Thursday, December 28, 2017

उड़ान फिर से स्वर्णिम भारत के लिए

उड़ान फिर से स्वर्णिम भारत के लिए 

कोई भी देश या कोई भी संगठन लोगों के मिल कर काम करने की क्षमता  पर निर्भर करता है. अकेला तो हर व्यक्ति असाधारण हो सकता है या ये हो सकता है की अपने आप के लिए हर व्यक्ति असाधारण काम कर के दिखा दे. लेकिन इससे न तो देश महान बनता है न ही कोई संगठन महान बनता है. संगठन को महान बनाने वाले तत्व क्या हैं? कैसे कोई देश और कोई समूह महान बन जाता है? ये कोई बहुत बड़े रहस्य नहीं हैं लेकिन जब ये हमारे जीवन में समा जाते हैं तो हमको भी आनंद आता है और पुरे संगठन का कायाकल्प कर देते हैं. 

२३ जून एक बार फिर हम सब के लिए एक खुशियों भरी खबर ले कर आया. इसरो का रॉकेट एक साथ ३१ सॅटॅलाइट ले कर उन्हें अलग अलग कक्षा में स्थापित करने में कामयाब हुआ. इसरो आज पुरे देश के लिए एक गर्व है. इसरो के कर्मचारी जूनून के साथ कार्य करते हैं और अपने हर काम को बेहद संजीदा तरीके से अंजाम देते हैं. आज देश के बाकी सरकारी दफ्तरों को इसरो से प्रेरणा लेने की जरुरत है. इसरो जिस प्रकार हमारे सामने आदर्श स्थापित कर रहा है उससे लगता है की हम फिर से स्वर्णिम भारत के युग को प्राप्त कर लेंगे. स्वर्णिम भारत क्या है?  - एक समय भारत पूरी दुनिया में हर क्षेत्र में आगे था और उस समय भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था. आज अनेक लोग भारत को फिर से स्वर्णिम भारत बनाने के सपने देख रहे हैं. मेरे मित्र श्री संजीव सबलोक ने एक राजनीतिक दल  इसी नाम से शुरू किया  है - स्वर्ण भारत पार्टी. श्री सबलोक को व् उनके साथियों को ये लगता है की अगर देश की नीतियों में बदलाव लाया जाए तो ये देश फिर से स्वर्ण-भारत बन सकता है. उनको ये लगता है की देश की प्रगति रुकने का बड़ा कारण सरकार की अड़ंगेबाजी वाली नीतियां और नौकरशाही है. उनकी पार्टी की मांग है की सरकारी नीतियों का हस्तक्षेप नहीं के बराबर हो - हर चीज पारदर्शी हो - हर नीति स्पस्ट हो और नीतियों के दायरे में लोगों और संस्थाओं को कार्य करने की इजाजत हो. सरकारी हस्तक्षेप कम से कम हो.


इसरो ने २००८ में चंद्रयान (चन्द्रमा का चन्द्रमा), २०१४ में मंगल का चन्द्रमा, २०१६ में २० सॅटॅलाइट, २०१७ में १०४ सॅटॅलाइट, और अपने स्वयं  के द्वारा विकसित क्रायोजेनिक रॉकेट बनाये हैं. विकसित देश इसरो के लिए जितनी भी चुनौती खड़ी करते हैं - इसरो उतना ही ज्यादा सक्षम हो जाता है. हर दूसरे दिन इसरो अपनी क्षमता को साबित करता जाता है. ये इसरो नहीं भारत की भारतीयता बोल रही है. ये इसरो नहीं स्वर्णिम भारत को लौटाने की शुरुआत है. 

इसरो की सफलता ने एक बात साबित कर दी है की जो लोग ये सोचते हैं की भारत में अच्छे संगठन नहीं है या यहाँ पर कार्य करने के लिए अच्छे संगठन बनाना मुश्किल है - वो गलत हैं तथा  जो लोग भारत को छोड़ कर विदेश जाने के लिए ये तर्क देते हैं की भारत में कार्य करने का माहौल नहीं है - वो गलत हैं. इसरो देश के कर्तव्यनिष्ठ लोगों के लिए एक आदर्श संगठन है  और बाकी संगठनों के लिए एक चेतावनी -  या तो इसरो की तरह महान बनने का प्रयास करो - नहीं तो बंद हो जाओ. 

इसरो की सफलता के पीछे इसमें काम करने वाले लोगों की मानसिकता को देखना जरुरी है. भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम जी बताया करते थे की श्री सतीश धवन ने  एक बार असफलता होने पर उसकी पूरी जिम्मेदारी अपने सर पे ले ली और अगले साल जब सफलता मिली तो वो सारी सफलता अपनी टीम के नाम कर दी. ऐसा अक्सर नहीं होता है - अधिकाँश  संगठनों में इसका उलटा ही होता है. इसी कारण कर्मचारियों में काम करने की लगन नहीं पैदा होती है. लोग काम करने से जी चुराने लग जाते हैं. इसरो में काम करने की ललक पैदा हो जाती है क्योंकि हर कर्मचारी को पूरी क्रेडिट मिलती है और उसको काम करने के लिए उत्साह, सहारा और समर्पण का माहौल मिल जाता है. ये छोटी छोटी बातें ही किसी कम्पनी को महान बना देती है तो किसी कंपनी को बर्बाद कर देती है. 

इसरो में हर कर्मचारी उच्चतम   आदर्श की कल्पना करता है और उन ऊंचाइयों को छूने की सोचता है जिनसे उसको फक्र हो. जब संगठन का हर कर्मचारी अपने कार्यक्षेत्र  के उच्चतम आदर्शों को पाने के लिए प्रतिबद्ध हो जाता है तो उस संगठन में कार्य करने का अनुभव हर व्यक्ति के लिए एक संस्मरण होता है. हर व्यक्ति रोज अपने ही रिकार्ड तोड़ता जाता है. लक्ष्य तो उस मंजिल पर होता है जो हर दृस्टि से श्रेष्ठ हो. सीखने और सिखाने  का यहाँ पर एक माहौल तैयार हो जाता है. जो आज इसरो में हो रहा है वो कल हर भारतीय संगठन में होना चाहिए और फिर पुरे देश को इस तरह तरक्की मिलेगी की हम सब को फक्र होगा. 

लोगों को फिर से संगठन में काम करने के लिए और संगठन को महान   बनाने  के लिए समर्पण भाव पैदा करने के लिए प्रेरित करना पड़ेगा. शिक्षण संस्थाओं को विद्यार्थियों को उनके व्यक्तिगत कार्य नहीं बल्कि समूह कार्य के आधार पर मूल्याङ्कन शुरू करना पड़ेगा. परिवारों और सामजिक संगठनों को फिर से लोगों को जोड़ने का कार्य करना पड़ेगा. हर उस विचार को नकारना पड़ेगा जो लोगों को तोड़ता है और हर उस विचार को सशक्त बनाना पड़ेगा जो लोगों को जोड़ता है और उनमे संगठन और देश के प्रति समर्पण का भाव पैदा करना  है. सरकारी पहल नहीं सामूहिक पहल की जरुरत है जिसमे सिर्फ और सिर्फ कार्य और संगठन के उद्देश्यों के प्रति समर्पण को तबज्जु मिले.

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