Thursday, December 28, 2017

चिराग की संजीन्दगी देखिये

अँधियारा नहीं जुहरा देखिये, तूफ़ान नहीं चिराग की संजीन्दगी देखिये

बहुत बात करली तूफानों  की तुमने 
कुछ हौसला चिरान पे भी कर लो 
ये भी उसी मिटटी का बना है 
जिस मिटटी ने तुमको बना है

बहुत सहमे दीखते हो हर आहाट पर 
कभी अपनी फौलादी जिगर को भी देखो 
दफ़न कर दो वो यादें जो शैतानों ने दी हैं 
कुछ इंसानों  से भी तो उम्मीदें लगाओ. 
वो चिंगारी जो तुमने है नजरअंदाज करदी 
वो ही तो वो रौशनी थी जो दुनिया ढूंढती है 


भारत की जनता के हाथ में है की भारत की अद्भुत व्यवस्थाओं को  कैसे बचाये. ये एक स्वाभाविक सी बात है की हमारा ध्यान नकारात्मक बातें ज्यादा खिंचती है. हम नकारात्मक बातों के बारे में ज्यादा सोचते हैं और चर्चा करते हैं और फिर वो बाते हमारे चारों तरफ फ़ैल जाती हैं.
आप जिसको ध्यान से देखेंगे वो ही जमाने में फ़ैल जाएगा - आप ने जिन्ना को देखा - देश के टुकड़े टुकड़े हो गए - लेकिन अनेक लोकप्रिय लोगों की तरफ ध्यान नहीं दिया और वो इतिहास में दफ़न हो गए (उदाहरण के लिए सिकंदर हयात खान बहुत लोकप्रिय नेता थे लेकिन जनता का ध्यान जिन्ना की नकारात्मकता ने खींच लिया)

हर तरफ जब नकारात्मक समाचार रहे हैं तो कुछ सकारात्मक तथ्य भी देख लेवें. जम्मू कश्मीर की बात करते हैं. खूबसूरत बादियों के इस राज्य में उड़ान नामक प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई जिसके तहत १०००० से ज्यादा युवाओं ने अन्य राज्यों में जा कर के कौशल प्रशिक्षण प्राप्त किया और आज वो अपने पाँव  पर खड़े हैं. ये योजना आज भी चल रही है और युवा बढ़ - चढ़ कर इस में हिस्सा ले रहे हैं - जो आगे आते हैं वो फिर अमन और प्रगति की राह को पकड़ लेते हैं. अनेक लोग इस प्रकार की सकारात्मक गतिविधियों को प्रोत्साहन देने के लिए जी- जान से प्रयास कर रहे हैं. कर्नल (रिटायर्ड) श्री प्रदीप भटनागर जी की बात करते हैं. उन्होंने और बीकानेर मूल के श्री हबीबुर रहमान ने मिल कर अनेक कश्मीरी युवाओं को अमन और प्रगति के रास्ते पर आगे बढ़ने में मदद की है. वो आज भी जम्मू कश्मीर के अवाम और ख़ास कर  युवाओं के साथ घुल मिल कर बात करते हैं और उनको अमन और प्रगति के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए मदद करते हैं. जहाँ चाह होती है वहां राह मिल ही जाती है. घाटी में सिर्फ आतंकियों की ही नहीं चलती - कर्नल भटनागर जैसे लोगों  के प्रोत्साहन से युवाओं के हुजूम  भी अमन के रास्ते पर निकल पड़ते हैं.लेह और कारगिल की दुर्गम घाटियों से निकल कर युवा ४० घंटे का कठिन सफर तय कर के प्रशिक्षण केंद्रों पर जाते हैं और विकास और अमन की चाह रखते हैं तो ये बात साफ़ हो जाती है की अपने देश की मिटटी में हर तरफ अमन की चाह  है चाहे वो कश्मीर हो या कन्याकुमारीचलों इनकी भी बात करें और इनके काम को अपनी बातचीत का हिस्सा बनाएं.

एक समय इस देश में हर घर और हर शहर में कौशल प्रशिक्षण की व्यवस्था थी.. समय बदला - आज फिर से हमें उस दिशा में काम करने की जरुरत है. पहले पाठशालाओं में भी विद्यार्थियों को कुछ कौशल सीखने जरुरी होते थे जैसे सिलाई, कढ़ाई आदि. आज विदेशों में कई देश कौशल प्रशिक्षण को अनिवार्य करने की सोच रहे हैं. अमेरिका में मैंने नामक शहर में कौशल प्रशिक्षण को शिक्षण संस्थाओं में अनिवार्य किया जा चूका है. जब तक हाथ के श्रम और हाथ के कौशल को महत्त्व नहीं दिया जाएगा - तब तक युवाओं को उनकी मंजिल नहीं मिल पायेगी.

जमीनी अँधियारा ये है की ९०% स्टार्टअप असफल हो रहे हैं लेकिन ख़ुशी की बात ये है की युवाओं में स्टार्टअप शुरू करने का जूनून शुरू हो गया है और उनको नरेंद्र मोदी जैसे नेता मिल गए हैं जो इस को वाकई में बढ़ाना चाहते हैं. आज अधिकाँश युवा स्टार्टअप शुरू करते ही पहले - साल में ही जमीनी हकीकत देख कर के पस्त हो जाते हैं. सबसे ज्यादा दिक्कतें तो सरकारी प्रक्रियाओं और नोकरशाही से ही आती है. मैं अपना ही उदाहरण देता हूँ - उद्यमिता और सांस्कृतिक विकास के लिए महाविद्यालय शुरू करने का सपना देखा था - लेकिन अनापत्ति प्रमाण पत्र भी नहीं जुटा पाया. लेकिन उम्मीद की किरण नजर रही हैसरकारी विभागों की नीतियों में आमूल परिवर्तन आरहा है और भविष्य में तो उनको मजबूर हो कर के उद्यमियों के लिए रास्ते खोलने ही पड़ेंगे. वर्तमान नेतृव का उद्यमिता पर पूरा विश्वास है और जिस दिन उन्होंने नोकरशाही की नकारात्मकता को सीमित करने का संकल्प कर लिया - उस दिन से परिवर्तन की राह आसान हो जायेगी.

कौशल प्रशिक्षण के लिए सरकार ने अनेक योजनाएं शुरू की है और उम्मीद करते हैं की उन योजनाओं का हस्र पिछली योजनाओं के जैसा नहीं होगा और उन योजनाओं से युवाओं को अपने सपने संजोने और अपने जीवन को सपनों की उड़ान देने का मौका मिलेगा. हम सबको उस  छोटे से बालक की नक़ल करनी चाहिए जिसने बारिश की दुवा करने वाले लोगों के बीच अकेले ही छाते को खोल कर खड़े होने  का फैसला किया. बाकी लोग सिर्फ दुवा कर रहे थे - उस बालक ने विश्वास के साथ दुआ की और अपना छाता तान कर खड़ा हो गया की जा सूरज देवता - आने दे बादलों को. परिवर्तन और विकास हम सब की सम्मिलित सोच और सम्मिलित मानसिकता का नतीजा है और जिस दिन हम सब को चिरान नजर आने लगेंगे - अँधेरे छूमंतर हो जाएंगे.

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