Sunday, March 13, 2016

आदिवासियों के अधिकार स्वीकार करें

आदिवासियों के अधिकार स्वीकार करें 

विश्व आदिवासी समुदाय दिवस ९ अगस्त को विशेष 

विकास की आज की रफ़्तार में हमारी नीव की भूमिका निभाने वाले आदिवासियों को नमन करना जरुरी हैं. ये वो ही लोग हैं जिन्होंने खतरनाक जंगली जानवरों से मुकाबला कर के विकास की शुरुआत की और एक सभ्य समाज की नीव राखी. लेकिन आज अफ़सोस ये है की जिस सभ्य समाज की नीव इन्होने राखी वो ही भस्मासुर बन कर आदिवासियों के अधिकारों को खत्म कर रहा है. जिन जंगलों के आदिवासियों ने सदियों से मुसीबतों का सामना कर मानव सभ्यता को बचाये रखा है उन्ही जंगलों का आज उनको कोई अधिकार नहीं है. जिन प्राकृतिक संसाधनों के वे रखवाले रहे हैं उन्ही संसाधनों के अधकारों के लिए आज उनको तरसना पड़ रहा है. पूरी दुनिया आज आदिवासियों को सभ्य समाज का हिस्सा बनाने के नाम पर उनसे उनके सभी संसाधन छीन लेने के प्रयास कर रही है. 

अमेरिका, अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका, एशिया के अनेक भू-भागों में आज भी कई आदिवासी कबीले रहते हैं जो वर्षों से चली आ रही परम्पराओं और व्यवस्थाओं के तहत अपने जीवन को चलते हैं. ये कबीले आज भी प्राचीन जीवन शैली को अपनाये हुए हैं. लेकिन ये ही वो लोग हैं जो प्रकृति के सबसे नजदीक हैं. ये ही वो लोग हैं जिनको जंगलों और प्राकृतिक घटनाओं की पूरी जानकारी होती है. ये वो लोग हैं जो हकीकत में प्रकृति के अनुकूल जीवन बिता कर पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली अपनाये हुए हैं. हम सब लोग पर्यवरण को नुक्सान पहुंचा रहे हैं लेकिन ये लोग आज भी पर्यावरण के हितेषी हैं. पूरी दुनिया में तथाकथित सभ्य समाज ने आदिवासी समाज को हासिये पर खड़ा कर उसके अधिकारों का हनन किया है. आदिवासियों को उनके अपने जंगलों से बेदखल किया गया है. उनको असभ्य और जंगली बता कर उनकी अद्भुत संस्कृति को अपमानित किया गया है. आदिवासी लोग जंगल, प्रकृति और वन्य जीवों के साथ में एक तादात्म्य से रहते हैं और उनको प्रकृति की अद्भुत समझ होती है. उनकी वेशभूषा, उनके रहने के तरीके को देख कर हम उनके ज्ञान और उनकी समझ का अंदाजा नहीं लगा सकते हैं. उनको अपने ढंग से रहने और अपने जंगलों को अपने ढंग से उपयोग करने का अधिकार मिलना चाहिए. हम लोगों का आदिवासियों के क्षेत्रों में अत्यधिक जाना उनके व्यक्तिगत जीवन को बाधित कर सकता है अतः उनके जीवन का सम्मान कर हमें उनके जीवन में किसी प्रकार का अतिक्रमण  नहीं करना चाहिए. 

कई देशों में इन आदिवासियों को शिक्षित और प्रशिक्षित करने के नाम पर इनका शोषण हो रहा है. इन लोगों की मदद करना तो अच्छी बात है लेकिन मदद के नाम पर इनको इनकी संस्कृति से वंचित करना और शिक्षित करने के नाम पर इनको इनके ज्ञान और समझ से दूर करना  उचित नहीं है. जहाँ तक संभव हो इन के ज्ञान और समझ को लिख कर भविष्य के लिए संजोना जरुरी  है. इन लोगों की जीवन शैली आज नहीं तो कल हमारे लिए एक समाधान ले कर उपस्थित होगी जब हम हमारी आज की विनाशकालीन नीतियों के दुष्परिणाम भुगत रहे होंगे. 

क्लाइमेट चेंज, बढ़ते तापमान, बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं और घटते वन्य संसाधनों का सबसे ज्यादा नुक्सान आदिवासियों को हो रहा है. आज ये लोग हासिये पर आ गए हैं. न तो ये प्रकृति के अनुकूल जीवन बिता पा रहे हे हैं और न ही सभ्य समाज का भाग बन पा रहे हैं. न तो इनकी पुरानी परम्पराओं के लिए जगह बची हैं न ये नयी व्यवस्थाओं का फायदा उठा पा रहे हैं. आज विषम परिस्थितियों के कारण ये लोग आधुनिक स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं तो वहीँ अपनी संस्कृति को बचाये रखने के लिए भी इनको संघर्ष करना पड़ रहा है. 

ये लोग हमारा सिर्फ भूतकाल ही नहीं हमारा भविष्य भी हैं क्योंकि इनके पास से ही हमें वापस प्रकृति प्रेम का पाठ मिलेगा और ये समझ आएगा की कैसे हम एक प्रकृति अनुकूल विकास की व्यवस्था को अपनाएँ. आईये इनको इनके मौलिक स्वरुप में रहने दें और आधुनिक तकनीक के द्वारा स्वास्थ्य और जरुरी सुविधाएं प्रदान कर इनको एक बेहतर जीवन में मदद करें. इनके द्रिस्टीकोण को समझें 

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