Sunday, March 13, 2016

विद्यार्थियों को सामजिक उद्यमिता के विचार परोसिये

विद्यार्थियों को  सामजिक उद्यमिता के विचार परोसिये 


हर विद्यार्थी एक अद्भुत प्रतिभा है. अगर उसको मार्गदर्शन देंगे तो वो भविष्य की गारंटी है. अगर उसको प्रोत्साहित करेंगे तो वो विद्यार्थी बेहतरीन कार्य करने के लिए प्रेरित होगा. हर स्कुल और कॉलेज को चाहिए की विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए लगातार प्रयास करें. ये ही तो कार्य है हर स्कुल और कॉलेज का. सिलेबस पूरा करना नहीं बल्कि विद्यार्थी को प्रोत्साहित कर एक बेहतरीन व्यक्तित्व की नीव रखना ही तो मकसद है हर स्कुल और कॉलेज का. 
अधिकाँश शिक्षण संस्थाओं में विद्यार्थी को प्रोत्साहित करने और समाज के लिए कुछ करने के लिए कोई प्रावधान नहीं होता है. हर शिक्षण संस्था को लगता है की सिलेबस पूरा करवाना ही उनका मकसद है और अगर कुछ विद्यार्थी मेरिट में आ गए तो फिर तो उन्होंने अपने मकसद को शानदार ढंग से पूरा कर लिया. फिर तो वो अपना इतना गुणगान करते हैं की आप हर तरफ उनके होर्डिंग्स और विज्ञापन देख सकते हैं. लेकिन क्या सिलेबस के बोझ तले विद्यार्थी समाज के लिए सृजनशील और क्रांतिकारी विकास के बारे में सोच पायेगा? अत्यधिक कॅरियर ओरिएंटेशन स्कुल और कॉलेज के स्वयं के लिए तो अच्छा है पर क्या ये समाज के लिए भी अच्छा है? इतने कॅरियर ओरिएंटेड विद्यार्थी तो अपने परिवार और अपनों के लिए भी समय नहीं निकालेंगे - तो देश और समाज के लिए क्या सोचेंगे? अगर देश और समाज के लिए हम कुछ करना चाहते हैं तो उसकी शुरुआत स्कुल और कॉलेज में विद्यार्थी के मन में सामाजिक उद्यमिता के बीजारोपण से ही होनी चाहिए. जहाँ जहाँ पर विद्यार्थियों को सामाजिक कार्य करने और सामाजिक उदयमिता के लिए प्रेरित किया जाता है वहां वहां पर भविष्य में सामजिक उद्यमियों की बहार आ जाती है. फिर एक ऐसा माहौल बन जाता है की हर व्यक्ति समाज के लिए कुछ अद्भुत और अलग करना चाहता है और इस प्रकार सामाजिक विकास का एक नया दौर शुरू हो जाता है. 
हाल ही में अजमेर के अमर शाश्त्री ने अपने महाविद्यालय में मुझे बुलाया. उन्होंने मुझे विद्यार्थियों से सोशल इनोवेशन पर बातचीत करने के लिए बुलाया था. मैंने उनसे पूछा का वो ये प्रोग्राम क्यों आयोजित करते हैं? उन्होंने कहा की वो इस प्रकार के कार्यक्रम लगातार आयोजित करते हैं क्योंकि ये ही उनका मकसद है. मैं शिक्षा के प्रति उनके समर्पण और निष्ठां को देख कर हैरान रह गया. बड़े बड़े स्कुल और कॉलेज वो काम नहीं कर रहे जो श्री अमर शाश्त्री कर रहे हैं. इस प्रकार से वो शिक्षा के क्षेत्र में अद्भुत योगदान दे रहे हैं. उनके महाविद्यालय में जब मैंने विद्यार्थियों को सोशल इनोवेशन पर व्याख्यान दिया तो मुझे लगा की विद्यार्थी जबरदस्त उत्साह से भरे हुए है. व्याख्यान के बाद कई विद्यार्थी अपने नवाचार के बारे में मुझसे बात करने के लिए आये. कई विद्यार्थियों ने समाज के विकास के लिए अद्भुत योजनाये बनाई. ये सब इस लिए संभव हुआ क्योंकि उनकी शिक्षण संस्था ने उनको एक ऐसा माहौल प्रदान किया जिसमे वे कुछ नवाचार करने का सोच सकते हैं और मिल कर कुछ नया कर सकते हैं. उनकी शिक्षण संस्था ने वो कार्य किया जिसके लिए हर शिक्षण संस्था को प्रयास करना चाहिए. 
हाल ही में बिहार सरकार ने एक नवाचार किया है. अब वहां पर हर बालक अपने पिता को शराब न लेने की शपथ दिलवाएगा. विद्यार्थियों की अद्भुत ताकत को काम में लेने का प्रयास हो रहा है. लेकिन ये प्रयास तो तभी रंग लाएगा जब हर स्कुल और कॉलेज में सामाजिक चेतना का माहौल बनाया जाए ताकि विद्यार्थी इस प्रयास के मर्म को समझ सके. गुजरात में पहले इस प्रकार के कई सफल प्रयास हो चुके हैं और उनकी सफलता का आधार उस शिक्षण संस्था में अपनाया गया सामाजिक चेतना का माहौल था. 

अब्दुल कलाम जैसे महत्व वैज्ञानिक किसी बड़े स्कुल से नहीं बल्कि एक साधारण से दिखने वाले लेकिन असाधारण स्कुल से ही निकलते हैं. ऐसे महान लोग जिस स्कुल में पढ़ कर निकलते हैं उस  स्कुल में भले ही बहुत शानदार भवन आदि न हो लेकिन हर कदम पर विद्यार्थी को व्यक्तिगत स्तर पर समाज के लिए कुछ अच्छा करने के लिए प्रोत्साहित किया गया जिस के कारण सामाज के लिए सोच और समाज के लिए सृजनशीलता की नीव पड़ी. 
ऐसे कई पब्लिक स्कुल हैं जहाँ पर विद्यार्थी को बार बार ये रटाया जाता है की उनकी जिंदगी का मकसद पैसा कामना है और खूब पैसे वाला इंसान बनना है. ऐसे कई पब्लिक स्कूल हैं जहा पर विद्यार्थी के मन मस्तिष्क में सफलता का पैमाना दाल दिया जाता है. विद्यार्थी के कोमल मन को जैसे भी चाहें आप ढाल सकते हैं. आप जैसे चाहे विद्यार्थी को तराश सकते हैं. ये तो आप के ऊपर है की आक उनको समाज के लिए सोचने के लिए प्रेरित करते हैं या फिर सिर्फ अपने लिए सोचने के लिए उकसाते हैं. ये तो शिक्षण संस्था पर है की उसको महामानव बनाया जाता है या उसको  कॉम्पिटिटिव इंसान बनाया जाता है. सामजिक उद्यमिता के संस्कार सिर्फ बचपन में ही परोसे जा सकते हैं.  
हर माँ बाप अपने बच्चे के लिए महँगी से महँगी स्कुल और कॉलेज खोजते हैं. लेकिन ये तो वो नहीं देख सकते की स्कुल और कॉलेज में कैसे संस्कार परोसे जा रहे हैं. वो तो भवन, साज सज्जा, और स्कुल की संरचना देख कर निर्णय ले लेते हैं. लेकिन ये तो फिर स्कुल और कॉलेज के ऊपर निर्भर करता है की वो सिर्फ सिलेबस पूरा करवाने का मंच है या विद्यार्थियों में चेतना फैलाने का मंच. माँ - बाप को स्कुल के कार्य का परिणाम उनके बुढ़ापे में मिलता है. अगर उन्होंने एक अच्छे स्कुल में अपने बच्चे को पढ़ाया है तो उनका बच्चा बुढ़ापे में उनके और पुरे समाज के बारे में सोचता है और उनके लिए बुढ़ापे का सहारा बन जाता है. और अगर कॅरियर ओरिएंटेड सिलेबस पूरा करवाने वाले स्कुल में बच्चों को पढवाया  ये तो बुढ़ापे में बच्चे पास भी नहीं आयेगे. ऐसे में उन माँ बाप का बुढ़ापा बड़ा कष्ट-मय हो जाएगा. उनको ये भी नहीं पता चल पायेगा की "जैसी करनी वैसी भरणी" यानी उन्होंने गलत स्कुल / कॉलेज को चुना था और उस स्कुल और कॉलेज के करिये ओरिएंटेशन ने उनके और समाज के सपनों को चकनाचूर कर दिया. 

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