Sunday, March 13, 2016

क्या यही है "विकास"?

क्या यही है "विकास"?

पुरे भारत में अभी ७वे वेतन आयोग और दिल्ली में आप सरकार द्वारा प्रस्तावित वृद्धि खुशियों की बहार ले कर आई हैवेतन आयोग सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाहको सवाया कर देगा तो केजरीवाल ने तो विधायकों की तनख्वाह दुगुनी से भी ज्यादा बढ़ा दीऐसे समय में जब सरकारी कर्मचारी और विधायक खुशियां मना रहें हैं तोकोई मजदूरों और निजी क्षेत्र के कर्मचारियों की भी सोच रहा है क्याशायद नहींआज का भारत तो दो लोगों का ही है : सरकारी अफसरों का और राजनेताओं का..असली भारत तो वो है जो खेतों में मेहनत करता हैफैक्ट्रियों में मजदूरी करता हैछोटे - मोटे काम कर के पेट भरता हैउस भारत का क्याउस भारत के लिए कोन सोच रहा हैउस भारत को तो तभी राहत मिलेगी - जब मेह्गाई कम होटैक्स कम होसरकारी महकमों में काम काज आसानी से होऔर आम आदमी की आय बढे.लेकिन सरकार भी तो कम थोड़े ही हैतर्क है की तनख्वाह बढ़ाने से भ्रस्टाचार कम हो जाएगाचलिए उम्मीद करते हैंतर्क है की तनख्वाह बढ़ने से काम ज्यादा होगा.देखते हैंतनख्वाहइनामअवार्ड्सतोहफेसरकारी सुविधाएं ये सब कहीं बन्दर बाँट की चीजें तो नहीं हैक्या कोई यह सोच रहा है की इस तरह से सरकारी तनख्वाहबढ़ाने से बढ़ने वाली महगाई से गाव के आम किसान का जिन दुश्वार हो जाएगा और गावों से शहरों की और पलायन और ज्यादा बढ़ जाएगाक्या कोई यह सोच रहा हैकी इस प्रकार से तनख्वाह बढ़ाने से आम व्यापारीमजदूरऔर निजी क्षेत्र के कर्मचारी के लिए जिन मुश्किल जो जाएगा और भारत के परम्परागत उद्योगकृषि,पशुपालन आदि पर संकट  जाएगासिर्फ भू-माफिया और बड़े शहरों में रहने वाले उद्योगपति ही नहीं है इस देश में - और भी तो बहुत है जो अलग सोच रखते हैंक्याहम उनके बारे में भी सोच रहे हैंबढ़ते अमीर - गरीब के फासले से देश कहाँ जाएगा?
एक तरफ सरकार स्मार्ट सिटी की बात कर रही है तो कुछ लोग ये भी कह रहे हैं की क्यों  हम गावों में आधारभूत सुविधाएं बढाएक्यों  हम आम लोगों की जरूरतोंपर ध्यान देवेंक्यों  हम भ्रस्ट सरकारी विभागों को बंद करने के लिए मुहीम चलायेंक्यों  हम उन की मदद करें जो भ्रस्ट तंत्र से जूझ रहे हैंराजस्थान में प्रोफ़ेसरवरुण  आर्य एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने कई वर्षों तक सरकारी तंत्र के भ्रस्टाचार का डट कर मुकाबला कियाऐसा हिम्मत वाला आदमी बिरला ही मिलेगाजो कामउन्होंने किया वो सभी करें तो कमाल हो जाए - पर ऐसा सब के लिए संभव नहीं हैउस समय सभी ये कह रहे थे की जितने सरकारी अधिकारी कंट्रोल करने के लिएलगाए गए हैं उनकी तनख्वाह में कही गुना ज्यादा प्राइमरी टीचर नियुक्त कर के सरकार देश का भला कर सकती है और उन अधिकारियों रूपी दीमक से देश को बचासकती हैप्रोफ़ेसर वरुण आर्य के संगर्ष ने ये बात साफ़ कर दी थी की सरकारी तंत्र - ख़ास कर उच्च अधिकारी वर्ग और राजनेता जो अनुमति देने के लिए दुनिया भर कीकागजी कार्यवाही करते हैं - वाकई में देश का भला नहीं कर रहे हैंये बात देख कर कई लोग ये कहने लगे थे की देश को अब आईएएस जैसे अधिकारियों की नहीं कर्मठकार्यकर्ताओं की जरुरत हैऐसे लोगों की जरुरत है जो गावों में जाए - मदद करने का काम करें -  की कंट्रोल करने काश्रीमान नरेंद्र मोदी ने जब कहा की वो सिर्फ प्रमुखसेवक है तो बड़ा अच्छा लगा और उम्मीद जगी की शायद देश का कायाकल्प हो जाए.
प्रश्न है की आज जब सरकार हर कम्पनीहर कॉलेजहर संस्था की रेटिंग करना अनिवार्य बना रही है तो स्वयं अपने विभिन्न विभागों का भ्रस्टाचार के स्तर के आधारपर रैंकिंग क्यों नहीं करवातीट्रांसपरेन्सी को बढ़ावा देने की बात करने वाले मंत्री क्यों नहीं अपनी कार्यप्रणाली को पारदर्शी बनातेक्यों नहीं भ्रस्टाचार के आधार पररैंकिंग में शिक्षार पर आये हुए - सरकारी विभागों की तनख्वाह बढ़ोतरी रोक दी जाएक्यों नहीं भ्रस्ट सरकारी महकमों पर कोई लगाम लगा दी जाएभ्रस्ट और श्रेष्ठसभी को बराबर तनख्वाह बढ़ोतरी का फायदा क्यों मिलेएक ग्रामीण विकास या शिक्षा को फैलाने वाले सरकारी विभाग की तनख्वाह भी उतनी ही बढे जितनी भ्रस्टविभाग की तो फिर कार्य करने के लिए प्रोत्साहन कहाँ हैं?
२०११ में जब पूरा देश भ्रस्टाचार के खिलाफ मुहीम शुरू कर रहा था तो उस वक्त किसी ने नहीं सोचा था छोटे छोटे मुद्दों से लोगों का ध्यान बदल दिया जाएगा. अवाम की ताकत गजब की होती है. १९१७ में रूस की क्रान्ति, १७७५ की अमेरिका की क्रान्ति और १७८९ की फ्रांस की क्रांति के बारे में सब ने सुना होगा. जहाँ जहाँ भी अवाम ठान ले तो जो चाहे वो संभव है. आज फिर अन्ना हजारे की जरुरत  गयी हैआज फिर एक और आंदोलन की जरुरत हैक्यों नहीं हमहर स्तर पर फ़ैल रहे भ्रस्टाचार पर लगाम लगाने की बात करेंआम भारतीय रोटी चाहता हैरोजगार चाहता हैसरकारी विभागों से रहम चाहता है और हम उसको धर्म,असहिष्णुताऔर पता नहीं क्या क्या कह कर गुमराह कर रहे हैंक्या वो असंतुष्ट नहीं होगानतीजा क्या निकलेगा साल का इन्तजारकेन्या के मवांगी नामकएक कलाकार अपनी पेंटिंग से हर व्यक्ति को यही सन्देश देता है की वोट की ताकत से आप सरकार बदल दो और जो आप चाहते हो उसको प्राप्त करोपर क्या ऐसाहोता है.
राजधानी में अच्छी भली सड़कों को तोड़ कर दुबारा बनाया जा रहा है तो गावों में सड़को के लिए बजट नहीं हैराजधानी में सौन्दर्यकरण के नाम पर पैसा पानी की तरहबहाया जा रहा है तो गावों में बिजली और पानी की व्यवस्था भी नहीं हैस्मार्ट सिटी के नाम पर विकसित शहरों को और ज्यादा विकसित किया जाएगा पर जहाँ पर कुछभी नहीं है उस क्षेत्रों की विकास की कोई बात ही नहीं कर रहा हैहम सभी जानते हैं की बहुराष्ट्रीय कंपनियों की फैक्ट्रियां खुल जाने से जीडीपी बढ़ जाएगा और हमविकसित देशों में  जाएंगे  - पर क्या इससे विकास हो जाएगाखेती योग्य साड़ी भूमि पर फैक्ट्रियां बन जायेगी तो फिर अनाज कहाँ पर होगाआज गुजरात में आपको खेत और खलिहान देखने के लिए तरसना पड़ेगा क्योंकि विकास के इस मॉडल में फैक्ट्रियां ही फैक्ट्रियां खुलेंगी गाव और खेत तो खत्म हो जाएंगेभारतियों के जीवनका उद्देश्य कारों की सैर सपाटे करना है या अपने गाव में परिवार के साथ आत्मिक आनंद में स्वरोजगार में अपने आपको जीवन के अंतिम उद्देश्य की तरफ ले जाना है?प्रश्न है की सरकार को करोड़ों रूपये के बजट की आई आई टी जैसी संस्थाएं खोलनी चाहिए या गाव गाव में स्वास्थ्यशिक्षाऔर स्वरोजगार के लिए सोचना चाहिए?संसाधन सीमित है लेकिन हमारी चाहते और हमारे विकल्प असीमित हैइन मुद्दों पर बहस करने और सोचने के लिए आप और हम जैसे साधारण लोग और हमारे शहरके पाटे कोई कम नहीं है - चलिए शुरुआत करते हैहमें अपनी सोच पर भरोसा होना चाइये - हमारी आवाज भी अपनी गूंज से पुरे देश को हिला सकती है.

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