Wednesday, December 27, 2017

भारतीय परम्परागत कृषि को नमन

भारतीय परम्परागत कृषि को नमन
(किसान दिवस पर विशेष)

किसी व्यक्ति ने मुझ से कहा : "आपके शहर में तो विकास हुआ ही नहीं - मेरे शहर में देखिये - पहले हर तरफ खेत ही खेत थे - आज हर तरफ गगन-चुम्बी इमारते हैं - चौड़ी सड़कें हैं - दूर दूर तक आपको बड़ी बड़ी इमारतें और भवन नजर आएंगे. इतने उद्योग लग रहे हैं की हर तरफ आपको फैक्ट्रियां ही फैक्ट्रियां नजर आती हैं. इसे कहते हैं विकास."  आप भी शायद ऐसे ही सोचते होंगे.  आज हम लोग विकास से एक ही मतलब लेते हैं - ओद्योगिक विकास - और इस के क्या प्रभाव पड़ रहे हैं  - वो नजरअंदाज कर रहे हैं. आधुनिक तकनीक इस कदर हमारे दिमाग पर हावी है की हम लोगों को जैसे भी हो आधुनिक तकनीक चाहिए - भले ही इसके दुष्परिणाम कितने भी खतरनाक हों.

आपको जिन्दा रहने के लिए क्या सबसे ज्यादा जरुरी है - जरा एक सूचि बनाइये - हवा, पानी, भोजन, आसमान, नींद, रोजगार - आदि. आधुनिक विकास हम से ये सब छीन रहा है. हवा की जगह धुआँ, पानी की जगह रासायनिक द्रव्य, भोजन की जगह दवाइयां, आसमान की जगह गगनचुम्बी इमारतें, नींद की जगह रात-रात भर काम, इंसानी- रोजगार की जगह रोबोट आदि. क्या चाहते हैं आप ऐसे विकास से?

देश की तीन-चौथाई जनता खेती - और पशुपालन से जुडी है लेकिन हम उनके बच्चों को जो शिक्षा दे रहे हैं वो सिर्फ और सिर्फ सरकारी बाबू बनाने के लिए उचित है. होना तो ये चाहिए की भारत में स्कूली शिक्षा से ही कृषि और पशुपालन में विद्यार्थी को पारंगत किया जाए और इस कार्य के प्रति श्रद्धा और सम्मान का भाव जगाया जाए.होना तो ये चाहिए की ऐसी शोध हो जो भारतीय परिस्थितियों और भारत के छोटे खेतों को ध्यान में रखते हुए उचित तकनीक और उचित व्यवस्थाओं का निर्माण करें.   देश की तीन-चौथाई जनता की जिंदगी में ख़ुशी तब आएगी जब उनकी वर्तमान व्यवस्था में सुधार के लिए कोई सार्थक पहल हो - लेकिन हम उनको ऐसी तकनीक और ऐसी सोच दे रहे हैं की वो अपनी जमीन से भी उजड़ रहे हैं और नए आसियाने को भी नहीं अपना पा रहे हैं. कुछ नीति- निर्मातओं को विदेशों के बड़े बड़े फार्म  (विकसित देशों में बड़े खेत होते हैं) सुहाने लगते हैं और फिर विदेशी कंपनियों के प्रचार प्रसार के तहत वो भी कृषि के औद्योगिकीकरण के सपने देख रहे हैं. आज नीति निर्माताओं के सपने तो खेती को उद्योग में तब्दील करने के हैं. वे चाहते हैं की हमारे देश में भी विदेशों की तरह ही बड़े बड़े खेत हों जो पूरी तरह से आधुनिक मशीनों से कृषि करें और बड़ी बड़ी कम्पनियाँ कृषि का कार्य करें. कृषि पूरी तरह से बदल जाए और इसमें इंसान की जगह मशीनें ही सारा काम करें. कृषि के क्षेत्र में जो शोध हो रही है या जो मशीने ईजाद हो रही है वो बड़े और बहुत बड़े खेतों के लिए ही लाभप्रद है जबकि भारत में ज्यादातर किसानों के पास छोटे खेत हैं.

अंधाधुंध औद्योगिकीकरण के कारण आज तापमान और मौसम बदल रहे हैं और इस कारण कृषि मुश्किल हो रही है. कभी अनावृष्टि तो कभी अतिवृष्टि तो कभी ओले, तो कभी चक्रवात - किसान क्या करे? एक समय था भारत के किसान पूरी तरह से "आर्गेनिक कृषि" करते थे - गोबर से खाद बनाते थे और अपने बीज बचा कर के अगले साल काम में लेते थे. उनकी बाजार पर निर्भरता नहीं थी और इसी कारण वो विपरीत परिस्थितियों में भी अपने आप को बचा लेते थे. पहले सिंचाई और  बारिश की कमी के बावजूद भी किसान कर्ज में नहीं डूबते थे.  आज सिंचाई के साधनों के विस्तार के बावजूद भी किसानों की स्थिति में सुधार नहीं है.  आज बड़ी कंपनियों के साम्राज्य ने किसानों से उनके बीज छीन लिए और उनको पूरी तरह से कंपनियों के ऊपर निर्भर बना दिया. वे कर्ज के भार के तले डूबते जा रहे हैं. बाजार व्यवस्था हावी है और सरकार भी उनकी ही मदद कर रही है, और नतीजा है किसान की बढ़ती हुई मुश्किलें. 

ओद्योगिक और कृषि दो अलग-अलग और कुछ सीमा तक विपरीत सोच के क्षेत्र हैं. औद्योगिक क्षेत्र में मानकीकरण महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यहाँ मशीनें ही उत्पाद बनती हैं. लेकिन कृषि में मानकीकरण खतरनाक है (लेकिन आज औद्योगिक सोच के कारण इसको भी कृषि में अपनाया जा रहा है.). कृषि पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर है और प्रकृति और जल-वायु हर स्थान पर अलग अलग है और इसी कारण हर जगह अलग अलग तरह की फसलों का विकास हुआ है (लेकिन आज के इस मानकीकरण के दौर में इन फसलों की जगह पर आधुनिक कंपनियों के बीज ले रहे हैं). प्रकृति पर मानकीकरण का वार खतरनाक रूप ले रहा है. आप प्रकृति पर अपनी इच्छाएं कैसे लागू कर सकते हैं - वो कोई मशीन नहीं है. नतीजे सामने आ रहे हैं. हजारों फसलें लुप्त हो रहीं हैं. परम्परागत कृषि की पद्धतियां लुप्त हो रहीं है (जो की वाकई प्रकृति के अनुकूल थी और प्रकृति को केंद्र में रख कर ही विकसित हुई थी.) ये अपूरणीय क्षति है. ये सब इसी कारण हुआ है की हम ये मान कर चल रहे हैं की जैसे औद्योगिक क्षेत्र में विकास होता है वैसे ही कृषि क्षेत्र में विकास होता है.  ओद्योगिक विकास का दुष्प्रभाव किसानों को भुगतना पड़ रहा है. हर वर्ष हजारों किसान  आत्महत्या कर रहे हैं.  जहाँ-जहाँ आधुनिक तकनीक पैर पसार रही है वहां-वहां किसान कर्ज के भार तले दबता जा रहा है. सबसे आधुनिक क्षेत्र आज महाराष्ट्र का है और सबसे ज्यादा आत्महत्याएं भी महाराष्ट्र में ही हो रहीं हैं. जहाँ किसान सबसे जयदा पिछड़े हैं वहां वो आज भी आत्म-निर्भर हैं और उनको महंगे बीज खरीदने के लिए ऋण नहीं लेना पड़ता.

बढ़ती जनसँख्या के सामने कृषि और पानी बहुत बड़ी चुनौतियां होंगी. आज विकसित देशों ने कृषि को उद्योगों के रूप में स्थापित कर दिया है और हमने भी उनकी नीतियों का पालन करना शुरू कर दिया है - और इस दिशा में परिवर्तन की अब कोई उम्मीद नहीं है. इस प्रकार भविष्य में हमें कृषि के एक नए रूप के दर्शन होंगे जिसमे बड़ी बड़ी कंपनियों के  बड़े बड़े खेत होंगे जिनमे मशीने ही सारे काम करेंगी और हर क्षत्र को मशीनी व्यवस्थाओं से नियंत्रित किया जाएगा. आज हमारे वैज्ञानिक भी उसी समय की तैयारी कर रहे हैं और ऐसी तकनीक का विकास कर रहे हैं जो किसान की हर समस्या का समाधान कर सके जैसे ऐसी मशीने तैयार की जा रहीं हैं जो कीड़ों को चुन चुन कर मारेगी - ऐसी मशीने तैयार की जा रहीं हैं जो वायुमंडल में आद्रता एक निश्तित स्तर पर बनाये रखेगी. ऐसी कृषि ईजाद की जा रही हैं जो इंसान का काम सिर्फ बटन दबाने और कम्प्यूटर मॉनिटर पर कृषि की स्थिति को मापने तक रख देगी. परन्तु आज के इस दौर में मेरे सपने बिलकुल अगल हैं.  मैं तो ये सोच कर परेशान हूँ की तकनीक की इस क्रांति में छोटे किसान का क्या होगा - क्योंकि कोई भी तकनीक छोटे किसान को ध्यान में रख कर नहीं तैयार की जा रही है. मैं आधुनिक नीति-निर्माताओं से अलग सोच रहा हूँ.  मैं तो ये दुआ करूँगा की राजस्थान की सरकार राजस्थान को पूरी तरह से आर्गेनिक कृषि पर आधारित राज्य बनाने के लिए कुछ ठोस प्रयास करें और इस प्रदेश को पूरी तरह से "केमिकल" मुक्त कर दे. मैं तो ये ही सपने देख रहा हूँ जहाँ आज गांव  का आम किसान अपने आप को बेरोजगार के रूप में देख रहा है - कुछ ऐसा हो की वो अपने लिए कोई काम ढूंढ़ सके. मैं ये मानता हूँ की आज पश्चिम औद्योगिक ढंग से कृषि करने के दुष्परिणाम देख रहा है  और महसूस कर रहा है. वहां के आम लोग आज हमारी परम्परागत कृषि के उत्पाद खरीदना चाहते हैं. जहाँ हम उनकी तकनीक को अपनाने के लिए बेकरार हैं - तो वो भी हमारी परम्परागत तकनीक को अपने के लिए आतुर हैं क्योंकि शुद्ध और श्रेष्ठ तो परम्परागत कृषि में ही सम्भव है. अतः आज एक मौका है  - हमारे किसानों के सामने. जिस प्रकार भारत से योग निकल कर पूरी दुनिया में छा गया और भारत के योग गुरु पूरी दुनिया को पाठ सीखा  रहे हैं उसी तरह भारत के परम्परागत कृषि को अपनाने वाले किसान आज पूरी दुनिया को पाठ पढ़ा सकते हैं. भारतीय किसान परम्परागत कृषि को फिर से पूरी दुनिया के शिखर पर स्थापित कर सकते हैं. अगर इस दिशा में प्रयास हो तो ये संभव है की भारतीय किसान पूरी दुनिया को "आर्गेनिक खाद" , "आर्गेनिक कीटनाशक", और "आर्गेनिक खाद्य पदार्थ" प्रदान कर सकते हैं. इस क्षेत्र में भारतीय किसान अद्भुत प्रतिभा रखते हैं और वे इस क्षेत्र में कार्य कर के पूरी दुनिया को अपने उत्पाद बेच सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो भारतीय किसान पूरी तरह से ऋण-मुक्त किसान बन जाएगा और फिर से भारत सोने की चिड़िया बन जायेगी  (वर्षों पहले जब भारत जब सोने की चिड़िया था तब भारत का हर किसान बहुत समृद्ध और खुशहाल था).  उस दिन भारत में कृषि, गो- पालन, और देशी गायों को फिर से सम्मान से देखा जाने लगेगा. काश वो दिन आ जाए!!!!!

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