विकास' कैसे हो? मुझे से किसी ने पूछा: "आज आम व्यक्ति की आम्दानी के रास्ते सीमित हो रहे हैं. उसको अलग अलग सरकारी टैक्स अधिकारियों का डर सता रहा है. कब कौन सा विभाग पेनल्टी लगा दे? सरकारी प्रक्रियाएं ऑनलाइन की गयी है - ये अच्छी बात है लेकिन सरकारी विभागों के चक्कर तो आज भी लगाने ही पड़ते हैं. कार्य करना मुश्किल हो गया है. 100 शहरों को स्मार्ट सिटी के रूप में सुधारा जा रहा है लेकिन आम तौर पर तो शहरों और गावों की हालात बद से बदतर हो रही है. भ्रस्टाचार हर दूसरे दिन बढ़ रहा है. पैसे के बल पर भ्रस्ट नेता टिकट भी ले लेते हैं और चुनाव भी जीत जाते हैं - न तो स्कूलों में अध्यापक हैं न अस्पतालों में डॉक्टर न सरकारी दफ्तरों में कर्मचारी - कही पोस्ट खाली है तो कहीं हड़ताल है. कर्मचारियों को देने के लिए बजट नहीं पर सांसदों को दिया जाने वाला बजट हर साल बढ़ाया जा रहा है भले ही वो सांसद साल में ३० दिन भी संसद नहीं आते हों. देश सेवा करने के इच्छुक लोगों को सरकारी विभाग काम नहीं करने देना चाहते और करोड़पति लोग पैसे के बल पर उच्च पदों (जैसे राज्य सभा सदस्य) पर आसीन हो जाते हैं. बताइये विकास कहाँ है.?" मैं उसकी बात से सहमत नहीं हूँ लेकिन मुझे पता नहीं उसको क्या जवाब दूँ तो सोचा उसके प्रश्न को आपके सामने रख देता हूँ - शायद आप के पास जवाब हो. प्रश्न है विकास क्या है? तकनीक के इस युग में बदलाव तो स्वाभाविक है लेकिन उस बदलाव का आम व्यक्ति की जिंदगी में सकारात्मक प्रभाव आये तो ही विकास परिलक्षित होगा. आज हर व्यक्ति के पास आधुनिक तकनीकी उपकरण है - लेकिन इससे विकास कहाँ हुआ? विकास तो तब हो जब हर व्यक्ति के मन में स्वाभिमान से भरी ख़ुशी हो, चेहरे पर मुस्कान हो और उसके पास रोजगार (या स्वरोजगार) के साधन हो और शिक्षा - स्वास्थ्य की समुचित व्यवस्था हो. हालांकि एक व्यक्ति विकास नहीं ला सकता लेकिन २० लाख करोड़ का सरकारी बजट विकास लाने के लिए कोई कम तो नहीं है. असल मुद्दा तो है बजट के विश्लेषण का. हर व्यक्ति को सरकारी बजट के विश्लेषण का अधिकार भी है और दायित्व भी. लेकिन बजट की दिशा और व्यय तो उन लोगों के ऊपर निर्भर है जिन को लोगों ने चुन कर सत्ता सौंपी है. यानी 'सत्ता' 'विकास' की दिशा तय कर सकती है. मानवीय जीवन को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली ताकत है सत्ता की ताकत - जो चाहे तो सही नीतियों और सही नेताओं के आधार पर पुरे देश का कायाकल्प कर सकती है - लेकिन प्रश्न है की जब हर तरफ सुधार की बात हो रही है तो हमारे सत्ता के गलियारों की सफाई की बात क्यों नहीं हो रही. उन गलियारों का रास्ता चुनाव नामक प्रक्रिया से शुरू होता है अतः आज चुनाव प्रक्रिया में सुधार की ही बात हो. मानवीय जीवन में सत्ता और शक्ति सभी चाहते हैं - लेकिन उनके लिए सुपात्र बहुत कम होते हैं. व्यवस्थागत कमियों के कारण सुपात्र बहार बैठे रह जाते हैं और निकृष्ट लोग सत्ता का आनंद लेते हैं. अगर सुपात्र लोग सत्ता को हासिल कर पाएं तो व्यवस्थाओं में चमत्कारी रूप से सुधार आ सकता है. छोटे से छोटे व्यक्ति की आवाज में भी ताकत है और अगर सभी लोग आवाज उठायें तो सिर्फ और सिर्फ सुपात्र ही सत्ता तक आ पाएंगे - और फिर इससे सबका भला होगा. अपने शैक्षणिक जीवन मैं मेने शिक्षण संस्थाओं में चुनाव के अनेक प्रकार देखे हैं. महाविद्यालयों में चुनाव के कारण फ़ैल रही गन्दी राजनीति भी देखि तो चुनाव की शानदार व्यवस्थाएं भी देखि (जिन के कारण छात्र बहुत परिपक्व और मिलनसार बन रहे हैं). ऐसे चुनाव भी देखे जिनके कारण छात्र अद्भुत रूप से शानदार कार्य कर रहे हैं और अपने शिक्षण संस्थान के सपनो को साकार कर रहे हैं तो ऐसे निकृष्ट चुनाव भी देखे जिन के कारण छात्र पैसे - और शराब का खुल्लम खुल्ला दुरूपयोग करने लगे. व्यवस्थाएं बनाने वाले हम लोग ही हैं - कहीं शानदार व्यवस्थाएं बनादि तो कहीं निकृष्ट व्यवस्थाएं बनादि. अगर लोगों ने चाहा तो अद्भुत व्यवस्थाओं का निर्माण हो गया - और अगर लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे तो निकृष्ट व्यवस्थाओं का निर्माण हो गया. एक शिक्षण संस्थान में विद्यार्थियों में चुनाव का आधार होता था - उसके कार्य परिणाम - विद्यार्थी मिल जुल कर काम करते थे और अल्प काल में अद्भुत लक्ष्य हासिल करते थे और फिर चुनाव में जीत जाते थे और फिर उत्तरोत्तर ज्यादा से ज्यादा शानदार काम करते थे - सिर्फ चुनाव की प्रक्रिया के कारण योग्यतम विद्यार्थी ही आगे आ पाते थे. उन विद्यर्थियों की कार्यदक्षता को देख कर मैं हैरान रह गया था. उनको सत्ता का भी लोभ नहीं था - जब अध्यक्ष का कार्य समय पूरा हुआ तो उसने नए अध्यख के चुनाव की प्रक्रिया शुरू की और अद्भुत लक्ष्य रखे और फिर सर्व सम्मति से अधिकतम लक्ष्य हासिल करने वाले को अध्यक्ष बना दिया. गुजरात चुनाव में क्या हो या क्या न हो - पर इतना निश्चित है की दोनों प्रमुख राजनैतिक पार्टियों ने बहुत पैसा बहाया है. ये लोकतंत्र के लिए हितकारी नहीं है. एक वाणिज्य के प्रोफ़ेसर के रूप में मैं ये प्रश्न करता हूँ की कोई भी पार्टी रुपया कहाँ से लाएगी और कैसे लाएगी - सोचिये और जबाब दीजिये. किसी भी पार्टी के पास कोई टकसाल नहीं है - और अगर वो चुनाव के लिए रूपये कहीं से लाती है तो उसका वापिस भुगतान भी होगा - किसी न किसी रूप में.होना तो ये चाहिए की कोई भी राजनीतिक पार्टी किसी भी व्यक्ति से सालाना अधिकतम १००० रूपये का ही चन्दा ले पाए - ज्यादा नहीं ताकि किसी व्यक्ति को पैसे के आधार पर राजनीतिक पार्टियों को प्रभावित करने की ताकत न मिले और राजनीतिक पार्टियां भी हकीकत में लोकतांत्रिक हो जाएँ. दुनिया में कोई भी चीज मुफ्त में नहीं मिलती - और अगर इस प्रकार के उद्देश्यों के लिए रूपये लिए गए हैं तो उनका भुगतान कैसे होगा - सोचने की बात है. जब भी आप राजनेताओं को अनाप शनाप रूपये खर्च करते हुए देखते हैं - तो तुरंत चिंतित हो जाइये - कहाँ से आ रहे हैं ये रूपये? कोई क्यों दे रहा हैं इनको इतने रूपये? क्या फायदा उठाया जा रहा है इनके बदले मैं? सोचिये - ये सब बाते सोचने की है. आज तो छोटे से छोटा व्यापारी भी दो नंबर का काम नहीं करना चाहता है - फिर ये राजनैतिक पार्टियां इतना रुपया कहाँ से ला रही हैं और कैसे? बीकानेर में वर्षों पूर्व एक गांधी वादी व्यक्तित्व (वो भी मोदी थे) ने मुझ से कहा था की चुनाव की ये व्यवस्था हमारे देश में भ्रस्टाचार की जड़ है. मैंने उनसे इसका समाधान जानना चाहा - उन्होंने समाधान भी बताया और मुझे ये भी बताया की उन्होंने वो समाधान सभी राजनीतिक पार्टियों को भेजा है लेकिन किसी से भी कोई भी जवाब नहीं आया है. उनसे बातचीत कर के मुझे लगा की देश में बदलाव लाना बड़ा आसान है अगर कोई व्यक्ति सिर्फ ऐसी व्यवस्थाएं स्थापित कर पाए जिनमे : - १ जो लोग वाकई में जनता का भला करते है और जन कल्याण में लगे रहते हैं - और आदर्श जीवन जीते हैं - सादा जीवन -उच्च विचार - उनको ही राजनीति में आगे आने का मौका चाहिए और इसके लिए चुनाव की वर्तमान व्यवस्था में बदलाव की जरूरत है. २. जो लोग शिक्षाविद हैं उनको शिक्षण संस्था स्थापित करने का मौका मिलना चाहिए - ताकि वो मूल्य आधारित क्षिक्षा व्यवस्था स्थापित कर पाएं. ऐसे लोगों को शिक्षण संस्था स्थापित करने में मदद होनी चाहिए. ३. जो लोग दिल से चिकित्सक है और हमेशा मरीजों के लिए उपलब्ध रहते हैं उनको हॉस्पिटल स्थापित करने में मदद होनी चाहिए. सरकार आज आर्थिक जगत में सुधार लाने के लिए इतने प्रयास कर रही है लेकिन जब तक राजनीतिक क्षेत्र साफ़ नहीं होगा - भ्रस्टाचार दूर नहीं हो पायेगा - अतः प्राथमिकता के आधार पर इस क्षेत्र में सुधार होना चाहिए. चुनाव की ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिसमे सरकार ही आवश्यक व्यय करे - और सभी उम्मीदवारों को अपनी बात कहने का मौका प्रदान करे. एक युग था जिसमे शास्त्री जी जैसे लोग नेता बन कर उभर के आ पाए थे और नितांत सादगी से जीवन जीते हुए उन्होंने मूल्य आधारित प्रशाशन की नीव रखी थी - आज फिर से चुनाव व्यवस्था के प्रहरियों (हो सकता है ये पहल चुनाव आयोग ले ) को जगाने की जरुरत है की वो चुनाव की इस प्रक्रिया में मूक दर्शाक बन कर न बैठे बल्कि चुनाव व्यवस्था को पारदर्शी, मितव्ययी, और ऐसी व्यवस्था बनाये जिसमे प्रत्याशी के चयन से ले कर चुनावी व्यय तक एक एक बात पारदर्शी हो. ये निश्चित है की चुनावी व्यवस्था को अधिक से अधिक सुधार की जरुरत है. |
Wednesday, December 27, 2017
विकास' कैसे हो?
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