़ाई नहीं बल्कि एक खूबसूरत तोहफा मानते हैं
वो जीवन का मकसद कोई प्रतिस्पर्धा जितना या कोई अवार्ड जितना नहीं बल्कि किसी अच्छे मकसद के लिए कार्य करना मानते हैं. 
वो हर असफलता या हर विपरीत परिस्थिति में भी कोई न कोई अच्छी बात ढूंढ़ लेते हैं और जीवन को हर हाल में ख़ुशी से जीते हैं. 
वो स्वाभाविक और प्राकृतिक जीवन जीते हैं और हर पल का खुल कर लुत्फ़ उठाते हैं. 
 
समूह में रहने वाले सभी प्राणी आपसी तालमेल, और एक दूसरे के लिए मोहबत के गुण अपने परिवेश और अपनी परवरिश में सीख जाता है - चाहे वो हाथी हो या छोटी सी मधुमक्खी. कबीले में रहने वाले इंसान ने भी इस कला को अपनाया और आगे से आगे हर पीढ़ी की सिखाया. लेकिन आज के हमारे विकसित इंसान ने उस विरासत को नहीं पचाया है और शायद अब वो कला लुप्त हो रही है. लिया डिस्किन नामक एक समाज-वैज्ञानिक ने आदिवासी जनजाति (अफ्रीका में कबीलों में रहने वाले लोग) के बच्चों के साथ बिताया खूबसूरत समय बताते हुए एक यादगार किस्सा सुनाया: (यह किस्सा उबन्टु नाम से प्रसिद्द है क्योंकि उन विद्यार्थियों ने यह शब्द काम में लिया था)  - 
उसने विद्यार्थियों को एक पाकेट में कुछ चॉकलेट डाल कर दी और उनमे प्रतिस्पर्धा करवाई की जो भी पहले दौड़ कर के पहुंचेगा वो चॉकलेट खायेगा .  प्रतिस्पर्धी मानसिकता के आज के लोगों के लिए ये आम बात है. लेकिन लिया ये देख कर दांग रह गयी की कोई भी न तो जीता न हार. सब बच्चों ने एक साथ हाथ से हाथ पकड़ के दौड़ लगायी और चॉकलेट को मिल बाँट कर खायी. जब लिया ने बच्चों से पूछा की उन्होंने प्रतिस्पर्धा क्यों नहीं की तो उसको जवाब मिला की "अगर एक भी बच्चा उदास होगा तो बाकी लोग खुश कैसे हो सकते हैं इसलिए सबकी ख़ुशी जरुरी है". वाकई में उन आदिवासियों को जीवन जीने की कला आती है. वाकई में हमें उनसे सीखने की जरुरत है. 

तथाकथित आधुनिक शिक्षा में पले हम लोग इस कहानी के मर्म को नहीं समझ सकते हैं. हमें तो सिर्फ प्रतिस्पर्धा ही सिखाई गयी है और वो ही हम करते रहते हैं. जीवन को जीने की कला तो भूल चुके हैं. कहीं हम आधुनिक शिक्षा के नाम पर अशिक्षित तो नहीं कर रहे हैं? 

मिंकोव व् बांड नामक वैज्ञानिकों ने अपने १४ साल के पूरी दुनिया के अध्ययन के बाद साबित करने का प्रयास किया है की कुछ देशों (जैसे नाइजीरिया, घाना, मेक्सिको आदि) के लोग आम तौर पर ज्यादा खुश रहते हैं. इन लोगों के डीएनए में कुछ ऐसे तत्व मिले जो उनकी खुशु से जुड़े हैं. वहीँ चीन, हांगकांग, सऊदी अरब जैसे संपन्न देशों के लोगों में खुश रहने की कला और उनके डीएनए में खुशु से जुड़े हुए तत्व नहीं मिले. कहीं वो लोग जिनको हम अल्प-विकसित देश कहते हैं - हमसे जयदा विकसित तो नहीं है? कहीं तथाकथित विकास के साथ हम खुश रहने की कला तो नहीं भूल रहे हैं? कहीं इस भौतिक विकास के साथ हम आत्मीयता, खुश रहने की कला, और आपसी मेल जोल को तो नहीं भुला रहे हैं? 

मेरे एक मित्र ने कहा की "बड़े शहरों के तथाकथित समृद्ध लोगों की तुलना में छोटे छोटे गावों के साधारण लोगों को खुल कर हंसना, खिल खिलाना और हंसी मजाक कर मनो-विनोद करना ज्यादा आता है ". कहीं समृद्धि के इस रास्ते पर हम अपनी खिलखिलाहट को तो कुर्बान नहीं कर रहे हैं? कहीं हम अपनी अगली पीढ़ी को प्रतिस्पर्धा और आपसी रंजिश में प्रशिक्षित कर उसकी मौलिक इंसानियत का तो गाला नहीं घोंट रहे हैं ? 

हम सब अगर चाहे तो फिर से हंसना, मुस्कुरुआना और खुश रहना सीख सकते हैं और सीखा सकते हैं. फिर सब कुछ बदल सकता है. ज्ञान विहार यूनिवर्सिटी जयपुर में नाइजीरिया और अन्य देशों से आये कुछ विद्यार्थियों ने स्माइल्स कम्युनिटी नामक एक ग्रुप शुरू किया है जिसमे वो हर व्यक्ति को मुस्कुराने के लिए प्रेरित करते हैं और उसके लिए माहौल बनाते हैं. अगर किसी को कोई परेशानी हो तो ये ग्रुप उसकी वो परेशानी दूर कर उसको मुस्कुराने के लिए विवश कर देगा. काश हम सब इस तरह के ग्रुप बनाना शुरू करदें और हमारा मकसद ही स्माइल कम्युनिटी की तरह खुशियां फैलाना हो जाए. 

No comments:

Post a Comment