Sunday, March 13, 2016

कौन जिम्मेदार है इस बेरोजगारी के लिए ?

कौन जिम्मेदार है इस बेरोजगारी के लिए ? 

इस देश में हर वर्ष  लगभग १ से १.५ करोड़ लोग चाहिए बढ़ते हुए व्यापार, उद्योग, और अन्य क्षेत्रों में. इस देश में हर वर्ष कम से कम १० लाख नए उद्यमी चाहिए जो नए व्यापार, उद्योग, आदि शुरू कर सकें. प्रश्न है फिर क्यों है बेरोजगारी? बेरोजगारी तब होती है जब नौकरियां न हो. पर हमारे देश में तो नौकरियां बहुत हैं? अगर आप उद्योग समूहों को पूछेंगे तो वो कहेंगे की उनको उपयुक्त व्यक्ति नहीं मिल रहे हैं. प्रश्न है की कहाँ गलती है? 

देश में कई ऐसे क्षेत्र हैं जिनमे लोग नहीं मिल रहे हैं जैसे : - 
आर्गेनिक कृषि 
टूरिज्म 
हॉस्पिटल 
होटल
ऑटो सेक्टर
टेलीकॉम 
बैंकिंग व् फाइनेंसियल सर्विसेज 
स्कुल व् कॉलेज के लिए अध्यापक (ख़ास कर गणित, अंग्रेजी, फिजिक्स, जैसे विषयों में बहुत कमी है). 
आदि 

भारत में बेरोजगारी तब होती है जब स्किल ट्रैनिंग की कमी होती है. स्किल ट्रेनिंग की कमीं के निम्न कारण है : - 

हमारी पढ़ाई समय के अनुसार नहीं है
हमारे पास पर्याप्त ट्रेनिंग इंस्टीटूशन्स नहीं है
हमारी पढाई में इंडस्ट्री की जरुरत को ध्यान में नहीं रखा गया है. 

इन सभी कमियों के लिए कोण जिम्मेदार है? 
सरकार का अत्यधिक रेगुलेशन करना ही इन सब का कारण है. उद्योग समूहों को पता है की उनक्को क्या चाहिए. ये उनको पता है की उनकी जरुरत के लिए किस तरह से कर्मचारियों को तैयार किया जाए. पर जब सरकार सब कुछ तय करने लग जाती है तो गड़बड़ हो जाती है. उद्योग समूह भी सरकार की तरफ देखते हैं. बेरोजगार भी सरकार की तरफ देखते हैं. एक ऐसी स्थिति हो जाती है जहाँ पर कोई कुछ नहीं करता है और सब एक दूसरे की तरफ देखते रहते हैं. 

सरकार को सिर्फ मार्गदर्शक की भूमिका निभानी चाहिए और एक ऐसा माहोल बनाना चाहिए जिसमे  अधिक से अधिक संस्थाएं आये और नवाचार करें ताकि नए ज़माने की तैयारी की जा सके. लेकिन सरकार के अधिकारी अपनी टांग अड़ाने से बाज नहीं आते हैं और हर जगह उन्होंने अपने नियम कानून और रेगुलेशन धूप दी हैं जिसके कारण न तो निजी क्षेत्र काम कर पा रहा है न ही सरकारी क्षेत्र. 

आजादी के इतने वर्ष बाद भी आज भी नजी क्षेत्र उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा में बिना सरकारी इजाजत के पहल नहीं कर सकता है. ऐसा क्यों है? जहाँ पर निजी क्षेत्र आगे भी आया है वो नवाचार नहीं कर सकता है क्योंकि सरकारी रोकटोक के कारण नवाचार की सम्भावना नहीं रह जाती है. सरकारी संस्थाएं बहुत सीमित है और ये सोचना भी गलत है की हर व्यक्ति को सरकार ही प्रशिक्षण देवे. सरकारी क्षेत्र की कमियां हम सब जानते हैं. लेकिन सरकारी क्षेत्र निजी क्षेत्र को मौका देगी और निजी क्षेत्र को  एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा में काम करने देगी तभी निजी क्षेत्र फल फूल सकेगा. 

एक मोटे अनुमान के अनुसार हमारे देश में २५  करोड़ लोग कृषि क्षेत्र में हैं १३ करोड़ उद्योग में और १८ करोड़ सेवा क्षेत्र में हैं. हर साल १.५ करोड़ लोग इन क्षेत्रों में और चाहिए.  ये लोग तभी सफल होंगे जब ये लोग अंतरास्ट्रीय ज्ञान का लाभ उठाएंगे और प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ेंगे. उसके लिए उनको स्टेट प्रशिक्षण और मार्गदर्शन चाहिए. 
देश में १०००० से भी कम आईटीआई (निजी क्षेत्र की संस्थाओं को मिला कर के) हैं. देश में २०००० से भी कम कॉलेज और अन्य प्रशिक्षण संस्थान हैं. यूनिवर्सिटीज की संख्या भी ५०० से कम हैं हैं. ज्यादातर संस्थान सिर्फ गिने चुने प्रशिक्षण कार्यक्रम ही चलते हैं. हर कॉलेज / यूनिवर्सिटी का भवन साल में सिर्फ २०० दिन ही काम आता है. इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के बावजूद भी  हमारे देश में न तो नवाचार हो पा रहा है न नवाचार करने दिया जा रहा है. कोई भी कॉलेज / यूनिवर्सिटी आराम से १-२ महीने के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम शुरू कर सकती है ताकि अधिक से अधिक लोगों को प्रशिक्षण मिले - पर ऐसा नहीं करने दिया जाता है. कोई भी यूनिवर्सिटी / कॉलेज उद्योगों की जरुरत के अनुसार नए कोर्स शुरू कर सकती है लेकिन ऐसा नहीं करने दिया जाता है. एक कॉलेज अगर उसी भवन में होटल मैनेजमेंट का नया कोर्स शुरू करने की सोचेगा तो उसको सरकारी संस्थांन से इजाजत लेनी पड़ेगी जो नहीं मिलेगी अतः लोगों के प्रशिक्षण का काम नहीं हो पायेगा. 

लोग सरकारी नियमों को सही मानते हैं क्योंकि उनको लगता है की इससे स्टैंडर्ड्स बने हुए हैं. जबकि सरकारी नियमों के कारण नवाचार कम हो रहा है. १ से १.५ करोड़ लोगों को हर साल प्रशिक्षण कैसे दे सकते हैं आप? क्या आप के पास वो साधन हैं? नहीं. तो फिर क्यों नहीं नवाचार करिये और करने दीजिये? 
अगर निजी क्षेत्र को शिक्षा के क्षेत्र में वैसे ही आने दिया जाता है जैसे टेलीकॉम के क्षेत्र में तो फिर निजी क्षेत्र की भागीदारी से कोई भी व्यक्ति बिना प्रशिक्षण के नहीं रहेगा जिससे बेरोजगारी की दर  बहुत कम हो जायेगी. 

सरकारी संस्थाएं अपने पाठ्यक्रम  वर्षों तक बदलती नहीं है. जैसे कम्प्यूटर इन्जिनीरिंग का विद्यार्थी आज भी vohi पढ़ रहा है जो ५ साल पहले पढ़ा जाता था जब की इस बीच में तकनीक में जबरदस्त बदलाव हो गया है. इन सब कारणों से आज उच्च शिक्षा के क्षेत्र में निजी क्षत्र की भागीदारी जरुरी है. सरकार को निजी क्षेत्र की मदद करनी चाहिए और विद्यार्थियों को जरुरत के अनुसार स्कालरशिप प्रदान करनी चाहिए न की उच्च शिक्षा में अपनी दखलबाजी. सरकार के द्वारा लगभब ३०० यूनिवर्सिटी व् उच्च शिक्षा संष्टां संचालित की जाती है. इन सभी संस्थाओं में जो राशि सरकार व्यय कर रही है वो राशि अगर विद्यार्थियों को स्कालरशिप के रूप में प्रदान कर दी जाती है तो विद्यार्थी अपनी पसंद से दुनिया के श्रेष्ठतम संस्थान से पढ़ाई कर के आ सकते हैं और फिर भी सरकारी बजट बच जाएगा. प्रश्न है की ऐसे प्रश्न कौन करे? 

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