Sunday, March 13, 2016

बीकानेर की सांस्कृतिक राजनीतिक और सामाजिक पृष्टभूमि

बीकानेर की सांस्कृतिक राजनीतिक और सामाजिक पृष्टभूमि 

संस्कृति, राजनीति और समाज ये तीन चीजें आप स्वयं बाटे हैं या फिर आप इनको नजरअंदाज कर के अपने पतन की सामग्री तैयार करते हैं. जब आप अपने आस पास के बच्चों को अश्लील फिल्म या TV देख कर बर्बाद होते देखते हैं और सोचते हैं की मुझे इससे क्या है - तो निश्चित मानिए आपकी बर्बादी भी तय है और फिर दूसरे लोग कहेंगे "मुझे इससे क्या है". समय बदलता है और बदलते समय के साथ जो आज का राजा है वो की कल का रैंक बन जाता है. सही कहा है किसी ने "माटी कहे कुम्हार से - इक दिन ऐसा आएगा - मैं रौंदूगी तोय. सौभाग्य से बीकानेर इतिहास में ऐसा शहर रहा है जिससे लोगों को अपनापन रहा है और लोग एक दूसरे को सांस्कृतिक और सामजिक स्तर पर झकझोरने में नहीं कतराते. बीकानेर एक ऐसा शहर है जहाँ पर हमेशा से ऐसी संस्कृति रही है की गली में कोई अपरिचत भी दिख जाए तो लोग पूछ लेते थे की भाई तुम कौन हो और क्यों आये हो. शहर बाने के लिए ईंट और चौबारे नहीं चाहिए - शहर बनाने के लिए ऐसे लोग चाहिए जो उस शहर को उतने ही जतन से संवारते हैं जैसे अपने परिवार को संवार रहे हों. शहर का हर शक्श उस शहर की संस्कृति को अपने परिवार की तरह हिफाजत करता है तभी वो शहर असली शहर बन पाटा है. कोई भी शहर और संस्कृति बनने में सदियाँ लग जाती हैं लेकिन उस शहर की उस संस्कृति की थाह लेना तो नामुमकिन है. हमारे पास वो शब्द कहाँ की हम किसी भी उत्कृष्ट संस्कृति की गहराई को बयान कर सकें.  बीकानेर की अद्भुत पहचान को बहुत बहुत सलाम 
पहनावा 
कपड़ों से संस्कृति नहीं बनती पर संस्कृति कपड़ों से अपने आप को प्रदर्शित करती है. बीकानेर हमेश से एक सुसंस्कृत प्रदेश रहा है. इसी कारण यहाँ पर लोगों का पहनावे के बारे में हमेशा ही स्पस्ट पहचान रही है. ७-८  दशक पहले यहाँ पर कोई भी पुरुष बिना किसी पगड़ी या टोपी के घर से भाहर नहीं निकलता था. यानी वो एक सभ्य और सुसंस्कृत पहनावे के प्रति समर्पित था. सफ़ेद चोला या सफ़ेद कुरता और सफ़ेद धोती या सफ़ेद पजामा और सर पर पगड़ी या टोपी - बीकानेर के पुरुषों का पहनावा था तो महिलायें भी सर को ढक कर लाल-पीले चटक रंग के कपडे पहनती थी. पिछले कुछ वर्षों में बीकानेर के लोगों का वस्त्र-बोध कुछ कम हुआ है लेकिन इतिहास में हम देखें तो ये पाएंगे की यहाँ के लोगों ने हमेशा ही पहनावे को प्राथमिकता दी है. 

राजनीति 
बीकानेर हमेशा से लोक चेतना की भूमि रहा है. भले ही बीकानेर को राष्ट्रीय स्तर के नेता न मिले हों लेकिन चेतना, सोच और समझ में बीकानेर हमेशा से आगे रहा है. राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त व्यक्ति भी यहाँ आ कर यहाँ के लोगों से चर्चा कर के अपने आप को लाभान्वित महसूस करते थे. सोच में प्रगाढ़ता के कारण ही यहाँ के लोग एक स्पस्ट और तार्किक विचारधारा प्रचारित कर पाते थे. छात्र राजनीति दूषित या संकीर्ण नहीं थी. श्री उपध्यान चन्द्र कोचर आज से ७ दशक पुरानी छात्र राजनीति के बारे में मुझे बताते थे की उस समय सभी छात्र आपस में मिल कर प्रदेश के विकास की बात सोचते थे और सभी लोगों में आपसी सामंजस्य् था. संकीर्ण सोच नहीं होने के कारण उस समय के सभी छात्र नेता बाद में देश में अग्रणी भूमिका निभाने में कामयाब रहे. उनमे से कुछ लोगों को हम आज भी देख सकते हैं जैसे श्री माणिक चाँद सुराणा जी, श्री विजय शंकर व्यास जी आदि - जो आज पुरे देश में अपने सुलझे हुए विचारों के लिए जाने जाते हैं. मैं आज जब अपने आस पास देखता हूँ तो पाटा हूँ की आज जो भी बीकानेर में समाज को नेतृत्व दे रहा है वो सभी वो लोग हैं जिन्होंने अपने समय में छात्र राजनीति में भाग लिया और वो लोग सौभाग्यशाली थे की उस समय पर छात्र राजनीति बहुत ही शालीन और बौद्धिक चिंतन पर आधारित थी. शायद इसी कारण हम को श्री उपधायण चन्द्र कोचर, श्री माणिक चद सुराणा, श्री बुलाकी दास कल्ला, श्री जनार्दन कल्ला, श्री लूणकरण छाजेड़ जैसे लोगों का नेतृत्व मिल पाया (ये सभी अपने समय में छात्र नेता रहे हैं). काश हम इस बात को समझें की विद्यार्थियों को छात्र राजनीति में जरुरी मार्गदर्शन देना भी हमारे लिए उतना ही जरुरी है जितना अपने लिए लाइफ इन्सुरेंस करवाना है. 

सामजिक पृष्ठभूमि 
कोई भी हामत्व्पूर्ण बात हो आपको साथियों और सामज के अन्य लोगों के साथ ही चलना पड़ेगा. छोटी छोटी रीति रिवाजों के द्वारा आपको समाज के साथ बाँध दिया जाता है. चाहे छोटे से बच्चे का मुंडन हो या मृत्यु की दुखद बात हो - आपको परिवार और समाज के साथ तो जुड़ना ही पड़ेगा. जब आप बहुत दुखी होते हैं तो पूरा समाज आप को संतों के पास ले जाता है जो आप को ज्ञान की दो बात सुनाते हैं. जब आप बहुत खुश हैं तो समाज आप के साथ कोडमदेसर चलता है जहाँ आप खुशियां भी मानते हैं, भेरू जी की पूजा भी करते हैं, देवी का पूजन भी करते हैं,  तो तालाब के पास अपने आप को ख़ुशी से आह्लादित महसूस करते हैं. बीकानेर में सामाजिक व्यवस्थाएं कुछ इस प्रकार की बानी हुई है की हर समाज एक दूसरे से जुड़ा महसूस करता है. हर समाज आपसी मेलजोल से ही अपने काम निपटा सकता है. कोई भी पारिवारिक रिवाज बिना दूसरे समाज के सहयोग के पुरे नहीं हो सकते हैं. वर्षों से आपसी सहयोग और तालमेल का माहौल बना हुआ है. बीकानेर में हमेशा से आपसी सहयोग और मेलजोल की संस्कृति रही है जो यहाँ की सामाजिक व्यवस्थाओं में भी साफ़ दीखता था. पशु  पक्षियों और जानवरों के प्रति भी लोगों में करुणा का भाव रहा है इसी कारण यहाँ पर गाय -गोधों को भी अलमस्त हो कर शहर के मुख्य रास्तों पर आराम करते देखा जा सकता है. लोगों की भावनाओं के अनुरूप ही यहाँ के राजा श्री गंगा सिंह ने आजादी से काफी पहले ही यहाँ पर पशु चिकित्सालय स्थापित करवा दिया था और उसके बढ़िया विकास के लिए दक्षिण भारत से डॉक्टर सिवाकमू (SIVAKAMU)  को ले कर आये. जानवरों की चिकित्सा के लिए इतना सोचना भी बहुत बड़ी बात है. आज से ७-८  दशक पहले बीकानेर में देश के सबसे बढ़िया चिकित्सकों को लाने का प्रयास करना भी अपने आप में अद्वितीय प्रयास था. 

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