Sunday, March 13, 2016

स्वाद और अध्यात्म का अद्भुत संगम : बीकानेर

स्वाद और अध्यात्म का अद्भुत संगम : बीकानेर 

एक से बढ़ कर एक स्वादिस्ट व्यंजनों और आध्यात्मिक भजनों का शहर बीकानेर अपने आप में अनूठा  शहर है.आपका स्वागत है, आईये  एक ऐसे शहर में जो रेगिस्तान के केंद्र में हो फिर भी स्वाद की दुनिया में सरताज हो,  एक  ऐसे शहर में जहाँ पर कोई भी फल, सब्जी, नहीं होती थी पर लोगों ने अपनी सूझ बुझ से स्वादिस्ट व्यंजनों की एक लम्बी लिस्ट बनली. एक ऐसे शहर में जहाँ पर हर शक्श अपनी मस्ती के लिए जाना जाता है. चाहे होली हो या दिवाली - हर व्यक्ति एक अलग मस्ती में रहता है. किसी के चहरे पर शिकन या तनाव नहीं बल्कि एक संतोष भरी मस्ती है. हर व्यक्ति खुश है - चाहे उसके पास कितनी भी जिम्मेदारी हो, चाहे उसके पास कितनी भी मज़बूरी हो, पर ख़ुशी और संतोष यहाँ के लोगों के पास भरपूर है इसी के कारण ये शहर अपनी अलग पहचान रखता है. आपसी तालमेल और मेलजोल के लिए यहाँ के लोग जाने जाते हैं. आप बीकानेर से जाने वाली किसी भी बस या ट्रैन में बैठिये - लोग बुजुर्गों और महिलाओं के लिए बड़े ही अदब से पेश आते हैं और उनके लिए अपनी जगह छोड़ देते हैं. तहजीब और तमीज यहाँ की आबो हवा में बसी है. 

अध्यात्म और दुनियावी जीवन का एक ऐसा अद्भुत  संगम बिरला ही मिलता है. यहाँ लगभग हर गुवाड़ (मोहल्लों) में लोगों ने अपनी भजन मंडली बनायीं हुई है. कहीं पर रात्रि जागरण होते हैं तो कहीं पर भजन संध्या होती है तो कहीं पर मंदिरों में पुरे दिन भजन मंडली का कार्यक्रम चलता रहता है. ये एक ऐसा शहर है जहाँ पर मंदिरों की संख्या अभी भी शराब और नशे की दुकानों से ज्यादा है और इसी कारण भक्ति का नशा किसी भी अन्य नशे से जयादा है. शायद इसी कारण आधुनिकता के नाम पर फैलता भोंडापन अभी भी इस शहर में विरोध का सामना कर रहा है. हर सुबह महिलायें पीपल को पानी देती हैं, मंदिर के दर्शन करती हैं और गोमाता को रोटी देती  है. हर शाम को लोग बुजुर्गों के पास बैठ कर दिन भर की घटनाओं पर चर्चा करते हैं. हर त्योंहार या उत्सव की शुरुआत गणेश जी के पूजन से होती है और हर उत्सव को लोग आध्यात्मिक आनंद से मानते हैं. गली मोहल्लों में पाते पर बैठे किसी भी व्यक्ति के पास आपको इतने भजन सुनने को मिल जायेंगे जितने किसी भी अन्य शहर के आम आदमी के पास नहीं मिल सकते. जहाँ पर जीवन की आपाधापी के बीच लोग आज भी अपनेपन के लिए समय निकल सकते हैं वो शहर यहीं पर है. चाहे कोई भी अवसर हो उल्लास और आनंद का मौका चाहिए. जरा सी बारिश आते है लोग गौठ मानाने निकल पड़ते हैं. जरा सी छोटी सी ख़ुशी पर मिढ़ाईयों का दौर शुरू हो जाता है और लोग जबरदस्ती एक दूसरे को कवे देते हैं. कवे देने और मिल कर एक थाली में साथ में भोजन करने की वर्षों पुरानी परम्परा आज भी कायम है.   विरक्ति और आसक्ति का अद्भुत संगम है ये. 

वर्षों पहले से यहाँ पर चाय पट्टी जैसे मंच बने हुए हैं जहाँ पर आम लोग इकठा हो कर चाय पर चर्चा करते हैं और स्वादिस्ट कचोरी और समोसों का आनंद लेते हैं. एक ऐसा शहर जहाँ पर अनजान व्यक्ति को भी लोग भायला कह कर प्यार से अपना बना लेते हैं और कुछ मिनटों में ही उसका दिल जीत लेते हैं. एक तरफ अस्पताल है जहाँ पर लोग एक दूसरे की मदद के लिए टूट पड़ते हैं तो दूसरी तरफ आज भी २ रूपये में स्वादिस्ट कचोरी का आनंद लेते एक दूसरे को स्वाद से अस्वादित करते लोग नजर आते हैं. यहाँ की प्रशाशनिक लापरवाही का भी फायदा मिला है की लोगों को समझ में आ गया है की प्रशाशन से नहीं एक दूसरे की मदद से ही काम होता है. अतः कोई भी मौका हो लोग मिल कर ही समस्या का समाधान करने का प्रयास करते हैं. 

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