Sunday, March 13, 2016

इस जंग में हम सब एक हैं

इस जंग में हम सब एक हैं
(वर्ल्ड सॉलिडेरिटी डे स्पेशल) 

 
वर्ष २००६ से २० दिसंबर को विश्व सॉलिडेरिटी डे के रूप में मनाया जा रहा है. इस दिन पूरी दुनिया आपसी फर्क भुला कर एक हो जाती है. मकसद है की दुनिया के सामने जो चुनौतियां हैं उनके लिए हम सब एक हैं. 

पूरी दुनिया के सामने कुछ प्रमुख चुनौतियां हैं और उन चुनौतियों से निपटने के लिए ही मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स बनाये गए हैं जो की हर देश और हर देशवासी को मिलकर हासिल करने का प्रयास करना है.आईये इन मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स की चर्चा करें: - 

कुल ८ प्रमुख लक्ष्य है: - 

१. भयंकर गरीबी को समूल मिटाना 
२. सम्पूर्ण बाल शिक्षा 
३. लिंग आधारित भेदभाव का उन्मूलन 
४. बालमृत्यु को रोकना और बाल कुपोषण आदि समस्याओं को समाप्त करना 
५. मातृ स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए प्रयास करना और स्वस्थ और सुरक्षित प्रसूति की व्यवस्था करना 
६. मलेरिआ, एड्स जैसी भीषण बीमारियों की रोकथाम करना 
७. पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करना 
८. विकास के लिए वैश्विक गठजोड़ बनाना 

इन उपर्युक्त लक्ष्यों को २०१५ तक हासिल करना जरुरी था और इसीलिए इन लक्ष्यों को बड़ी अहमियत दी गयी थी. इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए हम सब का सम्मिलित प्रयास जरुरी है और इसी कारण हर देश और हर देश के नागरिक को मिल कर इन मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स को हासिल करना जरुरी था. लेकिन अफ़सोस है की इन लक्ष्यों को जतना जरुरी था उतना महत्त्व नहीं दिया गया है. 

काश अब भी हम सब इन लक्ष्यों को अपनी पहली प्राथमिकता बना लेवें तो पूरी दुनिया को कितना फायदा होगा. इसके लिए हम सब को मिल कर आवाज उठानी पड़ेगी. हर देश, राज्य, व् स्थानीय सरकार को इन मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स के लिए काम करना चाहिए तभी ये समस्याएं मिट पाएंगी. 

आज भी ये देख के बड़ी हैरानी होती है की देश के नीति निर्माता फिजूल की बहस में संसद का सारा समय नष्ट कर देते हैं लेकिन गरीबी, प्राथमिक शिक्षा, जननी सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण, स्वास्थ्य सुरक्षा, व् विकास जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा नहीं कर पाते हैं. ये वो मुद्दे हैं जिन पर उनको अधिक से अधिक चर्चा कर के बेहतरीन फैसले करने चाहिए. सरकार को चाहिए की ऐसा माहोल बनाये की इन क्षेत्रों में निजी क्षेत्र का आना सुगम और आकर्षक बने ताकि ये समयसाये दूर हो सके. सरकार के लिए इन समस्याओं को अपने बल पर मिटाना असंभव है और सरकारें निजी क्षेत्र को आने नहीं देना चाहती (सरकारी रेगुलेटरी सिस्टम निजी क्षेत्र के लिए इतने रोड़े अटकाते है की निजी क्षेत्र परेशान हो कर इन क्षेत्रों में आने के बारे में ही भूल जाते हैं). सरकार को स्वयं एक ऐसा माहौल बनाना चाहिए ताकि निजी क्षेत्र इन क्षेत्रों में आने के लिए प्रेरित हो. 

आप सब जानते हैं की अगर बीएसएनएल के भरोसे ही मोबाइल, इंटरनेट, और सुचना क्रान्ति का विस्तार किया जाता तो अभी भी मोबाइल कनेक्शन ब्लैक में बिकता. ये तो निजी क्षेत्र की भागीदारी थी जसने गाव गाव और गली गली मोबाइल और इंटरनेट की पहुँच बढ़ा दी. 

आज भी दुनिया में सबसे ज्यादा आँखों के आपरेशन निजी क्षेत्र की अरविन्द आई हॉस्पिटल करती हैं न की कोई सरकारी अस्पताल. मतलब ये है की अगर निजी क्षेत्र सरकार के साथ कदम से कदम बढ़ा कर इन क्षेत्रों में काम करना चाहता है तो उसको रोकने की जरुरत क्या है? सरकार चाहते तो स्टैंडर्ड्स तय कर सकती है लेकिन रेगुलेटर या अफसर नियुक्त कर के तो सिर्फ भ्रस्टाचार को ही बढ़ावा मिलेगा और कुछ नहीं होगा. हम सब जानते हैं की जहाँ जहाँ पर सरकारी तंत्र रेगुलेटर की भूमिका निभाता है वहां वहां पर कितना भ्रस्टाचार फैला है. ये तो इतिहास में भी देखा जा सकता है की अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद और अन्य ऐसी ही कई रेगुलेटरी संस्थाओं के कितना अधिकारी रिश्वत लेते हुए पकड़े गए और उनके रिश्वत के भण्डार भी कितना विशाल थे. 
खैर हम मुद्दे पर आएं - अगर हम सब को ये लक्ष्य अपने लक्ष्य लगते हैं (जो लगने चाहिए) तो हम सब को अपने अपने स्तर पर पहल अवश्य करनी चाहिए. असली वैश्वीकरण तभी होगा जब हम सब पूरी दुनिया के साथ मिल कर उन समस्याओं का समाधान करेंगे जो आज पूरी दुनिया की समस्याएं हैं. 
प्रश्न हैं की क्या हमें कोई बता रहा है की हम सब मिल कर काम कर सकते हैं? क्या इसके लिए कोई मंच है? पूरी दुनिया में समस्याएं सामान हैं. हर व्यक्ति के पास समाधान हैं. समाधान भी सामान है. नवाचार उनको लागू करने में ही होना चाहिए. मिल कर प्रयास करेंगे तो समाधान भी चुटकियों का काम है. दुनिया भर के वैश्विक मंच है लेकिन इन समस्याओं के लिए कोई वैश्विक तो क्या प्रादेशिक मंच भी नहीं है. अगर आप को मोदी, या केजरीवाल या राहुल गांधी के खिलाफ आंदोलन चलना है तो पूरी भीड़ मिल जायेगी लेकिन अफ़सोस यही है की अगर आप गरीबी, भुखमरी, भ्रस्टाचार, कुपोषण, और जननी सुरक्षा के मुद्दों पर कुछ काम करना चाहते हैं तो आप एकदम अकेले हैं कोई आपके साथ नहीं है. 
आज किसी भी सरकारी विभाग में या किसी भी सरकारी उद्घोषक की बात सुनिए - वो आपको चेतावनी देगा - "अजनबी से सावधान रहें" "अजनबी बम रख सकता है" "किसी अजनबी पर किसी प्रकार का विश्वास न करें".  हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से घबराने लगा है. इंसानों के बीच रक कर भी जंगल में महसूस कर रहा है. दो हाथ मिल कर हर समस्या को मिटा सकते हैं लेकिन वो दो हाथ मिले कैसे? हर शिक्षित व्यक्ति के दिमाग में दूसरे व्यक्तियों के प्रति डर संशय, और शक कूट कूट कर भर दिया जाता है. इससे तो हमारे अशिक्षित गाव भले. आज भी आप गाव में जाइए - आपके साथ मिल कर लोग हर समस्या का समाधान कर देंगे. 

जरुरत है की आज के दिन को हमारे नीति निर्माता महत्त्व देवे और हम लोगों को मिल कर इन समस्याओं के समाधान का मौका ढूंढने देवे. बिना मतलब उन बेफिजूल की बातों पर हमारा ध्यान न भटकाएँ जिनसे सिर्फ एक राजनीतिक   दल को ही फायदा मिल सकता है न की देश को . कदम उढ़ाईये - पूरी दुनिया आपका साथ देगी. मुद्दे ऐसे लीजिये जो आज हर इंसान को परेशान कर रहे हैं. कदम कदम बढाए जा - उसी के गीत गाये जा, ये जिंदगी है कौम की तो कौम पे लुटाए जा.

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